श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पसंद अपनी अपनी…“।)
अभी अभी # 357 ⇒ पसंद अपनी अपनी… श्री प्रदीप शर्मा
तेरी पसंद क्या है,
ये मुझको खबर नहीं।
मेरी पसंद ये है कि
मुझको है तू पसंद।।
हमने कब किसी की पसंद की परवाह की है, बस जो खुद को पसंद आया, उसी की चिंता की है। जब भी रिश्ते तय होते थे, पहले लड़की देखी जाती थी, वह भी ठोक बजाकर, अगर बुजुर्गों को पसंद आई, तो फिर आपकी बारी आती थी। पति के पहले आप सिर्फ राष्ट्रपति होते थे, आपको तो सिर्फ मोहर लगानी होती थी।
यह तो हुई लड़कों की बात। लड़कियों पर तो बड़े बूढ़ों की बचपन से ही निगाह होती थी। खुद उनकी शादी बचपन में इसी तरह तय जो हुई थी, तेरह, पंद्रह और सत्रह वर्ष बहुत हुए। गुड्डे गुड़ियाओं से खेलने की उम्र में, उनके हाथ भी को पीले कर दिए गए थे।।
समय बदला, युग बदला, परिस्थिति बदली। नौकरी वाले लड़कों की मांग बढ़ने लगी। मास्टरों की तो लॉटरी लग गई। गांव में एक मास्टर की बहुत इज्जत होती थी। उसकी पत्नी भी मास्टरानी कहलाती थी। उधर शहरों में दफ्तर के बाबू तक दहेज मांगने लग गए। लड़की सुखी रहेगी। बाबू की ऊपरी कमाई भी बहुत है। अब तुझे कलेट्टर मिलने से तो रहा। राज करेगी। तब लड़कियों की पसंद कौन पूछता था।
फिर आया सह शिक्षा यानी कोएजूकेशन और कॉन्वेंट/पब्लिक स्कूल का जमाना। लड़कियां भी अंग्रेजी में गिटर पिटर करने लगी। कॉलेज में पांव रखते ही उनके भी पर लग गए। उनकी भी पसंद और नापसंद का खयाल रखा जाने लगा। अच्छे संस्कारी लड़कों की तलाश की जाने लगी। पढ़ लिखकर वे भी अपने पांवों पर खड़ी होने लगी।।
चार युग हमने नहीं देखे, सिर्फ कलयुग देखा है। यहां हर २५ वर्ष में युग बदलता है। पसंद के रिश्ते हों, अथवा तय किए हुए, हमारे समय के रिश्ते आज तक टिके हुए हैं। आर्थिक अभाव, पारिवारिक संघर्ष, आपसी मनमुटाव और लड़ाई झगड़े भी, अगर विवाह की बुनियाद को हिला नहीं पाए तो कैसी पसंद, नापसंद और गिला शिकवा।
७५ वर्ष की उम्र में हमने मानो तीनों युग देख लिए, लेकिन इस कलयुग में सिर्फ मियां बीवी का राजी होना जरूरी है, काहे का काजी और काहे के फेरे, बिन फेरे हम तेरे वाला लिव इन रिलेशन अगर दोनों की पसंद हों, तो फिर आप किसको दोष देंगे।।
हम कौन होते हैं किसी पर अपनी पसंद थौंपने वाले, फिर भी सामाजिक और नैतिक मूल्यों का महत्व ना कभी घटा है और ना कभी घटेगा। विवाह एक पवित्र सामाजिक संस्था है एवं पति पत्नी का संबंध एक आत्मिक और धार्मिक गठबंधन। समय की नाजुकता के मद्दे नजर एक दूसरे की पसंद नापसंद इसमें बहुत माने रखती है ;
जो तुमको हो पसंद
वही बात कहेंगे।
तुम दिन को अगर
रात कहो, रात कहेंगे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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