श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रेम-पर्वत…“।)
अभी अभी # 283 ⇒ प्रेम-पर्वत… श्री प्रदीप शर्मा
प्रेम में अगर पर्वत जितनी ऊंचाइयां हैं, तो समंदर जितनी गहराइयां भी। मेरा प्यार है, इतना ऊँचा, जैसे राम रहीमा। कविता और प्यार का चोली-दामन का साथ है ! मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ, तेरे प्यार में ऐ कविता।
अंग्रेज़ी नाटककार शेक्सपियर एक कवि भी थे, इसलिए कॉमेडी और ट्रेजेडी दोनों लिख पाए ! अपनी कविता true love में वे कहते हैं ;
Let me not to the marriage of true minds,
Admit impediments.
बहुत से शायरों ने प्यार को जिस्म से ऊपर माना है।
तुम अगर भूल भी जाओ, तो ये हक है तुमको, मेरी बात और है, मैंने तो मोहब्बत की है।।
साहिर और अमृता प्रीतम का जितना बड़ा संसार सृजन और शायरी का है, उतना ही बड़ा संसार प्रेम का। विरह और मिलन, प्रेम के दो अलौकिक बिंदु हैं, जहाँ एक ओर अगर कृष्ण हैं, तो दूसरी ओर मीरा और राधा। मिलने की खुशी ना बिछड़ने का ग़म। सारे ये रिश्ते खो जाएँ।
मैं, मैं ना रहूँ, तू, तू ना रहे।
इक दूजे में खो जाएँ।
क्या खोना ही पाना है ?
तुझे खो दिया हमने पाने के बाद तेरी याद आए।
और याद भी कैसी !
याद में तेरी जाग जाग के हम,
रात भर करवटें बदलते हैं।
गुलज़ार तो प्यार को और कोई नाम ही नहीं देना चाहते।।
क्या धरती और क्या आकाश !सबको प्यार की प्यास। जब तक जीव और ब्रह्म अलग हैं, यह प्यार का सिलसिला चलता ही रहेगा। नदी सागर में मिलकर नदी नहीं रह जाती। सागर की लहरें फिर भी किनारे की ओर जाती हैं, और फिर लौट आती हैं। एक तड़प है प्यार में, कई अफ़साने हैं।
किसी से मिलन है, किसी से जुदाई। नये रिश्तों ने तोड़ा नाता पुराना, मैं तो दीवाना, दीवाना, दीवाना। हाँ ! दीवाना हूँ मैं, ग़म का मारा हूँ मैं। माँगी खुशियाँ मगर, ग़म मिला प्यार में। आज कोई नहीं मेरा, इस संसार में।।
प्यार अगर बाँटने की चीज है, तो सहेजने की भी। प्रेम, इश्क, प्यार सबमें ढाई आखर ही हैं। हमें पंडित बनकर क्या करना। वफ़ा, बेवफ़ा तो ठीक है, बस आपस में नफ़रत पैदा न हो। किसे मालूम था कि राजनीति भी नफ़रत पैदा कर सकती है। इतने साल हम खुशहाल थे, क्योंकि हमारे दिलों में नफ़रत नहीं थी।
वे आए हैं, तोहफ़ों का टोकरा साथ लाए हैं। अपनों के लिए मोहब्बत है, परायों के लिए नफ़रत। फ़लसफा प्यार का तुम क्या जानो ! तुमने कभी प्यार ना किया। तुमने इंतज़ार ना किया।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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