ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 38 – हेमन्त बावनकर

 

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 38 

 

परसाई स्मृति अंक – 22 अगस्त 2019 

 

आदरणीय गुरुवर डॉ राजकुमार सुमित्र जी और आचार्य भगवत दुबे जी के आशीर्वाद एवं मित्र द्वय श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के अथक प्रयास तथा डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी के सहयोग से विगत 24 घंटों के समय में यह अविस्मरणीय अंक कुछ विलंब से ही सही आपको इस आशा से सौंप रहा हूँ कि आपका भरपूर स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहेगा।

मैं श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का हृदय से आभारी हूँ  जिन्होने इतने कम समय पर अमूल्य सामग्री/साहित्य/अप्रकाशित/ऐतिहासिक तथ्य एवं चित्र जुटाये। साथ ही उनके अतिथि संपादकीय के आग्रह स्वीकार करने के लिए हृदय से आभार।

श्रद्धेय परसाई जी पर डिजिटल मीडिया में संभवतः यह प्रथम प्रयास होगा।

 

हेमन्त बवानकर 

22 अगस्त 2019

 

(अपने सम्माननीय पाठकों से अनुरोध है कि- प्रत्येक रचनाओं के अंत में लाइक और कमेन्ट बॉक्स का उपयोग अवश्य करें और हाँ,  ये रचनाओं के शॉर्ट लिंक्स अपने मित्रों के साथ शेयर करना मत भूलिएगा। आप Likeके नीचे Share लिंक से सीधे फेसबुक  पर भी रचना share कर सकते हैं। )

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 37 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 37

 

मेरा सदैव प्रयत्न रहता है कि मैं ई-अभिव्यक्ति से जुड़े प्रत्येक सम्माननीय लेखक एवं पाठकों से संवाद बना सकूँ। मैं सीधे तो संवाद नहीं बना पाया किन्तु, सम्माननीय लेखकों की रचनाओं के माध्यम से अवश्य जुड़ा रहा।  एक कारण यह भी रहा कि हम  ई-अभिव्यक्ति को तकनीकी दृष्टि से और सशक्त बना सकें ताकि हैकिंग एवं संवेदनशील विज्ञापनों से बचा सकें। अंततः इस कार्य में आप सबकी सद्भावनाओं से हम सफल भी हुए।

ई-अभिव्यक्ति में बढ़ती हुई आगंतुकों की संख्या हमारे सम्माननीय लेखकों एवं हमें प्रोत्साहित करती हैं।  हम कटिबद्ध हैं आपको और अधिक उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध कराने  के लिए।

 

हम प्रयासरत हैं कि आपको तकनीकी रूप से आगामी अंकों को नए संवर्धित स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सके।

अब मेरा प्रयास रहेगा कि आपसे ई-संवाद अथवा अपनी रचनों के माध्यम से जुड़ा रहूँ ।

अंत में मैं पुनः इस यात्रा में आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ और मजरूह सुल्तानपुरी जी की निम्न पंक्तियाँ  दोहराना चाहता हूँ :

 

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

12 अगस्त 2019

 

(अपने सम्माननीय पाठकों से अनुरोध है कि- प्रत्येक रचनाओं के अंत में लाइक और कमेन्ट बॉक्स का उपयोग अवश्य करें और हाँ,  ये रचनाओं के शॉर्ट लिंक्स अपने मित्रों के साथ शेयर करना मत भूलिएगा।)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-35 – कविराज विजय यशवंत सातपुते (सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर …. अभिव्यक्ती ठरली अग्रेसर!)

कविराज विजय यशवंत सातपुते

अतिथि संपादक – ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–35  

 

(मैं कविराज विजय यशवंत सातपुते  जी का हृदय से आभारी हूँ। उन्होने मेरा आग्रह स्वीकार कर आज के अंक के लिए अतिथि संपादक के रूप में अपने उद्गार प्रकट किए। श्री दीपक करंदीकर जी, महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे के माध्यम से आपसे संपर्क हुआ और पता ही नहीं चला कि कब मित्रता हो गई।  ई-अभिव्यक्ति के मराठी साहित्य को इन ऊंचाइयों तक पहुंचाने में आदरणीय कविराज विजय यशवंत सातपुते जी का विशेष योगदान रहा है।  आपके माध्यम से वरिष्ठ, अग्रज एवं नवोदित साहित्यकारों को ई-अभिव्यक्ति से जोड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मराठी साहित्य का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। यदि ई-अभिव्यक्ति इस यज्ञ में मराठी साहित्य और साहित्यकारों से पाठकों को कुछ अंश तक भी जोड़ने में सफल हुआ तो यह हमारा सौभाग्य होगा। – हेमन्त बावनकर)

 

? सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर .. 

         . . . अभिव्यक्ती ठरली  अग्रेसर. !  ?

 

ई-अभीव्यक्ती डॉट कॉम हे हिंदी, मराठी व इंग्रजी भाषिक साहित्यिकांसाठी हेमंत बावनकर यांनी सुरू केलेले व्यासपीठ चांगलेच नावारूपाला आले आहे. वाचकांचे वाढते प्रमाण लक्षात घेता या  उपक्रमाचे यथोचित कौतुक व्हायला हवे.

संगणक तंत्रज्ञान विकसित झाल्याने जग एकमेकांशी जास्त जवळ आले आहे. ही जवळीक एकता,  साहित्य, संस्कृती, परंपरा आणि  इतिहास यांची सांगड घालणारी ठरावी यासाठी हेमंत बावनकर  आजही  कार्यरत आहेत.

कथा, कविता  आणि लेख यातून प्रत्येक जण व्यक्त होत आहे. आपल्या कलेतून समाज प्रबोधन करीत आहे.  आबालवृद्धांना उपयुक्त  असे लेखन मराठी, हिंदी व इंग्रजी भाषेतून या साईटवरून प्रसारित होत आहे.  सोशल नेटवर्किंग साईट वर ही  उपलब्धी साहित्याचा प्रचार  आणि प्रसार करण्यात  अग्रेसर ठरली आहे.

मराठी भाषिकांना सुरू केलेले हे नियमित साप्ताहिक स्तंभलेखन मराठी भाषा संवर्धनाचे महत्त्व पूर्ण कार्य करीत आहे.  अनेक  उत्तम कविता,  कथा, लेख वाचकांसमोर येत  आहेत. माणूस विचारांनी  एकमेकांशी जोडला जातोय ही घटना सामान्य नसून जागतिक  आहे. या लेखन संघटनाबद्दल त्यांचे मनापासून आभार.   मराठी, हिंदी भाषिकांना प्रकाशझोतात आणण्यासाठी त्यांनी  उभारलेल्या या साहित्य चळवळीस,  अभिनव साहित्य  उपक्रमास दिवसेंदिवस उत्तम यश मिळते  आहे. भाषा कोणतही असो, प्रतिभावंत साहित्यिकाची अभिव्यक्ती रसिकांपर्यत पोहोचविण्याचे महत्त्व पूर्ण कार्य  हेमंत जी करीत आहेत.

विविध प्रकारच्या विषयावर प्रसारित होणाऱ्या लेखातून समाजप्रबोधन तर होतेच  आहे. या  उपक्रमात लिहिणा-या लेखकांना प्रसिद्धी तर मिळतेच  आहे पण त्यांना रसिकांच्या प्रतिसादातून मिळणारे प्रोत्साहन त्यांचा दैनंदिन लेखन कला व्यासंग वाढवतो आहे. कौटुंबिक प्रांतिक,  प्रादेशिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक विचारांनी हे व्यासपीठ ज्ञानदान करते आहे. माणूस माणसाच्या जवळ आणण्याचे काम त्याचे साहित्य करीत  असते.

आपण काय लिहतो? कसे लिहितो? का लिहितो याचे आकलन  आपोआपच होते  आहे. या  उपक्रमातील लेखक जास्तीत जास्त लोकांपर्यत पोहोचावा. जागतिक स्तरावर कवी, कवयित्री लेखक यांचे  लेखन  अनुवादित व्हावे या हेतूने सुरू झालेला हा  उपक्रम  अतिशय स्तुत्य  आणि प्रशंसनीय आहे.

हेमंत बावनकर यांनी माणूस जोडण्याचे  अभियान हाती घेतले आहे .या  अभियानात लेखकांनी दिलेले योगदान तितकेच प्रशंसनीय आहे.  वाचन संस्कृती टिकविण्यासाठी उचलेले हे पाऊल  सोशल नेटवर्किंग साईट वर जास्तीत जास्त प्रवास करून जागतिक स्तरावर  विचारांचे आदान प्रदान करण्यात यशस्वी ठरो या शुभेच्छा.

 

✒ विजय यशवंत सातपुते, पुणे

अतिथि संपादक- ई-अभिव्यक्ति

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

5 जुलै 2019

 

(उत्कृष्ट साहित्य  पढ़ें तथा व्हाट्सएप पर भेजे हुए शॉर्ट लिंक्स अपने मित्रों से सोशल मीडिया (फेसबुक/व्हाट्सएप) पर  अवश्य शेयर करें – हेमन्त बावनकर)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 – ☆बाल-साहित्य विशेषांक☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 ☆बाल साहित्य विशेषांक ☆          

कई बार अनायास ही कुछ संयोग बन जाते हैं। हम प्रयास अवश्य करते हैं किन्तु, ईश्वर हमें संयोग प्रदान करते हैं और हम मात्र माध्यम हो जाते हैं।  अब इस अंक को ही लीजिये।  कुछ रचनाएँ ऐसी आईं जिन्होने इस अंक को लगभग बाल साहित्य विशेषांक का स्वरूप दे दिया। कहते हैं कि –  बाल साहित्य का सृजन अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसके लिए हमें अपने बचपन में जाना होता है। शायद इसीलिए विश्व में बाल साहित्य का अपना एक अलग स्थान है। फिर एक पालक और दादा/दादी/नाना/नानी के तौर पर हम कई बाल सुलभ प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते जिनके उत्तर बाल साहित्य में छुपे  रहते हैं।

आज के अंक में  दैनिक स्तम्भ श्रीमद भगवत गीता के पद्यानुवाद केअतिरिक्त पढ़िये निम्न विशिष्ट रचनाएँ –

  • लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अंकित प्रथम माता-पुत्री द्वय सुश्री नीलम सक्सेना चन्द्र एवं सुश्री सिमरन चंद्रा जी द्वारा रचित अङ्ग्रेज़ी काव्य संग्रहWinter shall fade” की कविता Dreams ☆
  • बाल-साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी की बाल कथा ? लू की आत्मकथा ?
  • प्रसिद्ध मराठी साहित्यकार श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी का मराठी आलेख ? चिमणीचा दात ?
  • प्रसिद्ध हास्य योग प्रशिक्षक, ब्लॉगर, एवं प्रेरक वक्ता श्री जगत सिंह बिष्ट जी की रचना-प्रयोग  ☆ Laughter Yoga Among School Girls in India ☆

आप इसे संयोग कह सकते हैं किन्तु, कई बार हमारे कुछ प्रयोग संयोग बन जाते हैं। विगत में हमने ऐसे ही कुछ विशिष्ट विषयों पर विशेषांक प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हम साहित्य में ऐसे और प्रयोग करने हेतु कटिबद्ध हैं।

यह संभवतः पहली वेबसाइट है जो आपको हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी में प्रतिदिन लगभग 4 से 6 सकारात्मक रचनाएँ प्रस्तुत करती है। आपके  अपने मंच e-abhivyakti को औसतन 250 से 300+ लेखक/पाठक प्रतिदिन पढ़ते हैं और अब तक 19000 से अधिक विजिटर्स पढ़ चुके हैं। आपके सुझाव और रचनाएँ e-abhivyakti को सतत नए आयाम प्रदान करते हैं जिसके लिए हम आपके आभारी हैं।

हम प्रयासरत हैं कि आपको तकनीकी रूप से आगामी अंकों को नए संवर्धित स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सके।

इस यात्रा में मुझे अक्सर मजरूह सुल्तानपुरी जी की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

21 मई 2019

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 33 – ☆ हमारे सम्माननीय साहित्यकार – सम्मान/अलंकरण ☆ – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 33                

? हमारे सम्माननीय साहित्यकार – सम्मान/अलंकरण ?

हमारे ई-अभिव्यक्ति संवाद में मैं आपको ई-अभिव्यक्ति परिवार से जुड़े कई सम्मानित साहित्यकार सदस्यों की विगत कुछ समय पूर्व प्राप्त उपलब्धियों के बारे में अवगत कराना चाहूँगा। जब हमारे परिवार के सदस्य गौरवान्वित होते हैं तो हमें भी गर्व भी का अनुभव होता।

नीलम सक्सेना चंद्रा –

नीलम सक्सेना चन्द्र जी को 1 मार्च 2019 को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सोहनलाल द्विवेदी सम्मान से नवाजा गया। यह उनकी किशोर/किशोरियों की कहानी की पुस्तक “दहलीज़” हेतु मिला। यह सम्मान माननीय विनोद तावड़े जी, केबिनेट मंत्री महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रदान किया गया।

56वीं पुस्तक Authorpress India द्वारा प्रकाशित काव्य  एक कदम रौशनी की ओर नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित बच्चों की चित्रकथा “कसम  मटमैले मशरूम की । इस चित्रकथा की 20,000 प्रतियाँ प्रकाशित

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ –

प्रसिद्ध साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कादंबरी, जबलपुर द्वारा “स्व. शिवनारायण पाठक सम्मान”। इसके अतिरिक्त आपको नई दुनिया के ‘जबलपुर साहित्य रत्न’ सहित अनेक स्थानीय, प्रादेशिक एवं राज्यस्तरीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त।  आपका काव्य संग्रह किसलय के काव्य सुमन एवं दोहा संग्रह किसलय मन अनुराग काफी चर्चित रहे हैं।

 

सुश्री मीनाक्षी भालेराव, पृथा फ़ाउंडेशन, पुणे –

सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी को ‘इंस्पायर: बियॉन्ड मदरहुड’ अवार्ड 2019 से प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री मानसी जोशी-राय द्वारा सम्मानित किया गया।
पृथा  फाउंडेशन महाराष्ट्र में जरूरतमंद अनाथ लड़कियों की शिक्षा के लिए ग्रामीण गरीबों और साहित्यिक योगदान की मदद के लिए काम कर रहा है। यह कार्यक्रम इंस्पायर इंस्टीट्यूट की  निरुपमा और प्रेरणा सिन्हा द्वारा आयोजित किया गया था।

 

रोटरी क्लब सिंघगढ़ शाखा द्वारा “द अंटोल्ड स्टोरी ऑफ जोंटी रोड्स” में “सोशल इंपेक्ट” पर आयोजित कार्यक्रम में श्री टीकम शेखावत जी द्वारा प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी जोंटी रोड्स के साक्षात्कार के कार्यक्रम में सामाजिक कार्यों के लिए का सम्मान।

 

सुश्री श्वेता सक्सेना जी द्वारा वुमेन्स टी वी की ओर से सामाजिक कार्यों के लिए सम्मान

 

 

कविराज विजय यशवंत सातपुते –

 

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मशाल न्यूज़ नेटवर्क/चैनल, पालघर द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय “एकपात्री स्पर्धा – 2019 – द्वितीय स्थान

 

सुश्री रंजना मधुकरराव लसणे –

 

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मशाल न्यूज़ नेटवर्क/चैनल, पालघर द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय “कविता स्पर्धा – 2019 – द्वितीय स्थान

 

सुश्री आरुशी दाते –

सुश्री आरुशी दाते जी को हाल ही में  साहित्य संपदा द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय काव्यलेखन स्पर्धा में उनकी कविता “वसंत” को द्वितीय  पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

 

e-abhivyakti परिवार की ओर से आप सभी सम्माननीय साहित्यकारों को नमन करता है एवं कामना करता है कि आप और उन्नति के शिखर पर पहुंचे। स्वस्थ एवं सकारात्मक साहित्य का सृजन करें। पुनः बधाई एवं शुभकामनायें।

मैंने उपरोक्त जानकारी आपके लिए संकलित करने की चेष्टा की है। संभव है कि इन्हें इसके अतिरिक्त भी सम्मान/अलंकरण प्राप्त हुए हों जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ। यदि आप मुझसे ऐसे सम्मान/अलंकरण की जानकारी साझा करेंगे तो मुझे पाठकों से जानकारी साझा करने में प्रसन्नता होगी।

और हाँ एक बात तो आपसे बताना ही भूल गया आज इन पंक्तियाँ लिखे जाते तक आपके स्नेह से आपकी वेबसाइट के विजिटर्स की संख्या 17000+ हो गई है। इस स्नेह के लिए आभार।

आज के लिए बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

11 मई 2019

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 32 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 32               

आज के अंक में दो कवितायें प्रकाशित हुई हैं । सुश्री सुषमा सिंह जी, नई दिल्ली  की “कविता” एवं श्री मनीष तिवारी जी, जबलपुर की “साहित्यिक सम्मान की सनक”।  आश्चर्य और संयोग है की दोनों ही कवितायें सच को आईना दिखाती हैं। सुश्री सुषमा सिंह जी की “कविता” शीर्षक से लिखी गई कविता वास्तव में परिभाषित करती है कि कविता क्या है?  यह सच है कि संवेदना के बिना कविता कविता ही नहीं है। मात्र तुकबंदी के लिए शब्दसागर से शब्द ढूंढ कर पिरोने से कविता की माला में वह शब्दरूपी पुष्प अलग ही दृष्टिगोचर होता है और माला बदरंग हो जाती है। इससे तो बेहतर है अपनी भावनाओं को गद्य का रूप दे दें।

इसी परिपेक्ष्य में मैंने अपनी कविता “मैं मंच का नहीं मन का कवि हूँ”  में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं जो मुझे याद आ रही हैं।

 

जब अन्तर्मन में कुछ शब्द बिखरते हैं

जब हृदय में कुछ उद्गार बिलखते हैं

 

तब जैसे

शान्त जल-सतह को

कंकड़ तरंगित करते हैं।

तब वैसे

शब्द अन्तर्मन को स्पंदित करते हैं।

 

बस

कोई घटना ही काफी है।

बच्चे का जन्म

बच्चे की किलकारी

फूलों की फुलवारी

राष्ट्रीय संवाद

व्यर्थ का विवाद

यौवन का उन्माद

गूढ़ चिंतन सा अपवाद।

इन सबके उपरान्त

किसी अपने का

किसी वृद्ध का देहान्त

हो सकता है एक कारण

कुछ भी हो सकता है कारण

तब हो जाता है कठिन

रोक पाना मन उद्विग्न।

 

तब जैसे

मन से बहने लगते हैं शब्द

व्याकुल होती हैं उँगलियाँ

ढूँढने लगती हैं कलम

और फिर

बहने लगती है शब्द सरिता

रचने लगती है रचना

कथा, कहानी या कविता।

शायद इसीलिए

कभी भी नहीं रच पाता हूँ

मन के विपरीत

शायरी, गजल या गीत।

नहीं बांध पाता हूँ शब्दों को

काफिये मिलाने से

मात्राओं के बंधों से

दोहे चौपाइयों और छंदों से।

 

शायद वो प्रतिभा भी

जन्मजात होती होगी।

जिसकी लिखी प्रत्येक पंक्तियाँ

कालजयी होती होंगी

आत्मसात होती होंगी।

 

मैं तो बस

निर्बंध लिखता हूँ

स्वछंद लिखता हूँ

मन का पर्याय लिखता हूँ

स्वांतः सुखाय लिखता हूँ।

 

दूसरी कविता जिसका उल्लेख मैं ऊपर कर रहा था वह ख्यातिलब्ध कवि पंडित मनीष तिवारी जी की कविता “साहित्यिक सम्मान की सनक”। यह कविता सुश्री सुषमा सिंह जी की “कविता” के विपरीत उन साहित्यिकारों पर कटाक्ष है जो सम्मान की सनक में किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।  संपर्क, खेमें,  पैसे और अन्य कई तरीकों से प्राप्त सम्मान को कदापि सम्मान की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता। श्री मनीष तिवारी जी की सार्थक, सटीक एवं बेबाक व्यंग्य आईना दिखाती है उन समस्त  तथाकथित साहित्यकारों को जो साहित्यिक सम्मान की सनक से पीड़ित हैं ।

साथ ही मुझे डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के पत्र  की  निम्न  पंक्तियाँ  याद आती हैं  जो उन्होने  मुझे आज से  37  वर्ष पूर्व  लिखा था  –

“एक बात और – आलोचना प्रत्यालोचना के लिए न तो ठहरो, न उसकी परवाह करो। जो करना है करो, मूल्य है, मूल्यांकन होगा। हमें परमहंस भी नहीं होना चाहिए कि हमें यश से क्या सरोकार।  हाँ उसके पीछे भागना नहीं है, बस।”

इसके अतिरिक्त आज आप पढ़ेंगे सुश्री विजया देव जी की मराठी कविता “व्रुत्त अनलज्वाला” एवं श्री जगत सिंह बिष्ट जी के हास्य योग की यात्रा में उनके हास्य योग के न्यूजीलेंड से पधारे  मित्र केरोलिन एवं डेस की स्मृतियाँ ।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

4 मई 2019

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 31 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–31               

कई बार विलंब एवं अत्यधिक थकान के कारण आपसे संवाद नहीं  कर पाता। कई बार प्रतिक्रियाएं भी नहीं दे पाता और कभी कभी जब मन नहीं मानता तो अगले संवाद में आपसे जुड़ने का प्रयास करता हूँ।

अब कल की ही बात देखिये । मुझे आपसे कई बातें करनी थी फिर कतिपय कारणों से आपसे संवाद नहीं कर सका। तो विचार किया कि – चलो आज ही संवाद कर लेते हैं।

प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी केंद्रीय विद्यालय, जबलपुर में मेरे प्रथम प्राचार्य थे। उनका आशीष अब भी बना हुआ है। ईश्वर ने मुझे उनके द्वारा रचित श्रीमद् भगवत गीता पद्यानुवाद की शृंखला प्रकाशित करने का सौभाग्य प्रदान किया। ईश्वर की कृपा से वे आज भी स्वस्थ हैं एवं साहित्य सेवा में लीन हैं। यदि मेरी वय 62 वर्ष है तो उनकी वय क्या होगी आप कल्पना कर सकते हैं?

श्री जगत सिंह बिष्ट जी भारतीय स्टेट बैंक में भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। योग साधना, ध्यान  एवं हास्य योग में उन्होने महारत हासिल की है। इसके अतिरिक्त वे एक प्रेरक वक्ता के तौर पर भी जाने जाते हैं। हास्य योग पर आधारित उनकी हास्य योग यात्रा की शृंखला अत्यंत रोचक बन पड़ी है।

श्री रमेश चंद्र तिवारी जी की “न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान” पुस्तक पर श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी की टिप्पणी काफी ज्ञानवर्धक एवं रोचक है। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने स्वयं इसी परिपेक्ष्य में  काफी शोध के पश्चात “जल, जंगल और जमीन” पुस्तक लिखी है।

सुश्री ऋतु गुप्ता जी की लघुकथा “वृद्धाश्रम” एवं आज डॉ मुक्ता जी की कविता “कुम्भ की त्रासदी” वृद्ध जीवन के विभिन्न पक्षों से हमें रूबरू कराती है। किन्तु इसके विपरीत कभी कभी मुझे क्यों लगता है कि वृद्ध जीवन की त्रासदी के लिए हम बच्चों को ही क्यों दोष देते हैं? क्या कभी हमने अपने जीवन में झांक कर देखा कि हममे से कितने लोगों ने अपने माता पिता की सेवा की है जो अपने बच्चों से अपेक्षा करें। फिर निम्न मध्य वर्ग के परिवार के पालक गण के तौर पर हम ही तो बचपन से उन्हें विदेश में पढ़ने बढ़ने के लिए स्वप्न देखते और स्वप्न दिखाते हैं।  यह पक्ष भी विचारणीय है।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का व्यंग्य “वो दिन हवा हुए” हमें अपने जमाने के चुनावों, चुनाव चिन्हों और माहौल से रूबरू कराती है।

अंत में सुश्री सुजाता काले जी कविता “खारा प्रश्न”, खारा ही नहीं बल्कि “खरा प्रश्न” जान पड़ता है। इस संदर्भ  में मुझे मेरी कविता “दिल, आँखें और आँसू” की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं जिसमें मैंने पुरुष की आँखों केहै।  खारे पानी की कल्पना की है।

 

कहते हैं कि –

स्त्री मन बड़ा कोमल होता है

उसकी आँखों में आँसुओं का स्रोत होता है।

 

किन्तु,

मैंने तो उसको अपनी पत्नी की विदाई में

मुंह फेरकर आँखें पोंछते हुए भी देखा है।

 

उसे अपनी बहन को

और फिर बेटी को

आँसुओं से विदा करते हुए भी देखा है।

 

उसकी आँखों में फर्ज़ के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह दूसरे घर की बेटी को

विदा करा कर लाया था।

अपनी बहन के विदा करने के अहसास एहसास के साथ।

अपनी बेटी के विदा करने के अहसास के साथ।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब तुमने आहट दी थी

अपनी माँ के गर्भ में आने की।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह तुम्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाता था

जब तुम गर्भ में थे

ताकि तुम सहर्ष निकल सको

जीवन के चक्रव्यूह से।

 

उसकी आँखों में विवशता के आँसुओं को तब भी देखा है

जब उसने स्वयं को विवश पाया

तुम्हारी जरूरी जरूरतों को पूरा करने में।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

2  मई 2019

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 30 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–30              

आज मई दिवस है, आप छुट्टियाँ माना रहे होंगे। वैसे तो मई दिवस मनाने के कई  कारण हैं । विश्व के विभिन्न भागों में कई लोग इसलिए भी मई दिवस मनाते हैं  क्योंकि वे  इस वसंत ऋतु की शुरुआत मानते हैं । किन्तु , मैंने जब से होश संभाला और जाना तब से मुझे पता चला कि मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब मैंने इसके तह में जाने की कोशिश की तो पता चला कि कई परेडों और हड़ताल के बात फ़ैडरेशन ऑफ ओर्गेनाइज्ड ट्रेड एंड लेबर यूनियनों नें अनौपचारिक रूप से अक्तूबर 1886  में तय किया कि काम का समय प्रतिदिन आठ घंटे निर्धारित किया जाए ताकि मजदूर पूरे दिन के कार्य में अत्यधिक श्रम और तनाव से स्वयम को बचा सके।

अभी अभी प्राप्त श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की कविता आपसे साझा करना चाहूँगा।

“मजदूर दिवस ”

यदि पेट पीठ से मिला
यदि बंडी में छेद मिला
चिलचिलाती धूप में मिला
भूख में हड़बड़या वो मिला
उधारी से वो सरोबार मिला
दवाई को तड़फता मिला
पसीने की गंध लिए मिला
ठेकेदार से मार खाता मिला
उधर नूनरोटी लिए मिला
दर्द को गले लगाता मिला
वोट डालते हुए डरते मिला
जहाँ भी मिला मैं ही मैं मिला

– जय प्रकाश पांडेय

आज के इस ऐतिहासिक दिवस पर आपका  अपार स्नेह और मेरा थोड़ा सा श्रम रंग लाया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जब मैं e-abhivyakti के डेश बोर्ड  का अवलोकन कर रहा था तो पाया कि हमने अब तक अनवरत 198 दिनों में 755 रचनाएँ प्रकाशित की एवं उनपर 610 कमेंट्स पाये हैं साथ ही विजिटर्स की संख्या 15,000 पार कर गई है। आप सभी का आभार। इसके अतिरिक्त और कई ऊंचाइयों को स्पर्श किया है जिन्हें मैं आपसे अलग से शेयर करूंगा। 

आज के अंक में आप पाएंगे  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी का  भगवतगीता के पद्यानुवाद में द्वितीय अध्याय का 60 वें श्लोक का पद्यानुवाद, हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी में भावार्थ।  श्री जगत सिंह बिष्ट जी की हास्य योग (Laughter Yoga) की यात्रा के दो पड़ाव भारतीय स्टेट बैंक सिटीजन कार्यक्रम एवं भारतीय स्टेट बैंक के प्रशिक्षण केन्द्रों में उनका हास्य योग का प्रवेश। डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी का देश को प्रगतिपथ पर ले जाने का काव्यात्मक आह्वान। श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे  जी की  मातृभाषा एवं देशप्रेम से ओतप्रोत मराठी कविता  “भुपाळी” । श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी का चुनाव चिन्हों एवं पुराने दिनों के चुनावों  पर आधारित राजनीतिक व्यंग्य  “वो दिन हवा हुए” । सुश्री निशा नंदिनी जी की रोलर कोस्टर “यूरोप यात्रा” जो आपको निश्चित ही यूरोप की सजीव यात्रा कराने में सक्षम है।

आपके सुझावों की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।

आज बस इतना ही।

हेमन्त बवानकर 

1 मई 2019

10.50 AM

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-29 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–29             

जिस स्तर के डिजिटल साहित्यिक मंच की परिकल्पना की थी, उस मार्ग पर आप सब के स्नेह से  प्रगति पथ पर e-abhivyakti अग्रसर है।

गुरुवर साहित्य मनीषियों का आशीर्वाद, सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर एवं सुधि पाठक ही मेरी पूंजी है।  विजिटर्स की बढ़ती संख्या 14,500 से अधिक मन में उल्लास भर देती है और सदैव नवीन प्रयोग करते रहने के लिए प्रेरित करती है। 15 अक्तूबर 2018 से प्रारम्भ यात्रा अब तक अनवरत जारी है।

आज e-abhivyakti के जन्म से सतत स्थायी स्तम्भ का स्वरूप लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी की योग-साधना/LifeSkills को कुछ समय के लिए विराम देते हैं जो कुछ अंतराल के पश्चात पुनः नए स्वरूप में आपसे रूबरू होंगे।

इसी बीच आध्यात्म/Spiritual स्तम्भ के अंतर्गत आप प्रतिदिन प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’  जी का  श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद आत्मसात कर रहे हैं।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का व्यंग्य विधा पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ – सवाल जवाब प्रति रविवार प्रकाशित हो रहा है।

आज से प्रति रविवार सुश्री आरुशी दाते जी का मराठी आलेख का साप्ताहिक स्तम्भ “मी_माझी” प्रारम्भ कर रहे हैं।

आज का अंक कई माय  में विशेषांक के स्वरूप में परिणित हो गया है।

आज के अंक में आप उपरोक्त साप्ताहिक स्तंभों के अतिरिक्त पढ़ सकेंगे सुश्री सुषमा सिंह जी की एक बेहद भावुक एवं हृदयस्पर्शी कविता “छल”। यह आपको तय करना है कि किसने किसको छल।  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी का व्यंग्य “रोमांच पैदा करते दर्रे”। भोपाल के न्यू मार्केट की गली में दोनों ओर से सड़क की ओर बढ़ती दुकानों के बीच व्यंग्यकार के राह चलते विभिन्न पात्रों की यात्रा निश्चय ही आपको रोमांच से भर देगी। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी की कविता “My Dreams” आपके स्वप्नों को साकार करने हेतु एक सकारात्मक संदेश देती है। इसे आप अपनी जीवन यात्रा से कैसे जोड़ते हैं यह आप पर निर्भर करता है। श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश” जी की कविता “जवाबदार कौन….?” आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि लोकतन्त्र के इस पर्व पर आखिर जवाबदार कौन है?

तो फिर देर किस बात की पढ़िये आज का विशेषांक एवं अपनी बेबाक राय दीजिये ताकि भविष्य में e-abhivyakti को और अधिक पठनीय बनाया जा सके।

आज के लिए बस इतना ही।

हेमन्त बवानकर 

28 अप्रैल 2019

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-28 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–28            

यह जीवन चक्र है जिसमें हम जीते हैं।  कभी मैंने लिखा था :

The Life after death

is definite

and

the journey

between life and death

is

definition of Life

हम जन्म से मृत्यु तक पाते हैं कि हर समय हमारे सिर पर किसी न किसी का हाथ होता है। वह हाथ माता पिता, गुरु, वरिष्ठ …… या वह वरिष्ठ पीढ़ी जिसने सदैव हमें मार्गदर्शन दिया है।

अभी 17 अप्रैल 2019 के अखबार में भारत सरकार का एक विज्ञापन देखा। मैं नहीं जनता कि कितने लोगों नें उस पर ध्यान दिया है और कितने व्योश्रेष्ठ इस सम्मान के लिए अपना आवेदन देंगे। इस व्योश्रेष्ठ सम्मान का विज्ञापन निम्नानुसार है।

विस्तृत जानकारी के लिए देखें www.socialjustice.nic.in 

अब  यह हमारा दायित्व बनता है कि हम ढूंढ ढूंढ कर ऐसी पीढ़ी के मनीषियों के लिए उनकी ओर से आवेदन भरने में मदद करें।

आज के लिए बस इतना ही।

हेमन्त बवानकर 

24 अप्रैल 2019

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