हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ वास्तु दोष ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी लघुकथा  “लघुकथा – वास्तु दोष ।)

☆ लघुकथा – वास्तु दोष ☆

अच्छा भला घर था. अच्छे भले लोग थे. अपना सुंदर सा घर पाकर घर वाले खूब खुश थे. उनकी खुशी पड़ोसी से नहीं देखी गई. वास्तु दोष निकालते हुए उसने घर के मुखिया से कहा- बहुत बड़ा वास्तु दोष है. उसमें परिवर्तन की जरूरत है, वरना घर के किसी सदस्य के मरने का अंदेशा है.

घर का बदलाव करते करते घरवाला सड़क पर आ गया. आधा घर टूटा पड़ा है. आधा टूटने वाला है. मकान मालिक का दिल कितनी जगह से टूटा है. यह कोई नहीं जानता है.

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 53 ☆ लघुकथा – वह झांसी की झलकारी थी ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी ऐतिहासिक लघुकथा ‘वह झांसी की झलकारी थी’। ऐसे कई ऐतिहासिक चरित्र हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं किन्तु, उन्हें हमारी आने वाली पीढ़ियां नहीं जानती। ऐसे ऐतिहासिक चरित्र की चर्चा वंदनीय है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को  इस ऐतिहासिक लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 53 ☆

☆  लघुकथा – वह झांसी की झलकारी थी

उसकी उम्र कुछ ग्यारह वर्ष के आसपास रही होगी, घर में खाना बनाने के लिए वह रोज जंगल जाती और लकडियां बीनकर लाती थी। बचपन में ही माँ का देहांत हो गया था। घर की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी। एक दिन ऐसे ही वह लकडियां लाने जंगल जा रही थी कि सामने से बाघ आ गया, वहीं थोडी दूर पर ही एक छोटा बच्चा खेल रहा था। वह जरा भी ना घबराई, उसने अपने तीर कमान निकाले और बाघ को मार डाला। बच्चे को सुरक्षित देख गाँववालों की जान में जान आई, वे सब इसकी जय-जयकार करने लगे। डरना तो उसने सीखा ही नहीं था, साहस उसकी पूंजी थी। भले ही वह शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाई थी लेकिन उसके पिता ने उसे तलवार चलाना, घुडसवारी करना सिखा दिया था। पिता जितनी रुचि से सिखाते बेटी उससे ज्यादा उत्साह से सीखती। बुंदेलखंड की इस बेटी ने देश के लिए  अपना जीवन न्यौछावर कर दिया, ऐसी थी वीरागंना झलकारीबाई।

पहली बार जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी को देखा तो आश्चर्यचकित रह गईं क्योंकि वह साहसी तो थी ही, दिखती भी रानी लक्ष्मीबाई जैसी ही थी। उसका साहस और लगन देखकर रानी ने उसे अपनी दुर्गा सेना का सेनापति बना दिया। अपने अनेक गुणों के कारण झलकारी बहुत जल्दी रानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र ही नहीं बल्कि उनकी अच्छी सहेली बन गई। शत्रु को चकमा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध किया करती थीं।

अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के लिए चाल चली कि निसंतान रानी लक्ष्मीबाई अपना उत्तराधिकारी गोद नहीं ले सकतीं।  रानी लक्ष्मीबाई अपनी झांसी इतनी आसानी से  अंग्रेजों को कैसे दे सकती थी ? उसकी सेना में झलकारी  और उसके साहसी पति पूरन जैसे योद्धा थे जो अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। अंग्रेजों की सेना ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। जब ऐसा लगा कि अब इन अंग्रेजों से जीतना कठिन है, और किला छोडना पड सकता है, तो  झलकारी बाई ने रानी को कुछ सैनिकों के साथ युद्ध छोड़कर जाने की सलाह दी। इस संकटपूर्ण समय में वीरांगना झलकारी बाई ने एक योजना बनाई। वह लक्ष्मीबाई का भेष धारणकर  सेना का नेतृत्व करती रही और युद्ध में अंग्रेजों को उलझाए रखा। तब तक रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।  ब्रिटिश सैनिक समझ ही नहीं पाए कि रानी लक्ष्मीबाई  किले से कब सुरक्षित बाहर निकल गईं। बाद में अंग्रेजों को पता चला कि जिस वीरांगना ने उन्हें कई दिनों तक युद्ध में घेरकर रखा था, वह रानी लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थी।

सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में झलकारी बाई ने अपने बहादुरी और साहस से ब्रिटिश सेना को नाकों चने चबवा दिए थे। झलकारी बाई का पति पूरन सिंह वीर सैनिक था, युद्ध करते हुए वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ। अपने पति की मृत्यु का समाचार जानकर भी झलकारी विचलित नहीं हुई। पति की मृत्यु का  शोक ना मनाकर वह तुरंत ही ब्रिटिशों को चकमा देने की नई योजना बनाने लगी थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ तीन लघु कथाएं – घर ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  तीन लघुकथाएं घर “।)

☆ तीन लघु कथाएं – घर ☆

☆ दिहाड़ी ☆

बेटा, पिता नहीं है पर यह घर है.

इसे चाचा-ताऊ समझना. इन सबने इसे कितनी मुश्किल से बनाया था.

इन सबके इंतकाल के बाद इसे मैं बड़ी मुश्किल से बचा पाई. मैने दिहाड़ी की पर घर नहीं बेचा. घर बेचना जमीर बेचना जैसा होता है मुन्ना.

लड़के ने मान लिया और वह भी घर बचाने में दूसरे दिन से दिहाड़ी पर चला गया.

☆ बिसूरता घर ☆

जो घर सास ससुर ने बडी आस्था से बनवाया था.रिस्तेदारों से कर्ज भी लिया था.कर्ज चुकाते-चुकाते कमर टेढ़ी हो गई थी उनकी.

वही घर बहू ने व्याहकर आते ही हथिया लिया. अब सास ससुर बिना घर के हैं. दूर से ही घर देखकर संतोष कर लेते हैं.

उन्हें घर बिसूरता सा दिखाई देता है.

☆ घर भूतों का डेरा ☆

एक आदमी गरीबी में, दवा के अभाव में स्वर्ग सिधार गया. रिस्तेदारों ने घर को मनहूस करार कर दिया. घर के अन्य सदस्य भी घर छोड़कर अन्यत्र चले गए. घर भूतों का डेरा घोषित कर दिया गया.

रिस्तेदारौं ने फिर अपना डेरा जमा लिया. घर रिस्तेदारो का हो गया है. घर वाले नये घर की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं.

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ दरार ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

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☆ लघुकथा – दरार ☆

एक माँ ने उसकी बच्ची को रंग बिरंगी पेंसिलें लाकर दीं तो मुन्नी फौरन चित्रकारी करने बैठ गयी. सबसे पहले उसने एक प्यारी सी नदी बनाई. नदी के दोनो ओर हरे भरे पेड़, एक हरी-भरी पहाड़ी, पहाडी़ के पीछे एक ऊगता हुआ सूरज और एक सुंदर सी झोपड़ी.

बच्ची खुशी से नाचने लगी. उसने अपनी माँ को आवाज लगाई- माँ देखिए न मैंने कितनी सुंदर सीनरी बनाई है.

चोके से ही माँ ने प्रशंसा कर बच्ची का मनोबल बढाया. कला जीवंत हो उठी.

थोड़ी देर बाद बच्ची घबराकर बोली- माँ गजब  ह़ो गया. दादा दादी के लिए तो इसमें जगह ही नहीं  है

माँ आवाज आई – आगे आउट हाउस बना दो, दादा दादी वहीं रह लेंगे.

बच्ची को लगा कि सीनरी बदरंग हो गई है. चित्रकारी पर स्याही फिर गयी है.

झोपड़ी के बीच से एक मोटी सी दरार पड़ गयी है.

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ लघुकथा – क्वारंटीन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ लघुकथा – क्वारंटीन ☆

…काका, दवाइयाँ नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होगे? डॉक्टर ने कहा था कि बुखार नहीं टूटा तो कोविड का टेस्ट कराना पड़ेगा.., वृद्धाश्रम का केयरटेकर अनूप जी से कुछ नाराज़गी से बोला।

अनूप जी ने प्रश्नवाचक निगाह से श्यामलाल को देखते रहे। मानो पूछ रहे हों कि कोविड पॉजिटिव आ गया तो क्या होगा?

…मामूली-सा भी निकला तो भी कम से कम 14 दिन के लिए क्वारंटीन होना पड़ेगा।

प्रश्नवाचक निगाह उठती, उससे पहले अनुभवी श्यामलाल अगला सवाल भी पढ़ चुका था।

…क्वारंटीन मतलब अपने कमरे में अलग-थलग, दुनिया से कटकर रहना। न कहीं आ सकते हैं, न कहीं जा सकते हैं। न कोई सुनने आयेगा, न सुनाने। बस खुद ही बोलो, खुद ही सुनो।

प्रश्नवाचक निगाहों में अजीब से भाव आए। जैसे कुछ गिन रही हों। हिसाब लगाया कि वृद्धाश्रम आये कितने बरस हुए।

‘श्यामलाल, मामूली नहीं संगीन कोविड है। पिछले 14 बरस से क्वारंटीन हूँ मैं..’, एकाएक जोरदार ठहाका लगाकर अनूप जी बोले। ठहाका पूरा होते-होते जाने क्यों उनकी आँखों से खारा पानी छलकने लगा।

©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 11:32, 23.11.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 52 ☆ लघुकथा – दीवार ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है मानवीय संवेदनाओं और स्त्री विमर्श पर आधारित  उनकी लघुकथा ‘दीवार। यह आवश्यक नहीं कि गलती हमेशा छोटों से ही होती हो। कभी-कभी बड़े भी गलतियां कर बैठते हैं। ऐसे में कभी कभी सुधारने का मौका मिल जाता है तो कभी कभी नहीं भी मिल पाता। डॉ डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को  स्त्री विमर्श परआधारित लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 52 ☆

☆  लघुकथा – दीवार

रात में साधना बाथरूम जाने को उठी तो उसे पता नहीं कैसे दिशा भ्रम हो गया। जब तक कुछ समझ पाती दीवार से टकराकर गिर गई। घर में वह अकेले ही थी। उसने बहुत कोशिश की उठने की लेकिन दर्द के कारण जगह से हिल भी ना पाई। दीवार के दूसरी तरफ बेटा – बहू रहते हैं, उसने आवाज लगाई, जोर से दीवार धपधपाई कि शायद कोई सुन ले, लेकिन किसी को सुनाई नहीं दिया और अंतत: वह डर और पीडा से बेहोश हो गई। जब उसे होश आया तो वह अस्पताल में बिस्तर पर लेटी थी, पास ही उसकी बहू बैठी थी। सास को होश में आते देखकर वह जल्दी से डॉक्टर को बुला लाई। डॉक्टर ने देखा और बोले – अब चिंता की कोई बात नहीं है ब्लडप्रेशर बढ गया था, अब सब ठीक है, पैर की हड्डी टूट गई है, एक महीने प्लास्टर रहेगा। जाते–जाते डॉक्टर ने कहा – अरे हाँ, इनको  घर में अकेला मत छोडियेगा। जी – बहू ने सहमति में सिर हिलाया। तब तक बेटा भी वहाँ आ गया। डॉक्टर की बात बेटे ने सुन ली थी।

साधना सोच रही थी कि सब कुछ उसका ही तो किया धरा है, दोष दे भी तो किसको? वह अपने आप को कोस रही थी क्या मन में आई बेटे बहू को अलग करने की। पति ने भी बहुत समझाया था – बच्चे हैं माफ कर दो, पर वह तो अड गई थी कि बँटवारा कर दो, बडे से आँगन के बीचोंबीच दीवार बनवा कर ही मानी। सबने कितना मना किया पर उसने किसी की ना सुनी, विनाश काले विपरीत बुद्धि। किस घर में झगडे नहीं होते? ताली दोनों हाथों से बजती है सिर्फ बहू की गल्ती थोडे ही ना है। पति की मृत्यु के बाद से यह अकेला घर अब उसे खाने को दौडता है पर क्या करे? आज उसे समझ में आ रहा था कि अपने पैर पर उसने खुद ही कुल्हाडी मारी है।

कैसा लग रहा है माँ अब? – बेटे ने पूछा। कैसे गिर गईं आप? अरे वह तो अच्छा हुआ कि मैं सुबह आ गया था आपको देखने, वरना आप ना जाने कब तक बेहोश पडी रहतीं। साधना बेटे से नजरें ही नहीं मिला पा रही थी। वह हाथ जोडकर बेटे–बहू से बोली – मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बडी गलती की है अपने ही घर को दो टुकडों में बाँटकर। बेटे ने हँसकर कहा- अरे किस बात की माफी मांग रही हैं आप, यह भी कोई बात है क्या? जब दीवार बनाई जा सकती है तो गिराई नहीं जा सकती क्या? साधना भीगी आँखों से मुस्कुरा रही थी, उनके बीच रिश्तों की मजबूत दीवार जो बन रही थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ समाज सेवा ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की एक सार्थक लघुकथा समाज सेवा।  

☆ लघुकथा – समाज सेवा ☆

 मेरी परिचित का फोन आया कि क्यों यह जब तक लॉकडाउन है तब तक हम बाइयों को काम करने के लिए नहीं बुला रहे हैं तो तुम तनख्वाह दोगी क्या?

…” मैंने कहा हां नहीं तो उनका गुजारा कैसे चलेगा।”

तो वह बोली ..”नहीं मैं तो नहीं दूंगी पैसे क्या पेड़ पर लगते है ।”

फोन रख कर मैंने सोचा हां ये क्यों देंगी कल ही तो इन्होंने फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्स एप पर एक ग़रीब परिवार के चार लोगों के बीच खाने का 1 पैकेट देते हुए फोटो अपलोड की है इनकी समाज सेवा तो पूरी हो गई ।”

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

मो 9479774486

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #83 ☆ लघुकथा – फ्री वाली चाय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक विचारणीय एवं सार्थक कविता  ‘फ्री वाली चाय। इस सार्थक एवं अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्री विवेक रंजन जी  का  हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 83 ☆

☆ लघुकथा फ्री वाली चाय ☆

देवेन जी फैक्ट्री के पुराने कुशल प्रबंधक हैं. हाल ही उनका तबादला कंपनी ने अपनी नई खुली दूसरी फैक्ट्री में कर दिया.

देवेन जी की प्रबंधन की अपनी शैली है, वे वर्कर्स के बीच घुल मिल जाते हैं, इसीलिये वे उनमें  लोकप्रिय रहते हुये, कंपनी के हित में वर्कर्स की क्षमताओ का अधिकाधिक उपयोग भी कर पाते हैं. नई जगह में अपनी इसी कार्य शैली के अनुरूप वर्कर्स के बीच पहचान बनाने के उद्देश्य से देवेन जी जब सुबह घूमने निकले तो फैक्ट्री के गेट के पास बनी चाय की गुमटी  में जा बैठे. यहां प्रायः वर्कर्स आते जाते चाय पीते ही हैं. चाय वाला उन्हें पहचानता तो नही था किन्तु उनकी वेषभूषा देख उसने गिलास अच्छी तरह साफ कर उनको चाय दी. बातचीत होने लगी. बातों बातों में देवेन जी को पता चला कि दिन भर में चायवाला लगभग २०० रु शुद्ध प्राफिट कमा लेता है. देवेन जी ने उसे चाय की कीमत काटने के लिये ५०० रु का नोट दिया, सुबह सबेरे चाय वाले के पास फुटकर थे नहीं. अतः उसने नोट लौटाते हुये पैसे बाद में लेने की पेशकश की.

उस दिन देवेन का जन्मदिन था, देवेन जी को कुछ अच्छा करने का मन हुआ. उन्होने प्रत्युत्तर में  नोट लौटाते हुये चायवाले से कहा कि वह  इसमें से अपनी आजीविका के लिये  दिन भर का प्राफिट २०० रु अलग रख ले और सभी मजदूरों को निशुल्क चाय पिलाता जाये. चायवाले ने यह क्रम शुरू किया, तो दिन भर फ्री वाली चाय पीने वालों का तांता लगा रहा. मजदूरों की खुशियो का पारावार न रहा.

दूसरे दिन सुबह सुबह ही एक पत्रकार इस खबर की सच्चाई जानने, चाय की गुमटी पर आ पहुंचा, जब उसे सारी घटना पता चली तो उसने चाय वाले की फोटो खींची और जाते जाते अपनी ओर से मजदूरों को उस दिन भी फ्री वाली चाय पिलाते रहने के लिये ५०० रु दे दिये. बस फिर क्या था फ्री वाली चाय की खबर दूर दूर तक फैलने लगी. कुछ लोगों को यह नवाचारी विचार बड़ा पसंद आ रहा था, पर वे ५०० रु की राशि देने की स्थिति में नहीं थे, अतः उनकी सलाह पर चाय वाले ने  काउंटर पर एक डिब्बा रख दिया, लोग चाय पीते, और यदि इच्छा होती तो जितना मन करता उतने रुपये डिब्बे में डाल देते. दिन भर में डिब्बे में पर्याप्त रुपये जमा हो गये. अगले दिन चायवाले ने डिब्बे से निकले रुपयों में से अपनी आजीविका के लिये २०० रु अलग रखे और शेष रु गिने तो वह राशि ५०० से भी अधिक निकली. फ्री वाली चाय का सिलसिला चल निकला. अखबारों में चाय की गुमटी की फोटो छपी, चाय पीते लोगों के मुस्कराते चित्र छपे. सोशल मीडिया पर  फ्री वाली चाय वायरल हो गई. देवेन ने मजदूरों के बीच सहज ही  नई पहचान बना ली, अच्छाई के इस विस्तार से देवेन मन ही मन मुस्करा उठे.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 70 – लघुकथा – आंवला भात☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  आंवला/इच्छा नवमी पर विशेष लघुकथा  “आंवला भात।  हमारी संस्कृति में प्रत्येक त्योहारों का विशेष महत्व है। वैसे ही यदि हम गंभीरता से देखें तो  आंवला नवमी / इच्छा नवमी पर्व हमें पारिवारिक एकता, वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देते हैं। ऐसे में ऐसी कथाएं हमें निश्चित ही प्रेरणा देती हैं।  शिक्षाप्रद लघुकथाएं श्रीमती सिद्धेश्वरी जी द्वारा रचित साहित्य की विशेषता है।  सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिपेक्ष्य में रचित इस सार्थक  एवं  भावनात्मक लघुकथा  के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 70 ☆

☆ आंवला/इच्छा नवमी विशेष ☆ लघुकथा – आंवला भात ☆

पुरानी कथा के अनुसार आंवला वृक्ष के नीचे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला वृक्ष की पूजन करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है। आज आंवला नवमी को पूजन करते हुए कौशल्या और प्रभु दयाल अपने आंगन के आंवला वृक्ष को देखते हुए बहुत ही उदास थे। कभी इसी आंगन पर पूरे परिवार के साथ आंवला भात बनता था। परंतु छोटे भाई के विवाह उपरांत खेत और जमीन जायदाद के बंटवारे के कारण सब अलग-अलग हो गया था।

प्रभुदयाल के कोई संतान नहीं थे। यह बात उनके छोटे भाई समझते थे। परंतु उनकी पत्नी का कहना था कि “हम सेवा जतन नहीं कर पाएंगे।” छोटे भाई के तीनों बच्चो की परवरिश में कौशल्या का हाथ था।

अचानक छत की मुंडेर पर कौवा कांव-कांव की रट लगा इधर-उधर उड़ने लगा। प्रभुदयाल ने कौशल्या से कहां “अब कौन आएगा हमारे यहां सब कुछ तो बिखर गया है।” गांव में अक्सर कौवा बोलने से मेहमान आने का संदेशा माना जाता था। अचानक चश्मे से निहारती कौशल्या दरवाजे की तरफ देखने लगी। दरवाजे से आने वाला और कोई नहीं देवर देवरानी अपने दोनों पुत्र और बहूओं के साथ अंदर आ रहे थे। प्रभुदयाल सन्न सा खड़ा देखता रहा।

छोटे भाई ने कहा – “आज हमारी आंखें खुल गई भईया। मेरे बेटों ने कहा.. कि हम दोनों भाइयों का भी बंटवारा कर दीजिए क्योंकि अब हम यहां कभी नहीं आएंगे। आप लोग समझते हैं कि आप त्यौहार अकेले मनाना चाहते हैं तो मनाइए। हम भी अपने दोस्त यार के साथ शहर में रह सकते हैं। हमें यहां क्यों बुलाया जाता है।”

“मुझे माफ कर दीजिए भईया। परिवार का मतलब बेटे ने अपनी मां को बहुत खरी खोटी सुनाकर समझाया है। वह दोनों हमसे रिश्ता रखना नहीं चाहते। वे आपके पास रहना चाहते हैं। इसलिए अब सभी गलतियों को क्षमा कर। आज आंवला भात हमारे आंगन में सभी परिवार समेत मिलकर खाएंगे।”

देवरानी की शर्मिंदगी को देखते हुए कौशल्या ने आगे बढ़ कर गले लगा लिया और स्नेह से आंखे भर रोते हुए बोली -“आज नवमी (इच्छा नवमी) मुझे तो मेरे सब सोने के आंवले मिल गए। इन्हें मैं सहेज कर तिजोरी में रखती हूं।” सभी बहुत खुश हो गए।

प्रभुदयाल अपने परिवार को फिर से एक साथ देख कर इच्छा नवमी को मन ही मन धन्यवाद कर प्रणाम करते दिखें।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ फेसबुक ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज  प्रस्तुत है, सोशल मीडिया में उलझी नई पीढ़ी के अंतर्द्वंद्व को उजागर करती  एक कहानी  फेसबुक)  

☆ कथा कहानी – फेसबुक

हेलो, कैसी हो ? अरी ! तुमने कबीर दास के रहस्यवाद को पढा है। तुम्हें पता है, हमारी परीक्षा कब है? हमें तो हमेशा पढ़ना ही है। चिंतित होकर रीना ने पूनम को कहा। बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है, अरी! सुमन को क्या हो गया है ? क्यों वह उदास रहती है ? तुम्हें कुछ पता है ?

मुझे जहां तक पता है, राखी ने मुझसे बात करते समय सुमन का ज़िक्र किया था। लगभग चार महीने पहले सुमन के साथ एक हादसा हुआ था। तुम्हें पता है कि सुमन दिखने में तो सुंदर है ही। उसके लंबे कमर तक घने बाल, सीधी-सुडौल काया है। मानो भगवान ने उसे बहुत ही सुंदरता दी  है। सुमन को सुंदरता के साथ-साथ भगवान ने बुद्धि भी बहुत तेज़ दी है। उसे तकनीक का ज्ञान भी अत्यधिक है। वह अभियांत्रिकी की पढ़ाई कर रही है। वह हमेशा दोस्तों के बीच भी कुछ बात नहीं करती थी हमेशा  कुछ न कुछ सोचती रहती थी। वह दूसरों की तरह नहीं है। हाँ, नटखट ज़रुर है। फिर भी अपनी मर्यादा  का खयाल हमेशा रखती थी। उसने अपनी एक फोटो फेसबुक पर अपलोड किया था। उसके लिए उसे अनेक कॉमेन्टस और लाइक भी मिले थे। इसलिए वह जब भी देखो वह वोट्सएप या फिर फेसबुक के साथ ज्यादा रहना पसंद करती थी। उसकी दोस्त उसे हमेशा छेडती थी, क्या हुआ मेमसाब खेल रहे हो क्या?

अरे! नहीं मुझे खेलना पसंद नहीं है। मैं तो सिर्फ गाने सुनती हूँ। एक दिन सुमन ने फेसबुक पर गाना सुनते हुए एक रोमांस आधारित कहानी देखी और उसे वह रोमांचक होकर देखने लगी। क्यों ना हो ? उसकी उम्र का तकाज़ा भी था। वह देखने के बाद उसे भी एक बॉयफ्रेन्ड की ज़रुरत महसूस  हुई। सुमन ने अपनी सहेली सुप्रिया से अपनी मन की बात कही।

सुप्रिया ने सुमन को अपनी भावनाओं पर काबू रखने के लिए कहते हुए कहा, देखो, हमारी उम्र में यह सारी भावनाएँ सहज है। तुम सोचो क्या यह सब अभी ज़रुरी है। तुम पढ़ने में इतनी अच्छी हो मुझे लगता है कि तुम्हें आगे पढ़ने के बारे में सोचना चाहिए। जितना हो सके तुम फेसबुक मत देखना उसमें ऐसे ही कुछ न कुछ आता रहता है।

फिर भी सुमन का मन अन्य ऐसी कहानियों को पढ़ने का हो रहा था । एक दिन वह ऐसे ही बैठकर फिर से फेसबुक देख रही थी। कोई न कोई व्यक्ति उसे दोस्ती की दरख्वास्त भी भेजता रहता है। सुमन किसी अनजान व्यक्ति को भी अपना दोस्त नहीं बनाती थी। वह उनका पूरा प्रोफाइल देखकर ही उनसे दोस्ती करती थी। सुमन को सरदर्द अधिक होता था।

एक दिन उसे फेसबुक पर एक दोस्ती की दरख्वास्त आई। वह अनजान व्यक्ति ही था। उसने देखा वहां पर किसी औरत की तस्वीर थी। वह स्नायु विशेषज्ञ थी। सुमन को लगा कि अगर वह उस औरत से दोस्ती करेगी तो  उसका सर दर्द ठीक हो जाएगा। सुमन को सर दर्द की बीमारी थी। वह उस दर्द से  तंग आ चुकी थी। वह उनसे बात करेगी, और अपने सर दर्द के बारे में बतायेगी। यह सोचकर उसने दोस्ती को स्वीकार किया। फिर दोनों में बातचीत का दौर प्रारंभ हुआ। उसने बताया कि मेरा नाम टोनी है और मैं भी स्नायु का विशेषज्ञ हूँ। मैं एक पुरुष हूँ। आपकी क्या परेशानी है ? मैं आपकी मदद कर सकता हूँ। इसके लिए मुझे आपको मिलना होगा। मैं लंडन में रहता हूँ।

सुमन को उसकी बातों से अजीब लगा, फिर भी उसने बात आगे बढाई। उसे लगा कि यह डॉक्टर उसकी बीमारी दूर करने में मदद करेगा।

डॉक्टर मैं आपसे मिल नहीं सकती। क्या ऐसे ही फोन पर आप मेरी बीमारी ठीक नहीं कर सकते हो?  मैं आपको मेरे सर दर्द के बारे में सब कुछ बताऊँगी। सकुचाते हुए सुमन ने डॉक्टर से कहा।

टोनी ने भी थोडी देर के लिए सोचते हुए बताया, ठीक है, मैं अपने दोस्त जो कि इसी में माहिर है उसके साथ बात  करके बताता हूँ। वैसे आप बहुत सुंदर दिखती हो। मैं एक सर्जन हूं। दर असल मेरा दोस्त इसकी दवाई देता  है। वही सारे ऐसे ही रोगी का निदान भी करता है।

सुमन ने यह सारी बात अपनी दोस्त सुप्रिया को बताई। सुप्रिया ने उसे सचेत रहने के लिए कहते हुए कहा, देखो मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। आजकल कई फेसबुक पर क्राइम सुने है। हम इस व्यक्ति पर कैसे विश्वास कर ले। तुम फिर भी सोच-समझकर काम करना। मुझे लगता है कि तुम्हें उससे बात नहीं करनी चाहिए।

सुमन ने कुछ सोचकर उस वक्त सुप्रिया की बात सुनी। उसे सही भी लगा कि, कैसे किसी पर आंख मूंदकर भरोसा कर लिया जाय। टोनी ने सुमन से फेसबुक पर उसका फोन नंबर मांग लिया था। सुमन ने भी बिना सोचे-समझे अपने फोन नंबर उसे दिया था। उसके बाद ही वे दोनों बात कर रहे थे।

सुमन और टोनी के बीच फिर से बातचीत का दौर प्रारंभ हुआ। दोनों के बीच धीरे-धीरे प्यार भी हुआ।

टोनी ने सुमन से कहा कि देखो, अगर सुप्रिया नहीं चाहती कि हम दोनों बात करें तो उसे बताना मत कि हम दोनों बात कर रहे है। तुम मुझसे वादा करो कि तुम अपनी सहेली को नहीं बतााओगी। वह जिद्द पर अड गया।

ठीक है बाबा। नहीं बताऊँगी, बस। कहते हुए सुमन मुस्कुराने लगी।

सुमन भी अकेलापन काटने के लिए कोई साथी मिल गया था। टोनी अपनी जिंदगी की दास्तां सुमन को बताते हुए रोने लगा। सुमन को अच्छा नहीं लगा, फिर भी उसे सांत्वना के दो शब्द बतायें। टोनी ने जिंदगी में बहुत दुःख झेले थे।

टोनी ने अपनी जिंदगी के पहलू को बताते हुए सुमन से कहा कि, मेरी एक नौ साल की बच्ची है। मेरी पत्नी दो साल पहले एक एक्सीडेन्ट का शिकार हो चुकी है। मुझे उसकी याद आती है लेकिन मैंने हकीकत को स्वीकार कर लिया है।

सुमन को टोनी की बात सुनकर लगा कि उसे कुछ बाते स्पष्ट कर देनी चाहिए ताकि बाद में कोई भी परेशानी न हो। देखिए मुझे आपसे कह देना ठीक होगा कि, मैं आपकी पत्नी नहीं बन सकती हूं। हमारा परिवार रूढ़िग्रस्त है। उसे छोडकर आना मुश्किल है। माँ और पिताजी कई मामले में सख्त है। फिर भी मैं अपने अभिभावकों से बहुत प्रेम करती हूँ। क्षमा कीजिएगा, मैं आपके साथ नहीं आ सकती हूं। कहते हुए सुमन लंबी सांस लेती है।

ठीक है, कोई बात नहीं है। लेकिन तुम मेरी दोस्त तो बन ही सकती हो। अच्छा, मैं बाद में बात  करुँगा। मुझॆ कुछ काम है। यहां पर फिलहाल एक ऑपरेशन करना है। कहते हुए टोनी ने फोन काट दिया।

सुमन को भी वह व्यक्ति अच्छा लगने लगा था। दोनों फोन पर ही रोमांटिक बातें भी करते थे। सुमन को अपनी मन की भावनाओं को पूरी करने का मौका भी मिल गया था। सुमन ने सुप्रिया को अब तक यह सारी बातें नहीं बताई थी। अचानक एक दिन उसे लगा कि टोनी ने कभी भी उससे रोग के बारे में बात नहीं की है। अधिकतर सर्जन के पास ऐसे बात करने का समय भी नहीं होता।  सुमन ने बहुत बार पूछने की कोशिश भी की थी। अब उसे शक हुआ और एक दिन ऐसे ही उसने अपनी खास सहेली राखी से यह सारी बातें बताई।

राखी ने भी सुमन को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, देखो ऐसे बहुत लोग है जो दूसरों को धोखा देते है। अच्छा तुम सुनो! मेरी एक सहेली दुबई में रहती है। अब किसी ने ऐसे ही उससे फोन पर बात की थी। वह लडका युवा भी था और वह बहुत खूबसूरत भी था। दोनों फोन पर बातचीत करने लगे। एक  हद तक रोमांटिक बातें भी करते थे। उस लडके ने जिसका नाम उसने अमन बताया था, उसने हमारी सुंदरी के कुछ चित्र मांगे। इस गधी ने उसके प्यार में भेज दिए। अमन उसका गलत फायदा उठाने लगा। जब सुंदरी ने इस बारे में मुझे बताया तो मुझे बहुत गुस्सा आया। पहले तो मैंने सुंदरी को डांटा। भगवान ने उसे सुंदरता ही दी है, दिमाग नहीं दिया।  अब तुम? पता नहीं आप लोगों को क्या हो गया है ? क्यों आप लोग बिना मर्द के जिंदगी नहीं गुज़ार सकती? बडी मुश्किल से सुंदरी ने अमन से पीछा छुडवाया है। प्लीज मेरी मां, अब तुम कुछ ऐसा मत करना कि बाद में परेशानी हो।

मैंने भी ऐसे बहुत लोगों को सुना है। सुमन ने कुछ सोचकर राखी से कहा कि अनुमान तो… उस व्यक्ति पर मुझे भी है। क्या तुम उसे फोन करके सच्चाई पता लगा सकती हो। उस व्यक्ति ने मेरे पूछने पर कई सवालों का जवाब नहीं दिया है। फोन नंबर तो लंडन का ही है। अगर हो सके तो अन्य चीजे भी मालूम कर लेना। वह तुम्हारे बारे में नहीं जानता।

अचानक  उसका मेसेज आता है,  मेरा नाम टोनी सेम है और मै न्यूरोलोजि के विभाग, हेल्थ अस्पताल में काम करता हूं। उसमें उसने अपना पूरा नाम और अस्पताल का पता दिया था फिर भी सुमन को  बुरा लगता है। वह उसकी बात का विश्वास नहीं कर पाती है।  इतना कहने के बावजूद सुमन उस पर विश्वास नहीं कर रही है।  सुमन ने तुरंत वह मेसेज राखी को भेजा।

राखी ने तुरंत पता लगाकर बताया कि टोनी नाम का कोई भी डॉक्टर वहां पर काम नहीं करता है। कोई भी सर्जन टोनी के नाम से मौजूद नहीं है।सुमन ने जो तस्वीर टोनी की भेजी थी, वह तो कोई ओर ही  है। राखी ने यह भी बताया कि वहां पर एक हेल्थ सेन्टर है, लेकिन वहां पर भी इस नाम का कोई व्यक्ति नहीं है। देखो, सुमन तुम उसका नंबर तुरंत ब्लोक कर देना। पता नहीं, कौन है यह व्यक्ति ? बुरी फँसोगी।

सुमन के मन में राखी की बातें ही गूंज रही थी। उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि वह व्यक्ति किसी को धोखा दे सकता है। बार-बार उसका मन उससे बात करने को कर रहा था। एक दिन सुमन ने केविन को मेसेज करके उसके बारे में जानना चाहा। उसके बाद तो उस व्यक्ति ने सुमन को मेसेज करना और फोन करना छोड दिया। फिर से सुमन  अकेलापन महसूस करने लगी।

एक दिन अचानक एक फोन आया और कहा कि मैं आपके शहर जयपुर में आया हूँ। आपसे मिलना चाहता हूँ। सुमन भी टोनी से मिलने गई। वह देखना चाहती थी कि कौन है वह जिससे वह बात करती थी। बडी उत्सुकता से वह उसे देखती है, तो  हैरान रह जाती है। उसके सामने काले रंग का बदसूरत व्यक्ति खडा पाती  है। सुमन ने जब भी फोन पर उसे देखा बहुत ही सुंदर नवयुवक था। वह उसे देखती ही रह जाती है। उसका नाम टोनी नहीं, बल्कि डी मार्टीन था। वह बताता है कि मै माफिया से हूं। मैंने जो आपसे कहा वह सब गलत था। क्षमा करें। मेरे काम में शादी नाम की कोई गुंजाइश ही नहीं है।

सुमन  उसकी सारी बातें आराम से सुनती है। उसके साथ एक कप चाय पीकर वहाँ से निकल आती है। वह घबराते हुए  राखी से कहती है, अरी! तुमने सही कहा था। यह आदमी तो माफिया से जुडा है और देखो, उसने मुझसे अपनी पहचान छिपाई। अब तो मुझे डर लगने लगा है कि मेरे साथ यह व्यक्ति कुछ गलत तो नहीं   करेगा। उसके पास मेरे कुछ फोटो भी है। सुमन ने घर में भी किसी को यह बात नहीं बताई थी।

राखी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, चिंता मत करना और अगर उसका कोई भी मेसेज या फिर फोन आये तो जवाब मत देना। शुक्र कर भगवान का की वो भला आदमी ही था जिससे तुम मिलने गई थी। उसने तुम्हें साफ़- साफ़ बता दिया और तुम्हें छुआ तक नहीं। वरना दुनिया बहुत खराब है। कुछ भी हो सकता है। तुम्हारी बात सुनकर लगता नहीं है कि वह  फेसबुक की फोटो का गलत इस्तेमाल करेगा। फिर भी तुम सचेत रहना। सुमन ने इस हादसे के बाद फेसबुक देखना ही बंद कर दिया था। सुप्रिया को भी कुछ नहीं बताया। उसने यह बात स्वयं तक ही सीमित कर दी थी।

कई दिनों बाद राखी को सुमन की याद आ गई। उसने सुमन को फोन करते हुए उससे टोनी के बारे में पूछा कि उसने बाद में कोई ऐसी-वैसी  हरकत तो नहीं की। तुरंत सुमन एक मिनट के लिए कुछ बाद नहीं करती। राखी समझ गई कि  सुमन परेशान हो गई है। उसने दो बार हैलो….हैलो….सुमन आर यू देयर?

हाँ, बताओ। अब तो सब समाप्त … समाप्त हो चुका है। मैं उस हादसे को याद नहीं करना चाहती हूँ। तुम भी उसके बारे में मेरे साथ या किसी और के साथ ज़िक्र नहीं करना। ये हादसा कितनी लडकियों के साथ हुआ होगा। कितनी लड़कियां मेरी तरह परेशान हुई होगी। सच में आजकल मुझे फेसबुक पर से विश्वास ही उठ गया है। कहते हुए सुमन फिर से थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है।

अरी! तुम भी ना फिर उसी बात पर सोचने लगी। गलती हर इन्सान से होती है। सच बताऊँ, इन्सान ही गलती कर सकता है। कहते हुए राखी उसे समझाने की कोशिश करती है। देखो, फेसबुक का ऐप जिसने भी बनाया था, उसने यह तो नहीं सोचा होगा कि लोग इसका गलत इस्तेमाल करेंगे। उसने तो सबके भले के बारे में  सोचकर ही बनाया

था। फेसबुक के द्वारा कई लोगों का अच्छा भी हुआ है। हम एक पहलू को देखकर यह तो नहीं कह सकते कि ऐसे ऐप गलत है। अच्छा सुनो, तुम्हें तो पता है कि जिंदगी में दो पहलू होते है। अच्छा और बूरा। हर कोई व्यक्ति  की सोच बुरी हो यह नहीं कह सकते। मतलब यह जिंदगी मिश्रित है। अब एक लेखिका है जिनको मैं अच्छी तरह से जानती हूं। वह अपनी पहचान का श्रेय सिर्फ फेसबुक, इन्स्ट्राग्राम जैसे ही ऐप को देती है। वह अपनी रचना लोगों के समक्ष रखती गई। लोग उसे पहचानने लगे। मुझे लगता है कि हमें किसी ऐप का इस्तेमाल किसलिए करना है, उसकी खबर होनी चाहिए। हाँ, मानती हूँ कि आज कई नवयुवक भटक गए है। भावनाओं के समुंदर में बहकर कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए। अब  इसके बारे में सोचना छोडकर जिंदगी में आगे क्या करना है, उसके बारे में सोचना   है। किसी भी हादसे से इन्सान की जिंदगी रुकती नहीं बल्कि इन्सान उससे सीख लेकर आगे बढना चाहिए ………समझी? अरी! तुम तो फिर भी नसीबवाली हो कि उस इन्सान ने तुम्हें बाद में परेशान नहीं किया। वरना तो लोग इतने परेशान कर देते है, व्यक्ति आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। अच्छा, अब तुम पढाई के बारे में ध्यान      दो। यह सब तो आजकल एक आम बात हो गई है। अब मैं फोन रखती हूं, ज्यादा इस बारे में चिंता करने की ज़रुरत नहीं है। समझी….मेमसा’ब।  जैसे ही वह बात को खत्म करती है, तुरंत पूनम का कॉल आता है। बात ही बात में वह सुमन के बारे में पूनम को बताती है।

अच्छा इतना सब हो गया और हमें कुछ भी नहीं पता है। हम तो सिर्फ कहने के लिए दोस्त रह गए है। सुनो, तुम्हें यह सब कैसे पता चला ? माना कि अभी लिविंग टुगेदर का ज़माना है। फिर भी यह तो गलत ही है। बहुत आश्चर्य के साथ रीना अपनी सहेली पूनम को पूछती है।

मुझे राखी ने कल बताया कि सुमन के साथ सही नहीं हुआ। उसने भी तुम्हारी तरह ही कहा। एक बात बताऊँ, मुझे लिविंग टुगेदर भी सही नहीं लगता है। लडका- लडकी शादी से पहले साथ में रहते है, अगर सही नही लगा तो छोड देते है। उससे तो अच्छा है कि लडकी को मात्र एक लडके के साथ रहना चाहिए। अपने मन की किसी भी इच्छा को पूरी करने के लिए ऐसी राह अपनाना ठीक नहीं है। जब मैंने राखी  से यह बात सुनी तो बहुत बुरा लगा था।

दुनिया में ऐसा भी होता है। हमें बहुत सचेत रहना चाहिए। यह हमारी सुमन के साथ ही क्यों हुआ ? अरी! तुम्हें पता है आज लोग न उम्र देखते है ना ही और कुछ। फेसबुक पर तो उम्र भी गलत होती है। सच में पता नहीं लोगों को क्या हो गया है ? काश उसने हमसे बात की होती? पता है तुम्हें शायद लडकी को अपनी मर्यादा में रहने के लिए हमारे पूर्वज कहते थे। उनकी बात भी सही है। हम क्रोध में आकर जनरेशन गेप कहकर बडो की बात का हंमेशा गलत मतलब निकालकर उन्हीं को कोसते है।  अब, होनी को तो कोई टाल नहीं सकता। बाद में हम किस्मत को दोषी भी ठहराते है। जो भी है यह हमारी सुमन के साथ ऐसा नहीं होना था। कहते हुए रीना अपनी दोस्त से फोन पर विदा लेते हुए कहती है, अभी हमें बहुत पढना है। परीक्षा नज़दीक है, तुम पढाई पर ध्यान देना। सुमन से बाद में मिलकर बात करते है।

संपर्क:

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

लेखिका व कवयित्री, सह प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्‌, वासवी परिसर, बेंगलूरु।

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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