(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम लघुकथा “सहोदर ”। एक कहावत है कि- शक के इलाज की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी। वास्तव में कुछ अपवाद छोड़ दें तो हमारी समवयस्क पीढ़ी ने जिस तरह से मुंहबोले रिश्ते निभाए हैं, वैसी अगली पीढ़ी किस स्तर तक निभा पाएंगी , भविष्य ही बताएगा। एक अतिसंवेदनशील विषय पर लिखी गई एक अतिसंवेदनशील सफल लघुकथा। इस सर्वोत्कृष्ट लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 47 ☆
☆ लघुकथा – सहोदर ☆
खन्ना साहब और वर्मा जी की गहरी दोस्ती थी।
दोनों एक ही मोहल्ले में घर के आस-पास रहते थे। एक हादसे में अचानक वर्मा जी और उनका साल भर का बेटा दुनिया से चल बसा। दोस्त की पत्नी और रिश्ते में बहन बन चुकी, वर्मा जी की पत्नी ममता की जिम्मेदारी खन्ना साहब पर आ गई।
कुछ दिनों बाद खन्ना साहब की धर्मपत्नी को जुड़वा संतान हुए।
उन्होंने एक उठाकर ममता की आंचल पर डाल दिया। भरा पूरा परिवार खुश रहने लगा और ममता भी अपना दर्द भूल गई। सुधीर ममता के पास धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और गुस्सैल स्वभाव के होने के कारण कुछ ना कुछ बातें हो जाती थी। अक्सर मां बेटे में कहा सुनी होती थी।
घर में फिर अचानक जोर जोर से बातचीत और सामान फेंकने की आवाज आ रही थी। खन्ना साहब जो कीआर्मी से रिटायर हो चुके थे। दौड़ कर ममता के घर पहुंचे। सुधीर अपने मां के साथ फिर से झगड़ा कर रहा था। कह रहा था…. कि हमेशा मेरी सही गलत पर यह खन्ना क्यों टांग अडाता है, मैं क्या पढ़ता हूं, भविष्य में क्या बनूंगा, इसकी जिम्मेदारी वह लेने वाला कौन होता है? ना वह हमारा सगा संबंधी, ना रिश्तेदार, और ना ही हमारे कोई हितैषी!!!! पापा रहे नहीं तो दोस्त भी नहीं है। आपके साथ उनका क्या????? संबंध है आज मैं जानना चाहता हूं। युवा वर्ग होने के कारण वह बौखला गया था। घर में खन्ना जी के दखल अंदाजी उसको परेशान कर रही थी। अपने बेटे की बात सुन आज ममता बर्दाश्त न कर सकी। उसने सारा बर्तन अलमारी कपड़े सभी फेंक दिए। बर्तनों की आवाज से खन्ना साहब और उनकी धर्मपत्नी दौड़कर आए।
जैसे ही उन्होंने यह माजरा सुना कसकर एक जोरदार थप्पड़ दिया उनका हाथ लगते ही.. सुधीर और जोर जोर से बोलने लगा…. क्या रिश्ता है हमारी मां के साथ आपका। अब तो खन्ना आंटी जोर से चिल्ला कर बोली…. बेटा है तू हमारा मैंने तुझे जन्म दिया है। बंटी का जुड़वा भाई है तू सहोदर है उसका।
सुधीर तो जैसे कटे पेड़ की तरह दम से गिर धरती पर बैठ गया। सुधीर की मां बोली…. नहीं नहीं यह आपने क्या कह दिया। इसकी मां तो मैं ही हूं और रोते – रोते वह सुधीर को गले लगा ली।
सुधीर इन सब बातों से अंजान कभी अपनी मां और कभी खन्ना अंकल आंटी को देखने लगा पश्चाताप से भरा हुआ।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # सीढ़ियां ☆
(दो दिन पूर्व ‘सीढ़ियाँ’ शीर्षक से अपनी एक कविता साझा की थी। पुनर्पाठ में आज पढ़िए इसी शीर्षक की एक लघुकथा।)
“ये सीढ़ियाँ जादुई हैं पर खड़ी, सपाट, ऊँची, अनेक जगह ख़तरनाक ढंग से टूटी-फूटी हैं। इन पर चढ़ना आसान नहीं है। कुल जमा सौ के लगभग हैं। सारी सीढ़ियों का तो पता नहीं पर प्राचीन ग्रंथों, साधना और अब तक के अनुसंधानों से पता चला है कि 11वीं से 20वीं सीढ़ी के बीच एक दरवाज़ा है। यह दरवाज़ा एक गलियारे में खुलता है जो धन-संपदा से भरा है। इसे ठेलकर भीतर जानेवाले की कई पीढ़ियाँ अकूत संपदा की स्वामी बनी रहती हैं।
20वीं से 35वीं सीढ़ी के बीच कोई दरवाज़ा है जो सत्ता के गलियारे में खुलता है। इसे खोलनेवाला सत्ता काबिज़ करता है और टिकाए रखता है।
साधना के परिणाम बताते हैं कि 35वीं से 50वीं सीढ़ी के बीच भी एक दरवाज़ा है जो मान- सम्मान के गलियारे में पहुँचाता है। यहाँ आने के लिए त्याग, कर्मनिष्ठा और कठोर परिश्रम अनिवार्य हैं। यदा-कदा कोई बिरला ही पहुँचा है यहाँ तक”…, नियति ने मनुष्यों से अपना संवाद समाप्त किया और सीढ़ियों की ओर बढ़ चली। मनुष्यों में सीढियाँ चढ़ने की होड़ लग गई।
आँकड़े बताते हैं कि 91 प्रतिशत मनुष्य 11वीं से 20वीं सीढ़ी के बीच भटक रहे हैं। ज़्यादातर दम तोड़ चुके। अलबत्ता कुछ को दरवाज़ा मिल चुका, कुछ का भटकाव जारी है। कुबेर का दरवाज़ा उत्सव मना रहा है।
8 प्रतिशत अधिक महत्वाकांक्षी निकले। वे 20वीं से 35वीं सीढ़ी के बीच अपनी नियति तलाश रहे हैं। दरवाज़े की खोज में वे लोक-लाज, नीति सब तज चुके। सत्ता की दहलीज़ शृंगार कर रही है। शिकार के पहले सत्ता, शृंगार करती है।
1 प्रतिशत लोग 35 से 50 के बीच की सीढ़ियों पर आ पहुँचे हैं। वे उजले लोग हैं। उनके मन का एक हिस्सा उजला है, याने एक हिस्सा स्याह भी है। उजले के साथ इस अपूर्व ऊँचाई पर आकर स्याह गदगद है।
संख्या पूरी हो चुकी। 101वीं सीढ़ी पर सदियों से उपेक्षित पड़े मोक्षद्वार को इस बार भी निराशा ही हाथ लगी।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक सामयिक लघुकथा “सन्नाटा”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 8 ☆
☆ लघुकथा – सन्नाटा ☆
घन् घन्, टन् टन्, ठक् ठक्, पों पों… सुबह से शाम तक आवाजें ही आवाजें।
चौराहे के केंद्र में खड़ी वह पूरी ताकत के साथ सीटी बजाती पर शोरगुल में सीटी की आवाज दबकर रह जाती।
बचपन से बाँसुरी की धुन उसे बहुत पसंद थी। श्रीकृष्ण जी के बाँसुरीवादन के प्रभाव के बारे में पढ़ा था। हरिप्रसाद चौरसिया जी का बाँसुरी वादन सुनती तो मन शांति अनुभव करता।
यातायात पुलिस में शहर के व्यस्ततम चौराहे पर घंटों रुकने-बढ़ने का संकेत देने से हुई थकान वह सहज ही सह लेती पर असहनीय हो जाता था सैंकड़ों वाहनों के रुकने-चलने, हॉर्न देने का शोर सहन कर पाना। बहुधा कानों में रुई लगा लेती पर वह भी बेमानी हो जाती।
अकस्मात कोरोना महामारी का प्रकोप हुआ। माननीय प्रधानमंत्री जी के चाहे अनुसार शहरवासी घरों में बंद हो गए। वह चौराहे के आसपास के इलाके में कानून-व्यवस्था का पालन करा रही है कि कोई अकारण बाहर न घूमे। अब तक शोर से परेशान उसे याद आ रहे हैं पिछले दिन और असहनीय प्रतीत हो रहा है सन्नाटा।
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक , भावुक एवं मार्मिक लघुकथा “ इंसानियत ”। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस हृदयस्पर्शी लघुकथा को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 30☆
☆ लघुकथा – इंसानियत ☆
प्लीज अंकल, दो महीने से मुझे सैलेरी नहीं मिल रही है जैसे ही मिलेगी मैं आपको किराया दे दूंगी .
मुझे कुछ नहीं पता, रहना हो तो किराया दो, नहीं तो मकान खाली कर दो.
इस समय मुझे यहीं रहने दीजिए. आप ही बताइए ना मैं कहाँ जाऊँ इस समय ? .
मुझे कुछ नहीं पता – बडे रूखेपन से मकान मालिक ने जबाब दिया
अंकल ! आपको पता है ना कोरोना के कारण देश का क्या हाल है. मुझे मकान कहाँ मिलेगा किराए पर इस समय – उसने बडी मायूसी से कहा
मुझे इससे कोई मतलब नहीं, मैंने पहले ही कहा था कि किराया समय पर देना होगा.
रिया ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन मकानमालिक ने एक ना सुनी, साफ कह दिया कि किराया दो या मकान खाली करो. रिया ने परेशान होकर अपने लिए मकान देखना शुरू किया . दोस्तों के परिचय से मकान मिल तो गया अब समस्या यह थी कि नए घर में सामान कैसे पहुँचाया जाए ? लॉकडाउन के कारण कोई आ नहीं सकता था, बालकनी में खडी सोच रही थी कि सडक पर कुछ लडकों को जाते देखा, सबके कंधों पर बैग लदे थे, हाथों में भी सामान था. सबके चेहरों पर बडी थकान दिख रही थी. रिया ने बडे सकुचाते हुए उन्हें अपनी परेशानी बताई और पूछा – मुझे नए घर में सामान शिफ्ट करना है आप लोग मेरी मदद कर देंगे क्या ? मेरे पास पैसे भी थोडे ही हैं.
उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा. अरे दीदी काहे नहीं करेंगे मदद – मुस्कुराता हुआ एक लडका बोला, हमें आदत है मेहनत – मजूरी करने की. सबने अपना सामान एक किनारे रखा और लग गये रिया की मदद करने.सामान पहुँचाने के बाद रिया ने उन्हें पैसे देने चाहे तो एक मजदूर हाथ जोडकर बोला – दीदी पैसे की बात ना करना, हम समझते हैं सबके हालात, देखो ना हम भी तो मारे – मारे घूम रहे हैं. बस इतनी दुआ करना कि हम अपने घर पहुँच जाएं अपनों के पास — उसकी आँखें भर आईं.
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “परीक्षा”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 48 ☆
☆ लघुकथा – परीक्षा☆
मैंने परीक्षा कक्ष में जा कर मैडम से कहा, “अब आप बाथरूम जा सकती है.”मैडम ने “थैं” कहा और बाहर चली गई. मैं परीक्षा कक्ष में घूमने लगा. मगर, मेरी निगाहे बरबस छात्रों की उत्तरपुस्तिका पर चली गई थी. सभी छात्रों ने वैकल्पिक प्रश्नों के सही उत्तर कांट कर गलत उत्तर लिख रखे थे.
यानी सभी छात्रों ने एक साथ नकल की थी. छात्रों के 20 अंकों के उत्तर गलत थे. मुझ से रहा नहीं गया. एक छात्र से पूछ लिया, “ये गलत उत्तर किस ने बताएं है ?”
सभी छात्र आवाक रह गए. और एक छात्र ने डरते डरते कहा, “मैडम ने !”
“ये सभी उत्तर गलत है,” मैं जोर से चिल्लाया, “अपने उत्तर कांट कर अपनी मरजी से उत्तर लिखों. वरना, इस परीक्षा में सब फेल हो जाओगे.”
तभी केंद्राध्यक्ष ने आ कर कहा, “क्यों भाई ! क्यों चिल्ला रहे हो ? जानते नहीं हो कि ये परीक्षा है.”
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आज के सामाजिक परिवेश में जीवन के कटु सत्य को उजागर करती एक लघुकथा “व्यवहार”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 45 – साहित्य निकुंज ☆
☆ व्यवहार ☆
मंजू कॉलेज और घर का सब काम करते हुए साथ में सास की सेवा भी तल्लीनता से कर रही थी पतिदेव भी प्रोफेसर है। पता नहीं क्यों वह मंजू में इंटरेस्ट नहीं लेते हैं।
मंजू ने एक दिन पूछ लिया..” क्या बात है आखिर हमारे दो-दो बच्चे हो गए हैं सब की शादी हो गई है। अब बुढ़ापा हम दोनों का ही साथ में कटेगा आपको क्या हो गया है। आप हमसे बात क्यों नहीं करते।”
पतिदेव ने कहा..” देखो हमें पता है तुम्हारा मन मुझमें नहीं लगता तुम्हारा मन बाहर लगता है। इसलिए अब हमें तुमसे कोई संबंध नहीं रखना।”
मंजू ने कहा ..”यह आपसे किसने कहा।”
“माताजी बता रही थी कि उन्होंने तुमको बात करते सुना है…।”
मंजू ने कहा.. “कॉलेज के लोगों से तो 10 तरह की बातें होती हैं अब उन्होंने क्या समझ लिया यह तो वही जाने।”
मंजू की आंखों में आंसू छलक पड़े कि जिस सास के दुर्व्यवहार के बावजूद भी इतने बरसों से उसकी सेवा कर रही है।आज वही अंतिम समय में अपनी बहू को घर से निकालने पर तुली हुई है याने उसके व्यवहार में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया।
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा “एक सवाल मजदूर का”। मजदूर का ही नहीं हम सब का भी एक सवाल है कि जिन मजदूरों को गाड़ियों में भर भर कर जैसे भी भेजा है उनमें से कितने वापिस आएंगे ? डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस हृदयस्पर्शी लघुकथा को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 29 ☆
☆ लघुकथा – एक सवाल मजदूर का ☆
बाबा मजदूर क्या होता है?
मजदूर बहुत मेहनतकश इंसान होता है बेटवा!
अच्छा! मजदूर काम क्या करता है?
बडी- बडी इमारतें बनाता है, पुल बनाता है, मेहनत – मजूरी के जितने काम होते हैं सब करत है वह.
और वह रहता कहाँ है?
ऐसी ही झोपडिया में, जैसे हम रहत हैं, हम मजदूर ही तो हैं .
बाबा तुमने भी शहरों में बडी- बडी बिल्डिंग बनाई हैं?
हाँ, अरे पूरे देश में घूमे हैं काम खातिर. जहाँ सेठ ले गए, चले गए मुंबई,कलकत्ता बहुत जगह.
तो तुमने अपने लिए बडा – सा घर क्यों नहीं बनाया बाबा, कित्ती छोटी झोपडी है हमार, शुरु हुई कि खत्म – बेटा मासूमियत से पर थोडी नाराजगी के साथ बोला.
गंगू के पास मानों शब्द ही नहीं थे, कैसे समझाता बेटे को कि मजदूर दूसरों के घर बनाता है लेकिन उसके पैरों तले जमीन नहीं होती. टी.वी.पर आती मजदूरों के दर- ब- दर भटकने की दर्दनाक खबरें उसका कलेजा छलनी कर रहीं थीं. कोरोना से जुडे अनेक सवालों पर चर्चाएं चल रही थी पर गंगू के मन में तो एक ही सवाल चल रहा था – मजदूरों के बिना किसी राज्य का काम नहीं चलता लेकिन कोई भी उन्हें एक टुकडा जमीन और दो रोटी चैन से खाने को क्यों नहीं देता?
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक शिक्षाप्रद लघुकथा “प्यार बढ़ता गया”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 47 ☆
☆ लघुकथा – प्यार बढ़ता गया☆
नौ को आठ का जबान लड़ाना अच्छा नहीं लगा. उस ने गुस्से में सात को थप्पड़ रसीद कर दिया. सात ने छः को, छः ने पांच को. मगर यह सिलसिला एक पर आ कर रुक गया. एक किस को थप्पड़ रसीद करता. यह उस का स्वभाव नहीं था . उस ने प्यार से शून्य को बुलाया और पास बैठा लिया.
यह देख कर नौ घबरा गया. वह समझ गया कि शून्य के साथ लग जाने से एक का मान उस से एक ज्यादा हो गया, “ अब आप मेरे साथ भी वही सलूक करेंगे ?”
“ नहीं , अब मैं इसी तरह सभी का मान बढ़ता रहूँगा,” कहते हुए दस ने सभी अंकों को एक के बाद, एक प्यार से जमाना शुरू कर दिया.
अब नौ पछता रहा था कि यदि उस ने गुस्सा न किया होता तो उस का मान सब से अधिक होता.
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम लघुकथा “अदृश्य”। अतिसुन्दर लघुकथा जिसके पीछे एक लम्बी कहानी दिखाई देती है जो वास्तव में अदृश्य है और पाठक को उसकी विवेचना स्वयं करनी होगी। इस लघुकथा की खूबसूरती यह है कि प्रत्येक पाठक की भिन्न विचारधारा के अनुरूप इस लघुकथा के पीछे विभिन्न कथाएं दिखाई देंगी जो उनकी विभिन्न परिकल्पनाओं पर आधारित होंगी । इस सर्वोत्कृष्ट विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 45 ☆
☆ लघुकथा – अदृश्य ☆
प्रतिदिन की भांति दिव्या उठी। माँ से लाड प्यार कर ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगी। फिर माँ के पूजन के बाद एक लिफाफे को निकाल प्रणाम कर, फिर पूजा के जगह पर रख देना प्रतिदिन का नियम था। कभी उसने लिफाफे को देखने के लिए जिद नहीं की, क्योंकि माँ ने मना कर रखी थी।
आज ना जाने क्यों वह बार-बार माँ से पूछने लगी- “माँ आखिर इस लिफाफे में क्या है? जो आप मुझसे बताना नहीं चाहती। मां ने रुधें गले से आवाज लगाई “दिव्या जैसे भगवान दिखाई नहीं देते और हमारी सभी चीजों को सही वक्त पर हमें देते हैं, ठीक उसी प्रकार यह वह अदृश्य रूप में ईश्वर है। जिनके कारण आज तुम मेरे पास सुरक्षित हो। नहीं तो पता नहीं क्या हो गया होता” और आंखों से आंसू बहने लगे। दिव्या बोली “माँ मुझे तो देखने दो।”
माँ ने आखिरकार छोटी सी तस्वीर को निकाल कर दिखा दी। जल्दी जल्दी तैयार होकर वह ऑफिस के लिए निकल गई क्योंकि जिस कंपनी में वह काम करती है। उसके बॉस की शादी की 25वीं सालगिरह है और आज वह पहली बार बाकी कर्मचारियों के साथ उन्हें देखेगी।
मन में बहुत उत्साह था। क्योंकि छोटे कर्मचारियों को बॉस किसी भी मीटिंग में या कार्यक्रम में शामिल नहीं करते थे। आज पहली बार दिव्या को बुलाया गया था। सजे हुए हॉल में जैसे ही दिव्य पहुंची। सभी बॉस को बधाइयां दे रहे थे। परंतु दिव्या दरवाजे के पास पहुंच कर ठिठक कर खड़ी हो गई। हाथ से फूलों का गुलदस्ता नीचे गिर गया। वो और कोई नहीं लिफाफे वाले अदृश्य ईश्वर है। फूलों का गुलदस्ता बॉस के चरणों में रख दिव्या बहुत खुश होकर माँ को बताने घर चल पड़ी।
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक आलेख “अंश कला देवी ”। )
स्त्री ऊर्जा के कई आंशिक रूप हैं जो वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूप में से हैं और कुछ लोग उनकी प्रार्थना करते हैं कि वे हमें हमारे जीवन को शांतिपूर्वक चलाने में सहायता करें, जबकि अन्य कुछ रूपों से लोग डरते हैं ऊर्जा के इन आंशिक रूपों की देवियों को ‘अंश कला देवी’ कहा जाता है । अंशकला देवी दोनों प्रकार की होती हैं जो हमारे जीवन को शांतिपूर्ण बनाती हैं और जिनसे हम डरते हैं । स्त्री ऊर्जा के आंशिक चरणों की मुख्य 26 अंशकला देवी है :
1) स्वाहा देवी (अर्थ : माध्यम की देवी) : स्वाहा देवी वो माध्यम है जिससे अग्नि में डाली गयी वस्तु भस्म होकर शुद्ध होती है । वह अग्नि की पत्नी है । स्वाहा की दुनिया भर में पूजा की जाती है । यदि हव्य (oblation) उनके नाम को दोहराए बिना अर्पण किया जाता है, तो देवता इसे स्वीकार नहीं करते हैं ।
2) दक्षिणा देवी (अर्थ : दान की देवी) : ये यज्ञ के पूरा होने के बाद धन के रूप में पुरोहित को दिए जाने वाले दान की देवी है । वह यज्ञ देव (बलिदान के देवता) की पत्नी है इस देवी के बिना, दुनिया के सभी कर्म व्यर्थ हो जाएंगे ।
3) दीक्षा देवी (अर्थ : यज्ञ के अनुसार संकल्प पूर्ण दान की देवी) : भोजन या कपड़े आदि के रूप में दान की देवी, जिसे उनके द्वारा यज्ञ पूरा करने के बाद पुजारी को दिया जाता है । वह यज्ञ देव की पत्नी है, यह देवी शुद्ध ज्ञान प्रदान करती है ।
4) स्वधा देवी (अर्थ : पितरों के निमित्त दिया जानेवाला अन्न या भोजन की देवी) : आत्म-शक्ति, शासन, अपनी जगह या घर की देवी । ये प्रथा, प्रचलन या आदत अदि को संदर्भित करती है । यह देवी पितृ (मृतक पूर्वजों) की पत्नी है, जिनकी मनुष्यों द्वारा पूजा की जाती है । इस देवी का सम्मान किए बिना पितरों को दिया गया चढ़ावा व्यर्थ साबित होता है ।
5) स्वेच्छा देवी (अर्थ : अपनी इच्छा की देवी) : यह इच्छा की देवी है जो अच्छा करती है । यह वायु की पत्नी है । अगर स्वेच्छा से उपहार नहीं दिया जाता है तो उपहारों का कोई फायदा नहीं होता ।
6) पुष्टि देवी (अर्थ : पोषण की देवी) : यह पोषण या अनुमोदन की देवी है और गणपति की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में ना हो, तो पुरुष और स्त्री कमजोर हो जाएँगे, क्योंकि वह सभी ताकतों का स्रोत है ।
7) तुष्टि देवी (अर्थ : तुष्ट होने की अवस्था की देवी) : शांति या खुशी की देवी । यह अनंत की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में ना हो तो दुनिया में कोई खुशी नहीं होगी ।
8) संपत्ति देवी (अर्थ : धन दौलत जायदाद आदि जो किसी के अधिकार में हो और खरीदी या बेची जा सकती हो की देवी) : संपत्ति की देवी । यह इशाना (अमीर) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती तो पूरी दुनिया गरीब और स्वदेशी हो जाएगी ।
9) धरती देवी (अर्थ : भूमि की देवी) : यह दृढ़ संकल्प की देवी एवं कपिल (अर्थ : लाल भूरे रंग) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया भयानक और डरपोक हो जायेंगी ।
10) सती देवी (अर्थ : सत की देवी) : सत्त्व की देवी जो मानव में सभी अच्छी गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है । वह सत्य (सत्य) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो लोगों के बीच कोई मित्रता और शांति नहीं होगी ।
11) दया देवी (अर्थ : करुणा और सहानुभूति की देवी) : करुणा और सहानुभूति की देवी । यह मोह (भ्रम, सुस्तता) की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया नरक हो जाएगी और एक भयंकर युद्ध क्षेत्र बन जाएगी ।
12) प्रतिष्ठा देवी (अर्थ : ख्याति की देवी) : प्रतिष्ठा की देवी । यह पुण्य (दान, इनाम) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया ख़त्म हो जाएगी ।
13) सिद्ध देवी (अर्थ : परिपूर्ण करने वाली देवी), और कीर्ति देवी (अर्थ : प्रसिद्धि की देवी) : ये दोनों सुकर्मा (अर्थ : अच्छा स्वभाव) की पत्नियां हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहें तो पूरी दुनिया प्रतिष्ठा से बेकार हो जाएगी और मृत शरीर की तरह निर्जीव हो जाएगी ।
14) क्रिया देवी : कार्य की देवी वह उद्योग (अर्थ : व्यापार) की पत्नी है । अगर वह अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया निष्क्रिय हो जाएगी और कार्य करना बंद कर देगी ।
15) मिथ्या देवी (अर्थ : झूठी मान्यताओं की देवी) : वह अधर्म (अप्राकृतिकता, गलतता) की पत्नी है । हठी और चरित्रहीन लोग इस देवी की पूजा करते हैं । अगर यह देवी पूरी दुनिया में अस्तित्व में नहीं रहती है तो ब्राह्मण ही अस्तित्व में नहीं रहेगा । सत युग के दौरान दुनिया में कहीं भी यह देवी दिखाई नहीं देती थी । वह त्रेता युग के दौरान यहाँ और वहाँ एक सूक्ष्म रूप में दिखाई देने लगी थी । द्वापार युग में उन्होंने अधिक विकास प्राप्त किया और फिर उनके अंग और मजबूत हो गए । कलियुग में वह अपने पूर्ण स्तर और विकास के रूप में विकसित हुई और अपने भाई कपट (अर्थ :धोखा) के साथ हर जगह चली आयी ।
16) शांति देवी (अर्थ : शांति की देवी) और लज्जा देवी (अर्थ : विनम्रता की देवी) : ये दो देवी अच्छी प्रकृति की हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया सुस्त और आलसी हो जाएगी ।
17) बुद्धि देवी (अर्थ : समझने और जानने की इच्छा की देवी), मेधा देवी (अर्थ : ज्ञान की देवी) और धृत देवी (अर्थ : संभाले रखने की देवी) : यह तीनों देवियाँ ज्ञान की पत्नियां है । अगर ये देवियाँ अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया अज्ञानता और मूर्खता में डूब जाएगी ।
18) मूर्ति (अर्थ : रूपों की देवी) : वह धर्म (सही कर्तव्य) की पत्नी है । उनकी अनुपस्थिति में सार्वभौमिक आत्मा जीवन शक्ति से विरक्त, असहाय और अर्थहीन हो जाएगी ।
19) श्रीदेवी : यह सौंदर्य और समृद्धि की देवी है । वह माली की पत्नी है । इनकी अनुपस्थिति दुनिया को निर्जीव बना देगी ।
20) निन्द्रा देवी : यह नींद की देवी है । यह कालाग्नि (समय की अग्नि ) की पत्नी है । ये देवी रात्रि के दौरान दुनिया में हर किसी को प्रभावित करती है और उनकी चेतना को खो कर उन्हें नींद में डाल देती है । इस देवी की अनुपस्थिति में दुनिया एक पागलों की शरण स्थली बन जाएगी ।
21) रात्री (अर्थ : रात्रि की देवी), संध्या (अर्थ : शाम की देवी) और दिवस (अर्थ : दिन की देवी) : ये तीनों काल (अर्थ : समय) की पत्नियां हैं । उनकी अनुपस्थिति में किसी को भी समय की कोई समझ नहीं होगी और कोई भी समय की गणना और निर्धारण करने में सक्षम नहीं होगा ।
22) विसापू (अर्थ : यह भूख की देवी है) और दहम (अर्थ : यह प्यास की देवी है) : ये दो देवियाँ लोभ (अर्थ : लालच) की पत्नियाँ हैं, वे दुनिया को प्रभावित करती हैं और इस तरह उन्हें चिंतित और दुखी बनाती हैं ।
23) प्रभा देवी (अर्थ : प्रकाश की देवी) और दहक देवी (अर्थ : अग्नि से उत्पन्न प्रकाश और गर्मी की देवी) : ये दोनों तेजस की पत्नियां हैं इनके बिना भगवान को सृष्टि के कार्य को जारी रखना असंभव हो जायेगा ।
24) मृत्यु देवी (अर्थ : मृत्यु की देवी) और जरा देवी (अर्थ : मातृत्व की देवी) : ये दोनों प्रकृस्ताजवारा (अर्थ : अनिर्मित भगवान), और काल (अर्थ : समय) की पुत्री हैं । और यदि ये अस्तित्व में रहना बंद कर देती हैं, तो ब्रह्मा नयी रचना नहीं बना सकते हैं । क्योंकि मृत्यु सृजन, जन्म की पूर्व शर्त है । यदि कोई मृत्यु नहीं है तो जन्म भी नहीं है ।
25) तन्द्रा देवी (अर्थ : नींद की झपकी) और प्रीति (अर्थ : खुशी की देवी जो प्रेम से आती है) : ये दोनों निद्रा (अर्थ : नींद) की पुत्रियाँ हैं और सुख (अर्थ : खुशी) की पत्नियाँ हैं । ये देवी ब्रह्मा के आदेश पर दुनिया भर में घूमती रहती हैं ।
26) श्रद्धा देवी (अर्थ : भक्ति के विश्वास) और भक्ति देवी (अर्थ : वैराग्य की देवी) : ये देवी सांसारिक सुखों के प्रति उलझन और दुनिया के लोगों की आत्माओं को मोक्ष देती हैं ।
आप इन देवी-देवताओं के महत्व को समझ सकते हैं । मैं आपको इनमें से 3-4 के विषय में बता देता हूँ । सबसे पहले ‘स्वाहा देवी’ को ले लो, जो हमारी भेंट को अग्नि को देती है। इसे अन्यथा लें, जब हम भोजन खाते हैं तो यह हमारे पेट में पहुँचता है जहाँ जठारग्नि (पेट में भोजन के पाचन के लिए जिम्मेदार अग्नि) इसे पचती है । तो क्या ‘स्वाहा देवी’ से ये प्रार्थना करना गलत है, की ‘कृपया देवी मेरे द्वारा खाया हुआ भोजन पचाकर मुझे स्वस्थ बनाएं’। इसी प्रकार यदि हम अग्नि को कुछ भी देते हैं तो हम स्वाहा देवी’ से प्रार्थना करते हैं ताकि यह जलने के बाद एक या दूसरे रूप में उपयोगी हो सके ।