हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसाॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब

? रचना संसार # 40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब  

 

पीपल -बरगद सूख  चुके सब,

कोयल नहीं दिखाई दे।

गौरेया पानी को तरसे,

मैना नहीं सुनाई दे।।

 *

मिटी  झोपड़ी  की यादेंं हैं,

आँखों में पल रही नमी।

पनघट ने पहचान गँवाई

होती जल की नित्य कमी।।

बिखरे रंग  प्रेम के सारे ,

रूठे वन-अमराई दे।

 *

व्याकुल है ये साँझ सुनहरी,

भोर निराशा भरी रहे ।

क्रंदन करते बच्चे प्यारे,

भीषण तृष्णा धार बहे।।

मानव निष्ठा हुई अगोचर,

छलना को गहराई दे।

 *

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब,

बदली भोली गाँव छटा।

हवा लगी शहरों की सबको,

झीलों का सौन्दर्य घटा।।

निश्छल हँसी नहीं अधरों पर,

गुल्लक टूटी पाई दे।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #267 ☆ भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 267 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

(पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)

धरती माँ की गोद में, सोये वीर जवान।

कतरा- कतरा बूँद से, सींचा हिंदुस्तान।।

*

माँ के आँसू टपकते, सदा पराक्रम गान।

बच्चा-बच्चा गा रहा, अपना हिंदुस्तान।।

*

मिटते हैं जो देश पर, वे हैं सदा महान।

याद रखेगा देश भी, वीरों का बलिदान।।

*

पुलवामा की याद में, आता हिये उबाल।

बलिदानों के खून से, धरा अभी भी लाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

14/2/2025

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #249 ☆ कलयुग केवल नाम अधारा… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 249 ☆

☆ संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कहे   सनातन   सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम अधारा

*

सदियों  से  थी  आस  हमारी

राम  लला  ने  जो   स्वीकारी

धन्य  अयोध्या  नगरी   हमरी

जहाँ   बना   है   मंदिर  प्यारा

*

भजन  कीर्तन  पूजा  आरती

नित  मंदिर  में   करें   भारती

आओ हम सब मिल कर गाएं

प्रभु  राम  का  नाम  है  प्यारा

*

उत्सव   प्राण  प्रतिष्ठा  का  है

सबकी  फलित  इच्छा  का  है

शिक्षा  सबको   मिले सनातन 

आज  लगाओ  एक  ही  नारा

*

हिंदू   धर्म  सनातन   क्या   है

क्या   मानव  की  मानवता  है

देता   सनातन   उत्तर   सबके

सबसे    न्यारा    धर्म   हमारा

*

हम  सहिष्णुता के  हैं  पुजारी

नफरत,  हिंसा    हमसे   हारी

सत्य, अहिंसा, दया भाव संग

राम  लला  को  प्रेम  है  प्यारा

*

आओ   खुद  के  अंदर  झांके

औरों   के  हम  दोष  न  ताकें

मिलेगा   “संतोष”   तुम्हें   तब

जब  लोगे  प्रभु   राम   सहारा

*

कहे    सनातन    सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम   अधारा

 

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हास्यास्पद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – हास्यास्पद ? ?

हिमखंड की

क्षमता से अनजान,

हिम का टुकड़ा

अपने जलसंचय  पर

उछाल मार रहा है,

अपने-अपने टुकड़े को

हरेक ब्रह्मांड मान रहा है,

अनित्य हास्यास्पद से

नित्य के मन में

हास्य उपजता होगा,

ब्रह्मांड का स्वामी

इन क्षुद्रताओं पर

कितना हँसता होगा..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 10:11 बजे, 5.12.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 336 ☆ कविता – “खैर खबर…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 336 ☆

?  कविता – खैर खबर…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

 गुड मार्निंग का व्हाट्स अप आ गया उनका

समझ लिया कि सब खैरियत ही है

गए वो दिन, जब बेवजह होती थीं गुफ्तगू

बात करने में अब बोरियत ही है

 

बर्थ डे, एनिवर्सरी पर जो फोन होते हैं

और सुनाओ पे आकर जल्दी

हाले मौसम में अल्फ़ाज़ सिमट जाते हैं

अपनो में भी अब ग़ैरियत ही है

 

हाथों में हाथ डाले घूमना, मटरगश्ती करना

बीते दिनों की बात हुई

इस अलगाव की वजह शायद, मेरी या उनकी हैसियत ही है

 

बैठको में सिर्फ सोफे और दीवान बचे हैं ठहाको वाली महफिलें गुमशुदा हैं

क्लब या होटल में मिलना, फ़ज़ूल ही मशगूल होने की कैफियत ही है

 

मिलें न मिलें रूबरू दिनों महीनो, बरसों बरस की संगत है

पता सब का, सब को सब होता है, ये दोस्तों

अपनी शख्सियत ही है

 

अच्छे भले में मिल लो यारों, बातें कर लो,

पी लो साथ साथ जाम

कल का किसको पता है, दूरियां हैं, उम्र भी है, चले न चले तबियत ही है

 

मरने के लिए ही जैसे, जी रहे हैं कई उम्र दराज शख्स

जीने के लिए जियो कुछ नया करो, हर लम्हा जिंदगी की मिल्कियत ही है ।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 240 ☆ गीत – काम अच्छा ही अच्छा करो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 240 ☆ 

☆ गीत – काम अच्छा ही अच्छा करो…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मुश्किलों से कभी मत डरो।

काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 *

जिंदगी है बड़े काम की।

श्याम की, बुद्ध की, राम की।

अनगिनत इसमें सदियाँ लगीं।

बोलियाँ प्रेम की भी पगीं।

 *

याद कर लो शहीदों के दिल

देश हित में जिओ और मरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।।

काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 *

जाग जाओ बहुत सो लिए।

पाप सिर पर बहुत ढो लिए।

कुछ हँस लो , हँसा लो यहाँ

जन्म से अब तलक रो लिए।

 *

गलतियों से सदा सीख ले

कुछ घड़े पुण्य के भी भरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।

काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 *

आदमी देवता और असुर ।

स्वयं ही ये बनता चतुर।

सहज जीवन तो जी ले जरा,

प्रेम फागों से बन ले हरा।

 *

साँस पूरी लिखीं हैं वहाँ पर

पाप की गठरियाँ मत भरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।

काम अच्छा ही अच्छा करो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #268– कविता – बोझ हमें कम करना होगा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता बोझ हमें कम करना होगा…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #268 ☆

☆ बोझ हमें कम करना होगा... ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर गर चढ़ना है

आडम्बर से विमुख रहें, जीवन को यदि सुखमय करना है

*

प्रश्नों पर प्रतिप्रश्न करेंगे, तो फिर इनका अंत नहीं है

अंकुश लगा सके मन पर, ऐसा कोई श्रीमंत नहीं है

जीवन की क्रीड़ाओं के सँग, जुड़ी हुई है पीड़ाएँ भी

पतझड़ भी है शीत-घाम भी, बारह माह बसन्त नहीं है।

ज्ञानप्रभा विकसित करने को ऊँची शुभ उड़ान भरना है

बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।

*

तन से भलें विशिष्ट लगें, मन से भी नहीं शिष्टता छोड़ें

भीतर बाहर रहें एक से, नहीं मुखोटे नकली ओढ़ें

बोध स्वयं का रहे, आत्मचिंतन का चले प्रवाह निरंतर

बिखरे जो मन के मनके हैं, एक सूत्र माला में जोड़ें।

जिनसे शुचिता भाव मिले, ऐसे सम्बन्ध मधुर गढ़ना है

बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।

*

स्मृतियाँ दुखद रही वे भूलें, वर्तमान से हाथ मिलाएँ

छोड़ें पूर्वाग्रह मन के सब, चित्तवृत्ति को शुद्ध बनाएँ

खाली करें भरें फिर मन में, शुचिता पूर्ण विचारों को

पथ में आने वाले  कंटक,  दूर  उन्हें भी  करते  जाऍं,

हल्के-फुल्के मन से फिर विशुद्ध प्रतिमान नये गढ़ना है

बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 92 ☆ लोग ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लोग” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 92 ☆  लोग ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

रीति या रिवाजों के

मुहताज हुए लोग

कटे हुए पर वाले

परवाज़ हुए लोग ।

**

गर्भवती माँ की

अनदेखी सी लाज

बूढ़े की लाठी सा

टूटता समाज

*

बटन बिना कुरते के

बस काज हुए लोग ।

**

टेढ़ी पगडंडी पर

गाँवों के ख़्वाब

शहरों ने ओढ़ा है

झूठ का रुआब

*

सच के मुँह तोतले

अल्फ़ाज़ हुए लोग ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वादा करना और फिर मुकर जाना… ☆ श्री हेमंत तारे ☆

श्री हेमंत तारे 

श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक,  चंद कविताएं चंद अशआर”  शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – वादा करना और फिर मुकर जाना ।)

✍ वादा करना और फिर मुकर जाना… ☆ श्री हेमंत तारे  

ग़र ये दिन, अलसाये से और शामें सुस्त ही न होती

तो सच मानो, ये किताब वजूद में आयी ही न होती

मैं कोई गीत, ग़ज़ल, नज़्म, अशआर कैसे लिखता

ग़र मेरी माँ ने  रब से कभी दुआ मांगी ही न होती

*

लाजिम है गुलों कि महक से चमन महरूम रह जाता

ग़र थम – थम कर मद्दम वादे – सबा चली ही न होती

*

क्या पता परिंदे चरिंदे अपना नशेमन कहाँ बनाने जाते

ग़र दरख़्त तो पुख्ता होते पर उन पर डाली ही न होती

*

वादा करना और फिर मुकर जाना तुम्हे ज़ैब नही देता

ग़र अपने पे ऐतिबार न था तो कसम खाई ही न होती

*

जानते हो “हेमंत” शम्स ओ क़मर रोज आने का सबब

ग़र ये रोज न आते रोशन दिन, सुहानी रातें ही न होती

© श्री हेमंत तारे

मो.  8989792935

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 96 ☆ भले जन्नत में तुम सी हूर हो पर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “भले जन्नत में तुम सी हूर हो पर“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 96 ☆

✍ भले जन्नत में तुम सी हूर हो पर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

कभी हमने ख़ुशी देखी नहीं है

कहीं ऐसी कमी देखी नहीं है

 *

गुज़रते रात दिन है तीरगी में

अभी तक रोशनी देखी नहीं है

 *

वो क्या समझे है दिल का मारना क्या

कि जिसने मुफ़लिसी देखी नहीं है

 *

उसे मजबूर पर आना न तरस

अगर जो बेबसी देखी नहीं है

 *

किसी विधवा सी लगती है वो उजड़ी

अगर सूखी नदी देखी नहीं है

 *

भले जन्नत में तुम सी हूर हो पर

जमीं पर रूपसी देखी नहीं है

 *

मगन हो कृष्ण में मीरा पिया विष

यूँ दूजी बंदगी देखी नहीं है

 *

अरुण फिरते हो दीवाने बने तुम

कभी यूँ आशिक़ी देखी नहीं है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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