हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 87 – आपके बिन खुशी नहीं भाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आपके बिन खुशी नहीं भाती।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 87 – आपके बिन खुशी नहीं भाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

कोई सूरत मुझे नहीं भाती 

आपके बिन खुशी नहीं भाती

*

जिसमें, तेरा न जिक्र आता हो 

शायरी वह, मुझे नहीं भाती

*

एक निर्मल हँसी का झरना तू 

तुझसे बढ़कर नदी नहीं भाती

*

आपको जब बसा लिया दिल में 

कोई तस्वीर अब नहीं भाती

*

आज मैं हूँ जहाँ, वहाँ मुझको 

दोस्ती-दुश्मनी नहीं भाती

*

प्रेम का, चढ़ गया नशा मुझ पर 

इसलिए मयकशी नहीं भाती

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्षितिज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – क्षितिज ? ?

छोटे-छोटे कैनवास हैं

मेरी कविताओं के ;

आलोचक कहते हैं,

और वह बावरी

सोचती है-

मैं ढालता हूँ

उसे ही अपनी

कविताओं में,

काश!

उसे लिख पाता

तो मेरी कविताओं का

कैनवास

क्षितिज हो जाता!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:31, दि. 25 दिसंबर 2015

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 160 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 160 – मनोज के दोहे ☆

महा- कुंभ का आगमन, बना सनातन पर्व।

सकल विश्व है देखता, करता भारत  गर्व।।

 *

प्रयाग राज में भर रहा, बारह वर्षीय कुंभ।

पास फटक न पाएगा, कोई शुंभ-निशुंभ।।

 *

गँगा यमुना सरस्वती, नदी त्रिवेणी मेल।

पुण्यात्माएँ उमड़तीं, धर्म-कर्म की गेल।।

 *

सूर्य देव उत्तरायणे, मकर संक्रांति पर्व।

ब्रह्म-महूरत में उठें, करें सनातन गर्व।।

 *

गंगा तट की आरती, लगे विहंगम दृश्य।

अमरित बरसाती नदी, कल-कल करती नृत्य।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 222 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 222 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

क्या

याद हैं तुम्हें

अपने किसी

शिशु का चेहरा ?

मन में

बसा पाई

उनकी किलकारी?

क्या तुम्हारी स्मृति में है

बाहुओं का कसाव

और

चुम्बनों का स्वाद ?

नहीं, नहीं,

तुम्हें कुछ याद नहीं होगा।

जड़वत किये

कार्य का

स्मरण कैसा ।

तुम्हारा

आचरण रहा

वर्तमान की

‘सरोगेट मदर’ की तरह।

सच बताना

क्या मिला तुम्हें

आकुल स्पर्शो में

उत्तप्त साँसों में।

क्या उत्तप्त स्पर्श

फसल काटने की

आतुरता से

भरे नहीं थे?

माधवी,

तुम्हें किसी ने

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 222 – “रख लाई कई रिश्ते…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रख लाई कई रिश्ते...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 222 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रख लाई कई रिश्ते...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

शहर से आयी हुई है

सुरा पीकर सुन्दरी

ठंड को पहने हुए यह

कँपकपाती जनवरी

 

पीठके बस्ते में

रख लाई कई रिश्ते

सोम मंगल बुध

जैसे कुछ फरिश्ते

 

रिझाने स्कूल के

हो गेट पर ठहरी हुई

आन उतरी सुनहरी

सुहानी कोई परी

 

बाँटती है बर्फ को

हर तरफ अपनो में

लोग खो जाते चमत्कृत

कई सपनों में

 

घूमने लगती कुहर के

भँवरक्रम में

अँधियारी मनोहारी

सुसज्जित सी छोकरी

 

जहाँ मौसम मिन्नते

करता रहा है

पूछती ठंडक कि कुछ

कहता रहा है –

 

दिन, पढ़ाने लग गया

कानून ऋतु का

काँपते हाथों में जिसके

बस गई है थरथरी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-01-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समय ? ?

समय को ढककर

अपने दुशाले से

खेलता हूँ छुपाछुपी,

खुद ही छिपाता हूँ

खुद ही ढूँढ़ता हूँ,

हौले से दुशाला हटाता हूँ,

समय को न पाकर

चौंक जाता हूँ,

फिर देखता हूँ

समय उतरा बैठा है

हर आँख में..,

अब आँख

खुली रखो या बंद,

क्या अंतर पड़ता है,

समय सर्वव्यापी हो चुका!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात:8:50 बजे, 21.6.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 205 ☆ # “मूल्यों का पतन…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मूल्यों का पतन…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 205☆

☆ # “मूल्यों का पतन…” # ☆

बड़ा अजीब

इस जमाने का चलन है

दिखावे का है प्यार

मन के अंदर जलन है

 

चेहरे पर मुखौटे हैं

सभी सिक्के खोटे हैं

मुस्कुराहट झूठी है

फरेब में मगन है

 

बाहों में है यार

दिल में ना प्यार ना एतबार

टूटते रिश्तों की

यही चुभन है

 

मां-बाप बने हैं बोझ

कलह होती है रोज

मां-बाप की जिम्मेदारी

वृद्धाश्रम में दफन है

 

शरीर पर लंगोटी है

घर में नहीं रोटी है

भूख से बिलखता

यह कैसा बचपन है

 

महंगाई की मार है

हर शख्स बेज़ार है

सस्ती है शराब

यहां महंगा कफन है

 

पैरों में बेड़ियां है

हाथों में हथकड़ियां है

न्याय पेशोपेश में है

हर तरफ मूल्यों का पतन है

 

जीने की हसरत है

हवाओं में नफरत है

दिलों में मोहब्बत का

कौन करेगा जतन है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 220 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 220 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 220) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 220 ?

☆☆☆☆☆

मैं न अन्दर से समंदर हूँ

न बाहर आसमान

बस मुझे उतना समझ

जितना नजर आता हूँ मैं…

☆☆

I am neither sea from within

Nor am I the sky externally…

Just try to understand me

As as much I’m visible to you!

☆☆☆☆☆

ज़िन्दगी है साहब

छोड़कर चली जाएगी;

मेज़ पर होगी तस्वीर

कुर्सी खाली रह जाएगी…

☆☆

This  is the life, my  dear!

Will leave you abruptly;

Table will have the picture

While chair will be left empty…!

☆☆☆☆☆

थमती नहीं 

जिंदगी कभी 

किसी के बिना;

मगर 

यह गुजरती भी नहीं 

अपनों के बिना।

☆☆

Life  never stops

Without anyone…

But then

It doesn’t even pass;

Without the loved ones…

☆☆☆☆☆

खुद को भी कभी

महसूस कर लिया करो

कुछ रौनकें खुद से 

भी हुआ करती हैं…

☆☆

Sometimes even try 

to feel yourself

Sometime liveliness is

even self-generated…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – ‘इस जनवरी का माधुर्य…’ – ☆ डॉ अंशु शर्मा ☆

डॉ अंशु शर्मा

(डॉ अंशु शर्मा नई दिल्ली की निवासी, एक सरकारी सेवा निवृत्त एलोपैथिक चिकित्सक हैं। उन्होंने दिल्ली के प्रख्यात लेडी हार्डिंग कॉलेज से स्नातक और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की, तत्पश्चात् सीजीएचएस में क़रीब ३० वर्ष, एवं केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में Public health officer के पद पर ९ वर्ष कार्यरत रहने के बाद २०२२ में निजी कारणों से सेवानिवृत्ति ले ली थी। उन्हें द्विभाषीय कविताये ( हिन्दी और अंग्रेजी में ) लिखने में क़रीब १२ वर्षो का अनुभव हैं और उनकी हिन्दी कविताओं की पुस्तक “अंतर्मन के संवाद” २०२० में प्रकाशित हो चुकी है।)

आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी लिटररी वारियर्स ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत कविता ~ ‘इस जनवरी का माधुर्य…~. 

☆ ~ ‘इस जनवरी का माधुर्य…’ ~? ☆

(लिटररी वारियर्स ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत कविता। कविता “इस जनवरी” शब्दों से प्रारम्भ होनी थीं।

इस जनवरी का आगमन हुआ , और नववर्ष आया है।

सर्द हवाएँ ख़ुशबू भरी, नया सा ख़ुमार छाया है।

बर्फ की चादर पड़ी हुई कहीं पर, कहीं चंपई धूप निखर आई है।

हर दिन एक नया इरादा, हर कोने में नई सी चमक आई है।

पर सर्दी की ठिठुरन से, बहुतों की उम्मीदें भी जलती हैं,

ठंड से काँपते हाथों में, चाय के संग, बात नई बनती है।

मीठी मीठी धूप की गुनगुनाहट, जोश से भरी सुबह ,

सर्दी का मौसम, प्रकृति का उल्लास हरेक जगह ।

 *

नववर्ष की इस संध्या पर सीख लें,हर दिन एक नया अवसर है।

गिर गिर के बार बार सँभलें, जीवन का यही सफ़र है।

सर्दी की धुँधके बाहर, रौशनी तलाशनी होगी,

सपनों को साकार करने की,  अपनी पूरी ज़िम्मेदारी होगी।

 *

इस जनवरी के माधुर्य के संग, नववर्ष को भरपूर जियो,

कड़कड़ाती ठंड में ,आत्मिक गर्मी से, सबके दिलों के क़रीब जाओ।

इस नये वर्ष के बहुमूल्य समय में, इक नई शुरुआत का संकल्प करो ।

अपने सपनों को गले लगाओ, हर रिश्ते का आदर करो।

 *

कल जो भी था, मीठा या कड़वा, उसे भूल जाओ,

आज के इस दिन को , अपनी हर मंज़िल बनाओ ।

जो भी हुआ और जो भी होगा, उस से अपना ध्यान हटाओ,

कर्म के योगी बन, बस सेवा भाव में लीन हो जाओ ।|

~ डॉ अंशु शर्मा

© डॉ अंशु शर्मा

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 219 – नवगीत – दूर कर दे भ्रांति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक नवगीत – दूर कर दे भ्रांति)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 219 ☆

☆ नवगीत – दूर कर दे भ्रांति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

दूर कर दे भ्रांति

आ संक्राति!

हम आव्हान करते।

तले दीपक के

अँधेरा हो भले

हम किरण वरते।

*

रात में तम

हो नहीं तो

किस तरह आये सवेरा?

आस पंछी ने

उषा का

थाम कर कर नित्य टेरा।

प्रयासों की

हुलासों से

कर रहां कुड़माई मौसम-

नाचता दिनकर

दुपहरी संग

थककर छिपा कोहरा।

संक्रमण से जूझ

लायें शांति

जन अनुमान करते।

*

घाट-तट पर

नाव हो या नहीं

लेकिन धार तो हो।

शीश पर हो छाँव

कंधों पर

टिका कुछ भार तो हो।

इशारों से

पुकारों से

टेर सँकुचे ऋतु विकल हो-

उमंगों की

पतंगें उड़

कर सकें आनंद दोहरा।

लोहड़ी, पोंगल, बिहू

जन-क्रांति का

जय-गान करते।

*

ओट से ही वोट

मारें चोट

बाहर खोट कर दें।

देश का खाता

न रीते

तिजोरी में नोट भर दें।

पसीने के

नगीने से

हिंद-हिंदी जगजयी हो-

विधाता भी

जन्म ले

खुशियाँ लगाती रहें फेरा।

आम जन के

काम आकर

सेठ-नेता काश तरते।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७.१२.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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