हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 199 ☆ # “जीवन चक्र…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जीवन चक्र…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 199 ☆

☆ # “जीवन चक्र…” # ☆

जीने के लिए हम

क्या क्या नहीं करते हैं

रोज जीते हैं

रोज मरते हैं

दो जून की रोटी के लिए

क्या क्या नहीं करते हैं

चाहे दिन हो या रात

ठंड हो, गर्मी हो

या हो बरसात

किसी भी मौसम में

खुद की परवाह नहीं करते हैं

सुबह घर से निकलते हैं

दौड़ लगाते हैं

भीड़ का हिस्सा

बन जाते हैं

परिश्रम करते हैं

पसीना बहाते हैं

तब –

दो रोटी का

परिवार के लिए

इंतजाम हो पाता है

कुछ पल के लिए

आदमी सो पाता है

रोज अपने परिवार

की जरूरते

जो अनंत हैं

पर जरूरी हैं

उसे पूरा करना

हर शख्स की

मजबूरी है

 

यह ऐसी जंग है

जिसका अलग ही रंग है

इससे हर कोई लड़ता है

एक एक कदम

आगे बढ़ता है

किसी के भाग्य का

सितारा चमकता है

तो वो नया इतिहास

गढ़ता है

और कोई

हर रोज संघर्ष करता है

पर निराश है

बेकारी, भूख , गरीबी

उसके पास है

झूठे वादे

अंधविश्वास ही

उसको रास है

वो जीवित तो है पर

एक जिंदा लाश है

 

जो तूफानों से टकराता है

आंधियों से नहीं घबराता है

वो भवसागर पार

कर जाता है

और

जो डरता है

हिम्मत हारता है

वो टूटकर

बिखर जाता है

जीवन चक्र में

अनजाना सा

मर जाता है

यही जीवन का

 अकाट्य सत्य है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – कान्हा,  नैना दर्शन को बेचैन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता कान्हा,  नैना दर्शन को बेचैन…‘।)

☆ कविता – कान्हा,  नैना दर्शन को बेचैन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

********

कान्हा,  नैना दर्शन को बेचैन,

जब से ब्रज को, त्यागा तुमने,

तड़पत हैं दिन रैन,

कान्हा, …..

 

भूल गए हो, हमको भुला कर,

याद आओगे, खूब सताकर,

तरसेंगे दिन रैन,

कान्हा, नैना दर्शन को बेचैन..

 

कान्हा हूं मैं, तेरी बदरिया,

चाहत है, बन जाऊं बांसुरिया,

बाजूं मैं दिन रैन,

कान्हा,  नैना दर्शन को बेचैन,

 

सूनी राह निहारें अखियां,

काट रही विरहा की रतियां,

खोकर सुख और चैन,

कान्हा, नैना दर्शन को बेचैन,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 213 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 213 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 213) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 213 ?

मेरे नाम के साथ कितना 

अच्छा लगता है तेरा नाम…

जैसे खूबसूरत सुबह के साथ

जुड़ी हो प्यारी एक शाम…

☆☆

How nicely combines your

Name with my name…

Like a beautiful morning

Merging with a lovely evening!

☆☆☆☆☆

पी लिया करते हैं 

जीने की तमन्ना में कभी…

डगमगाना भी जरुरी है

सम्भलने के लिये…!

☆☆

Sometimes I do drink

Aspiring to live the life

It’s a must to wobble 

To get stablized…

☆☆☆☆☆

दरिया की दहलीज पर बैठी

सोच रही हैं ये आँखे…

आखिर कितना वक्त लगेगा

सारे ख्बाब बहाने में…

☆☆

On the threshold of riverbank

Curious eyes wonder puzzlingly

After all how long will it take

To float away all the dreams…!

☆☆☆☆☆

वक़्त की कसौटी पर बैठा

सोच रहा है पौरुष…

और कितना दम लगा दूं

मन माफिक कर जाने में…

☆☆

Sitting at the touchstone of time

Contemplates the  masculinity,

How much more efforts do I need

To fulfill my aspirational cravings

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सृजन ? ?

?

कठिन परीक्षाएँ सिर पर हैं

तुम्हें कभी तैयारी करते नहीं देखा..?

समस्या क्रमांक दो (क) के

तीसरे उपप्रश्न ने कहा,

जटिल प्रश्नपत्र बने

जीवन को सांगोपांग निहारा,

पारंपरिक उत्तरों को

निकासी द्वार दिखाया,

कलम स्याही में डुबोई

और मैं हँस पड़ा….!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 9:10, गुड़ी पाडवा, संवत 2076)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ मुक्तक – ।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान नया बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

वजह बेवजह जरूर ही एक   काम  हो।

कुछ हिस्सा वक्त का देश के भी नाम   हो।।

कुछ कर्तव्य हो एक नागरिक होने की भी।

बनो सजग प्रहरी न ही गरिमा बदनाम हो।।

[2]

हमारा देश एक बगिया हम सब फूल हैं।

मातृ भूमि की मिट्टी बने माथे की धूल है।।

देश देता हमेंअधिकार और कुछ जिम्मेदारी।

हटाएं खुद भी राह का हर   एक शूल है।।

[3]

हमनें बहुत बलिदानों से यह आजादी पाई है।

लेकिनआजादी साथ ही दायित्व भी लाई है।।

जिम्मेदारी स्वाधीनता को सुरक्षित रखने की।

इतिहास गवाह कि शहीदों के लहू से आई है।।

[4]

हम देशवासी हमें ही तो   देश बदलना है।

नई सदी में एक नई राह पर लेकर चलना है।।

भारत को विश्व गुरु विश्व  नायक है बनाना।

सोने की चिड़िया वाला   देश अब ढलना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “हमारा नगर जबलपुर प्यारा। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

रेवातट पर बसा जबलपुर पावन प्यारा शहर हमारा

जिसकी मनभावन माटी ने हमें संवारा हमें निखारा

*

इसके वातावरण वायु जल नभ ने नित ममता बरसाया

इसके शिष्ट समाज सरल ने सदा नया उत्साह बढाया

 *

इसके प्राकृत दृश्य और इतिहास ने नित नये स्वप्न जगाये

इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने पावन सुखद विचार बनाये

 *

भरती है आल्हाद हृदय मे इसकी सुदंर परम्पराएँ 

इसकी धार्मिक भावनाओ ने भक्तिभाव के गीत गुंजाए 

 *

इसकी हर हलचल में दिखता मुझको एक संसार सुहाना

श्वेत श्याम चट्टानो में है भरा प्रकृति का सुखद खजाना

 *

दूर दूर तक फैला दिखता विंध्याचल का हरित वनांचल

कृपा बांटता प्यास बुझाता माँ रेवा का पावन आंचल

 *

इसकी ही धडकन ने मुझको बना दिया साहित्यिक अनुरागी

संवेदी मन में ज्ञानार्जन की उत्सुकता उत्कण्ठा जागी

 *

यहीं ज्ञान वैराग्य भक्ति तप मे रत हैं साधू सन्यासी

उद्योग, व्यापारो व्यवसाय में है कर्मठ सब नगर निवासी

 *

शिक्षा रक्षा और चिकित्सा के कई है संस्थान यहाँ पर

सडक रेल औं वायुयान की यात्राओं हित साधन तत्पर

 *

सहज सुलभ सुविधायें सभी वे जो जीवन हित हैं सुखकारी

बाल युवा वृद्धो के जीवन हित संभव सुविधाये सारी

 *

लगता मेरा शहर मुझे प्रिय अनुपम सब नगरों से ज्यादा

परिवारी स्वजनों से ज्यादा यहाँ सबों का भला इरादा

इसकी सात्विक रूचि से संपोषित है मेरी जीवन धारा

यह ही पालक पोषक और परम प्रिय पावन नगर हमारा

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #30 – गीत – आलोकित मनमंदिर मेरा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतआलोकित मनमंदिर मेरा

? रचना संसार # 29 – गीत – आलोकित मनमंदिर मेरा…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

☆ 

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।

जब भी कविता लिखने बैठूँ ,

लिख जाता है नाम तुम्हारा।।

 *

अन्तर्मन में बसते प्रियतम ,

हिय में है प्रतिबिंब तुम्हारा।

गंगा -यमुनी संगम अपना ,

जन्म -जन्म का प्रेम हमारा।।

रूप मनोहर कामदेव सा ,

तुम्हें निरखता मन मतवारा।

रोम -रोम रोमांचित होता ,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

 *

सृजन करूँ जब – जब मैं साजन,

भावों में आती छवि प्यारी।

गीत ग़ज़ल रस अलंकार हो,

सप्त सुरों की सरगम सारी।।

पढ़कर मन नैनों की भाषा,

लिखता मन शृंगार दुलारा।

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

 *

आलोकित मनमंदिर मेरा,

अंग – अंग में प्रीत समाई।

सन्दल सी सुरभित काया है,

पड़ी सजन की जो परछाई।।

रात अमावस दीप जले हैं,

पूनम सा फैला उजियारा।

रोम -रोम रोमांचित होता,

बहती प्रेम सुधा रस धारा।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #257 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 257 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

बता दिया उसने मुझे, अपने दिल का राज।

कैसे कह दूँ मैं तुम्हें, बन जाओ सरताज।।

*

 अश्क बहाने क्यों अभी, आए मेरे पास।

दिल तेरा कहने लगा, मैं हूँ  तेरी खास।।

*

कहते क्यों हो  जीवनी, भोर नहीं है रात।

कैसे तुम यह भूलते, होती कितनी  बात।।

*

समझ गए हो आज तुम, अपनी ही तकदीर।

आए जब से तुम यहाँ, हर ली मेरी पीर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #239 ☆ एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  आपका  – एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया…  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 239 ☆

☆ एक बुंदेली गीत – हिंदुस्तान है सबको भैया ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मिल जुल खें सब रहबे बारे

बात समझ खें कहवे बारे

*

सड़कों पै बिन समझें उतरें

बातें ऊंची करवे बारे

*

गंगा जमुनी तहजीब हमारी

बा में हम सब पलवे बारे

*

हमरी एकता हमरी ताकत

कम हैं बहुत समझवे बारे

*

नाहक में बदनाम होउत हैं

जबरन सड़क पै उतरवे बारे

*

हिंदुस्तान है सबको  भैया 

सुखी “संतोष”संग रहवे बारे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुग़ालता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुग़ालता ? ?

?

सूखे के

मारे थे सारे,

सावन बन दिया साथ,

इस मुग़ालते में

पर वे रहे,

अकेले ही

उलीच लाए बरसात..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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