हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऐसी भी क्या थी बाधा? ☆ श्री हेमंत तारे ☆

श्री हेमंत तारे 

श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक,  चंद कविताएं चंद अशआर”  शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक  भावप्रवण कविता – ऐसी भी क्या थी बाधा?।)

✍ ऐसी भी क्या थी बाधा? ☆ श्री हेमंत तारे  

फिसल जाते हैं लम्हें, दिन, महीने,

साल, दशक,

या

उम्र तमाम

सुलझाने में गुत्थियां,

कुछ उलझनें,

कुछ अनुत्तरित प्रश्न

या

चिन्हें- अनचिन्हें

उत्तर, प्रतिउत्तर ।

 

और फिर,

जब – तब  प्रकट होता है

अप्रत्याशित, यक्षप्रश्न एक

कि

ऐसी भी क्या थी बाधा

या था कोई संकोच

जो

बंध गयी थी घिग्घी,

उस पल, उस घड़ी

कि

रह गया अनकहा,

अपने मन का सच।

© श्री हेमंत तारे

मो.  8989792935

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 93 – जानते हैं हम शराफत आपकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जानते हैं हम शराफत आपकी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 93– जानते हैं हम शराफत आपकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जानते हैं हम, शराफत आपकी 

आँख करती हैं शरारत, आपकी

*

कत्ल हो जाता, लहू बहता नहीं 

ऐसी कातिल है, नजाकत आपकी

*

फूल खिलते हैं चमन के, बाद में 

पहले, लेते हैं इजाजत, आपकी

*

कितने घर, बर्बाद तुमने कर दिये 

जानते हैं, हम भी ताकत आपकी

*

कब से, ये पलकें बिछी हैं राह में 

जाने कब होगी, इनायत आपकी

*

चैन से जीने नहीं देती मुझे 

बेवजह की, यह अदावत आपकी

*

गम में खुश रहकर, बसर करने लगे 

शुक्रिया, यह है इनायत आपकी

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अभिमन्यु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अभिमन्यु ? ?

कृतज्ञ हूँ

उन सबका,

मुझे रोकने

जो रचते रहे

चक्रव्यूह..,

और परोक्षतः

शनैः- शनैः

गढ़ते गए

मेरे भीतर

अभिमन्यु..!

?

© संजय भारद्वाज  

11:07 बजे , 3.2.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 167 – फागुन के दिन आ गये… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “फागुन के दिन आ गये…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 167 – फागुन के दिन आ गये… ☆

फागुन के दिन आ गये, मन में उठे तरंग।

हँसी-ठहा के गूँजते, नगर गाँव हुड़दंग ।।

कि होली आई है, रंगों को लाई है ।।

बसंती ऋतु छाई, सभी के मन-भाई

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

अरहर झूमे खेत में, पहन आम सिरमौर।

मधुमासी मस्ती लिये, नाचे मन का मोर।

गाँव की किस्मत चमकी, घरों में खुशियाँ दमकीं।

ये बालें पक आईं, खेत में लहराईं

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

जंगल में टेसू खिले, प्रकृति करे शृंगार।

चम्पा महके बाग में, गाँव शहर गुलजार।।

वो कोयल कूक रही है, मधुरिमा घोल रही है।

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

प्रेम रंग में डूब कर, कृष्ण बजावें चंग ।

राधा पिचकारी लिये, डाल रही है रंग।।

कृष्ण-राधे की जोड़ी, खेलती बृज में होली

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

लट्ठ मार होली हुई, लड्डू की बौछार।

रंग डालते प्यार से, पहनाएं गल-हार।।

नाचती रसिया टोली, करें मिल हँसी ठिठोली।।

यही मथुरा की होली, यही वृज की है होली।।

 *

दाऊ पहने झूमरो, झूमें मस्त मलंग।

होरी गा-गा झूमते, टिमकी और मृदंग।।

ग्वाले सब घर हैं जाते, नाच गा धूम मचाते।

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

महिलाओं की टोलियाँ, हम जोली के संग।

बैर बुराई भूलकर, खेल रहीं हैं रंग ।।

यही संस्कृती हमारी, रही दुनिया से न्यारी

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

फाग-ईसुरी गा रहे, गाँव शहर के लोग।

बासंति पुरवाई में, मिटें दिलों के रोग।।

चलो जी हँसलो भाई, भुला दो सभी लड़ाई।

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

जीवन में हर रंग का, अपना है सुरताल ।

पर होली में रंग सब, मिलें गले हर साल ।।

सहिष्णुता हमें लुभाई, सभी हम भाई भाई

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

 *

दहन करें मिल होलिका, मन के जलें मलाल ।

गले मिलें हम प्रेम से, घर-घर उड़े गुलाल ।।

कि एकता हर्षाई, प्रगति की डगर दिखाई

सुनो प्रिय श्रोता भाई,बजाओ मिलकर ताली

ये होली आई है, रंगों को लाई है ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 229 – बुन्देली कविता – पूँछत हैं नाँव… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – पूँछत हैं नाँव।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 229 – पूँछत हैं नाँव… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

बोलत में सरम लगे पूँछत हैं नाँद

पूँछत हैं गाँव, पूँछत हैं नाँव

बोलत में सरम लगे पूँछ दे नाँव गाँव।

 

बेर बेर टेरत हैं देर देर हेरत हैं

जानें का बुदबुदात माला सी फेरत हैं।

चौपर सी खेलें अर सोचत हैं दाँव। पूँछत हैं नाँव ।

 

प्रान प्रीत जागी है फेंकी आँग आगी है

नदिया-सी उफन रई रीत नीत त्यागी है।

गोरस की गगरी खों मिलो एक ठाँव। पूछत हैं गाँव।

 

पूँछ पूँछ हारे हैं लगें को तुमारे हैं ?

राधा सी गोरी के कही कौन कारे हैं ?

औचक मैं खड़ी रही पकर लये पाँव। पूँछें वे नाँव गाँव।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 229 – “आज आँगन के थके हाथों…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “आज आँगन के थके हाथों...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 229 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “आज आँगन के थके हाथों...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

चुप रहो कि तनिक दूरी पर

रुकी घबराहटें

पास में आती हुई सहमी

सुरों की आहटें ॥

 

घर नहीं बोला यहाँ कुछ

सहन कर मजबूरियों को

पीठ पर लादे समय की

अनगिनत कुछ दूरियों को

 

कई मुखड़ों में बनी हैं

कष्ट की ताजा धुने क्यों

मुस्कराते इन कपोलों में

कहीं कुछ सलवटें  ॥

 

आज आँगन के थके हाथों

छपा इतिहास सारा

कहरहा भूगोल कैसे क्या

यहाँ पर हो गुजारा

 

कुटुम का मुखिया समाजों

की युगों से छानता है

गुम हुई परिवार की

ताजातरीं वो तलछटें ॥

 

अब बची परिपक्व होती

हुई केवल एक आशा

किन्तु ओढे हुये है

गृहस्वामिनी भीषण निराशा

 

देह जिसकी सहन न

कर पा रही थी जो उसीके

कठिन हिस्से आपड़ी

दुर्दांत गतिमय करवटें हैं ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14 – 03 – 2025 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ओ मेरे जनक… ☆ सुश्री वंदना श्रीवास्तव ☆

सुश्री वंदना श्रीवास्तव

(ई-अभिव्यक्ति में सुश्री वंदना श्रीवास्तव जी का स्वागत।)

संक्षिप्त परिचय 

जन्मस्थान- लखनऊ, उत्तर प्रदेश (विगत 35 वर्षों से मुम्बई, नवी मुम्बई मे निवास)

शिक्षा- परास्नातक अर्थशास्त्र, लखनऊ विश्वविद्यालय

कई वर्षों तक आल इंडिया रेडियो लखनऊ केंद्र के विविध कार्यक्रमों से सम्बद्धता, देश की विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर लेख, कहानियाँ, लघुकथाएं, कविताएँ और गीत प्रकाशित, साझा द्वै अन्तर्मन के अतिरिक्त कई चर्चित साझा संकलनों मे रचनाएँ समाहित। कई मंचीय कवि सम्मेलनों मे भागीदारी। 

सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन

☆ कविता – ओ मेरे जनक☆ सुश्री वंदना श्रीवास्तव ☆

ओ मेरे जनक…

तुमने फिर से मुझे चिड़िया कह कर पुकारा!!

मुझे याद है, जब मैं नन्ही सी चिड़िया..

आंगन में फुदकती फिरती थी,

तुमने मुझे अपनी गोद में बिठा..

आसमान की ओर उंगली दिखा कर कहा था..

‘तुझे उड़ना है..

ये अनन्त आसमान तेरा है, अनन्त उड़ानों के लिए’…

तब मेरी आंखें जगमगा उठी थी,

मेरे पंख उत्साह से फड़फड़ा उठे थे।

लेकिन तब मैं कहां जानती थी,

कि जैसे ही पंख पसार कर उड़ने की चेष्टा करूंगी,

उस अनन्त आकाश में बाड़ लगा दोगे,

मेरे पंख थोड़े से नोच दोगे तुम!!!

 

रटे-रटाए पाठ मैं जब फटाफट बोलती जाती थी,

स्कूल मे सिखाई गई कविताएं

 मटक-मटक कर सुनाती थी,

तुम मुग्ध हुए जाते थे…

मेरी विद्वता और विलक्षणता पर,

लेकिन जैसे ही मैने स्वयं के..

दो शब्द बोलने चाहे,

उन रटी हुई परिभाषाओं से हट कर,

अपने वाक्यांश देने चाहे,

तुमने चुपके से मेरी जीभ कुतर दी,

मेरे शब्द कोष के कितने ही पन्ने फाड़ लिए।

 

तुम ही तो थे न..

जो मुझ पर वारे-न्योछारे जाते थे,

अपनी ‘कोहनूर’ के मूल्यांकन को दूसरों पर छोड़ दिया,

जिन्होने मेरा मनोबल भीतर तक तोड़ दिया।।

 

अब अगर चिड़िया कह कर बुलाना हो तो पहले,

कानों में बालियां डालते वक्त..

ये मंत्र भी फूंकना,

कि गलत सुन कर मुझे चुप नहीं रहना है,

आंखों में काजल के साथ सपने देखने की हिम्मत भी भरना,

सीने से लगाना तो इतना साहस भर देना,

कि उन्हें  पूरा कि जिद खुद से तो कर पाऊं,

इतना आत्मसम्मान भर देना मुझमें,

कि जो हूं वही बन कर जी पाऊं।

 

इतना कर सको मेरे जनक..

तो ही मुझे चिड़िया कह कर बुलाना..

वरना अब से मुझे चिड़िया मत कहना!!!

© सुश्री वंदना श्रीवास्तव   

नवी मुंबई महाराष्ट्र 

ई मेल- vandana [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 211 ☆ # “इस होली में…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता इस होली में…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 211 ☆

☆ # “इस होली में…” # ☆

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

गीत खुशी के गाओ इस होली में

 

अमराई में कोयल गाती

भ्रमरों को कलियाँ मदमाती

आम्र वृक्ष सा बौराओ इस होली मे

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

भीगी है रंगों से चोली

फूट रही अंगों से बोली

कामबाण से देह बचाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

दया नहीं अधिकार चाहिए

तिरस्कार नहीं प्यार चाहिए

मानवता का अलख जगाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

बिखर गए हैं सारे सपने

बिछड़ गए हैं हमसे अपने

नफरत की दीवार गिराओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में     

 

तपिश सूर्य की पी जाओ

मधुर चांदनी जग में लाओ

धरती को ही स्वर्ग बनाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

गीत खुशी के गाओ इस होली में /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अद्भुत है फागुन… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ अद्भुत है फागुन… ☆  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

मधुमक्खियाँ

कितनी व्यस्त हैं इन दिनों

उन्हें ठहरने की

बात करने की

भी फ़ुर्सत नहीं है

उन्हें तो लाना  है  पराग

उन्हें आकर्षित करते हैं

महकते हुए बाग

वह कर रही हैं

अपना  काम  निस्वार्थ भाव से

हँसी  ख़ुशी  से  चाव-चाव  से

महुए के फूलों की मादकता

अंकुरित आम मंजरियों की कोमलता

पलाश की आभा

गेहूँ की गंध

अलसी के फूलों का रंग

 

टेसू की महक

सरसों के फूलों के खेत

धनिये के फूलों की क्यारियाँ

अद्भुत है यह फागुन

महक उठा है मन का आँगन

मंडराती तितलियाँ

गुंजायमान भँवरे

आम के पेड़ों पर निकलती

नव पत्तियाँ

करती हैं

प्रकृति को नमन

हवा में छिटक रहे हैं

रंग, गंध,रस के कण

 

हैं पुलकित दिशायें

सुगंधित हवायें

महकते वन-फूल,फलियाँ

ओस में भीगी-भीगी कलियाँ

हरितिम वसुंधरा

नन्हीं कोपलों पर

लाज की लालिमा

जगा  रही  है  मन  में  नये-नये अहसास

यूँ  ही  महकते  रहना हे! मधुरिम मधुमास

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 227 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 227 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 227) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 227 ?

☆☆☆☆☆

एक नफरत ही नहीं

दुनिया में  दर्द का सबब ….

मोहब्बत भी सकूँ वालों को

बड़ी तकलीफ़ देती है….

☆☆

Hatred  is  not  only  the

Cause of pain in this world

Love  also  hurts  a lot to

those who live in peace…!

☆☆☆☆☆

हर किसी के नसीब में

कहाँ लिखी होती हैं चाहतें

कुछ लोग दुनिया में आते हैं

सिर्फ तन्हाइयों के लिए…

☆☆

When do the wishes ever get

materialised in everyone’s fate

Some  people  just  come to

the world to be  loners only…

☆☆☆☆☆

कोई तो जुर्म रहा होगा…

जिस में हर शख़्स था शामिल

तभी  तो  हर  शख़्सियत

मुँह छुपाए फिर रही है..!

☆☆

There musta been some crime

Which had everyone  involved

Why  else  every person here

would  be  hiding  his  face ..!

☆☆☆☆☆

वक़्त के नाखून

बहुत गहरा नोंचते हैं दिल को

तब जाके कुछ जख़्म

तज़ुर्बा बनके नज़र आते हैं…

☆☆

Talons of the time tear up

The heart too deep then only

Some wounds manifest as

An experienced wisdom…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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