हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #227 – 114 – “राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ।)

? ग़ज़ल # 114 – “राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,

हमने कहा जनाब इंसानी क़ुदरत होती है।

*

आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,

दिलफ़रेब अन्दाज़ उनकी ज़रूरत होती है।

*

राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,

बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है। 

*

जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,

अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।

*

मुहब्बतज़दा दिलों में झाँकता है ‘आतिश’

आशिक़ी फ़रमाना सबकी क़ुदरत होती है।

*

दिलों में मुहब्बत का खेल शुरू होता है,

ज़हन में ग़ुलाम परस्त हसरत होती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विचार (2) ? ?

तुम सहमत मत होना

मेरे विचार से,

यदि हो भी जाओ

तो मत करना समर्पण,

बचा रखना

झीनी-सी अंतर-रेखा..,

अंतर-रेखा के इस पार मैं,

अंतर-रेखा के उस पार तुम,

मनन करना, मंथन करना,

मेरे-तुम्हारे

विचारों की बिलोई

उत्पन्न करेगी नया आविष्कार..,

आविष्कार उस आग का

जो चकमक के आपसी घर्षण से

जन्मती है और सचमुच

गलानेे लगती है दाल,

सेंकने लगती है रोटियाँ,

उन अर्थों में नहीं

जिन्हें मुहावरों के आवरण में

बदनाम कर रखा है शब्दकोशों ने,

आग से सचमुच

भरता है भूख का कुआँ;

बुझती है पेट की आग..,

आग को, अंतर्भूत अग्नि को

सदैव जलाये और

जिलाए रखना मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

(14 जुलाई 2017, प्रातः 9:04 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 106 ☆ मुक्तक – ।।वंदना, मां सरस्वती, मां शारदे, मां वीणापाणी, की।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 106 ☆

☆ मुक्तक – ।।वंदना, मां सरस्वती, मां शारदे, मां वीणापाणी, की।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

हे मां ,हंसवाहिनी, मां शारदे आए तेरी शरण में,

कल्याण कर हमारा, हम सबको तार दे।

 *

हे मां विद्या की देवी मानवता ज्ञान की पुकार है,

स्नेह से दुलार दे, सब के लिए सरोकर दे।

 *

तू ही मां सरस्वती, है बुद्धि प्रदाती,

आए हम तेरे द्वारे, सबको ज्ञान का नव प्रकाश दे।

 *

हे मां वीणापाणी तू निकाल हर विकार दे,

हर मन में भाव परोपकार दे, ऐसा विचारों में उद्धार दे।

 *

तू जगतारिणी, तू है दया प्रेम की देवी,

महिमा आपार तेरी, इस भवसागर से पार दे।

 *

हे मां वागेश्वरी, जगतपालिनी, कमल पर तू विराजित,

कष्ट सबका उतार दे, अपने आशीष का हमें उपहार दे।

 *

हे मां श्वेतवस्त्र धारण, पुस्तकें तेरे ही तो कारण,

आए तेरे वंदन को, अंतर्मन को तू झंकार दे।

 *

हे मां मधुरभाषिणी, वीणावादिनी, ह्रदय के अंधेरे को,

तू सूर्य का उज्जवल प्रकाश दे।

 *

हे मां भुवनेश्वरी, तेज तेरा असीम अनंत आपार,

तुझसे होता है आलोकित सम्पूर्ण संसार, हर शत्रु को तू संहार दे।

 *

तुझको शीश वंदन करते हैं, पूजा अर्चना तेरी करते हैं,

हे मातेश्वरी, बस अपना हाथ शीश पर वार दे।

हम सब को सुधार दे। बस ये एक उपकार कर।।

बस ये एक उपहार दे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 168 ☆ बदलते मौसम में घिर रही हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक अप्रतिम रचना  – “बदलते मौसम में घिर रही हैं ..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘बदलते मौसम में घिर रही हैं  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मुसीबतों से बचा वतन को जो अपने खुद को बचा न पाये

उन्हीं की दम पै हैं दिख रहे सब ये बाग औ’ घर सजे सजाये

तुम्हारे हाथों है अब ये गुलशन सब इसकी दौलत भरा खजाना

जिसे ए बच्चों बचा के रखना तुम्हें औ’ आगे इसे बढ़ाना ॥

 *

बदलते मौसम में घिर रही हैं घने अंधेरों से सब दिशाएँ है

तेज बारिश कड़कती बिजली कँपाती बहती प्रबल हवाएँ भची है

भगदड़ हरके दिशा में समाया मन में ये भारी डर है

न जाने कल क्या समय दिखाये, मुसीबतों से भरा सफर है।

 *

मगर न घबरा, कदम-कदम बढ़ निराश होके न बैठ जाना

बढ़ा के साहस, समझ के चालें, तुम्हें है ऐसे में पार पाना।

चुनौतियों को जिन्होंने जीता उन्हीं का रास्ता खुला रहा है

बहादुरों, तुम बढ़ो निरन्तर, जमाना तुमको बुला रहा है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार (1) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विचार (1) ? ?

मेरे पास एक विचार है

जो मैं दे सकता हूँ,

पर खरीदार नहीं मिलता..,

फिर सोचता हूँ

विचार के

अनुयायी होते हैं;

खरीदार नहीं..,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति,

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

(प्रातः 9 बजे, दि. 14.7.2017)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #223 ☆ – हाइकू … – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  हाइकू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 223 – साहित्य निकुंज ☆

हाइकू… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

जीना दुश्वार

होता रहा उनका

वक्त की मार

 बुद्धि से काम

राजनीति के दांव 

होगा संग्राम

होता अन्याय

अदालत में मिले

बच्ची को न्याय।

मासूमों पर

बलात्कार है होता

जीना दुश्वार

  होती नादानी

दिखता आकर्षण

जान गवानी।

ऐसी संतान

माता पिता लगते

बोझ समान।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #206 ☆ एक बाल गीत – बरखा रानी बड़ी सुहानी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – बरखा  रानी  बड़ी  सुहानीआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 205 ☆

☆ एक बाल गीत – बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

छम छम बरसाती  है पानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

बरसे जब आती  हरियाली

खुशी किसान झूमते माली

प्यासे  पपीहे झूम के  बोलें

आगई  अब  रुत  मस्तानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

मेढक टर टर कर चिल्लायें

पशु – पक्षी   झूमें   इतराएं

गाँवों में खेलते खूब गपन्नी

नानी  सुनाती  नई  कहानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

इक कागज की नाव बनाते

पानी  में  जब  उसे   बहाते

चली हवा बादल जब गरजे

पानी  में  तब  नाव  समानी

बरखा  रानी   बड़ी  सुहानी

*

कोयल  मीठे  गीत  सुनाती

पक्षी कलरव  सबको भाती

कारे  बदरा  झूम- झूम कर

बरसें   खूब  जमीं   हर्षानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनभिव्यक्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनभिव्यक्त ? ?

अंतहीन विवाद,

भीषण कलह,

एक-दूसरे के लिए आज से

मर चुका होने की घोषणा,

फिर भी जाने क्या था कि

खिड़की के कोने पर खड़ा वह,

भाई को तब तक देखता रहा

जब तक सुरक्षित रूप से

पार नहीं कर ली उसने सड़क

और ओझल नहीं हो गया आँखों से..,

 

आपसी सहमति से हुए

उनके संबंध विच्छेद पर

अब तो अदालती मोहर भी लग चुकी,

फिर भी जाने क्या है कि

हर रोज़ वह बनाती है अपने साथ

उसके भी नाम की रोटियाँ

और सुबह आँसुओं के नमक से

लगा-लगा कर खाती है

रो़ज़ाना उसे कोसते हुए..,

 

संपत्ति बीच में क्या आई

शत्रु हो गई अपनी ही जायी,

एक खुद का, दो बेटों का

और एक बेटी का हिस्सा करके भी

गुज़रने से पहले

माँ अपना हिस्सा भी कर गई

अबोला किए नाराज़ बेटी के नाम..,

 

‘लव यू मॉम’…

‘फॉर ईच अदर, फॉरएवर’…

‘ग्रेटेस्ट ब्रो!’…

सेलेब्रेशन, विशिष्ट संबोधन

और फिर पढ़ता हूँ सुर्खियाँ-

भाई का भाई द्वारा खून,

पति निकला पत्नी का हत्यारा,

बूढ़ी माँ को बेटी

ने दिया घर निकाला..,

सोचता हूँ

जो अभिव्यक्त नहीं होता था,

संभवत: अधिक परिपक्व

अधिक सशक्त होता था!

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 6:30 बजे, 2 जुलाई 2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 266 ☆ कविता – लंदन से 2 – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता लंदन से 2 – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 266 ☆

? कविता लंदन से 2 – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर ?

मोबाईल इस कदर समा गया है जिंदगी में

कैलेंडर कागज के

बदलते कहां हैं अब

 

साल , दिन ,महीने , तारीखें,  समय सब कैद हैं टच स्क्रीन में

वैसे भी

अंतर क्या होता है

आखिरी तारीख में बीतते साल की 

और पहले दिन में नए साल के ,

जिंदगी तो वैसी ही दुश्वार बनी रहती है ।

 

 हां दुनियां भर में

जश्न , रोशनी , आतिशबाजी

जरूर होती है

रस्म अदायगी की साल के स्वागत में

 

टूटने को नए संकल्प लिए जाते हैं

गिफ्ट का आदान प्रदान होता है ,

ली दी जाती है डायरी बेवजह

 लिखता भला कौन है अब डायरी

सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है ।

 

जब हम मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ टच करें

हौले से मन

अपने बिसर रहे कांटेक्ट्स

और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने स्टेटस पर

हर

सूर्योदय के साथ

जहां जागें,

सोएं वहां से कुछ आगे बढ़कर

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

लंदन से 

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #38 ☆ कविता – “महामाया…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 38 ☆

☆ कविता ☆ “महामाया…☆ श्री आशिष मुळे ☆

क्या हो कैसी हो

कौन हो कहां हो

दिल से करीब

मगर हातों से

इतनी क्यों दूर हो

तुम बस एक सपना हो

 

जीत हो

शिकस्त हो

दिल का सुकून

या दिल जलाता

दर्द-ए-इश्क हो

तुम बस एक सपना हो

 

छोटीसी परी हो

परियों का नूर हो

हज़ार लफ्ज़ फेंकती

किसी मेहबूबा की

एक हसीन मुस्कान हो

तुम बस एक सपना हो

 

पानी में बसे आंसू हो

आंखों में बसा दर्या हो

दिल खौलता लावा

या उसी लावा से बनती

एक ऊंचीसी हस्ती हो

तुम बस एक सपना हो

 

पत्थरों में बसते लफ्ज़ हो

लफ़्ज़ों में छुपे पत्थर हो

अंधेरे मे रोशन

लफ़्ज़ों का अर्थ

या अर्थहीनता एक अर्थ हो

तुम बस एक सपना हो

 

भाव से खेलते नक्श हो

दिल से खेलता भाव हो

भाव का अभाव भी

अभाव का भाव भी

और भाव का भाव भी हो

तुम बस एक सपना हो

 

रंगो में भीगती होली हो

रंगों ने जलाई होली हो

हर एक रंग का भी

बेरंग का भी

एक रंगीन नजारा हो

तुम बस एक सपना हो

 

दिल में बसी ‘वोह‘ हो

जानवर मुझे बनाती हो

कभी बस एक स्त्री

कभी बस एक मां हो

इंसान जो मुझे बनाती हो

तुम एक महामाया हो

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares