हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 56 ☆।।मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत  है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 56 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत  है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सदियों से ही चल, रही यही   रीत है।

हार के बाद ही, मिलती     जीत है।।

गर नहीं छोड़ी प्रीत, जोशो   जनून से।

सफलता बन जाती, हमारी   मीत है।।

[2]

परिश्रमऔर व्यवहार, यही दो  मंत्र हैं।

बुद्धिऔर विवेक, जीत के दो   तंत्र  हैं।।

सहयोग और सरोकार को बनाना मित्र।

साहस और उत्साह,जीत के दो यंत्र हैं।।

[3]

बनना सफल तो ,कर्मशीलता साथ रखो।

सबसे मिला कर हाथों में, तुम हाथ रखो।।

मंजिल खुद चलकर,पास तुम्हें बुलाती है।

बस निरंतर अभ्यास, का सूत्र याद रखो।।

[4]

व्यवहार लोकप्रियता, सिक्के के दो पक्ष हैं।

सफल  होते  वो  सब, जो बोलने में दक्ष हैं।।

जो अनूठा  कार्य  करते, वो स्थान बना लेते।

जीत का हार पहनते, जो रखते कुछ लक्ष्य हैं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 119 ☆ कविता  – “प्रार्थना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #120 ☆  कविता  – “प्रार्थना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

भगवान तुम्हारी माया को जग समझ सके आसान नहीं ।

तुम करुणा के आगार अमित जिसका जग को अनुमान नहीं ।।

जग में माया का मायापति तुमने ऐसा विस्तार किया

कण कण में आकर्षण भर कर सबको सुन्दर संसार दिया।

पर नयन बावरे देख सकें इसका उनको तो भान नहीं ।। 1 ।।

दुनियाँ ने की उन्नति बहुत पर सच अब भी अज्ञानी है

विज्ञानी ने कीं खोज कई, पर तज न सका नादानी है।

उस पार तुम्हारी इच्छा के जा सकता है विज्ञान नहीं ॥ 2 ॥

लेकर एक सीमित आयु यहाँ प्राणी जग में क्यों आते हैं ?

रहते, हँसते, गाते, रोते फिर छोड़ चले क्यों जाते हैं?

अब भी रहस्य है उलझा सा, हो पाया अनुसंधान नहीं ॥। 3 ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #170 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 170 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

रोटी

बच्चे मेरे चार है, दो रोटी है पास।

हिस्से उनके कर दिए, और बची है प्यास।।

गुलाब

खुशबू हमको घेरती, घेर रहे है ख्वाब।

महक रहा है बस यहाँ, प्यारा लाल गुलाब।।

मुँडेर

हमको तो आने लगी, काँव काँव आवाज।

बोले काग मुँडेर पर, पाती आती आज।।

पाती

पाती तो आई नहीं, बीत गई है शाम।

मन में हमने लिख दिया, तेरा विजयी नाम।।

पलाश

खिलते फूल पलाश के, बढ़ी बाग की शान।

देख उसे खिलने लगी, कलियों की मुस्कान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #156 ☆ “हमें जो भाता है…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  हमें जो भाता है। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 156 ☆

☆ हमें जो भाता है ☆ श्री संतोष नेमा ☆

तुम्हें  मुस्कराने  से  कौन  रोकता  है

तुम्हे दिल  लगाने से कौन  रोकता है

क्या होती है मोहब्बत तुम्हें पता नहीं

तुम्हे  आजमाने  से  कौन  रोकता  है

बात दिल की छिपाया न करो

डर हो तो दिल लगाया न करो

मुहब्बत कुछ चीज ही ऐसी है

इसे  यूँ  ही तुम गंवाया न करो

आईना देख कर संवरने लगे हैं

दिल  में  वो  मेरे  उतरने  लगे हैं

राज छुपते नहीं कभी छुपाने से

अब तो नजरों से बिखरने लगे हैं

प्यार कभी  ठुकराना  मत

बाधा  से    घबड़ाना   मत

बहकावे में कभी किसी के

तुम  जरा  भी   आना   मत

जो दिल में आता है  लिख देते हैं

हमें  जो   भाता  है   लिख  देते हैं

माँ  शारदे  देतीं    हैं   जब   प्रेरणा

कलम दिल चलाता है लिख देते हैं

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “प्रेम का गान” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ “प्रेम का गान”  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

जीवन में वरदान प्रेम है,उजली है इक आशा ।

अंतर्मन में नेह समाया,नही देह की भाषा ।।

 

लिये समर्पण,नेहिल निष्ठा,

भाव सुहाना प्रमुदित है।

प्रेम को जिसने पूजा,समझा,

वह तो हर पल हर्षित है।।

दमकेगा फिर से नव सूरज,होगा दूर कुहासा।

अंतर्मन में नेह समाया,नहीं देह की भाषा  ।।

 

राधा-श्याम मिले जीवन में,

याद सदा शीरी-फरहाद।

ढाई आखर महक रहा जब,

तब लब पर ना हो फरियाद।।

नये दौर ने दूषित होकर,बदली क्यों परिभाषा।

अंतर्मन में नेह समाया,नहीं देह की भाषा ।।

 

अंतस का सौंदर्य प्रस्फुटित,

बाह्रय रूप बेमानी है।

प्रीति को जिसने ईश्वर माना,

उसकी सदा जवानी है।।

उर सबके होंगे फिर उजले,यही आज प्रत्याशा ।

अंतर्मन में नेह समाया ,नहीं देह की भाषा ।।

 

जीवन की रुत नवल,सुहानी,

लिए हुए अरमान।

जो होते हैं प्रेम विभूषित,

उनका नित जयगान।।

आज मनुज शारीरिक होकर,फिरता लिए पिपासा।

अंतर्मन में नेह समाया ,नहीं देह की भाषा ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नमन वीर को… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ नमन वीर को … ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-जयानंदिनी छंद)

अमन शांति मन धरते, वही पीर जन हरते ।

सदा देश भक्ति करे ,खड़े वीर शौर्य  भरे ।।

सदा शीर्ष  जो लहरे, तिरंगा  बना फहरे।

धरे वीरता चलते, सदा शत्रु मन खलते ।।

करे जंग जीवन की ,सहारा बने जन की ।

नमन वीर को करते, शहादत चमन भरते ।।

कहे योगिता सब से, बने आस जन कब से ।

भरी ठंड हो गहरी, खड़े रात-दिन प्रहरी ।।

लुटा प्राण जग रहते, खुशी देश जन बहते।

सुरक्षा बना चलते, सदा प्रार्थना पलते ।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साक्षात्कार ☆ चाहतें… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता ☆ चाहतें… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

फ्रिज के करीब जाने से

बहुत डरने लगा हूं

पता नहीं इसमें

किसके सपने

किसकी चाहतें काट काट कर

कोई ठूंस गया हो !

सच ! कितना खौफनाक है

यह मंजर

जब फ्रिज में किसी की चाहतें

टुकड़ा टुकड़ा गोश्त के रूप में

सदा के लिए बंद कर दी जाती हैं

लेकिन इन्हें कहीं ठिकाने नहीं लगा पाते

क्योंकि चाहतें कभी

मर नहीं सकतीं

कभी कट नहीं सकतीं

कभी खत्म नहीं हो सकती !

दुनिया के सभी मर्दो

सुन लो !

वह मर कर भी

सदा जिंदा है !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सुनो वॉट्सएप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सुनो वॉट्सएप ??

कई बार की-बोर्ड पर गई

दोनों की अंगुलियाँ

पर कुछ टाइप नहीं किया,

टाइप कर भी लिया

तो कभी सेंड नहीं किया,

ख़ास बात रही

बिना टाइप किये,

बिना सेंड किये भी

दोनों ने अक्षर-अक्षर पढ़ ली

एक-दूसरे की चैट ..,

चर्चा है,

बिना बोले, बिना लिखे,

पढ़ लेनेवाला नया फीचर

वॉट्सएप की जान है,

ताज्जुब है

खुद वॉट्सएप भी

इससे अनजान है…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 148 ☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 148 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

याद बहुत करते हैं आर्यन

     मीठी – मीठी बात हैं करते।

नाना भी कम याद न करते

      फूलों की बरसात हैं करते।।

 

वीडियो कॉल मिलाएं नाना

    आर्यन मीठी बात बताए।

नाना के फोटो से पूँछें

     नाना जल्दी क्यों न आए।।

 

काम क्या ऐसा लगा आपको

     खेल खिलौने हमें न लाए।

खेलें – कूदें साथ – साथ हम

       बार – बार है याद सताए।।

 

 जो फोटो से मैंने पूछा

     सब बातें आप तक पहुँची थीं।

मुझे आज बतलाओ सच – सच

     क्या सपनों से भी ऊँची थीं।।

 

नाना ने कहा प्यारे आर्यन

  प्यारा संदेशा मुझे मिला है।

रोम – रोम मेरा हर्षित है

     कोमल मन से ह्रदय खिला है।।

 

 लाएँगे हम बहुत खिलौने

       याद मुझे भी बहुत सताती।

खेल करेंगे मिलकर दोनों

     छुक – छुक हमको रेल घुमाती।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #170 – कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बहुत हुआ बुद्धि विलास…”)

☆  तन्मय साहित्य  #170 ☆

☆ कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… 

लिखना-दिखना बहुत हुआ

अब पढ़ने की तैयारी है

जो भी लिखा गया है,उसको

अपनाने की बारी है।

 

खूब हुआ बुद्धि विलास

शब्दों के अगणित खेल निराले

कालीनों पर चले सदा

पर लिखते रहे पाँव के छाले,

क्षुब्ध संक्रमित हुई लेखनी

खुद ही खुद से हारी है…..

 

आत्म मुग्ध हो, यहाँ-वहाँ

फूले-फूले से रहे चहकते

मिल जाता चिंतन को आश्रय

तब शायद ऐसे न बहकते,

यश-कीर्ति से मोहित मन ये

अकथ असाध्य बीमारी है….

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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