हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिसीमा… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – परिसीमा… ? ?

?

उभरते हैं

फ़र्श पर ,

दीवार पर

भित्ति चित्र,

माँडने-पगल्ये

लोकशैली,

मॉडर्न आर्ट,

आदिम से लेकर

अधुनातन अभिव्यक्ति,

झट मोबाइल कैमरा

क्लिक करता हूँ,

बाल उत्साह से

परिणाम निरखता हूँ,

अपनी बेचारगी पर

खीज़ उठता हूँ,

इमेज के नाम पर

कोरा फर्श, कोरी दीवार,

जब देखता हूँ,

तब…,

सूक्ष्म और स्थूल का अंतर

जान जाता हूँ,

मन की आँख से दिखते चित्र

कैप्चर नहीं कर सकता कैमरा

मान जाता हूँ….!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 6:27 बजे, 10.10.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘विस्तार’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Outcome…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry विस्तार.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – विस्तार ? ?

?

परिणाम को लेकर

विवाद व्यर्थ है,

जो संचित किया

वही विस्तृत हुआ,

मैंने पौधा रोपा

फलत: पेड़ पनपा,

तुमने काँक्रीट बोया

नतीज़ा बंजर रहा…!

?

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Outcome ~??

It’s pointless to argue

about the outcome…

What is garnered,

that only expands…

If you plant a sapling

It’ll grow into a tree,

sustaining the life…!

 

If you sowed concrete it

would result in barrenness…!

Devouring the humanity

from the face of the earth…

 

Underlines the adage:

You reap what you sow…!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 137 ☆ मुक्तक – ।।कांटों से डर नहीं तो जीवन फूल गुलाब मिलता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 137 ☆

☆ मुक्तक – ।।कांटों से डर नहीं तो जीवन फूल गुलाब मिलता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

जिंदगी पल –  पल यूं ही ढलती जा रही है।

ऐसे ही आज कल में  चलती  जा रही है।।

न कोई उत्साह उमंग जीने की आदमी को।

जैसे कि रेत बस मुठ्ठी से फिसलती जा रही है।।

[2]

बीज बनो ऐसे मिट्टी में दब फिर उग आओ।

फल से लदकर पेड़ की तरह ही झुक जाओ।।

कोशिश हो हर क्षण बिखर कर फिर संवरने की।

चीनी जैसा घुल जाओ जीवन में ऐसा रुख लाओ।।

[3]

कांटों से डरो नहीं तो जीवन फूल गुलाब मिलता है।

होली के रंगों में भीग के फिर गुलाल मिलता है।।

मन स्वतंत्र हो आपका इसमें न कोई षडयंत्र हो।

संघर्ष में तपकर हमें सोनेजैसा कमाल मिलता है।।

[4]

किरदार बनो खुशबू खुद दूर सफर तय करती है।

प्रेम समा जाए तो खुद ही नफरत की लय मरती है।।

बस चार दिनों को ही मिलें हैं यह श्वास और प्राण।

जिंदादिली हो तो  जिंदगी भय से नहीं डरती   है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 201 ☆ अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 201 ☆ अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 अचानक मिल जाती जब कोई मन चाही खुशी

दिखने लगती सामने दुनियां जो थी मन में बसी।

खुलने लगती खिडकिया, दिखने लगता वह गगन

 *

उमगने लगती नई संभावनाएं निखरता संसार है

लेने लगते स्वप्न सुंदर नए कई आकार भी

 दूर हो जाता अँधेरा छिटक जाती चाँदनी-

 *

स्वतः सज जाता है मन में प्रेम का दरबार है

मधु गमक से आप भर जाता है सब वातावरण

कामनायें नाच-गाकर करती है नव सुख सृजन

 *

 गुनगुनाती भावनायें अधरों में मुस्कान ले

भावनायें भाग्य का करती सहज वन्दन नमन

खुशी तो खुशी का वरदान प्रकृत स्वभाव है

 *

 खुला है व्यवहार उसका कहीं नहीं दुराव है

इसी से सबको है प्यारी कल्पना मनभावनी

सद‌भाव से करता है मन हर दिन ही जिसकी आरती

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #28 – गीत – नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतनैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का

? रचना संसार # 2 – गीत – नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।

उमड़ा पारावार प्रेम का ,

याद तुम्हारी आती है।।

 **

सात जन्म का बंधन अपना,

जीवन भर की डोरी है।

प्रेम पिपासा पल पल बढ़ती,

तकती राह चकोरी है।।

कोयल कू कू प्यास जगाती,

हिय में आग लगाती है।

 *

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

 **

बौराया मन इत उत डोले,

शाम सुहानी इतराती।

प्रेम बिना जीवन सूना है,

हुआ अँधेरा घबराती।।

कलिकाओं को मधुकर चूमे,

बैरन नींद सताती है।

 *

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

 **

रह रह कर के अधर काँपते,

अंग अंग मचले मेरा।

कंचन सी इस काया में तो,

कामदेव का है डेरा ।।

क्रंदन सुन लो इस विरहिन का ,

गीत मिलन के गाती है।

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #255 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 255 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

रंग-बिरंगे  फूल   हैं,  मन  में  हर्ष   अपार।

महका-महका दृश्य यों, ठण्डी चले बयार।।

*

फूल पीठ पर हैं लदे, दो चक्कों पर भार।

मन  में  ऐसी कामना, बेचूँ  फूल हज़ार।।

*

मन  के  मधुवन  में  पुहुप, सबके  मन गुलजार।

निशिदिन रहे पुकारता, फिर-फिर सबके द्वार।।

*

फूलों   से   डोली   सजे, महके    वन्दनवार।

फूलों के ढिग लीजिए, सौरभ  का  उपहार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 518 ⇒ ऽऽऽ.. नींद में …ऽऽऽ ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी कविता – “ऽऽऽ.. नींद में …ऽऽऽ।)

?अभी अभी # 518 ऽऽऽ.. नींद में …ऽऽऽ ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मुझे नींद नहीं आई रात भर

यकीनन मैं जाग भी नहीं रहा था

बस करवटें बदल रहा था;

मैंने कभी नींद को आते हुए नहीं देखा

उसके आने के पहले ही मैं सो जाता था

और उसके जाने के पहले ही जाग जाता था ;

मैं जब करवटें बदलता हूं

तो अक्सर सोचा रहता हूं

रात को किस करवट सोया मुझे याद नहीं

मैं सुबह किस करवट उठा यह भी मुझे याद नहीं ;

बहुत सोचा कि

रात भर जाग कर नींद की पहरेदारी करूं

वह कब आती है कब जाती है उसकी चौकीदारी करू ;

लेकिन वह कहां खुले आम आती है

अक्सर बिल्ली की तरह

दबे पांव आती है

और चुपचाप चली जाती है ;

यही हाल सपनों का है

मैं सपनों को देखना चाहता हूं

लेकिन उसके पहले ही मुझे नींद आ जाती है ;

मैं सपनों को देखता जरूर हूं

लेकिन उन पर मेरा हुक्म नहीं चलता

एक बिगड़ी औलाद की तरह

जब चाहे आते हैं

जब चाहे चले जाते हैं

बस मनमानी किए जाते हैं ;

उन पर मेरा कोई बस नहीं

वे कहां,कभी मेरा कहा सुनते हैं

फिर भी एक औलाद की तरह

मुझे उनसे प्रेम है ।।

मैं चाहता हूं मैं जाग जाऊं

अपनी नींद भगाऊं ,

सपना भगाऊं

लेकिन क्या करूं मुझे नींद ही नहीं आती

बस करवटें बदलता रहता हूं ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #237 ☆ मिट्टी वाले दिये जलाओ… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  कविता मिट्टी वाले दिये जलाओ आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 237 ☆

☆ मिट्टी वाले दिये जलाओ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मिट्टी   वाले   दिये  जलाओ

हर गरीब का तमस मिटाओ

*

बैठ  कुम्हारिन ताक  रही  है

ग्राहक अपने  आंक  रही  है

आओ खरीद कर दिये उनके

उनका  भी  उत्साह  बढ़ाओ

मिट्टी   वाले   दिये  जलाओ

*

दिये में  भी  अब  लगा सेंसर

पानी  से जो  जलता  बेहतर

त्यागें अब चाइनीज दियों को

देशी  को  ही घर  पर  लाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

*

गली-गली   हर  चौराहों  पर

बिकते  दिये  हर   राहों   पर

इनके  घर   भी  हो  दीवाली

इनका  भी सब हाथ बटाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

*

हर   घर   में    संतोष   रहेगा

दिल  में  सबके   जोश  रहेगा

जब इनका दुख अपना समझें

तब मिलकर त्यौहार  मनाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #48 ☆ कविता – “नहीं चाहिए मुझें…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 48 ☆

☆ कविता ☆ “नहीं चाहिए मुझे…☆ श्री आशिष मुळे ☆

नहीं चाहिए मुझे

वो लाली नकली

वो रोशनी झूठी 

ना ही शान फूटी

ना सादगी मतलबी

 *

नहीं चाहिए मुझे

वो चकाचौंध वो चमक

कितनी रोशन मेरी खिड़की

जिसने देखा है चाँद असली

या दिल का या हो आसमानी

 *

नहीं चाहिए मुझे

वो रिश्ते वो आसान रास्ते

चाहूँ जो छू सके दिल को

वो बात जो है इंसानी

वो यारी वो दिल्लग़ी

 *

चाहिए मुझे

वो रक़्स ए दीवानगी

वो हालात ए आवारगी

वो क़ैद ए रिहाई

वो आसमाँ ए आज़ादी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 226 ☆ बाल कविता – दूज चाँद सँग परियाँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 226 ☆ 

बाल कविता – दूज चाँद सँग परियाँ… 🪔 ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

दूज चाँद भी मनमोहक था

तारा सँग-सँग है खिलता।

सिंदूरी साड़ी के मन पर

चित्र मयूरा घन बनता।

 *

परियाँ भी आईं मिलने को

दूज चाँद प्रिय बालक से।

मेवा मिश्री लड्डू लाईं

साथ खिलौने मादक से।

 *

दूज चाँद उपहार देखकर

खुशियों से नाचे झूमे।

दावत खूब उड़ाई मिलकर

परियों के सँग-सँग घूमे।

 *

गुब्बारों की रेल चलाई

अंतरिक्ष में उड़े चले ।

रूप बढ़ा चाँदनी बिखेरी

धरा, गगन के बने भले।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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