हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 13 ☆खींच कर लकीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खींच कर लकीर।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 13 ☆  खींच कर लकीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पानी पर

खींचकर लकीर

भरते हैं सागर का दम।

 

अंगद का पाँव जमा

चाट लोकतंत्र

आँखों में धूल झोंक

भोग राजतंत्र

 

फिर बैठे

बन गए अमीर

लौलुपता नहीं हुई कम।

 

भावों के ऊसर में

शब्दों की फसल

छंद के लिफ़ाफ़े में

रख कोई ग़ज़ल

 

और कहें

स्वयं को कबीर

पाल रहे मीर का भरम।

 

तिनकों पर इतराएँ

डकराएँ खूब

अघा गए चर-चरकर

निर्धन की दूब

 

फैलाएँ

झूठ,बन फकीर

बेचें ईमान और धरम ।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 68 ☆ नज़्म – उसे भूल जा ना याद कर… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण नज़्म “उसे भूल जा ना याद कर…

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 68 ✒️

?  नज़्म – उसे भूल जा ना याद कर… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

(सन्दर्भ : कोविड)

जो जुदा हुए वो अजीज़ थे,

तेरे अपने तेरे क़रीब थे ।

उन्हें भूल जा ना याद कर ,

जो तूने सहा ना फ़रियाद कर ।।

 

यह कैसी ग़म की हवा चली ,

सुनसान हो गई है गली – गली ,

सुबहा से पहले शाम ढली ,

चमन को सिर्फ़ ही ख़िज़ां मिली ,

जो गया ख़ुदा का हबीब था ,

तू फ़िर से गुलशन आबाद कर ।

जो तूने ————————- ।।

 

वो करोना से जुदा हुए ,

सारी उम्र तुझ पर फ़िदा हुए ,

ना वबा का कोई कुसूर था ,

ये सब इंसान का ही फ़ितूर था ,

ये क़हर हमारा नसीब था ,

बची उम्र को ना बर्बाद कर ।

जो तूने ———————— ।।

 

किसी के जाने से कमी नहीं ,

ये दुनियां आज तक थमीं नहीं ,

जो मिल रहा वो ग़नीमत है ,

अभी कुछ दिनों की अज़ीयत है ,

वो दीन – दुनिया का रक़ीब था ,

उसे रिश्तों से आज़ाद कर ।

जो तूने ———————— ।।

 

दवा अस्पताल का बहाना था ,

क़ज़ा को उन्हें ले जाना था ,

जो बचा है उसका बन रहनुमा ,

कहीं सब हो जाए ना धुंआं ,

बहारों का वो अक़ीब था ,

उसकी यादों को पुरताब कर ।

जो तूने ————————- ।।

 

इक बार मिलती है ज़िन्दगी ,

कर शुक्र अल्लाह की बन्दगी ,

जो बचा है उसको सहेज ले ,

तू गिले-शिकवे सारे समेट ले ,

फ़लसफ़ा ये तेरा अजीब था ,

‘ सलमा ‘ तू अपना दिल शाद कर ।

जो तूने ————————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ न हमदम न साथी न… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “न हमदम न साथी न“)

✍  न हमदम न साथी न… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

गरीबों की ख़ातिर घरौदा बनाना

न मस्जिद शिवाला कलीसा बनाना

न मांगी दुआ में कभी कोठी गाड़ी

मुझे सिर्फ़ इंसान अच्छा बनाना

नहीं एक के वश की है बात समझो

हमें स्वच्छ भारत है अपना बनाना

समुंदर से खारे हुए नाम पाकर

अगर बन सको खुद को झरना बनाना

न हमदम न साथी न हमराज़ जायज़

मुझे सिर्फ तुम अपना साया बनाना

अलग तेरी पहचान तब ही बनेगी

नया अपनी मंजिल का रस्ता बनाना

डुबाने में सारी ही दुनिया लगी है

अरुण सबको तुम पर किनारा बनाना

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 09 – सारी करुण कहानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – सारी करुण कहानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 09 – सारी करुण कहानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आडम्बर को ओढ़े

जो तस्वीर सुहानी है

आहत अहसासों की

सारी करुण कहानी है

 

यहाँ दिखाई देता जो

खुशियों का मेला है

पाखंडों का भरा हुआ

संपूर्ण झमेला है

इस हरियाली की पीड़ा

तो रेगिस्तानी है

 

नई सभ्यता खड़ी यहाँ

संस्कृति की लाशों पर

नकली फूल उगाये हैं

उजड़े मधुमासों पर

है जहरीली हवा

नदी का दूषित पानी है

 

आतंकी रातों का

खूनी यहाँ सबेरा है

हर विकास के पथ पर

पसरा कुटिल अँधेरा है

भागमभाग मची है

लेकिन नहीं रवानी है

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 86 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 86 – मनोज के दोहे… ☆

1 धार

नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।

मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।

2 लहर

सुख-दुख की उठती लहर, हर दिन आती भोर।

तैराकी होता वही,   पार करे बिन शोर।।

3 प्रवाह

नद-प्रवाह जीवन-मधुर, सागर होता खार।

कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।

4 भँवर

मानव फँसता भँवर में, जो निकला वह वीर।

संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुबीर।।

5 कूल

कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।

तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तूफान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तूफान ??

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर,

एक समंदर लिए

मैं चुपचाप सुनता रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 144 – “पृथ्वी की पलकों पर…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  पृथ्वी की पलकों पर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 144 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ पृथ्वी की पलकों पर ☆

ओ ! पीली गुलाचिनी ।

घोल-घोल जाती हो-

साँसों मे चाशनी ॥

 

ओढ खूब लहराती

पीत वरन बहकावे ।

हल्दिया उठानों से

मोल लिये पहरावे ।

 

मौन अंग-अंग सधे

हरित पर्ण छन्दों पर ।

फैलाती रहती हो

गंधवती चाँदनी ॥

 

सम्हल फैल जाती हो

मंत्रपूत गाछो में ।

रोजखिला करती हो

जन-जन की बाछों में ।

 

प्राकृत शाद्वलता सी

फैली बिखरी होती ।

धीमी-धीमी मर्मर

खुशबू की गाछिनी ॥

 

पृथ्वी की पलकों पर

टँगे हुये सपनों सी ।

पानी के कलाशों पर

सोने के ढकनो सी

 

आँखें मटकाती उस

तन्वंगी भाभी सी ।

झाँक  रही डालोंसे

मुग्धा सुहासिनी ॥

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साधन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – साधन ??

असंख्य आदमियों की तरह

आज एक और

आदमी मर गया,

अपने पीछे वे ही

अमर प्रश्न छोड़ गया,

समकालीन प्रश्न-

अब यह आदमी नहीं रहा

ऐसे में हमारा क्या होगा?

सार्वकालिक प्रश्न-

जन्म से पहले

आदमी कहाँ था,

मृत्यु के बाद

आदमी कहाँ जाएगा?

लगता है जैसे

कई तरह के प्रयोगों का

रसायन भर है आदमी,

जीवन की थीसिस के लिए

शोध और अनुसंधान का

साधन भर है आदमी।

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 136 ☆ # पिता… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पिता… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 136 ☆

☆ # पिता… #

बचपन में उंगली पकड़कर

चलना सिखाना

कंधों पर बिठाकर दौड़ लगाना

रोज स्कूल ले जाना, लाना

मम्मी से छुपाकर चाकलेट खिलाना

आगे बढ़ने की राह दिखाना

टेबल रोज याद कराना

कभी गिर गये तो दौड़कर उठाना

बहादुर बच्चा है कहकर समझाना

यह सब बातें मासूम

जिसके संग जीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

स्कूल, कालेज में सब की सुनो  

खेलो कूदो पर शिक्षा को प्रथम चुनो

अपना ध्यान लक्ष्य पर रखो

खूब पढ़ाई करो

कामयाबी का स्वाद चखो

हर परीक्षा में प्रथम आया करो

मेरिट के मार्क लाया करो

नई नई बातें सीखने की आदत डालोगे, तभी तो सीखोगे

जीतने की आदत डालोगे

तभी तो जीतोगे

यह शिक्षा देते देते

जिसका हर पल बीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

बेटे की कामयाबी पर वो

फूला नहीं समाता है

यार दोस्तों में,

समाज में प्रतिष्ठा पाता है

बेटे की शादी पर

जश्न मनाता है

बहू को बेटी बनाकर

घर में लाता है

पोते के आगमन पर

खुशियां मनाता है

जीवन सफल हो गया

सब को बताता है

पत्नी के संग तीर्थयात्रा पर

जाता है

ईश्वर को भेंट

खुशी खुशी चढ़ाता है

भगवान का चरणामृत  

आंख मूंदकर पीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

जीवन के आखिरी पड़ाव पर

जीर्ण-शीर्ण काया की नाव पर

बहू-बेटे से दूर हो जाता है

अकेले पन से चूर हो जाता है

असाध्य बीमारियाँ घेर लेती हैं

हर व्यक्ति मुंह फेर लेते हैं  

जिंदादिल आदमी भी

बन जाता है बेचारा

वृद्ध पत्नी का ही होता है सहारा

मौत के इंतज़ार में

जिसकी सजी हुई चिता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है/

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 145 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 145 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 145) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 145 ?

☆☆☆☆☆

दिल में जो दर्द है वो निगाहों

से है खुदबखुद अयाँ,

ये बात गर है कि जुबाँ से भले

ही हम  ना  करें  बयाँ..!

☆☆ 

The pain in the heart is visible

through the eyes, but it’s

something else, I may not say

anything with the tongue..!

☆☆☆☆☆

क्या लिखूं अपनी जिंदगी

के  बारे  में  दोस्तों,

वो लोग ही बिछड़ गए

जो अपने हुआ करते थे

☆☆

What should I write

about my life friends,

Those people who used to be

my very own got separated

☆☆☆☆☆

कैसे भला जाने कोई

ख़्वाबों  की  ताबीर,

आसमाँ पे बैठा हुआ

लिखता  है  वो  तक़दीर…

☆☆

How can one know the

interpretation of dreams,

When sitting in the sky 

He only writes the fate…

☆☆☆☆☆

Soulful love… 

कोई रूह को छूकर गुजरे

तो ही उसे चाहत कहना,

यूं तो जिस्म को छूकर

हवाएँ भी गुज़रा करती हैं…

☆☆

If someone passes by touching

the soul, then only call it love,

Otherwise even the wind

passes by touching the body…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares