हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #162 – 48 – “अक्सर देखा है राह में…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अक्सर देखा है राह में …”)

? ग़ज़ल # 48 – “अक्सर देखा है राह में …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

अरमानों के बाज़ार में दुकान पर बैठी लाचारी,

हम दुखों की हाट में ढूँढते सुखिया राजकुमारी।

इस ज़िंदगी में ख़ूब बनते हैं रिश्ते निभाने को,

लेनदेन का फलता फूलता कारोबार है रिश्तेदारी।

जवानी में चढ़ता है ज़िंदगी का नशा खींचकर

बुढ़ापे के पायदान पर उतरती नशे की ख़ुमारी।

अक्सर देखा है राह में क़ालीन बिछाते उनको,

चलती है अगर कोई चीज़ साथ वो है ख़ुद्दारी।

चीजों को इकट्ठा कर रोप रहे दुखों की पौध,

बाग़ में रविश-रविश खिलेगी ग़मों की क्यारी।

दुनिया में आया है तू एक तड़पते दर्द के साथ

तेरे आने के साथ जुड़ी है माँ की पीर दुलारी।

पी रहा हूँ ग़म के प्याले भरकर हर सुबहो शाम,

हर ज़ाम पर निखरती जाए शक्लो सूरत न्यारी।

‘आतिश’ गमगीं है तो क्या ग़मगीं दुनिया सारी,

तेरी न मेरी हम सबकी साझा जागीर है प्यारी।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 39 ☆ गजल ।। आँखें ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण गजल ।।आँखें।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 39 ☆

☆ गजल ☆ ।। आँखें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

खुशी गम हर बात का ऐलान  हैं आंखें।

दिल का दिखाती पूरा जहान  हैं आंखें।।

[2]

मन की हालत दिल की   सूरत  छिपी हुई।

हमारे जज्बातों का जमींआसमान हैं आंखें।।

[3]

कभी हंसती बोलती  बताती बहुत कुछ।

कभी कभी हैरत से बहुत हैरान हैं आंखें।।

[4]

कभी नरम गरम तो कभी आंसू मुस्कान।

बन जाती शोला शबनम तूफान हैं आंखें।।

[5]

आंखों में भरी होती इबादत   शरारत भी।

मानो कि कोई बोलती सी जुबान हैं आंखें।।

[6]

दिखाती बताती जैसे हर बात आदमी की।

आदमी की शख्सियत का निशान हैं आंखें।।

[7]

हंस ऊपरवाले ने बख्शी ह मको दो आंखें।

सच कहें तो यह आईने- इंसान हैं आंखें।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 105 ☆ ’’मां लक्ष्मी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  – ’’मां लक्ष्मी…” …”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #104 ☆  ’’मां लक्ष्मी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

 

कल्याण दायिनी , धनप्रदे , माँ लक्ष्मी कमलासने

संसार को सुखप्रद बनाया , है तुम्हारे वास ने

 

निर्धन को भी निर्भय किया ,माँ तुम्ही के प्रकाश ने

जग को दिया आलोक हरदम , तुम्हारे विश्वास ने

 

चलती नहीं माँ जिंदगी , संसार में धन के बिना

जैसे कि आत्मा अमर होते हुये भी , तन कर बिना

 

हर एक मन में है तुम्हारी ,कृपा की मधु कामना

आशा लिये कर सक रहा , कठिनाईयों का सामना

 

संगीत सा आनन्द है , धन की मधुर खनकार में

संसार का व्यवहार सब , केंन्द्रित धन के प्यार में

 

सबके खुले हैं द्वार स्वागत में , तुम्हें सन्मानने

माँ जगह हमको भी दो ,अपने चरण के पास में

 

मन सदा करता रहा , मन से तुम्हारी साधना

सजी है पूजा की थाली , करने तेरी आराधना

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – संवाद ??

यह अनपढ़,

वह लिखी पढ़ी,

यह निरक्षर,

वह अक्षरों की समझवाली,

यह नीचे ज़मीन पर,

वह बैठी कुर्सी पर,

यह एक स्त्री,

वह एक स्त्री,

इसकी आँखों से

शराबी पति से मिली पिटाई

नदिया-सी प्रवाहित होती,

उसकी आँखों में

‘एटिकेटेड’ पति की

अपमानस्पद झिड़की,

बूँद-बूँद एकत्रित होती,

दोनों ने एक दूसरे को देखा,

एक ही धरातल पर

संवेदना को अनुभव किया,

बीज-सा पनपा

मौन का अनुवाद,

अब उनके बीच वटवृक्ष-सा

फैला पड़ा था मूक संवाद..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #155 ☆ भावना के दोहे… दीपक ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे…दीपक ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 155 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… दीपक  ☆

देखो कैसे साल भर, रहता है उजियार।

दीपों की ये रोशनी, दूर करे अंधियार।।

तमस घिरा चहुं ओर है, करते सोच विचार।

दीप प्यार का  जल गया, करता जग  उजियार।।

देव देहरी पूजते, द्वारे रखते दीप।

घर घर दीपक दे रहा, अपना यही प्रदीप।।

माटी मुझको ना समझ, मैं दीपक अनमोल।

कीमत मेरी जान लो, यह है मेरा मोल।

तेरे मेरे प्यार का, इक दीया है नाम।

दीपक तेरे नाम का, रोशन है अभिराम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #142 ☆ सन्तोष के नीति दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “सन्तोष के नीति दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 142 ☆

 ☆ सन्तोष के नीति दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

चढ़े न हंडी काठ की, कभी दूसरी बार

टूटा गर विस्वास तो, शक के खुलते द्वार

 

वहाँ कभी मत जाइये, जहाँ न हो संतोष

मिले न खुशियाँ मिलन से, लाख वहाँ धन कोष

 

परहित से बढ़कर नहीँ, कोई दूजा काम

प्रेम सभी से कर चलें, हर्षित तब श्रीराम

 

बचें अहम से हम सदा, यह अवगुण की खान

भ्रमित करे ये सभी को, और गिराता मान

 

कोशिश हम करते रहें, भले कठिन हो काम

मिलता है संतोष तब, और सुखद परिणाम

 

कल पर कभी न टालिए, करें आज आगाज

तभी मिलेगी सफलता, पूरे हों सब काज

 

करें न जीवन में कभी, निंदक सा व्यवहार

बचें सदा उपहास से, हों संयित आचार

 

दोष पराए मत गिनो, बनकर खुद भगवंत

अंदर खुद के झाँकिये, तभी भला हो अंत

 

कलियुग के इस दौर में, रखें न कोई आस

साथ समय के बदलते, टूट रहा विश्वास

 

पढ़ लिखकर अब कीजिये, स्वयं एक व्यवसाय

हुईं नोकरी लापता, खोजें दूजी आय

 

प्राणों से भी प्रिय समझ, सदा किया उपकार

पर कलियुग में मिल रहा, बदले में अपकार

 

कहते हैं संतोष हम, प्रेम डोर कमजोर

खीचें न कभी जोर से, उसकी कच्ची डोर

 

गहन साधना प्रेम है, सुगम न इसकी राह

लगन,तपस्या से मिले, गर हो सच्ची चाह

 

बंद करें मत कोशिशें, करते रहें प्रयास

तभी मिलेगी सफलता, हों मत कभी निराश

 

जीवन में खुद से बुरा, कौन यहाँ संतोष

झाँका हमने स्वयं जब, देखे अपने दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – तूफान ??

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर,

एक समंदर लिए

मैं चुपचाप सुनता रहा..!

प्रातः 6:50 बजे, 17.10.18

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 132 ☆ हिंदी, हिंदुस्तान रे! ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 133 ☆

☆ हिंदी, हिंदुस्तान रे! ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

गर्व से बोलो हिंदी भाषा

युग की वेद पुराण रे!

 

आजादी की बनी सहेली

शब्द – शब्द है एक पहेली

संघर्षों में तपी कनक – सी

अनगिन पीड़ा इसने झेली।।

 

हिंदी सीखें सब ही मन से

सभी बढ़ाओ ज्ञान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

 

तुलसी, सूर , कबीर पढ़ो तुम

आपस में मत कभी लड़ो तुम

हिंदी भाषाओं का सागर

सत्य बात पर सदा अड़ो तुम।।

 

हिंदी जग की अमरबेल है

हिंदी जग की शान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

 

भाषाएँ सब ज्ञान बढ़ातीं

नहीं किसी को कभी लड़ातीं

जीवन जीने का गुरु देतीं

सही मार्ग का पाठ पढ़ातीं।।

 

हिंदी सबको एक कराए

भाषा श्रेष्ठ महान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#154 ☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य # 154 ☆

☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मिल बैठें सब प्रेम से, हों भी भिन्न विचार।

कहें, सुनें, सम्मान दें, बढ़े  परस्पर  प्यार।।

 

बीजगणित के सूत्र सम, जटिल जगत संबंध।

उत्तर   संशय  ग्रस्त  है,    प्रश्न सभी  निर्बन्ध।।

 

छलनी छाने  जो मिले,  शब्द तौल कर बोल।

वशीकरण के मंत्र सम, मधुर वचन अनमोल।।

 

धैर्य  धर्म का मूल  है, सच  इसके  सोपान।

पकड़ मूल सच थाम लें, वे सद्ग्रही महान।।

 

सच को सच समझें तभी, साहस का संचार।

तन-मन नित हर्षित रहे, उपजे निश्छल प्यार।।

 

भीतर  बाहर एक से,  हैं जिनके व्यवहार।

जीवन में उनके सदा, बहती सुखद बयार।।

 

जब होता बेचैन मन, सब कुछ लगे उदास।

ऐसे  में  परिहास  भी,  लगता है उपहास।।

 

रोज  रात  मरते  रहे,  प्रातः  जीवन दान।

फिर भी हैं भूले हुए, खुद की ही पहचान।।

 

बंजारों-सा  दिन  ढला, मेहमानों-सी  रात।

रैन-दिवस में कब कहाँ, काल करेगा घात।।

 

जीवन पथ में  है कई,  प्रतिगामी अवरोध।

संकल्पित जो लक्ष्य है, रहे सिर्फ यह बोध।।

 

दुख के दरवाजे  घुसे,  आशाओं की  बेल।

लिपटे हरित बबूल से, दूध-छाँछ का खेल।।

 

सपनों के बाजार में, बिकें नहीं बिन मोल।

राह बनाएँ  स्वयं की, अपनी आँखें खोल।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संग्रह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – संग्रह ??

संग्रह दोनों ने किया,

उसका संग्रह

भीड़ जुटाकर भी,

उसे अकेला करता गया..,

मेरे संग्रह ने

एकाकीपन

पास फटकने न दिया,

अंतर तो रहा यारो!

उसने धनसंग्रह किया,

मैंने जनसंग्रह किया..!

© संजय भारद्वाज

रविवार 16 अप्रैल 2017, प्रातः 8:16 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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