हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 218 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 218 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

ओ ययाति

– – – – – – –

ओ ! मूढमति

ययाति

पतित पिता की

संतान

ययाति ।

तुम्हें

तनिक भी लज्जा नहीं आई,

दानदाता का

मिथ्या गौरव सँजोने

तुमने

देह दोहन के निमित्त

बेटी को

ढकेल दिया

अंधे कुए में !

तुमने

खूब

भोग भोगा

देवयानी, शर्मिष्ठा

और जाने कितनों के साथ।

तुम्हारी

ज्वलित भोगेच्छा ने

तुम्हें बना दिया

राजा से

भिक्षुक

मांगकर यौवनदान ।

तुमने

कैसे भुला दिया

क्वाँरी

  

— नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी /

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 218 – “समझ गई जो जीवन को…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत समझ गई जो जीवन को...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 218 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “समझ गई जो जीवन को...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

बता रही थी माँ जिसको

तब परीकथाओं में

जूझ रही है बेटी वह अब

नई व्यथाओं में

 

है कुटुम्ब पर्याय जहाँ पर

कई निषेधों का

बेटी तो थी पर विकल्प

उन कई विरोधों का

 

जो प्रचलित थे जीवन की

उन सभी प्रथाओं में

 

यह उत्तरदायित्व रहा था

गर महिलाओं का

तो निचोड़ क्या निकला

आखिर सभी सभाओं का

 

आयोजित जो थी

समाजकी उन्ही मृथाओं में

 

नये सिरे से अब बिटिया को

है भविष्य चिन्ता

नहीं बनेगी खानदान की

आरोपित निन्दा

 

समझ गई जो जीवन को

इन यथा – तथाओं में

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-12-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चित्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चित्र ? ?

आँखों की कला दीर्घा,

दीर्घा में टंगे चित्र ही चित्र,

चित्रों से बहता नंदन,

चित्रों में बसता जीवन,

ये चित्र विस्मृत नहीं होते कभी,

ये चित्र स्मृति नहीं कहलाते कभी,

जो कभी पुतलियों से नहीं टला,

वह अतीत कैसे होगा भला?

निरंतर वर्तमान हैं चित्र,

चिरंतन विद्यमान हैं चित्र,

सुनते हैं अनुभूतियों का

संसार साझा होता है,

सच बताओ, तुम्हारे साथ भी

क्या कुछ ऐसा होता है?

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 8:54 बजे, 15 दिसंबर 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 201 ☆ # “सर्दी का मौसम…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सर्दी का मौसम…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 201 ☆

☆ # “सर्दी का मौसम…” # ☆

यह सर्दी का मौसम

ये चुभती हवाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ  

 

यह बर्फ की सफेद चादर

तुम ओढ़कर पड़ी हो

ये हिमखंडो के टुकड़े

जैसे तुम खुद से लड़ी हो

अब तुम इनसे ना लड़ना

कहीं यह पिघल ना जाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

ये शाम के धुंधलके

ये दिलकश  नजारे

ये बर्फ के उड़ते बादल

अब तुमको पुकारे

आ जाओ , कहीं ये  

मौसम बदल ना जाए

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

यह कड़कड़ाती ठंड

ये खोजती निगाहें

ठिठुरते हुए जिस्म को

बांहों में लेना चाहें

तुम्हारे लरजते हुए होंठ देख

कहीं दिल मचल ना जाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

कितनी फब रही है तुम पर

यह बूटेदार शाल

तुम्हारा यौवन देख

बुरा है दिल का हाल

दिल की यह हसरत

कहीं यूंही निकल ना जाएँ

यह सर्दी का मौसम

ये चुभती निगाहें

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – विडंबना… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता ‘विडंबना।)

☆ कविता – विडंबना… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

शुरू हो गया था,

सफर जिंदगी का,

जन्म लेते ही,

भान हो गया था,

नन्हे कदमों का,

नाजुक कदमों का,

सख्त राहों का,

लंबे रास्ते थे,

निर्जन,घुमावदार,

कहां चल दिए,

कहीं जाना था

कहीं चल दिए

कहीं के लिए

कहीं से निकले थे

और,कहीं और,

पहुँच  गए,

यही तो जिंदगी है,

यही तो जिंदगी है

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 215 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 215 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 215) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 215 ?

☆☆☆☆☆

ख़ुद का दर्द महसूस होना

ज़िंदा होने का एक सबूत है..!

मग़र औरों के दर्द का अहसास होना 

ज़िंदादिल इंसान होने का सबूत है..!

☆☆

 To feel your own pain

Is a proof of being alive but

Proof of compassionate human

Is to feel the pain of others!

☆☆☆☆☆

काश एक ख्वाहिश पूरी हो

इबादत के बगैर

वो आके गले लगा ले

मेरी इजाजत के बगैर…

☆☆

If only one  wish could be fulfilled

Without offering the prayers

That she came and hugged me

Without my  permission…!

☆☆☆☆☆

दर्द की तुरपाइयों की 

नज़ाकत तो देखिये

एक धागा छेड़ते ही 

ज़ख्म पूरा खुल गया…

☆☆

Look at the tenderness of

the hemstitch of the pain…

Just disturbing one thread was

enough to open the whole wound!

☆☆☆☆☆

सूरज ढला तो कद से

ऊँचे हो गए साये

कभी पैरों से रौंदी थी

यहीं परछाइयां हमने..!

☆☆

Setting sun elong☆☆☆☆☆ated the

Shadows bigger than the stature,

Thes’re the shadows which once

were trampled under my feet..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 214 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 214 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज माता की कीजिए, सेवा कहें न भार।

जगजननी तब कर कृपा, देंगी तुमको तार।।

*

जन्म ब्याह राखी तिलक गृह-प्रवेश त्योहार।

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।

*

कोशिश करते ही रहें, कभी न मानें हार।

पहनाए मंजिल तभी, पुलक विजय का हार।।

*

डरकर कभी न दीजिए, मत मेरे सरकार।

मत दें मत सोचे बिना, चुनें सही सरकार।। 

*

कमी-गलतियों को करें, बिना हिचक स्वीकार।

मन-मंथन कर कीजिए, खुद में तुरत सुधार।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #32 – गीत – प्रेम अमिय का प्याला है।।… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – भावों की बहती सुरसरिता

? रचना संसार # 32 – गीत – प्रेम अमिय का प्याला है…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

अन्तर्मन की प्यास बुझाए

प्रेम अमिय का प्याला है।

वीणा की झंकार यही तो

सात सुरों की हाला है।।

कानों में मिश्री सी घोले,

पिया प्रेम की बाँसुरिया।

धुन सुनकर मैं इत उत डोलूँ,

जैसे कोई बावरिया।।

*

मधुरिम गीत प्रणय के गाती,

हिय में जलती ज्वाला है ।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

त्याग प्रेम की मंजुल मूरत,

सुरभि दसों दिशि में फैली।

जीवन में नित करे उजाला,

सपन अलौकिक अठखेली।।

*

शुचि सुवास से साँसें महके,

नाचे मन मतवाला है।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

 *

कहे भावना भाव घनेरे,

प्रीत निराली सी लागे।

पिया श्याम घन वर्षा करते,

उर हरियाली सी लागे।।

*

वसुधा अम्बर नेह निबंधन,

तुहिन कणों की माला है।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अभी अभी # 549 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  – “चैनसिंह का बगीचा ।)

?अभी अभी # 549 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नदी हमें नहीं बांटती
हम नदी को बांटते हैं
पानी में लकीर खींचते हैं
सरहद बनाते हैं ;
हमने धरती बांटी
अम्बर बांटा
समंदर बांटा
कभी मंदर तो कभी
हरमंदर बांटा ।
बस प्यार नहीं बांटा
नफरत और गुस्सा बांटा
थप्पड़ का जवाब चांटा
पत्थर का जवाब भाटा ;
भूल गए इंसानियत
फैलाई सिर्फ दहशत
नहीं सहमत,तो सह मत
जहां नहीं चैन,वहां रह मत ।।
हम इस पार और उस पार
को नहीं मानते
बस,आरपार को मानते हैं,
कभी खुद को खुदा और
गधे को रहनुमा मानते हैं;
वैसे तो हम बहुत जानते हैं
लेकिन सयानों की कभी,
बात नहीं मानते,
स्वार्थ,खुदगर्जी,अवसरवाद और मस्ती को ही
अपना आदर्श मानते हैं।
फिर भी हम इतने अच्छे
और लोग इतने बुरे क्यों हैं
यह भ्रम पालते हैं,
गाय तो पाल सकते नहीं
लेकिन इतने बड़े भक्त हैं कि,
स्वामिभक्ति के लिए कुत्ता पालते हैं ;
शासन ही अनुशासन
जिसकी लाठी,उसकी भैंस
पैसा फेंक,तमाशा देख,
दु:शासन गिन रहा अंतिम सांसें,सुशासन में चैन
फिर भी मूढ़मति
तेरा क्यूं मन बैचेन ।।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #259 ☆ भावना के दोहे – – दुष्यन्त उवाच☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे दुष्यन्त उवाच )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 259 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – दुष्यन्त उवाच ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

आओ बैठो पास तुम, सुन लो मेरी बात।

कहना तुमको है बहुत, बड़ी सुहानी रात।।

शकुन्तले! तुम रूपसी, तुमको रहा निहार।

तुम हो मेरी प्रेमिका, दिल में प्यार अपार।।

प्रेम कुंज ऐसे सजा, अनुपम लगे विहार।

करता हूँ तुमसे शुभे, भाव भरी मनुहार।।

जड़ित अँगूठी देखकर, होता हर्ष अपार।

सुध तुम इतनी भूलती, डूबी जल की धार।।

परिणय मेरे के साथ में, देखो निज शृंगार।

नैन तुम्हारे कह रहे, झलक रहा है प्यार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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