हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #136 ☆ संतोष के दोहे – शिक्षक ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – शिक्षक। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 136 ☆

☆ संतोष के दोहे – शिक्षक ☆ श्री संतोष नेमा ☆

शिक्षक तम को दूर कर, रोशन करे जहान

ज्ञान बाँटता सभी को, होते बहुत महान

 

होती शिक्षक प्रथम माँ, देती है सद्ज्ञान

अनुभव हमको बाँटते, होते पिता महान

 

शिक्षक से होता सदा, प्रतिभा का निर्माण

अपने शिष्यों का करें, सदा वही कल्याण

 

गीली मिट्टी रुँध कर, देते नव आकार

अपने शिष्यों के करें, सपने सब साकार

 

शिक्षक के सानिध्य से, मिलता है संतोष

सिखलाते सद्गुण वही, हर कर सारे दोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ काश मैं गिलहरी बन आता… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता काश मैं गिलहरी बन आता…)

☆ कविता  ☆ काश मैं गिलहरी बन आता… ☆ श्री जयेश वर्मा ☆

जब भी मौसम बदलता

मुझे आती तुम्हारी याद

काश, मैं गिलहरी बन जाता

आता तुम्हारे पास…

 

मैं जीता तुम्हारे सन्नाटे को

जीता तुम्हारे दर्द को, मन की कसक

पूछता आकर तुम्हारे पास

तुम्हारे हाल…

 

जब तुम घर के आंगन में बांटती

अपने मन का सन्नाटा,

घर की बगिया में फूलों में,  पौधों में

और वृक्षों की डालियों में,

तभी मैं बन आता गिलहरी सा…

उतरता उस हरे भरे वृक्ष से धीरे-धीरे

तुमको देखता, तुम देखती मुझे..

 

खुश होती मुझे देखकर,

मैं आता, हाथ रुक जाता,

तुम्हारे पास तुम बढ़ाती अपनी हथेली

और उठा लेती मुझे, अपने चेहरे के पास..

 

मैं देखता….तुम्हारी आंखों को

और घबरा जाता उन आंखों की

असीम गहराई देखकर वेदना..

 

तुम मेरी आंखों में देखती और

समझने की कोशिश करती

मेरे मन की भाषा, जो तोड़ने आया है

तुम्हारा एकांत, उस समय

जो तुम्हारी हथेलियों में बैठा बैठा,

जी रहा ऊस वातायान को

ऊस वातावरण को..

तुम्हें तुम्हारा सन्नाटा,

मैं जीता जाता तुम्हें…

 

काश मैं आता

तुम्हारे पास रोज इसी तरह

तुम्हारा सन्नाटा बाटने रोज

मैं बन आता गिलहरी बन कर

एक बार छू लेता

तुम्हारे मन की छुअन को

जी लेता उन क्षणों को

उन पलों को एक बार

तुम्हारे साथ

 

काश मैं बन आता, गिलहरी बन

फिर एक बार

तुम्हारे पास, तुम्हारे पास

 

क्योंकि और कोई रास्ता नहीं

तुम्हारे पास आने का मेरे पास

काश मैं गिलहरी बन कर आता

तुम्हारे पास तुम्हारे पास…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

मो 7746001236

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – झुर्रियाँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी तदनुसार बुधवार 31अगस्त से आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार शुक्रवार 9 सितम्बर तक चलेगी।

इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें। उसी अनुसार अथर्वशीर्ष पाठ/ श्रवण का अपडेट करें।

अथर्वशीर्ष का पाठ टेक्स्ट एवं ऑडियो दोनों स्वरूपों में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – झुर्रियाँ ??

देखता, समझता, पढ़ता हूँ

दहलीज़ तक आ पहुँची झुर्रियाँ,

घर के किसी रैक पर

कभी सलीके से धरी,

कभी तितर-बितर पड़ी

तो कभी फटे टुकड़ों में सिमटी,

बासी अख़बार की तरह उपेक्षित झुर्रियाँ..,

गुमान में जीते

नये अख़बारों को पता ही नहीं

कि ख़बरें अमूमन वही रहती हैं,

बस संदर्भ ताज़ा होते हैं और

तारीख़ें बदलती रहती हैं,

और हाँ, दिन, हर दिन ढलता है,

हर दिन नया अख़बार भी निकलता है!

© संजय भारद्वाज

प्रात: 8:33 बजे, 24.8.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 126☆ गीत – पेट है यदि आदमी का ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 126 ☆

☆ गीत – पेट है यदि आदमी का ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

तू मुसाफिर है तुझे

चलना पड़ेगा।

जिंदगी का बोझ भी

सहना पड़ेगा।।

 

प्रेम भी है हर तरफ

दुश्वारियाँ भी हैं बहुत।

ये जरूरी भी नहीं दें

साथ पत्नी और सुत।

 

है पहेली जिंदगी भी

उस तरह ढलना पड़ेगा।।

 

पीर भी अब मित्र बनकर

दे रही शब्दावली।

देखता हूँ नित्य ही मैं

शूल में खिलती कली।

 

पेट है यदि आदमी का

काम भी करना पड़ेगा।।

 

अग्नि में जब खूब तपता

तब चमकता है कनक।

घिर गईं परछाइयाँ यदि

लोग करते नित्य शक।

 

मुश्किलों की हर डगर में

प्रीत को गढ़ना पड़ेगा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 37 ☆ गीत – गुरु वन्दना… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत गुरु वन्दना… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 37 ✒️

? गीत  – गुरु वन्दना… — डॉ. सलमा जमाल ?

हर्षित हृदय से आपका ,

 शत् कोटी है वंदन ।

मन की गहराइयों से ,

करती तुम्हें नमन ।।

 

राहों में तुम्हारी मैंने ,

पलके बिछाईं हैं ।

श्रद्धा सुमन समर्पित ,

करती हूं तुम्हें अर्चन ।।

हर्षित ———————

 

क्या भेट दें तुम्हारी ,

गुरु दक्षिणा में हम ।

आशीष हो तुम्हारा ,

स्वीकारो अभिनंदन ।।

हर्षित ——————-

 

सरगम है यह सुरों की ,

 वीणा की झंकार है ।

खुशियों के दीप जले ,

 करता है मन नर्तन ।।

हर्षित ——————–

 

चन्दा उतर के आया है ,

वसुधा की गोद में ।

तारों के गजरे लेकर ,

गुरु को करूं अर्पन ।।

हर्षित ——————-

 

आपकी दुआओं में सदा,

” सलमा” की याद हो ।

 पावन- पुनीत ऋण को,

 करती शत् शत् वन्दन ।।

हर्षित ———————-

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 49 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है   “मनोज के दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 49 – मनोज के दोहे …. 

ब्रह्मचर्य-व्रत-साधना, रहा देवव्रत नाम।

श्री शांतनु के पुत्र थे, अटल प्रतिज्ञा-धाम।।

 

तन-मन को निर्मल रखे, पूजन व्रत उपवास

जीवन सुखद बनाइए, हटें सभी संत्रास।।

 

फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करें अविराम।

गीता में श्री कृष्ण का, सार-तत्व अभिराम।।

 

तीजा के त्यौहार में, निर्जल व्रत उपवास।

शिव की है आराधना, पावन भादों मास।।

 

विजयी होता क्रोध पर, जिसने सीखा मौन

सुखमय जीवन ही जिया, व्यर्थ लड़ा है कौन।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 104 – मैं दीपक था… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके मैं दीपक था…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 104  – मैं दीपक था✍

मैं दीपक था किंतु जलाया

चिंगारी की  तरह    मुझे

 इतना बहकाया है तुमने 

छल लगती है सुबह मुझे ।

 

तुमने समझा हृदय खिलौना 

खेल समझ कर छोड़ दिया 

कभी देवता सा    पूजा  तो 

कभी स्वप्न-सा तोड़ दिया ।

 

जन्म मृत्यु की आंख मिचौनी

 और ना   अब  मुझसे  खेलो 

बहुत बहुत पीड़ा तन मन की 

कुछ मैं ले लूं कुछ तुम   झेलो।

          0

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 106 – “कहाँ रहेगी क्या पहनेगी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –कहाँ रहेगी क्या पहनेगी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 106  ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कहाँ रहेगी क्या पहनेगी”|| ☆

कोस रही बादल को जो

बरसे बनकर बाधा

खडी बाढ़ में गले-गले

तक है डूबी राधा

 

बही, कुछ समय तक

बहाव में मीलों तैरे बिन

प्राण बचाते बीत गया

है उसका सारा दिन

 

थाम सकी है कैसे भी –

बहते,बबूल-डाली

काँटों को पकड़े जमीन

पर टिक पायी आधा

 

सबकुछ तो ले गया बहा

कर यह निर्दय-पानी

जीवन से भी ज्यादा

चिन्ता कल से है आनी

 

कहाँ रहेगी क्या पहनेगी

ओढ़ेगी वह क्या

विनती कर-कर देव –

पितर को उस ने है साधा

 

उधर प्रशासन,राहत न-

दे,पिकनिक में मशगूल

शैम्पेन में मस्त , यहाँ-

राधा है और बबूल

 

नाच रही है सम्पतिया

सब की आँखों में झूल

गाती रही मन्द्र- सप्तक

में  रे गा मा पा धा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

31-08-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सिद्ध प्रमेय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी तदनुसार बुधवार 31अगस्त से आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार शुक्रवार 9 सितम्बर तक चलेगी।

इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें। उसी अनुसार अथर्वशीर्ष पाठ/ श्रवण का अपडेट करें।

अथर्वशीर्ष का पाठ टेक्स्ट एवं ऑडियो दोनों स्वरूपों में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सिद्ध प्रमेय ??

बेहाल वृत्त खीजता है

कभी केंद्रबिंदु पर,

त्रिज्या पर कभी,

कुढ़ जाता है,

फिर थककर ;

स्थितियों के गोलार्ध में

धम्म से धँस जाता है,

केंद्रबिंदु और त्रिज्या

दृष्टि झुकाए

चुपचाप पी लेते हैं

वृत्त का पूरा रोष,

नि:शब्द सह लेते हैं

सारा आक्रोश..,

लज्जित वृत्त

त्रिज्या के सहारे

फिर साधता है संवाद

केंद्रबिंदु से..,

सच्चाई जानते हैं, सो

थोड़ा बनने,

थोड़ा ठनने और

कुछ ऐंठने के बाद

तीनों ठठाकर हँसने लगते हैं, यकायक वे बाप, बेटी

और माँ में

बदलने लगते हैं!

© संजय भारद्वाज

14 जुलाई 2007

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆ # पुरुषार्थ… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पुरुषार्थ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆

☆ # पुरुषार्थ… # ☆ 

यह फूलों से भरी वाटिका

कितनी नयनाभिराम है

महक रही खुशबू से

प्रसन्न हर खास और आम है

 

रंगबिरंगे खिले खिले फूल

आंखों को को भा रहे हैं

भ्रमर भी मस्ती में

झूमते जा रहे हैं 

 

मौसम खुशगवार है

कली कली मे प्यार है

प्रीत है बिखरी हुई

बहार ही बहार है

 

हर किस्म के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

हर रंग के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

भिन्न भिन्न प्रजातियां हैं

हर सुगंध के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

 

पर अब यह कैसी

हवा चल रही है

हम सबसे

कुछ कह रही है

 

क्यों मसलें जा रहे हैं फूल ?

क्यों मसली जा रही है

हर अधखिली फूल या कली ?

 

हर कली फरियाद कर रही है

अनजाने भय से डर रही है

न्याय सलाखों के पीछे

छुप गया है

हर आवाज बिन सुने

मर रही है

 

यह सब अनर्थ है

मानवीय मूल्य व्यर्थ है

सम्मान कर पूजा

जा रहा है जिन्हें

क्या उनका यही

पुरूषार्थ है ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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