English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 89 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 89 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 89) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 89 ?

☆☆☆☆☆

इन निष्कर्षों का अवगुंठन,

वैचारिक भ्रम में उलझ रहा…

न मिलने से उत्पन्न वजह,

वाणी से अंतस बादल रहा…!

 

Facade of these inferences,

Kept entangled in ideological maze…

Cause for not getting solution,

Kept changing the psyche with voice…!

☆☆☆☆☆

बहुत मुश्किल है

उस शख़्स को गिराना,

जिसको चलना

ठोकरों ने सिखाया हो…

 

It’s very difficult to knock

down that person,

whom, stumbling blocks

have taught the walking

☆☆☆☆☆

 गुजर जाते हैं खूबसूरत लम्हें

यूँ ही मुसाफ़िरों की तरह

यादें वहीं खड़ी रह जाती हैं

रुके हुए रस्तों की तरह…! 

 

Beautiful moments keep passing

just like the travellers,

Memories remain rooted there only

like the stationary pathways…!

☆☆☆☆☆

हम भी दरिया हैं, हुजूर

अपना हुनर मालूम है हमें,

जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे,

रास्ता खुद-बख़ुद बन जाएगा

 

We are also river only,

We know our skills well

Whichever side we go,

the way gets crafted…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 89 ☆ बुंदेली नवगीत – राम रे! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

 

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली नवगीत – राम रे!।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 89 ☆ 

☆ बुंदेली नवगीत – राम रे! 

राम रे!

तनकऊ नई मलाल???

*

भोर-साँझ लौ

गोड़ तोड़ रै

काम चोर बे कैते

पसरे रैत

ब्यास गादी पे

भगतन संग लपेटे

काम-पुजारी

गीता बाँचे

हेरें गोप निहाल।

आँधर ठोकें ताल

राम रे!

बारो डाल पुआल।

राम रे!

तनकऊ नई मलाल???

*

झिमिर-झिमिर-झम

बूँदें टपकें

रिस रए छप्पर-छानी

मैली कर दई रैटाइन की

किन्नें धोती धानी?

लज्जा ढाँपे

सिसके-कलपे

ठोंके आप कपाल

मुए हाल-बेहाल

राम रे!

कैसा निर्दय काल?

राम रे!

तनकऊ नई मलाल???

*

भट्टी-देह न देत दबाई

पैले मांगें पैसा

अस्पताल मा

घुसे कसाई

ठाणे-अरना भैंसा

काले कोट

कचैरी घेरे

बकरा करें हलाल

नेता भए बबाल

राम रे!

लूट बजा रए गाल

राम रे!

तनकऊ नई मलाल???

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #119 ☆ सद्गुरू महिमा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 119 ☆

☆ ‌सद्गुरू महिमा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

(ॐ  शिव गुरू नारायण – अर्थात् शिव ही गुरु और नारायण स्वरूप हैं)

दोहा-

दोउ कर जोरे नाई सिर, बिनती करौं मैं तोर।

दया दृष्टि नित राखियो, दास भगत मैं तोर।।१।।

 मो पर बाबा दया करो, करिओ  पूरन काज।

सदगुरु महिमा लिख रहा, तुम्हरी कृपा से आज।।२।।

 

चौपाई –

जै जै सदगुरु ज्ञानी दाता।

जो भी सरन तुम्हारी आता।।

श्रद्धा भक्ति से शीश झुकाता।

सुख शांति सब कुछ पा जाता।।

दुखिया दुख में तुम्हें पुकारे।

किन्ह सहाय दुःख सब टारे।।

तुम प्रभु हो करूणा के सागर।

तुम हो राधा के नट नागर।।

शिव स्वरूप मैं तुमको ध्याऊं।

तुम्हारी किर्ती सदा मैं गांऊं।

करत बखान मन नहीं अघाता।

धरत ध्यान सुख शांति पाता।।

ज्योति रूप प्रभु आप अनंता।

गावत चरित भगत सब संता।।

जब छायो मन में अंधियारा।

आरत मन से तुम्हें पुकारा।।

 बिनती सुनि प्रभु आयो धाई।

सब भगतन को कींन्ह सहाई।।

भगतन के सब काज नेवारो।

हनुमत रूप कष्ट सब टारो।।

राम रूप धरि रावण मारा।

कृष्ण रूप में दनुज संहारा।।

शिव बिरंचि ध्यावहि नित ध्याना।

रामकृष्ण सेवहि बिधि नाना।।

तेज अपार बरनि नहिं जाई।

तुम्हारी किर्ति कहां लौं गाई।।

प्रकटी ज्योति हृदय ऊंजियारा।

तुम्हारी महिमा अपरंपारा।।

वेद पुराण नित करत बखाना।

तुम्हरो चरित को अंत न जाना।।

संत जनन भगतन हितकारी।

सुनि लीजै  प्रभु अरज हमारी।।

जन जन काज नर रूप तुम धारे।

 सब भगतन के काज संवारे।।

नर नारी जो महिमा गावहिं।

नाना बिधि सुख संपति पावहिं।।

आत्मानंद करहि नित गाना।

तुम्हारी किर्ति न जाइ बखाना।।

 

दोहा-

पूरन  सदगुरु महिमा भई, भयो मुदित मन आज।

दया-दृष्टि नित राखियो, हे! सतगुरु महराज।।

चरन कमल नित पूज कर, बिनती कर, कर जोरि।

 धन्य भइ मम लेखनी, लिख कर महिमा तोरि।।

 महिमा पढ़त अघात मन, पावत कृपा तुम्हार।।

 सब में तूं ही रम रहा, तूं ही जीवन सार।।

गुरु पिता गुरू मातु है,  गुरू ही सखा सुजान।

गुरु ईश्वर गुरु ज्ञान है, इसको सच तूं मान।।

ॐ  श्री बंगाली बाबाय अर्पणमस्तु

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 16 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (36 – 40) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

अयोध्या के उपवन के शीतल समीरण ने वृक्षो औ’ सरयू के जल को जगाया।

अगवानी की सबने कुश और सेना की, मिल प्रेम से सारा पथ श्रम मिटाया।।36।।

 

तब कुल पताका सदृश पूज्य कुश प्रजापालक ने ध्वज सहित सेना को अपनी।

निकटस्थ ग्रामीण अंचल में रक्खा, जो शत्रुओं के लिये था असहनीय।।37।।

 

ज्यों तप्त धरती को वर्षा घनों ने बरस समय पर नित हरा है बनाया।

त्यों कुश की आज्ञा से साधन औ’ कौशल ने उजड़ी अयोध्या को फिर से सजाया।।38।।

 

फिर मंदिरों के नगर अयोध्या में जहां देवप्रतिमायें देती दिखाई।

कुश ने बुला वास्तुविद पंडितों को, पशुदान के साथ पूजा कराई।।39।।

 

कामी यथा कान्ता के हृदय में, कुश हुए प्रविशित नृपति के भवन में।

यथोचित भवन राजपुरूषों को देकर, लगाया उन्हें राजय के संचलन में।।40।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #139 – ग़ज़ल-25 – “आजकल मिलते नहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हम रदीफ़ संग क़ाफ़िया ओ बहर रखते हैं…”)

? ग़ज़ल # 25 – “हम रदीफ़ संग क़ाफ़िया ओ बहर रखते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुहब्बत वाले क़यामत की नज़र रखते हैं,

महबूब को हो तकलीफ़ तो ख़बर रखते हैं।

 

हमने उनके ख़्वाबों को आँखों पर सजाया,

हमपर आई सख़्त धूप वो शजर रखते हैं।

 

उन्होंने हमारी रातों को ख़्वाबों से सजाया,

उनकी यादें हम दिल में हर पहर रखते हैं।

 

ग़ज़ल सिर्फ़ आपही लिखना नहीं जानते हो,

हम रदीफ़ संग क़ाफ़िया ओ बहर रखते हैं।

 

हमने तो लुटा दी जन्नत उनकी चाहत में

वो हमेशा मिल्कियत पर ही नज़र रखते हैं।

 

तारे तोड़ फ़लक से बिछाए  तेरी रहगुज़र,

खुद के लिए टूटे प्यालों में ज़हर रखते हैं।

 

उन पर होवे  इनायात की बारिश हर पल,

आतिश उनकी मुसीबतों से बसर रखते हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्व पुस्तक दिवस विशेष – अपार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विश्व पुस्तक दिवस विशेष – अपार ??

केवल देह नहीं होता मनुष्य,

केवल शब्द नहीं होती कविता,

असार में निहित होता है सार,

शब्दों के पार होता है एक संसार,

सार को जानने का

साधन मात्र होती है देह,

उस संसार तक पहुँचने का

संसाधन भर होते हैं शब्द,

सार को, सहेजे रखना मित्रो!

अपार तक पहुँचते रहना मित्रो!

💐 मुद्रित शब्दों का ब्रह्मांड होती हैं पुस्तकें। शब्दों से जुड़े रहें, पुस्तकें पढ़ते रहें। विश्व पुस्तक दिवस की शुभकामनाएँ 💐

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9.07 बजे, 23.4.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा#77 ☆ गजल – ’’खतरों भरी है सड़के…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “खतरों भरी है सड़के…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 77 ☆ गजल – खतरों भरी है सड़के…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमें दर्द दे वो जीते, हम प्यार करके हारे,

जिन्हें हमने अपना माना, वे न हो सके हमारे।

 

ये भी खूब जिन्दगी का कैसा अजब सफर है,

खतरों भरी है सड़के, काटों भरे किनारें।।

 

है राह एक सबकी मंजिल अलग-अलग है,

इससे भी हर नजर में हैं जुदा-जुदा नजारे।

 

बातें बहुत होती हैं, सफरों में सहारों की

चलता है पर सड़क में हर एक बेसहारे।

 

कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?

हर एक जी रहा है इस जग में मन को मारे।

 

चंदा का रूप सबको अक्सर बहुत लुभाता,

पर कोई कुछ न पाता दिखते जहां सितारे।

 

देखा नहीं किसी ने सूरज सदा चमकते

हर दिन के आगे पीछे हैं साँझ औ’ सकारे।

 

सुनते हैं प्यार की भी देते हैं कई दुहाई।

थोड़े हैं किंतु ऐसे होते जो सबके प्यारे।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 16 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (31 – 35) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

पथ खोजने सैन्य विन्ध्यावनों में बँट गई अनेकों समूहों में खुद ही।

करते महानाद देखा सरीखी गुफाओं को गुंजित किया सघन वन की।।31।।

 

चल धातुरागों पै रथ-चक्र रंजित हय-गय निनादों में ध्वनि वाद्य मिश्रित।

प्रभु कुश किरातों से उपहार पूजित, बढ़े विन्ध्य वन-भाग को कर विमर्दित।।32।।

 

करते हुए पार रेवा को विन्ध्या में जो प्रतीची वाहिनी गंगा है ख्यात।

गज सेतु पर सुशोभित कुश को झलते, नभ में बहुत शुभ्र चँवर से हुये ज्ञात।।33।।

 

कपिल-क्रोध-शापित स्वपुरखों के भस्मावशेषों की जिस जल ने तारा था उनको।

नौकाओं से क्षुब्ध गंगा-सलिल को कुश ने नमन किया अतिभाव भय हो।।34।।

 

कर पार पथ, पहुँच कुश सरयू तट जहाँ रघुकुल नृपों ने किये यज्ञ भारी।

लखे यज्ञ-स्तम्भ औं वेदिकायें जो थी सैकड़ों में परम मनोहारी।।35।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्व पृथ्वी दिवस विशेष – हरी भरी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विश्व पृथ्वी दिवस विशेष – हरी-भरी ??

मैं निरंतर रोपता रहा पौधे

उगाता रहा बीज उनके लिए,

वे चुपचाप, दबे पाँव

चुराते रहे मुझसे मेरी धरती..,

भूल गए वे, पौधा केवल

मिट्टी के बूते नहीं पनपता,

उसे चाहिए-

हवा, पानी, रोशनी, खाद

और ढेर सारी ममता भी,

अब बंजर मिट्टी और

जड़, पत्तों के कंकाल लिए,

हाथ पर हाथ धरे

बैठे हैं सारे शेखचिल्ली,

आशा से मुझे तकते हैं,

मुझ बावरे में जाने क्यों

उपजती नहीं

प्रतिशोध की भावना,

मैं फिर जुटाता हूँ

तोला भर धूप,

अंजुरी भर पानी,

थोड़ी- सी खाद

और उगते अंकुरों को

पिता बन निहारता हूँ,

हरे शृंगार से

सजती-धजती है,

सच कहूँ, धरती ;

प्रसूता ही अच्छी लगती है!

 * विश्व पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ *

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 118 ☆ बृज में उड़ती खूब गुलाल… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “बृज में उड़ती खूब गुलाल…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 118 ☆

☆ बृज में उड़ती खूब गुलाल… 

ग्वाल-बाल सब मिलि खें पूछें, कितै छुपो नन्दलाल

लट्ठ प्रेम के बरसाने में, करवें खूब कमाल

गोरी राधा भई सांवरी, चकित भये गोपाल

खूब उड़ो आकाश में केसर, तन मन हो ग्यो लाल

सुध-बुध भूल सखी सब नाचें, रखो न कोई ख्याल

नाचे अब “संतोष” प्रभु संग, कर खें खूब धमाल

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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