हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 109 ☆ राधा नाम सुनत हरि धावें…. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “राधा नाम सुनत हरि धावें….। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 109 ☆

☆ राधा नाम सुनत हरि धावें….

राधा नाम देत सुख सारे, मनवांछित फल पावें

जाको नाम जपें खुद कृष्णा, निशदिन नाम बुलावें

रास विहारिनि नवल किशोरी, मोहन को अति भावें

राधे राधे जपिये प्यारे, कृष्णा सुन झट धावें

पाना है गर मोहन को तो, निशदिन राधे  गावें

राधे कह “संतोष”मिलेगा, सुख-शान्ति घर लावें

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (56-60) ॥ ☆

सर्गः-12

मृत जटायु का किया फिर उनने दाह संस्कार।

उस दशरथ के मित्र को पिता समान विचार।।56।।

 

पथ में मार ‘कबन्ध’ को दे सद्गति श्रीराम।

पंपा गये सुग्रीव ने उनको किया प्रणाम।।57।।

 

अनुज वधू का कर हरण करता था जो राज।

उस बाली को मार कर दिया सुग्रीव को ताज।।58।।

 

तब सीता की खोज मे वानर भेजे हजार।

कपिपति ने ज्यों राम के मन के विविध विचार।।59।।

 

सम्पाती से ज्ञात कर रावण का स्थान।

पहुँचे सागर पार कर पवन-पुत्र हनुमान।।60।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 145 ☆ कविता – रंगोली ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता रंगोली

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 145 ☆

? कविता – रंगोली ?

त्यौहार पर सत्कार का

इजहार रंगोली

उत्सवी माहौल में,

अभिसार रंगोली

 

खुशियाँ हुलास और,

हाथो का हुनर हैं

मन का हैं प्रतिबिम्ब,

श्रंगार रंगोली

 

धरती पे उतारी है,

आसमां से रोशनी,

है आसुरी वृत्ति का,

प्रतिकार रंगोली

 

बहुओ ने बेटियों ने,

हिल मिल है सजाई

रौनक है मुस्कान है,

मंगल है रंगोली

 

पूजा परंपरा प्रार्थना,

जयकार लक्ष्मी की

शुभ लाभ की है कामना,

त्यौहार रंगोली

 

संस्कृति का है दर्पण,

सद्भाव की प्रतीक

कण कण उजास है,

संस्कार रंगोली

 

बिन्दु बिन्दु मिल बने,

रेखाओ से चित्र

पुष्पों से कभी रंगों से

अभिव्यक्त रंगोली

 

धरती की ओली में

रंग भरे हैं

चित्रो की भाषा का

संगीत रंगोली

 

अक्षर और शब्दों से,

हमने भी बनाई

गीतो से सजाई,

कविता की रंगोली

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ उड़ता यौवन ☆ डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल

☆  कविता – उड़ता यौवन ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

वसंत ऋतु के आते ही, भंवरे कलियां मुस्काते है।

ऐसे ही मानव जीवन में, यौवन के दिन आते है।।

जैसे ही यौवन आता, अंग प्रस्फुटित हो उठता।

मुख आभान्वित, कजरारी आंखें ,अंग अंग दमक उठता।।

लुभा रही है नागिन वेणी, लहराती, बलखाती चमेली।

चाल चले हिरनी सा देखो, इतराती संग सखी सहेली।।

यौवन का हुस्न देख ज़माना, तारीफों के पुल बंधते देखूं।

सुन -सुन कर तारीफें ऐसी, बार -बार दर्पण को देखूं।।

मैं हंसती ,दर्पण भी हंसता, मैं रोती तो वो भी रोता।

दर्पण से याराना ऐसा, मैं खाती,जब वो भी खाता।।

दर्पण से यारी को देख, मन में लड्डू फूटे जाएं।

हर दिन मेरी उम्र बताकर, मुझसे मेरी पहचान कराए।।

उत्तरोत्तर दर्पण में एक दिन, शक्ल में उम्र परिवर्तन देखा।

पहली बार चमकता बाल, चांदी का मैने सिर में देखा।।

लगा जोर का झटका ऐसा, झकझोर दिया दर्पण को मैने।

जब दर्पण में बूढ़े तन की झुर्रियों को देखा मैने।।

कहाँ गयी कजरारी आँखें, और दमकता मेरा यौवन।

कहाँ गयी आभा चेहरे की, अंग फूल सा मेरा कोमल।।

दर्पण बोला उम्र बढ़ गयी, जिंदगी कगार पर पहुंच गई।

जहाँ खत्म हो जाता यौवन, इसी को कहते उड़ता यौवन।।

छणभंगुर है काया, जीवन, कुछ पल तक ही रहता यौवन।

जहाँ खत्म हो जाता सब कुछ, उसी को कहते उड़ता यौवन।।

मत घमंड करो काया पर इतना, ये भी साथ ना जाएगी।

होगा देह का अंत तो एक दिन, सिर्फ आत्मा रह जायेगी।।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 97 ☆ बाल कविता – दिन हैं गजक मूंगफली वाले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है आपकी एक बाल कविता  दिन हैं गजक मूंगफली वाले”.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 97 ☆

☆ बाल कविता – दिन हैं गजक मूंगफली वाले ☆ 

चले सैर को बादल राजा

उत्तर दिग से दक्षिण में।

लाव – लश्कर साथ लिए हैं

ऐसा लगता हैं रण में।।

 

आँख मिचौनी सूर्य कर रहे

बादल जी की सेना से।

सुबह घने कोहरे की चादर

सूर्य छिपे चुप रैना से।।

 

हवा भी गुम है , पेड़ मौन हैं

हरियाली करती झम – झम।

पक्षीगण भी राग सुनाएँ

कहते सबसे खुश हैं हम।।

 

मौसम की भी अजब कहानी

रंग बदलता नए निराले।

कोहरा भागे बादल उमड़े

दिन हैं गजक मूंगफली वाले।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (51-55) ॥ ☆

सर्गः-12

राक्षस-सेना-हार की, राम की विजय विशेष।

रावण को देने खबर रही शुर्पनखा शेष।।51।।

 

सेना का सुन नाश और शर्पूनखा-अपमान।

शिर पर राम के चरण का रावण को हुआ मान।।52।।

 

‘मारीच’ को मृग रूप दे, रच धोखे की चाल।

कर जटायु से युद्ध, किया सिया-हरण तत्काल।।53।।

 

चले सिया की खोज में राम-लखन दोऊ भाई।

पंख-रहित अधमरा पथ में लखा गीध जटायु।।54।।

 

अपहृत सीता के कहे उसने सारे भाव।

कथा समूची कह रहे थे जटायु के घाव।।55।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#119 ☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा नर्मदा…..☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज  नर्मदा जयंती के पुनीत अवसर पर प्रस्तुत है गीति-रचना “नर्मदा नर्मदा…..”)

☆  तन्मय साहित्य  #119 ☆

☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा नर्मदा…..☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा

सुंदरम, निर्मलं, मंगलम नर्मदा।

 

पुण्य उद्गम  अमरकंट  से  है  हुआ

हो गए वे अमर,जिनने तुमको छुआ

मात्र दर्शन तेरे पुण्यदायी है माँ

तेरे आशीष हम पर रहे सर्वदा। नर्मदा—–

 

तेरे हर  एक कंकर में, शंकर बसे

तृप्त धरती,हरित खेत फसलें हँसे

नीर जल पान से, माँ के वरदान से

कुलकिनारों पे बिखरी, विविध संपदा। नर्मदा—–

 

स्नान से ध्यान से,भक्ति गुणगान से

उपनिषद, वेद शास्त्रों के, विज्ञान से

कर के तप साधना तेरे तट पे यहाँ

सिद्ध होते रहे हैं, मनीषी सदा। नर्मदा—–

 

धर्म ये है  हमारा, रखें स्वच्छता

हो प्रदूषण न माँ, दो हमें दक्षता

तेरी पावन छबि को बनाये रखें

ज्योति जन-जन के मन में तू दे माँ जगा। नर्मदा—–

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से#12 ☆ ग़ज़ल – भागता आदमी ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। ) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर ग़ज़ल  “भागता आदमी”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 12 ✒️

?  ग़ज़ल – भागता आदमी  —  डॉ. सलमा जमाल ?

 रोड पर रात दिन भागता आदमी।

जीवन मूल्यों को नापता आदमी ।।

 

भ्रष्टाचारी को स्कूटर कार है।

भूखा नंगा भीख मांगता आदमी।।

 

 कुत्तों को ऊन के स्वेटर मिलें।

 ठंड से फुटपाथ पर कांपता आदमी।।

 

दूध, ब्रेड, मक्खन खाते हैं श्वान।

राशन के लिए भागता आदमी ।।

 

दोज़ख, मौत, सड़क के गड्ढों में है ।

ढूंढता बचने का रास्ता आदमी ।।

 

दस्तरख़्वान पर छप्पन भोग रखें ।

 मधुमेह, रक्तचाप, से सजा आदमी ।।

 

घास का बिछौना लगी नींद गहरी ।

मख़मली बेड पर जागता आदमी ।।

 

 गाय, भैंसों के ब्रेकर शहर में मेरे ।

प्रशासन का मुंह ताकता आदमी ।।

 

ज़िन्दगी में अंधेरा दिया तक नहीं ।

चांद, तारे, सूरज बांटता आदमी।।

 

“सलमा” पैरों के नीचे ज़मीं भी नहीं ।

आसमां की तरफ़ झांकता आदमी ।।

 

© डा. सलमा जमाल 

दि. 29.09.2020

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (46-50) ॥ ☆

सर्गः-12

दुष्ट कथित अपशब्द ज्यों सहज नहीं स्वीकार।

किया तथा श्रीराम ने ‘दूषण’ का संहार।।46।।

 

‘खर’ ‘त्रिशरा’ पर भी किया क्रमिक बाण-सन्धान।

लगा किन्तु, जैसे चले एक साथ सब बाण।।47।।

 

देह छेद बाहर गये तीक्ष्ण राम के बाण।

पान किया क्षणमात्र में तीनों जीवन-प्राण।।48।।

 

राक्षस सेना उस बड़ी में, सब के शिर काट।

रूण्ड-मुण्ड से भूमि सब दिया शेरों ने पाट।।49।।

 

देव-द्रोही राक्षस सभी राम से लड़कर आप।

गिद्धपंखों की छाँव में सो गये मर चुपचाप।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “हिलमिलकर ही जीवन जीना… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना

समांत- आई

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

जाँगर-तोड़ी करी कमाई ।

बुरे वक्त में काम न आई।।

 

खूब सुनहरे सपने देखे,

नींद खुली तो थी परछाई।

 

घुटने टूटे कमर है रूठी,

खुदी बुढ़ापे की है खाई।

 

लाचारी की चादर ओढ़ी,

सास-बहू के बीच लड़ाई।

 

हँसी खुशी जीना था जीवन, 

सिर-मुंडन को खड़ा है नाई।

 

मंदिर जैसे होते वे घर ,

सुख-शांति की हुई निभाई।

 

हिलमिलकर ही जीवन जीना,

इसमें सबकी बड़ी भलाई।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

7 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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