हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 87 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 87 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

गोरी तुझसे  कर रहा, थोड़ी सी मनुहार।

होली का त्यौहार है, खोलो चितवन द्वार।

 

होली के त्यौहार में, छाई ख़ुशी उमंग।

भोले का सब नाम ले , छान रहे हैं भंग।

 

होली का त्योहार है, बना रहे हैं स्वांग।

बम भोले का नाम ले,खूब छानते  भांग।

 

सजनी साजन से कहे, क्यों पी ली है भांग

अंग-अंग फड़कन लगे, क्यों करते हो स्वांग।

 

होली के हर रंग में, मिला प्यार का रंग।

रंग बिरंगी हो गई, लगी पिया के अंग।

 

मन ही मन तुम सोच लो, सजना का है संग

अबीर गुलाल के बिना, चढ़ा प्यार का रंग

 

लाल,लाल हर गाल है, उडत अबीर गुलाल ।

होली के हर रंग में,  मन भी होता लाल ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 77 ☆ कहाँ गई नन्ही  गौरैया ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण कविता  “कहाँ गई नन्ही  गौरैया। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 77 ☆

☆ कहाँ गई नन्ही  गौरैया ☆

कहाँ गई नन्ही  गौरैया

पूछ रहा अब मुनमुन भैया

 

फुदक फुदक कर घर आँगन में

बसे सदा वह सब के मन में

करती थी वो ता ता थैया

कहाँ गई नन्ही गौरैया

 

पेड़ों की हो रही कटाई

जंगल सूखे गई पुरवाई

सूख गए सब ताल-तलैया

कहाँ गई नन्ही गौरैया

 

घर में रौनक तुम से आती

चुगने दाना जब तुम आती

खुश हो जाती घर की मैया

कहाँ गई नन्ही गौरैया

 

हमें अब अफसोस है भारी

सूनी है अब घर-फुलवारी

बापिस आ जा सोन चिरैया

कहाँ गई नन्ही गौरैया

 

तुम बिन अब “संतोष” नहीं है

माना हम में दोष कहीँ है

बदलेंगे हम स्वयं रवैया

घर आ जा मेरी गौरैया

 

रखी है पानी की परैया

बना रखी पिंजरे की छैयां

अब घर आ मेरी गौरैया

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२५॥ ☆

 

उत्सङ्गे वा मलिनवसने सौम्य निक्षिप्य वीणां

मद्गोत्राङ्कं विरचितपदं गेयम उद्गातुकामा

तन्त्रीम आर्द्रां नयनसलिलैः सारयित्वा कथंचिद

भूयो भूयः स्वयम अपि कृतां मूर्च्चनां विस्मरन्ती॥२.२५॥

या मलिन वसना धरे गोद वीणा

मेरे नाममय गीत को उच्च स्वर में

गाने मेरी याद में उमड़ आये

नयनवारि से सिक्त ले वीण कर में

बड़े कष्ट से पोंछकर तार उसके

फिर आलाप कर भूल भरती रुलाई

यों भाव भीनी दशा में तुम्हें मेघ

आलोक में वह पड़ेगी दिखाई .

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 79 – हाइबन- प्राकृतिक इंडिया ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- प्राकृतिक इंडिया। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 80 ☆

☆ हाइबन- प्राकृतिक इंडिया ☆

आकाश से पृथ्वी का नजारा अनोखा व अलग दिखाई देता है। ऐसा ही जब आप हवाई जहाज से यात्रा करते हैं तो गांव, शहर, पहाड़ व प्रकृति के अनोखे नजारे दृश्यमान होते हैं। मगर आप जैसलमेर के ऊपर से 10 साल बाद हवाई यात्रा करेंगे तो यहां के घोटारु के रेगिस्तान में आपको इंडिया का प्राकृतिक नजारा दिखाई देगा।

भारत पाक बॉर्डर पर बीएसएफ के जवान ऐसे ही एक पार्क का निर्माण कर रहे हैं। इसमें डेढ़ किलो मीटर लंबे व आधा किलो मीटर चौड़ाई में अर्जुन, शीशम, पीपल के वृक्ष लगाए जा रहे हैं। 6500 वृक्षों से निर्मित पार्क को हवाई जहाज से देखने पर जमीन पर ‘इंडिया’ लिखा हुआ दिखाई देगा।

रेगिस्तान में एनजीओ संकल्पतरू के प्रयास से यह पार्क बनाया जा रहा है। जिसे 3 साल तक पोषित करने के बाद यह सोलर ऊर्जा की लाइट से सज्जित पार्क बीएसएफ को सौंप दिया जाएगा।

यह भारतमाला हाईवे पर निर्मित पहला टूरिज्म स्पॉट होगा जिसका आनंद बीएसएफ के जवान भी उठा पाएंगे।

रेगिस्तानी लूं~

इंडिया की सुरक्षा

में डटी सेना।

————

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

27-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नौजवान ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – नौजवान ?

बूढ़े किस्सों और

अबोध सपनों के बीच

बिछ जाता है

सेतु की तरह,

लोग, उसे

नौजवान कहने लगे हैं..!

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 66 ☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – षष्ठम अध्याय ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है षष्ठम अध्याय

फ्लिपकार्ट लिंक >> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 67 ☆

☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – षष्ठम अध्याय ☆ 

स्नेही मित्रो श्रीकृष्ण कृपा से सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा दोहों में किया गया है। आज आप पढ़िए षष्ठम अध्याय का सार। आनन्द उठाएँ।

 डॉ राकेश चक्र

अध्याय 6 -ध्यान योग

श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को ध्यान योग के गूढ़ रहस्य को समझाया

संन्यासी-योगी वही, करता जो कर्तव्य।

पाने की ना चाह है, करे धर्म औ” यज्ञ।। 1

 

योगी सच्चा है वही, त्यागे इन्द्रिय भोग।

शेष रहे ना लालसा,करे भक्तिमय योग।। 2

 

करता साधक भक्ति का, जो अष्टांगी योग।

योग सिद्ध  ऐसा पुरुष, करें न भौतिक भोग।। 3

 

योगारूढ़ी है वही, करे भोग का त्याग।

कर्म सकामी ना करे, चित्त-भक्ति  अनुराग।। 4

 

अपने मन का मित्र भी, कभी शत्रु बन जाय।

मन को जो वश में करे, वही सिद्धि को पाय।। 5

 

मन को जीते जो मनुज, मित्र श्रेष्ठ बन जाय।

जो मन के वश में हुआ, दुख को गले लगाय।। 6

 

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।

सुख-दुख, यश-अपयश सभी, मन खेल ही उपहार।। 7

 

ज्ञान और अनुभूति से, हो योगी संतुष्ट।

निर्विकार समभाव से,दे न किसी को कष्ट।। 8

 

शत्रु-मित्र सबके लिए, रखे प्रेम का भाव।

ऐसा योगी श्रेष्ठ है, रखे सदा समभाव।। 9

 

योगी मन वश में रखे, आत्म ईश में लीन।

मुक्त लालसा से रहे, तन-मन ईशाधीन।। 10

 

सदा योग अभ्यास का , पावन हो स्थान।

हो मन इंद्रिय से परे, रमे ईश में ध्यान।। 11

 

पावन आसन बैठकर, करे योग अभ्यास।

मेरा ही चिंतन करे, मन हो मेरे पास।। 12

 

तन-ग्रीवा-सिर साधकर, करे योग अभ्यास।

दृष्टि नासिका पर रखे , मन में दृढ़ विश्वास।। 13

 

नित्य करे अभ्यास को, भय-संशय से दूर।

योगी विषय विमुक्त हो, प्रेम ईश  भरपूर।। 14

 

सभी कर्म, मन-देह भी, प्रभु में हों आसक्त।

ऐसा योगी अंततः, हो जाता है मुक्त।। 15

 

योगी है वो ही सफल, रखे नियम आहार।

जागे, सोए नियमतः, पिए प्रेम का सार।। 16

 

खान-पान या जागरण, निद्रा उचित विहार।

बढ़े योग अभ्यास से , मिटते कष्ट अपार।। 17

 

मनसा-वाचा-कर्मणा, करे योग अभ्यास।

मिट जाती सब लालसा, मिलता योग प्रकाश।। 18

 

 

योगी मन वश में रखे, आत्मतत्व में ध्यान।

दीपक जैसे बिन हवा, जलता सीना तान।। 19

 

योगाभ्यासी मन बने, संयम करे शरीर।

योग सिद्ध ऐसा मनुज, कहें समाधि सुवीर।। 20

 

मिले सिद्धि जब इस तरह, मन से स्वे मिल जाय।

दिव्य बनें सब इन्द्रियाँ, दिव्य सुखों को पाय।। 21

 

सिद्ध पुरुष को लाभ या,हानि न किंचित् भास

है सन्तोषी धन बड़ा, मन ही मन पूरित उल्लास। 22

 

सिद्धि मिले जब मनुज को, करें न विचलित कष्ट।

सभी दुखों से दूर हो, खुलें ज्ञान के पृष्ठ।। 23

 

श्रद्धायुत संकल्प से, करें योग अभ्यास।

इच्छाओं को त्याग दें, करें आत्म में वास।। 24

 

सन्मति से विश्वास से , रहे समाधी लीन।

स्थित मन हो आत्मा, पावन बने नवीन।। 25

 

अस्थिर चंचल वृत्ति मन, कसता रहे लगाम।

मन को वश में रख सदा, सिद्ध होयँ सब काम।। 26

 

मन स्थिर मुझमें करें, जो भी पुरुष महान।

दिव्य सुखों की सिद्धि हो, करते प्रभु कल्यान।। 27

 

आत्म संयमी निग्रही, करते योगाभ्यास।

सब पापों से मुक्त हो, आए आत्म प्रकाश।। 28

 

सिद्धि योगि वो ही मनुज, सबमें मुझको पाँय।

घट-घट वासी हूँ, समझ सबमें प्रेम जतांय।। 29

 

जो देखें सबमें मुझे, मैं रहता सर्वस्य।

प्रकट हुआ मैं देखता, सब भक्तों के दृश्य।। 30

 

योगी वे ही सिद्ध हैं, करे मुझी में ध्यान।

करे समर्पण स्वयं को, करे भक्त गुणगान।। 31

 

योगी सच्चा है वही, सुख-दुख में मुस्काय।

हर प्राणी के भाव को, कर समान दुलराय।। 32

 

अर्जुन उवाच

अस्थिर चंचल मन जहाँ, कठिन बहुत है योग।

नहीं समझ पाया सखे, पल-छिन माँगे भोग।। 33

 

मन चंचल हठ से भरा, रहा बड़ा बलवान।

वायु वेग-सा भागता, भागे तीर समान।। 34

 

श्री भगवान उवाच

कृष्ण कहें कौन्तेय से, ये मन भागे वेग।

होय विरत अभ्यास से, होयँ शांत संवेग।। 35

 

मन चंचल जिसका रहे, लक्ष्य कभी ना पाय।

मन का संयम ध्रुव अटल, विजित होय मुस्काय।। 36

 

अर्जुन उवाच

कृष्ण सुनो मेरी व्यथा, असफल योगी कौन।

भौतिकता के जाल में, टूटे मन का मौन।। 37

 

ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग से , भटकें जो इंसान।

उसकी गति मुझसे कहो, मेरे सखे महान।। 38

 

कृष्ण सुनो तुम प्रार्थना, संशय कर दो दूर।

योगि भोग में यदि रमें, क्या मिल जाता धूर।। 39

 

श्री भगवान उवाच

परहित योगी जो करें , सिद्ध लोक-परलोक।

प्रथा पुत्र मेरी सुनो, जीवन बने अशोक।। 40

 

असफल योगी भोगता, कुछ दिन भौतिक भोग।

अच्छे कुल में जन्म ले ,व्यर्थ न जाता योग।। 41

 

दीर्घकाल तक योग से, यदि वह असफल होय।

जन्म मिले वैभव कुली, योग सदा फल बोय।। 42

 

पूर्वजन्म की चेतना, है दैवी संयोग।

करें साधना ईश की, नित्य भक्तिमय योग।। 43

 

प्रारब्धों के ज्ञान से, योग स्वतः आ जाय।

ऐसा योगी ही सफल, मुझे सर्वदा भाय।। 44

 

कल्मषादि  से शुद्ध हो, ऐसा ज्ञानी भक्त।

जनम-जनम अभ्यास से, जन्म-मरण से मुक्त।। 45

 

योगी-तापस से बढ़ा, ज्ञानी से भी श्रेष्ठ

योगी सबसे उच्च है, आदरणीय यथेष्ठ। 46

 

उत्तम योगी है वही, रखे हृदय में प्रीत।

करे समर्पण स्वयं को, श्रेष्ठ योग की रीत।। 47

इस प्रकार श्रीमद्भगवतगीता छठे अध्याय ” ध्यान योग ” का भक्तिवेदांत का तात्पर्य पूर्ण हुआ।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२४॥ ☆

 

आलोके ते निपतति पुरा सा बलिव्याकुला वा

मत्सादृश्यं विरहतनु वा भावगम्यं लिखन्ती

पृच्चन्ती वा मधुरवचनां सारिकां पञ्जरस्थां

कच्चिद भर्तुः स्मरसि रसिके त्वं हि तस्य प्रियेति॥२.२४॥

 

आराधना में निरत या मेरी भाँति

विरहिणी व्यथा भावना में दिखाती

या पूंछती बंदिनी सारिका से

” प्रिये क्या कभी स्वामि की याद आती ? “

मधुर भाषिणी लाड़ली तुम बहुत हो

उन्हें क्या कभी जा सकोगी भुलाई ?

यों भाव भीनी दशा में तुम्हें मेघ

आलोक में वह पड़ेगी दिखाई .

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 88 – बैठे ठाले होली पर एक खजल……. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी होली के रंग की एक रचना बैठे ठाले होली पर एक खजल……. । )

☆  तन्मय साहित्य  #88 ☆

 ☆ बैठे ठाले होली पर एक खजल……. ☆

हुरियारों की शक्लें, होली पर ही अच्छी लगती है

रंग भरे धुंधलेपन में, उम्मीदें सोती, जगती है।

 

सब में दिखती खोट,गलतियाँ, और अधूरापन उनको

बढ़िया उनको तो केवल, खुद की कविताई लगती है।

 

तेरे गीत गजल, चौपाई, और घनाक्षरी, मुक्तक छंद

ये सब तो उनको सौतन की, आग लगाई लगती है।

 

छांछ, दहीं,मक्खन-पनीर, सब तेरे हैं बेस्वाद यहाँ

उनको तो उनके वाली ही, दुध मलाई लगती है।

 

छिपन छिपैया, ता-ता थैया, खेल रहे कविताओं में

बिना बीज खरपतवारों की, धूम मचायी लगती है।

 

मदिरा, भांग नशे के खातिर, नहीं कमी है नोटों की

बच्चों की पिचकारी, रंगों में, मंहगाई लगती है।

 

जैसे-तैसे टीप, टाप के, नकल मार कर पास हुए

आगे भइए! इत कुंआ, उत गहरी खाई लगती है।

 

चाहे नशा चढ़ा हो कितना, फिर भी नहीं भूलते हैं

अच्छे खां को खुद की बीबी, क्रूर कसाई लगती है।

 

पंगत में स्वभाव गत नजरें, तकती है इक-दूजे को

अपनी पत्तल कमतर, ज्यादा भरी पराई लगती है।

 

गिरगिट हार गए, इस रंग बदलते हुए आदमी से

परत दर परत चेहरे पर, की हुई पुताई लगती है।

 

संसद में वेतन-भत्ते,अपने इक मत हो पास किए

घर ही घर में खुद ही प्रसूता, खुद ही दाई लगती है।

 

बैठे ठाले फुरसत में यूँ ही, ये बातें लिख डाली

कब के अपन हो लिए, होली अब हरजाई लगती है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ नमन ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेन्द्र नारायण

(ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह समय-समय पर  “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। आज प्रस्तुत है श्री अमरेन्द्र नारायण जी  की एक  भावप्रवण  कविता “नमन”।)

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ नमन☆

ओ मेघ वायु के संग जरा अश्रु बूंदें लेते जाना

सूखे नयनों के उर अश्रु उनकी समाधि तक पहुंचाना

 

उर में जलती थी देश -प्रेम

और स्वाभिमान की दीपशिखा

बस एक लक्ष्य था आजादी

कोई और स्वप्न था नहीं दिखा

 

अपनी सुख सुविधा छोड़ चले

जो प्राणों की आहुति दे कर

उन अमर शहीदों की समाधि

के पास जरा जा झुक जाना!

 

स्वाधीन गगन,हो मुक्त पवन

अर्पित था वीरों का यौवन

हम उनका त्याग नहीं भूलें

स्मृति को है शत- शत वंदन

 

जाना समाधि पर वीरों के

अश्रु कृतज्ञता ले जाना

और राजगुरु,सुखदेव, भगत

को नमन हमारा पहुंचाना

 

एकता हमारी शक्ति हो

स्वर्णिम हो यह भारत अपना

बलिदानी जो हो गये अमर

पूरा कर दें उनका सपना

 

ओ मेघ,कृतज्ञता के अश्रु

सूखी आंखों में नहीं आते

वे आये हैं अंतस्तल से

जरा जाकर उनको बतलाना!

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश

दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ संदर्भ: एकता शक्ति – शहीद दिवस ☆ श्री आर के रस्तोगी

श्री आर के रस्तोगी

(ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह समय-समय पर  “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं।  इस कड़ी में आम  प्रस्तुत है स्वर्गीय भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव जी के शहीद दिवस पर एक रचना – शहीद दिवस। )

☆ संदर्भ: एकता शक्ति – शहीद दिवस  ☆ श्री आर के रस्तोगी☆ 

आज शहीद दिवस है, करते उनको हम नमन।

देश की आजादी के लिए सहे उन्होंने सब दमन।।

 

लगेगे हर वर्ष शहीदों की चिताओं पर अनेक मेले।

चाहे जितनी कठिनाई हो, चाहे जितने हो झमेले।।

 

लटक गए फांसी के फंदे पर,जरा भी उफ न की थी।

मातृ भूमि की रक्षा के लिए जान की कुर्बानी की थी।।

 

आदर्श रहेंगे लाखो युवाओं के, जब तक ये धरा गगन।

राजगुरु, सुखदेव व भगत को करते शतशत हम नमन।।

 

© श्री आर के रस्तोगी

गुरुग्राम

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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