हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 78 ☆ कविता – स्वराज्य ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “ स्वराज्य। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 78 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता –  स्वराज्य ☆

स्वराज्य हमारा नारा है

वतन जान से प्यारा है

झंडा ऊंचा सदा रहे

पावन नदियां की जलधार बहे

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है

स्वराज्य हमारा  है स्वाभिमान

तिरंगा हमारी आन बान और  है शान

देश बचाते शहीद हमारे

सीने पर गोली वह खाते

जान गंवाते माँ के दुलारे

तिरंगे का बढ़ाते हैं मान

हमारा गणतंत्र है महान

वतन जान से प्यारा है.

स्वराज्य हमारा नारा है

शहीदों पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते

भारत माँको शीश नवाते

उन वीरों को है शत शत नमन

रोशन हुए वे बने चमन

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है

जीते हैं हर वर्ष ऐतिहासिक पल

दिखाते हैं सैन्य दल अपना बल

आओ तिरंगे को लहराए

अपना गणतंत्र हम मनाएं

खुशी से झूमे नाचे गाए

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 68 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 68 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

 

चाहत दौलत की बढ़ी, चाहें ऊँचा नाम

सदाचार दुबका खड़ा, होते खोटे काम

 

रखें सोच संकीर्ण जो, उनके बिगड़ें काम

सात्विक सच्ची सोच से, होता ऊँचा नाम

 

जीवन सूना सा लगे, अगर न हो पुरुषार्थ

सच्चा मानव वही है, जो करते परमार्थ

 

बढ़ते पूंजीवाद से, शोषण के नव काम

मेहनत कश को न मिलें, श्रम के सच्चे दाम

 

सभा, रैलियां, पोस्टर, लो आ गए चुनाव

घर-घर नेता पहुँचते, दिखा रहे सब दांव

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२७॥ ☆

 

विश्रान्तः सन व्रज वननदीतीरजानां निषिञ्चन्न

उद्यानानां नवजलकणैर यूथिकाजाल्कानि

गण्डस्वेदापनयनरुजाक्लान्तकर्णोत्पलानां

चायादानात क्षणपरिचितः पुष्पलावीमुखानाम॥१.२७॥

वन नद पुलिन पर उगे यू्थिकोद्यान

को मित्र विश्रांत हो सींच जाना

दे छांह कुम्हले कमल कर्ण फूली

मलिन मालिनों को मिलन के बहाना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ थोड़ी लिखी, जानना अधिक! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ थोड़ी लिखी, जानना अधिक! ☆

अहं ब्रह्मास्मि।

…सुनकर अच्छा लगता है न!…मैं ब्रह्म हूँ।….ब्रह्म मुझमें ही अंतर्भूत है।

ब्रह्म सब देखता है, ब्रह्म सब जानता है।

अपने आचरण को देख रहे हो न!

अपने आचरण को जान रहे हो न!

बस इतना ही कहना था।

 

# निठल्ला चिंतन।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #89 ☆ कविता – सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  विचारणीय कविता  ‘सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 89 ☆

☆ कविता – सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर ☆

 

बेटी देखो !

वह जो प्रकाशमान तारे की तरह

मंथर गति से पूर्व से पश्चिम की ओर

पृथ्वी का चक्कर लगाता प्रकाश पुंज है

वह कृत्रिम उपग्रह है

इसमें सवार है हमारी सुनीता विलियम्स

जो प्रतिनिधित्व कर रही है विश्व की बेटियों का

ब्रम्हाण्ड में

 

विश्व के कैनवास को विस्तार देकर

अंतरिक्ष में रच दी है ऐतिहासिक रांगोली

सुनीता ने

 

सुनीता

समन्वित शक्ति है सरस्वती और दुर्गा की

 

सुनीता पंड्या से

सुनीता विलियम्स बनकर

तोड डाले थे उसने संकीर्णता के कठमुल्ले दायरे

और वैश्विक सोच की लिखी थी इबारत

 

सुनीता

बे आवाज तमाचा है उनके गालो का

जो सुनिताओं को घूंघट में कैद रखना चाहते है

 

स्त्री विमर्श के जीते जागते

धारावाहिक उपन्यास है

कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स

जो इंद्रधनुष से आगे

ब्रम्हाण्ड में लिखे जा रहे है

साहस की स्याही से।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 74 – हाइबन- दुनिया की सबसे लंबी सुरंग ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- दुनिया की सबसे लंबी सुरंग। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 74☆

☆ हाइबन- दुनिया की सबसे लंबी सुरंग ☆

दुनिया की सबसे लंबी सुरंग का रिकॉर्ड भारत के नाम है । यह उत्तर भारत के लेह और मनाली हिस्से को जोड़ती है । इसे समुद्र तल से 10000 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है।  इस का निर्माण ऊंचीऊंची पहाड़ी की तलहटी के नीचे 9 किलोमीटर की सुरंग खोदकर किया गया है।

इस अनोखी सुरंग की अपनी अलग विशेषताएं है। यह विशेषताएं इससे अत्याधुनिक बनाती है। 3 अक्टूबर 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित इस सड़क मार्ग पर 60 मीटर पर हाइड्रेट, 150 मीटर पर टेलीफोन और 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था की गई है। हर 2 किलोमीटर वाहन को मोड़ने की सुविधा दी गई है।

विशेष परिस्थितियों के लिए इसमें विशेष व्यवस्था की गई है। इसके हर एक 500 मीटर की दूरी पर विशेष निकासी व्यवस्था उपलब्ध है। 9.02 किलोमीटर लंबी विश्व की सबसे लंबी हाईवे टनल 3200 करोड़ रुपए की लागत से बनी है।

टनल का आकार घोड़े की नाल जैसा है। यह सीमा सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण सुरक्षित और संक्षिप्त मार्ग है । सामरिक महत्व के मार्ग ने हमें दुनिया की दृष्टि में बहुत ऊंचा उठा दिया है।

 

लेह की चोटी~

टनल में फिसली

कार में बच्चा।

 

लेह की चोटी~

सुरंग में डरकर

चींखी युवती।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-12-2020

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 58 ☆ सीमाओं पर गोली खाते वीर हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “सीमाओं पर गोली खाते वीर हैं .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 58 ☆

☆ सीमाओं पर गोली खाते वीर हैं ☆ 

नहीं करें चिन्दी-चिन्दी इस देश को।।

उत्तम भाषा ज्ञान, शान-परिवेश को।।

 

सीमाओं पर गोली खाते वीर हैं।

बैरी के सीने देते वे चीर हैं।

यही देश मेरे के सत्य समीर हैं।

इनके प्रति क्या आप हुए गंभीर हैं।

एक्य भाव से जोड़ें सारे देश को।।

उत्तम भाषा ज्ञान, शान-परिवेश को।।

 

कर साजिशें देश को, नहीं गुलाम करो।

विदेशियों की भाषा, को न प्रणाम करो।

मत अपनी संस्कृति को, तुम बदनाम करो।

बची शाख का अब मत, काम तमाम करो।

आप हटाकर मेटें सारे क्लेश को।।

उत्तम भाषा ज्ञान, शान-परिवेश को।।

 

भारत को इंडिया कहें, पर गर्व है।

गया आपसी प्रेम, कहाँ का पर्व है।

लोक-लाज कर्तव्य, न कोई धर्म है।

नित नव नाटक का ही तो यह सर्ग है।

अब दे रहे बढ़ावा, क्यों लंकेश को।।

उत्तम भाषा ज्ञान, शान-परिवेश को।।

 

जगें- जगाएँ अपने पूर्ण समाज को।

सब जानिए शिवाजी, वीर प्रताप को

मिलकर सभी मिटाएँ, इस संताप को।

शस्य श्यामला भारत भू के शाप को।

रहो बढ़ाते आगे मित्र स्वदेश को।।

उत्तम भाषा ज्ञान, शान-परिवेश को।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२६॥ ☆

 

नीचैराख्यं गिरिम अधिवसेस तत्र विश्रामहेतोस

त्वत्सम्पर्कात पुलकितम इव प्रौढपुष्पैः कदम्बैः

यः पुण्यस्त्रीरतिपरिमलोद्गारिभिर नागराणाम

उद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर यौवनानि॥१.२६॥

वहाँ “नीच” गिरिवास हो , पा तुम्हें जो

खिले नीप तरु से पुलक रोम हर्षित

जहाँ की गुफायें तरुण नागरों की

सुगणिका सुरति से सुगन्धित सुकर्षित

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 79 – कुछ गीत अनमने से… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना कुछ गीत अनमने से…)

☆  तन्मय साहित्य  #  79 ☆ कुछ गीत अनमने से…. ☆ 

(मेरे गीत संग्रह “आरोह अवरोह” 2011 से)

कुछ गीत अनमने से कुछ गीत गुनगुने से

स्वर आरोहों अवरोहों के हमने ही चुने थे।

 

मुखड़ों की सुंदरता बेचैन अंतरे हैं

पद हैं कुछ थके थके कुछ चरण मद भरे हैं

कुछ छंद सयाने से कुछ बंद पुराने से

लय ताल राग सब तो हमने ही बुने थे

कुछ गीत अनमने से….

 

चिंताओं का चिंतन जब किया अकेले में

हम पीछे छूट गए दुनियावी मेले में

थापें भी दी हमने, सरगम छेड़ी हमने

हमने ही नृत्य किया हम बजे झुनझुने से

कुछ……

 

जग सोच रहा है क्या चिंता बस यही रही

हमसे खुश रहे सभी मन में बस चाह यही

सब के अनुरूप बने ऐसे थे कुछ सपने

मिल सके ना अर्थ सही सब शब्द अनसुने थे

कुछ……

 

सातों स्वर के ज्ञाता अनभिज्ञ स्वयं से थे

जब विज्ञ हुए कुछ तो तब दर्प अहम में थे

कुछ बीज उम्मीदों के बोए थे जीवन में

फल फूल रहे हैं वे हो रहे सौ गुने थे

कुछ…….

 

खुशबू फिर फूलों की शैशव के झूलों की

मुस्कानें बिखरेगी, भोली सी भूलों की

है इंतजार पल छिन अब बदलेंगे ये दिन

पुलकित होगा तन मन नवकृति को छूने से

कुछ….

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ज़िन्दगी की धूप… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ज़िन्दगी की धूप …।)

☆ कविता  ☆ ज़िन्दगी की धूप … ☆

आज ठंड बहुत है,

खिड़की से देख रहाँ हूँ,

नीचे हल्के धूप के तिकोने में,

एक बच्ची मेरी यादोँ की, सी,

गुड़िया से खेल रही है,

 

खटोले पे बैठी दादी, भी,

स्वेटर बुन रही हैं,

खेलते, खेलते, वो बच्ची, देखती,

कभी मुझे, सरसरी निगाहों से,

जैसे मेरा अतीत देख रहा, मुझे,

फिर खेल में मशरूफ हो जाती, वो,

धूप का तिकोना, बढ़ गया फैल गया,

 

में भी सोच रहा अगर माँ होती तो,

वो भी जोर शोर से,

रंग बिरंगे ऊनों में उलझी होती,

वो भी मेरे लिए स्वेटर बुन रही होती,

 

लगा में भी कहीं, फिर,

उलझने लगा,

धूप लगा तेज़ हो गई,

सर गरम होने लगा,

में खिड़की से हट गया,

 

बच्ची, दादी, मां, बुनते रहे,

मेरी यादोँ का स्वेटर,

रोज़ इसी तरह,

ठंड बढ़ती गयी,

में इसी तरह,

ज़िन्दगी की धूप देखता रहा

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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