हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 48 ☆ डाल और रिश्ते ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “डाल और रिश्ते”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 48 ☆

☆ डाल और रिश्ते  

जब भी मेरे बगीचे में

तेज़ बारिश होती है

और आँधियाँ सायें सायें चलती हैं,

एक न एक जामुन के पेड़ की डाल

दरख़्त से टूटकर गिर ही जाती है

और उसे यूँ ज़मीन पर गिरा हुए देख,

न जाने क्यों आँखों से आंसू आ जाते हैं!

 

शायद यह डालियाँ

याद दिलाती हैं मुझे

उन टूटते रिश्तों की

जो ज़रा सी मुश्किलें आने पर

बिखरकर गिर जाते हैं…

यह एक विपदा आई,

और यह एक रिश्ता झड़ा…

यह दूसरी अड़चन आई,

और यह रिश्ता टूट गया…

 

क्यों टूटती हैं यह डालें इतनी आसानी से?

क्या यह कोई क़ुदरत का नियम है?

या फिर यह डालें खोखली हो गयी हैं?

या फिर इन दरख्तों की जड़ ही

अन्दर से कमज़ोर हो गयी है?

 

टूटने का कारण सोचने चली थी,

कि अचानक नज़र उस डाल पर फिर पड़ गयी,

जो क़ुदरत को लाचार नज़रों से देख रही थी-

कभी उससे हाथ जोड़कर याचना कर रही थी,

कभी उसकी सिसकती हुई आवाज़ सुनाई आ रही थी,

कभी वो चीख रही थी, कभी चिल्ला रही थी,

“ऐ क़ुदरत! मुझे एक बार फिर से मिला दो न

मेरे उस बड़े से दरख़्त से!”

 

मुझे पता था

क़ुदरत ख़ुद ही लाचार है-

पता नहीं उसे वो चीखें सुनाई भी दे रही थीं या नहीं,

पर मैं अबस सी भाग गयी घर के भीतर

कि नहीं देखी गयी मुझसे उस डाल की

बेचारगी और बेबसी!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शक्ति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ शक्ति

 

दृष्टि-दृष्टिकोण में

सदा यूँ ठनी रही…,

डाल-डाल तृष्णा

लज्जित होती रही,

पात-पात वितृष्णा

मेरी शक्ति बनी रही!

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:45 बजे 31.8.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

क्या मानक सौंदर्य का, रूप ,रंग ,विन्यास ।

याकि देह के पार से, झरता हुआ उजास।।

 

परमेश्वर की ज्योति के, आकृति जो अनुरूप।

सहज भाव से सभी ने ,कहा उसे ही रूप।।

 

व्यक्ति, वस्तु, सुंदर नहीं, सुंदर होती दृष्टि।

सुंदर मन ही देखता, सुंदर सारी सृष्टि।।

 

व्यक्ति रूप सुंदर लगे, जगता है अपनत्व।

संस्कार की सुरभि का ,घटता नहीं घनत्व।।

 

रूप परीक्षा के लिए, तनता नहीं वितान।

आकर्षण तो प्रीतिका, है पहला सोपान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 13 – प्रकृति की समर्थ कृति ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  प्रकृति की समर्थ कृति। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 13 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ प्रकृति की समर्थ कृति

फुनगी पर

टहनी बलूत की

पगड़ी ज्यों

किसी राजपूत की

 

खुद में दिन रात को

लपेट कर

ज्यों पूरा आयतन

समेटकर

 

पत्ती तक लगे

हो निशानी

परिचय के लिये

राजदूत की

 

प्रकृति की समर्थ

कृति सरीखी

एक शाख झुकी

दुखी दीखी

 

पढ़ आई झोंके

अनोखे से

चिट्ठी ज्यों किसी

मेघदूत की

 

घिर आई बेला

गोधूलि की

लगा धूप पत्तों

में फूलती

 

उलझ गई

कोई जटाओं में

विवश हवा जैसे

अवधूत की

 

© राघवेन्द्र तिवारी

12-07-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #6 ☆ रात बीत जायेगी ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना  “ रात बीत जायेगी”।  कुछ अधूरी कहानियां  कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी  कहते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #6 ☆ 

☆ रात बीत जायेगी ☆ 

 

तू उदास मत हो

परिस्थितियों का दास मत हो

मित्र, तेरे जीवन में खुशियाॅ आयेंगी

यह दुख भरी

काली रात बीत  जायेगी

अच्छे दिन भी

कहां सदा रहते हैं

जाते जाते हमसे यही कहते है

ये कठिन समय तुम्हारी परीक्षा है

भविष्य के लिए शिक्षा है

यही समय

तुम्हें निडर और साहसी बनाता है

तुम्हारे अंदर आत्मसम्मान जगाता है

तुम्हारी जिद अंधकार में

तुम्हे राह दिखायेगी

ये दुख भरी रात बीत जायेगी

माना यह रात

भयानक और घनघोर है

दुष्टात्माओं का

चहुँ और शोर है

आँधी -तूफानो में बड़ा ज़ोर है

घने बादलों में छुपी हुई भोर है

सुबह रात की गुलाम है

सूरज पग पग पर हो रहा नीलाम है

यह भयावहा!

किरणों को रोक नही पायेगी

यह दुख भरी रात बीत जायेगी

चाँद तारों की बोली लग रही है

आकाशगंगा चिंता में जग रही है

सारे नक्षत्र डरे डरे से भय में है

ब्रम्हांड अनजाने से संशय में है

ध्रुव तारा अड़िग किंतु मौन है

सब पेशोपेश में है कि

यह जादूगर कौन है

ये तिलिस्म तोड़,

नियति सारा हिसाब चुकायेगी

ये दुख भरी काली रात बीत  जायेगी

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 17 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  मुक्तिका )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 17 ☆ 

☆ मुक्तिका  ☆ 

 

कहाँ गुमी गुड़धानी दे दो

किस्सोंवाली नानी दे दो

 

बासंती मस्ती थोड़ी सी

थोड़ी भंग भवानी दे दो

 

साथ नहीं जाएगा कुछ भी

कोई प्रेम निशानी दे दो

 

मोती मानुस चून आँख को

बिन माँगे ही पानी दे दो

 

मीरा की मुस्कान बन सके

बंसी-ध्वनि सी बानी दे दो

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

११-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 18 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 18 सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 18 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

बहुत ही नादान है वो,

ज़रा समझाइए ना उसे,

बात न करने से कभी,

मोहब्बत कम नहीं होती…

 

She is too innocent,

Please explain to her that

Not talking to someone

Doesn’t reduce love for him!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

रूह से जुड़े रिश्तों पर

फरिश्तों के पहरे होते है

कोशिशें कर लो तोड़ने की

ये और भी गहरा जाते हैं…

Soul-related relationships

are guarded by the angels

If you try breaking them

they consolidate further…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

नींद लेने का मुझे ऐसा

कोई शौक भी नहीं

अगर तेरे ख्वाब न देखूँ

तो गुजारा भी नहीं होता…

 

Though not so very

fond of falling asleep…

But then can’t even live

without seeing your dreams

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

छोटा सा लफ्ज है मुहब्बत

मगर तासीर है इसकी गहरी

गर दिल से करोगे इसे तुम

तो कदमों में होगी ये दुनिया सारी…

 

Love is a little word, though

But its effect is so deep

If you do it with all your heart

Whole world lies at your steps

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆ यहाँ यादें बचपन की ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( श्री गणेश चतुर्थी पर्व के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  बचपन की यादों से परिपूर्ण कविता यहाँ यादें बचपन की। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆

☆ यहाँ यादें बचपन की ☆

 

आता है याद मुझको बचपन का घर वो प्यारा
अपनो के साथ मैने जीवन जहाँ गुजारा

खुशियों के साथ बीता जहॉ बालपन बिना भय
नहीं थी न कोई चिन्ता न ही कोई जय पराजय

घर वह कि पूर्वजो ने जिसे था कभी बनाया
जिसने मुझे बढ़ाया दे अपनी स्नेह छाया

आँगन था जिसका सुदंर औं बाग वह सुहाना
मैने जहाँ सुना नित चिड़ियों का चहचहाना

फूलों की छवि निरख खिंच तितलियाँ जहाँ आती
जो मेरे बालमन को बेहद रही लुभाती

जिनको पकड़ने गुपचुप हम बार बार जाते
पर कोशिशें भी कर कई उनको पकड़  न पाते

कैसा था मस्त मोहक बचपन का वह जमाना
कभी बेफिकर थिरकना कभी साथ मिल के गाना

कभी गिल्ली डण्डा गोली लट्टू कभी घुमाना
कभी छत पै चढ़  के चुपके ऊँचे पंतग उड़ाना

कभी साथियो के संग मिल कुछ पढना या पढाना
कभी घूमने को जाना या सायकिल चलाना

नजरों मे बसी हुई है माँ नर्मदा की धारा
सब घाट और मंदिर पावन हरा किनारा

स्कूल, क्लास, शिक्षक, बस्ती, गली बाजारें
पिताजी की शुभ सिखावन माँ की मधुर पुकारे

ताजी है अब भी मन मे सारी पुरानी बातें
खुशियों भरे मनोहर सुबह शाम दिन औं रातें

बदलाव ने समय के दुनियां बदल दी सारी
दुनियाँ  के संग बदल गई सब जिंदगी हमारी

पर चित्त मे बसे है अब भी मधुर वे गाने
होकर भी जो पुराने नये से हैं क्यों न जाने

एकान्त में उभरता अब भी वो सौम्य सपना
जिससे अधिक सुहाना लगता न कोई अपना

ले आई खींच आगे बरसो समय की दूरी
लगता है मन की सारी इच्छाएं हुई न पूरी

आते हैं पर कभी क्या वे दिन जो बीत जाते
बस याद बन ही मन को रहते सदा रिझाते

जिनसे भरी रसीली सुखदायी शांति सारी
हर व्यक्ति के लिये है जीवन की निधि जो प्यारी

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रस्तर की छाती तोड़ चलें ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेंद्र नारायण

( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं  देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की ओजस्वी कविता प्रस्तर की छाती तोड़ चलें)

☆ प्रस्तर की छाती तोड़ चलें ☆

प्रस्तर की छाती तोड़ चलें

निर्झर का कलकल गान करें

उत्साह ,शक्ति और भक्ति से

संजीवन हम पाषाण करें!

 

ईश्वर ने मन की शक्ति दी

संघर्ष हेतु क्षमता दी है

बाधाओं को कर सकें पार

मानव में कर्मठता दी है

 

हम एक पांव आगे धरते

दूजा तो स्वयं उठ जाता है

जो लक्ष्य दूर था दीख रहा

कुछ और निकट आ जाता है!

 

जब साथ हमारे हों अपने

संघर्ष गान बन जाता है

हर प्रस्तर में जीवन आता

उत्साह और बढ़ जाता है

 

आओ हम मिलकर साथ चलें

मरुथल में हरियाली लायें

हर मुखड़े पर मुस्कान खिले

जीवन संगीत सुना जायें!

 

यह सर्वसहा वसुधा अपनी

भला कब तक इतनी व्यथा सहे

पाषाण तोड़ निर्झर लायें

रसवंती जल की धार बहे!

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

जबलपुर

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पी- दो चित्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पी- दो चित्र ☆

1)

कई दिन चुप रही

फिर लौट गई चुप्पी,

कुछ प्रश्न खो गए

कुछ प्रश्न अनावृत्त हो गए!

2)

लौट आई है चुप्पी

जैसे लौट आई हो

टूटती साँस….,

चुप्पी का लौटना

कितनी अनुभूतियों को

शब्द दे गया….!

 

©  संजय भारद्वाज 

2.9.18, संध्या 6:40 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print