हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन# 67 – हूलोक गिबन ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक हाइबन   “हूलोक गिबन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन  # 67 ☆

☆ हूलोक गिबन ☆

अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्य में पाया जाने वाला 6 से 9 किलोग्राम वजनी वानर जाति का ये अनोखा जीव है। हूलोक गिबन विलुप्त होने के कगार पर खड़ा वानर अपने जीवन साथी के साथ अपने सीमा क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से विचरण करता रहता है। दूसरा जोड़ा कभी पहले वाले जोड़े के क्षेत्र में बिना काम से नहीं आता है।

मानवीय कृत्य वैवाहिक स्वभाव से युक्त इस वानर जाति का नर का शरीर काला और मादा का शरीर हल्के भूरे रंग का होता है । दोनों की छाती पर विस्तृत रंग की लंबी और गोलाकार छाप होती हैं। हल्के काले रंग के चेहरे पर भूरी आंखें इनकी सौंदर्य में अभिवृद्धि करती है।

इंसानों की तरह चलने वाला हूलोक गिबन अपने पिछले पैरों पर संतुलन बनाकर करतब दिखाने में माहिर होता है। यह 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कूदने में सक्षम और फुर्तीला प्राणी है । नटखट प्रवृत्ति के इस छोटे जीव की छलांग 15 मीटर तक लंबी होती है।

घाटी में वर्षा~

टूटी डाली से कूदे

हूलोक गिबं।

~~~~~~~

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

25-08-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 44 ☆ नीति -रीति के दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  “नीति -रीति के दोहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 44 ☆

☆ नीति -रीति के दोहे ☆ 

चक्रा इस संसार में,कटु मत बोलै सत्य।

बाज और कौए करें, प्यारे तुझको मृत्य।।

 

झूठ फरेबी बढ़ रहे, सत पर करें प्रहार।

छोटी-छोटी बात पर, जमकर करते रार।।

 

सबसे अच्छा मौन है,और प्रेम है सार।

असत भाव को छोड़कर, जोड़ प्रभू से तार।।

 

झूठ -फरेवों से करूँ , रोज मित्र मुठभेड़।

कोई करता प्रेम है, कोई कहता भेड़।।

 

अनगिन मिलकर छूटते, और मिलें गलहार।

जीवन के रंगमंच पर,शूल और त्योहार।।

 

भाग्य और भगवान ही, रोज रचावें स्वांग।

कर्मों की ये बेल ही, फल की करती माँग।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ गाँधीजी ☆ श्री नरेंद्र श्रीवास्तव

श्री नरेंद्र श्रीवास्तव

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है श्री नरेंद्र श्रीवास्तव जी की एक प्रस्तुति  “गाँधीजी”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  गाँधीजी ☆

आजादी का नाम गाँधीजी।

बलिदान का दाम गाँधीजी।।

 

मोहनदास करमचंद गाँधी।

बापू पूरा नाम गाँधीजी।।

 

राष्ट्रपिता वे हम सबके हैं।

बारंबार प्रणाम गाँधीजी।।

 

सत्य,अहिंसा से हासिल की।

आजादी मुकाम गाँधीजी।।

 

जब तक सूरज-चाँद रहेगा।

अमर आपका नाम गाँधीजी।।

 

लाठी ले एक धोती पहने।

श्रद्धा के हैं धाम गाँधीजी।।

 

अंतिम साँसें, पल आखिरी।

कह गए, ‘ हे राम ! ‘ गाँधीजी।।

 

© श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा, म.प्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 66 – होने बनने में अंतर है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना होने बनने में अंतर है…। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 66 ☆

☆ होने बनने में अंतर है… ☆  

 

होने, बनने में अन्तर है

जैसे झरना औ’ पोखर है।।

 

कवि होने के भ्रम में हैं हम

प्रथम पंक्ति के क्रम में हैं हम

मैं प्रबुद्ध, मैं आत्ममुग्ध हूँ

गहन अमावस तम में हैं हम।

तारों से उम्मीद लगाए

सूरज जैसे स्वप्न प्रखर है……

 

जब, कवि हूँ का दर्प जगे है

हम अपने से दूर भगे हैं

भटकें शब्दों के जंगल में

और स्वयं से स्वयं ठगे हैं।

भटकें बंजारों जैसे यूँ

खुद को खुद की नहीं खबर है।……

 

कविता के संग में जो रहते

कितनी व्यथा वेदना सहते

दुःखदर्दों को आत्मसात कर

शब्दों की सरिता बन बहते,

नीर-क्षीर कर साँच-झूठ की

अभिव्यक्ति में रहें निडर है।……

 

यह भी मन में इक संशय है

कवि होना क्या सरल विषय है

फिर भी जोड़-तोड़ में उलझे

चाह, वाह-वाही, जय-जय है

मंचीय हावभाव, कुछ नुस्खे

याद कर लिए कुछ मन्तर है।……

 

मौलिकता हो कवि होने में

बीज नए सुखकर बोने में

खोटे सिक्के टिक न सकेंगे

ज्यों जल, छिद्रयुक्त दोने में

स्वयं कभी कविता बन जाएं

यही काव्य तब अजर अमर है।…..

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विचार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ विचार 

उसके पास

एक विचार है

जो वह दे सकता है

पर खरीदार नहीं मिलता,

सोचता हूँ,

विचार के

अनुयायी होते हैं

खरीदार नहीं,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज 

(प्रातः 9 बजे, गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता और शक्ति ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रस्तुति  “ एकता और शक्ति”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  एकता और शक्ति  ☆

 

ब्रेकिंग न्यूज़ आती है

उतरता है

तिरंगे में लिपटा

अमर शहीद!

 

तुम खोते हो

सैकड़ों के बराबर – एक सैनिक

किन्तु,

उसका परिवार खो देता है

बहुत सारे रिश्ते

जिन्हें तुम नहीं जानते।

 

तुमने अपनी

और

उसने अपनी

रस्म निभाई है।

बस यही

एक शहीद की

सम्मानजनक विदाई है।

 

चले जाओगे तुम

उसकी विदाई के बाद

भूल जाओगे तुम

उसकी शहादत

और शायद

तुम्हें आएगी बरसों बाद

कभी-कभी उसकी याद।

 

उसने अंतिम सफर में

तिरंगे को ओढ़कर

सम्मानजनक विदाई पाई है

जरा दिल पर हाथ रख पूछना

क्या तुमने बतौर नागरिक

सुरक्षित सरहदों के भीतर

अपनी रस्म निभाई है ?

 

तुम्हें मिली है

स्वतन्त्रता विरासत में

लोकतन्त्र के साथ।

एक के साथ एक मुफ्त!

जिसकी रक्षा के लिए

उसने अपना सारा जीवन

सरहद पर खोया है।

उसकी अंतिम बूँद के लिए

अपना पराया भी रोया है।

 

तुम नहीं जानते

एक सैनिक का दोहरा जीवन!

वह जीता है एक जीवन

अपने परिवार के लिए

और

दूसरा जीवन

सरहद की हिफाजत के लिए।

 

वह भूल जाता है

अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय।

वर्दी पहनने के बाद

कोई नहीं रहता है

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई

हो जाते हैं सच्चे भाई-भाई

उनका एक ही रहता है धर्म

मात्र – राष्ट्र धर्म!

 

वे लड़ते हैं तुम्हारे लिए

कंधे से कंधा मिलाकर।

जाति, धर्म, संप्रदाय, परिवार

अपना सब कुछ भुलाकर।

और तुम

महफूज सरहद के अंदर

लड़ाते रहते हो आपस में कंधा

कभी धर्म का,

कभी जाति का,

कभी संप्रदाय का।

फिर

एकता और शक्ति की बातें करते हो

अमर शहीदों पर पुष्प अर्पित करते हो

धिक्कार है तुम पर

कब कंधे से कंधा लड़ाना बंद करोगे

कब कंधे से कंधा मिलाकर चलोगे

कब अपना राष्ट्रधर्म निभाओगे?

 

इन सबके बीच कुछ लोगों ने

जीवित रखी है मशाल

निःस्वार्थ बेमिसाल

तुम बढ़ाओ  तो सही

अपना एक हाथ

अपने आप जुड़ जायेंगे

करोड़ों हाथ।

बस इतनी सी ही तो  चाहिए

तुम्हारी इच्छा शक्ति,

राष्ट्रधर्म और राष्ट्रभक्ति….

तुम्हारी एकता और शक्ति

 

©  हेमन्त बावनकर  

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 17 ☆ समुंदर जैसा जीवन ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता समुंदर जैसा जीवन ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 17 ☆ समुंदर जैसा जीवन 

 

समुंदर जैसा जीवन जीने की चाह मेरे मन में नहीं,

समुंदर में उठते तूफानों को झेलना मेरे बस की  बात नहीं ||

 

सांय-सांय सी आवाज कर समुंदर में ऊँची उठती लहरें,

जिंदगी में इन लहरों से टकराना मेरे बस की  बात नहीं ||

 

तेज हवाओं से हिलोरे लेता समुंदर आक्रोशित दिखता,

समुंदर जैसा आक्रोश दिखाना मेरे बस की बात नहीं ||

 

अंतहीन समुंदर में बड़े जहाज भी हिचकोले भरते हैं,

मैं छोटी सी ताल बड़े जहाजों को झेलना मेरे बस की बात नहीं ||

 

लहरें ऊंची-नीची बहकर समुंदर तट से टकराती है,

अपनों से टकराकर अपनों के संग जीना मेरे बस की बात नहीं ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 53 ☆ आंधी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “आंधी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 53 ☆

☆  आंधी ☆

जब पता होता है ना

कि हम सही पथ पर हैं

और सच्चाई हमारी साथी है,

तो ज़हन के भीतर

एक आंधी सी चलने लगती है

जो हर अंग को जोश और उत्साह से

रंगीन गुब्बारे की तरह भर देती है,

खोल देती है सारे दरवाज़े

जो वक़्त ने बंद कर दिए होते हैं,

लॉक डाउन कर देती है

सभी नकारात्मक विचारों का

और दिमाग के सारे तालों की

चाबी ढूँढ़ लाती है!

 

‘गर तुम्हें अपने पर

पूरा भरोसा है

तो चल जाने दो आंधी,

बिना किसी डर के और भय के!

पहले बड़ी उथल-पुथल होगी,

पर फिर धीरे-धीरे

जैसे-जैसे आंधी थमेगी

सब हो जाएगा साफ़!

 

हो सकता है

तब तुम झूलने लगो

धनक के सात रंगों के झूलों पर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ आह्वान ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ आह्वान 

कह दो उनसे

संभाल लें

मोर्चे अपने-अपने,

जो खड़े हैं

ताक़त से मेरे ख़िलाफ़,

कह दो उनसे

बिछा लें बिसातें

अपनी-अपनी,

जो खड़े हैं

दौलत से मेरे ख़िलाफ़,

हाथ में

क़लम उठा ली है मैंने

और निकल पड़ा हूँ

अश्वमेध के लिए…!

 

©  संजय भारद्वाज 

(कविता संग्रह योंही से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Daily ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “रोजाना ” . We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ रोजाना ✍️  ☆

कैसे चलती है क़लम

कैसे रच लेते हो रोज?

खुद से अनजान हूँ

पता पूछता हूँ रोज,

भीतर खुदको हेरता हूँ

दर्पण देखता हूँ रोज,

बस अपने ही अक्स

यूँ ही लिखता हूँ रोज।

Daily …. ✍️

How does your pen

keep moving…

How d’you manage

to create everyday?

 

Being stranger

to myself I keep

asking for my

address everyday…

 

Keep introspecting

myself deep inside

As I peep into the

mirror everyday…

 

And, the pen just

oozes ink on paper

everyday looking

at my own image…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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