हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 59 ☆ साँचा ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “साँचा”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 59 ☆

साँचा ☆

उसकी नीली आँखों को

उसके गोरे हाथों को

उसके झूमते पांवों को

डाल दिया गया सांचे में

और फिर उन सांचों को

कई दिनों तक जकड़कर रख दिया

ताकि

वो वही देखे जहां उसकी आँखों की दिशा तय की गयी थी,

वो वही काम करे जहां उसके हाथों को ढाला गया था,

वो वहीँ कदम रखे जिस ओर उसके पाँव को दिशा दी गयी थी…

 

इन सांचों में ढालते वक़्त

समाज यह भूल गया

कि उसकी नाक को, उसके दिमाग को

किसी सांचे में नहीं ढाला जा सकता था

वो तो स्वच्छंद थे…

 

वो आँगन में खड़ी-खड़ी

ख़्वाबों की वो सुगंध सूँघती

जो उसे देती एक नया अनुभव

और जिसकी ओर वो खिंची चली जाती…

 

वो ऐसी कथाएँ वाचती

जो उसको दे देते पर

और वो

कभी आसमान को चूमती

कभी धनक के झूलों में बैठती

और परिंदों सी फिरती रहती!

 

समाज को जब मालूम हुआ

कि वो इस तरह उड़ने लगी है,

उन्होंने पूरी की पूरी कोशिश की

कि उसे समूचा ही सांचे में ढाल दिया जाए-

पर तब तक उसके परों में

इतनी जान आ गयी थी

कि वो तोड़कर साँचा उड़ गयी

और देखने वाले,

देखते ही रह गए!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सुनो वॉट्सएप! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सुनो वॉट्सएप! ☆

 

कई बार की-बोर्ड पर गई

दोनों की अंगुलियाँ

पर कुछ टाइप नहीं किया,

टाइप कर भी लिया

तो कभी सेंड नहीं किया,

ख़ास बात रही

बिना टाइप किये,

बिना सेंड किये भी

दोनों ने अक्षर-अक्षर पढ़ ली

एक-दूसरे की  चैट ..,

चर्चा है,

बिना बोले,

बिना लिखे,

पढ़ लेनेवाला

नया फीचर

वॉट्सएप की जान है,

ताज्जुब है

खुद वॉट्सएप भी

इससे अनजान है…!

 

©  संजय भारद्वाज 

12.19 बजे, 15.11.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Inseparable ..…☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “अभिन्न..”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ संजय दृष्टि  ☆ अभिन्न 

अलग करने की

कल्पनाभर से अस्तित्व

धुआँ-धुआँ हो चला,

लेखन मुझमें है

या मैं लेखन में हूँ,

अबतक पता नहीं चला…!

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 5:58 बजे, 18.11.2020

 

☆ Inseparable.. ☆

My existence got

Shattered with just the

Thought of separation,

Writing is in me

Or I’m in writing

Don’t know as yet …!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हम तुम ☆ सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

( ई- अभिव्यक्ति में युवा साहित्यकार सुश्री सुलक्षणा मिश्रा जी का हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “हम तुम”। )

☆ कविता – हम तुम ☆

तुम सपनों के सौदागर

मैं शब्दों की बाजीगर।

तुम सजाते मेले

सपनों के

मैं दिखलाती करतब

शब्दों के।

जो हृदय चुभे

कोई शूल तुम्हें

मैं शब्दों से मरहम देती हूँ।

राह हो तुम्हारी

जब कंटक भरी

मैं शब्दों से

मखमल कर देती हूँ।

दिख जाए बस

एक मुस्कान तुम्हारी

तो सब कुछ मैं

न्यौछावर कर देती हूँ।

जो छलक उठे

एक अश्क तुम्हारा

मीन बिन नीर सी

तड़प उठती हूँ।

मैं नियत से हूँ

तुम्हारी ही

नियति से मैं हारी हूँ।

तुम कृष्ण हो मेरे

पूरे से

मैं राधिका तुम्हारी

अधूरी सी।

 

© सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

संपर्क 5/241, विराम खंड, गोमतीनगर, लखनऊ – 226010 ( उप्र)

मो -9984634777

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 73 ☆ गीत – लावणी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 73 ☆

☆ गीत – लावणी

यूट्यूब लिंक >>  रंगणार विडा नक्की

स्वर : सावनी रविंद्र :: संगीत : सागर – संतोष :: गीत ‌ : अशोक भांबुरे

रंगमहाली बैठक जमली

पानविड्यांनी मैफिल रंगली

 

चुना लावला, कात पेरला, त्यात सुपारी पक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… धृ

 

पान मनाचं माझ्या कोर

नाजूक देठाच हिरवं गार

अलगद घ्याना तळहातावर

थोडं केशर घाला त्यावर

लवंग टोचा, प्रेमाने खोचा, आत सुपारी कच्ची

रंगणार, राया विडा हा नक्की… १

 

नेसून आले पैठणी कोरी

रागू- मैनेची नक्षी भारी

अवतीभवती होत्या पोरी

तरी दिलाची झालीच चोरी

कुठं शोधावं, काही कळेना, झाले मी वेडी पक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… २

 

हवा तेवढा देईल मोका

ईश्काचा दोघे घेऊ झोका

चुकेल माझ्या काळजाचा ठोका

द्याल कधी जर मजला धोका

तक्रार देईल, चौकीत नेईल, पिसाया लागल चक्की

रंगणार, राया विडा हा नक्की… ३

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

कभी विहंसती सी  लगे, कभी खिले मुस्कान।

मुख मंडल मुझको प्रिये, लगता जलज समान।।

 

गोधूली में दृष्टिगत, होता चारु  स्वरूप।

कभी झलकती राधिका,कभी कृष्ण का रूप।।

 

वृंदावन उच्चारते, सजलित होते प्राण।

युग से प्यासी दृष्टि को, यही मिलेगा त्राण।।

 

वह शब्दों की माधुरी, वह आंगिक संवाद।

अपने को भूला मगर, सिर्फ वही है याद।।

 

किशमिश रंगी रूप का, चखा चक्षु ने स्वाद।

तृप्ति कपूरी जो मिली, अब तक है वह याद।।

 

प्राण प्रिया की याद में, व्याकुल है मन-मीन।

कितना धौंऊं नयन पट, अब भी बहुत मलीन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 25 – एक उलझी वंचना का… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “एक उलझी वंचना का…। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 25– ।। अभिनव गीत ।।

एक उलझी वंचना का...

 

विजय सा ।

एक चुटकी भर बचा था

दोस्त मुझ में

सहमता, मेरी पड़ोसिन

के हृदय सा ॥

 

एक उलझी वंचना का

था सुखद निक्षेप भर जो ।

लड़ रहा खुद में अपरिचित

द्वंद्व की ही खेप भर जो ।

 

एक बस पच्चीस प्रतिशत

रास्ते के संतुलन में ।

जगमगाती दिया-बाती के

अनौखे चुप समय सा ॥

 

यही हैं जो अंजुरी भर

बचे मौसम के सुनहरे ।

शब्द जिनके बिम्ब पानी में

हुये है  हरे बिखरे ।

 

बस यही बालिश्त भर का

सुख रहा है पास मेरे  ।

जो सदा चलता रहा है

अति नमनशीला विनय सा॥

 

किसी मौलिक वजह का

प्रतिपाद्य है जो सुफलवाला ।

प्रीति कर भी है अनिश्चित

संतुलन की कार्यशाला ।

 

बहुत ऊहापोह में गुजरी

सदी के आचरण को ।

परिस्थितियों से कटा है

सौख्य के अभिनव तनय सा॥

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ नींव और मन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ नींव और मन

झूठ की नींव पर,

सच की मीनार

खड़ी नहीं होती,

छोटे मन से कोई यात्रा

कभी बड़ी नहीं होती!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 26 ☆ इक्कीसवी सदी का भारत ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “इक्कीसवी सदी का भारत”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 26 ☆ 

☆ इक्कीसवी सदी का भारत

 

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को,

अनेकों लुटेरों ने लूटा हैं भारत को,

अंग्रेजों ने लूटा और अत्याचार से पीड़ित किया था भारत को,

सदियों की पराधीनता को सहना पड़ा हैं भारत को,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

गाँधी और नेहरु के पदचिन्हों में चलना हैं भारत को,

लाल, बाल, पाल की दृढ़ता को भरना होगा भारत को,

नेताजी के सपनों को पूरा करना हैं भारत को,

रानी लक्ष्मीबाई की हिम्मत को भरना हैं भारत को,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

विज्ञान एंव कंप्यूटर क्षेत्र में विश्व में सर्वव्यापी होगा,

शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व में अद्वितीय होगा,

संस्कारों के क्षेत्र में भारत विश्व में अग्रणी होगा,

हमारी परम्पराएं प्रत्येक भारतवासी के जीवन का मूल्य होगी,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

वो नवजात शिशु की भाँति कोमल और विकासशील होगा,

वो निरंतर विधिगत एंव विकासमान राष्ट्र होगा,

वो ऐसा वटवृक्ष होगा जिसकी जड़े गहरी होंगी,

वो गौरवशाली परम्पराओं का रस ग्रहण करने के योग्य होगा,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

आओ इस सपने को पूरा करें हम,

अपने आप को अपने आप से ऊँचा करें हम,

अनेकता में एकता भरें हम,

आओ इस स्वर्ण इतिहास को रत्नमय करने का प्रयास करें हम,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #18 ☆ नशे का जहर ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय  एवं भावप्रवण  कविता “नशे का जहर”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 18 ☆ 

☆ नशे का जहर ☆ 

दीवाली के दिन

जब उसने संयंत्र से

बोनस पाया

बच्चों के लिए

पटाखे, मिठाईयां

और अपने लिए

देशी बोतल लाया

दीप जले, मिठाईयां बंटी

पटाखे फूटे

द्वार द्वार जगमगाये

उसने बोतल खोलकर

जमकर पी

कि

शायद दुखों को

कुछ पल भूल जायें

लेकिन-

कुछ ही क्षणों बाद

वह मृत्यु से जूझ रहा था

दीवाली का दीपक

बुझने से पहले ही

इस घर का

दीपक बुझ रहा था।

 

पता नहीं

यमराज ने कैसा

खेल रचा था?

सारी बस्ती में

कोहराम मचा था

त्योहारों पर अक्सर

ऐसा ही कुछ

होता रहता है

प्रतिवर्ष हम

जलाते हैं रावण को

फिर भी

वह नहीं मरता है

तब-

दावानल सा

लगता है तन में

अंगारे सा प्रश्न

उठता है मन में

क्या खुशी, गम या

तीज त्योंहारों पर

नशा करना

वाकई जरूरी है?

क्या अभावों की कटुता

कुछ पल भुलाने के लिए

यह जहर पीना

मानवीय मजबूरी है?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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