हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 9 – नदी की वेदना ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “नदी की वेदना ”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #9 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ नदी की वेदना ☆

 

नदी हमारे गाँव

वेदना में डूबी रहती

पानी सूख गया फिर भी

आँसू से है बहती

 

इसकी आँखों में सचेत सा

था भविष्य उजला

जो बहने की प्रखर भूमिका

से था बस बहला

 

रेत पत्थरों में विनम्र हो

सदा बही है वह

और अभी भी ना जाने

कितने गम है सहती

 

सारा तन छिल गया

सूखते पानी का अपना

किन्तु उमीदों में पलता

वह ना डूबा सपना

 

नदी, नदी है अपना दुख

ढोती बहती जाती

अन्तर्मन की यह पीड़ा

खुद से भी ना कहती

 

पूछ रहा था पानी का

रिश्ता परसों सूरज

तुम्हें बहुत बहना है जब

क्यों छोड़ चुकी धीरज

 

बहना और सूख जाना

तो लक्षण  पानी के

एक यही पीड़ा क्यों

तुमको लगी यहाँ महती

 

© राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ भय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ भय

साँप का भय

बहुत है मनुष्य में,

दिखते ही बर्बरता से

कुचल दिया जाता है,

सूँघते ही मनुष्य को

भाग खड़ा होता है,

मनुष्य का भय

बहुत है साँप में..!

 

©  संजय भारद्वाज

7.7.19  रात्रि 8.18 बजे,

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #4 ☆ बरसात की एक अधूरी कहानी ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं श्रृंगारिक रचना  “बरसात की एक अधूरी कहानी”।  कुछ अधूरी कहानियां  कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी  कहते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #4 ☆ 

☆ बरसात की एक अधूरी कहानी ☆ 

 

वो ढलती हुई सांझ

वो बढ़ती हुई रात

वो मूसलाधार वर्षा

वो गंभीर हालात

वो बस-स्टैंड का शेड

वो मेरी उससे भेंट

कितनी रोचक है

याद अब तक है

 

बारिश से बचने मैंने

स्टैंड तक दौड़ लगाई

वो भी भीगते भीगते आई

स्टैंड के दो कोनों में

दोनों थे खड़े

सोच रहे थे, बारिश रूकें

तो आगे बढ़ें

अचानक बिजली कड़की

चपल तड़िता नीचे लपकी

लाईट गुल हो गई

टाउनशिप अंधेरे में खो गई

मेघों के गर्जन से

कांप उठा आसमान

डरकर मुझसे लिपट गई

वो युवती अनजान

 

उसकी गर्म सांसे

मेरी सांसों से टकराई

मेरी नस-नस में

बिजली सी दौड़ आयी

उसके भीगे-भीगे बाल

बूंदों से तर-बतर गाल

घबराई सी आंखें

होंठ संतरे की दो फांके

कसते ही जा रहा था

उसके बांहों का बंधन

मेरे रोम-रोम में

हो रहा था कंपन

जब हमारे अंधेरों से

मिले अधर

हम दुनिया से

हो गये बेखबर

सारी कायनात झूम रहीं थी

वर्षा की बूंदें

दोनों को चूम रही थी

 

कि, अचानक लाईट आयी

वो छिटककर दूर हुई, घबराई

उसकी बोझिल पलकें

कांप रही थी

सांसों की गति से

वो हांफ रही थी

 

कि, उसकी बस आई

उसने दौड़ लगाई

बस में चढ़ते-चढ़ते

वो शरमाई

मुझे देख मुस्कुराई

बिना कुछ कहे ही

कातर, तिरछी नजरों से

सब कुछ कह गई

बरसात की इस

तूफानी रात में

फिर एक कहानी

अधूरी रह गई

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

12/07/2020

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 15 ☆ गीत हूँ मैं ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना गीत हूँ मैं. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 15 ☆ 

☆ गीत हूँ मैं ☆ 

 

सावनी मनुहार हूँ मैं

फागुनी रसधार हूँ मैं

चकित चंचल चपल चितवन

पंचशर का वार हूँ मैं

विरह में हूँ, मिलन में हूँ

प्रीत हूँ मैं

 

तीर हूँ, तलवार हूँ मैं

ऊष्ण शोणित-धार हूँ मैं

हथेली पर जान लेकिन

शत्रु काँपे काल हूँ मैं

हार को दूँ हार, जय पर

जीत हूँ मैं

 

सत्य-शिव-सुंदर सृजन हूँ

परिश्रम कोशिश लगन हूँ

आन; कंकर करूँ शंकर

रहा अपराजित जतन हूँ

शुद्ध हूँ, अनिरुद्ध शाश्वत

नीत हूँ मैं

 

जनक हूँ मैं-जननि लोरी

भ्रात हूँ मैं, भगिनि भोरी

तनय-तनया लाड़ हूँ मैं

सनातन वात्सल्य डोरी

अंकुरित पल्लवित पुष्पित

रीत हूँ मैं

 

भक्त हूँ, भगवान हूँ मैं

भगवती-संतान हूँ मैं

शरण देता, शरण लेता

सगुण-निर्गुण गान हूँ मैं

कष्ट हर कल्याणकर्ता

क्रीत हूँ मैं

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 14 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 14/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 14 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

उनके हाथों में मेहंदी लगाने

का यह फायदा हुआ

कि रात भर हम उनके

चेहरे से ज़ुल्फ हम हटाते रहे..

  

 The advantage of applying mehndi 

On her hands was that I kept on

Removing the tufts of hair from 

Her face throughout the night…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 अगर इश्क़ करो तो

अदब ए  वफ़ा भी सीखो

ये चंद दिनों की बेकरारी

मोहब्बत नहीं होती..

  

  If you love someone then

Learn to practise loyalty too

A few days of restlessness

Is not construed as love…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 उनके हाथों में मेहंदी लगाने का

ये फायदा हुआ…

की रात भर उनके चेहरे से

ज़ुल्फ हम हटाते रहे…

  

 Reward of applying mehndi on her

Hands was that I was privileged 

To remove the bangs of hair from 

Her face throughout the night…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 तेरी एक झलक ही काफ़ी 

है जीने के लिए पर दिल का 

मोह ही है सारी उम्र मिल 

जाये तो भी कम है

 

Your one glimpse alone is

Just enough to live for but it’s the 

Fascination of heart that finds

It less even if it get entire lifetime

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बंधन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ बंधन

खुला आकाश,

रास्तों की आवाज़

बहता समीर

गाता कबीर,

सब कुछ मौजूद

चलने के लिए…,

पर ठिठके पैर

खुद से बैर

निढाल तन

ठहरा मन…,

हर बार सांकल,

पिंजरा या कै़द

ज़रूरी नहीं होते

बांधे रखने के लिए..

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 11.57, 5.7.2019

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 

 

 

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( हम गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के  हृदय से आभारी हैं जिन्होंने  ई- अभिव्यक्ति के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य धारा के लिए हमारे आग्रह को स्वीकारा।  अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं  आपकी कालजयी रचना  शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा.  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆

☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆

 

शासक वर्ग जहाँ  नैतिक आचरणवान नहीं होगा

जनता से नैतिकता की आषा करना है धोखा।

 

देष गर्त में दुराचरण के नित गिरता जाता है,

आषा के आगे तम नित गहरा घिरता जाता है।

 

क्या भविष्य होगा भारत का है सब ओर उदासी,

जन अषांति बन क्रांति न कूदे उष्ण रक्त की प्यासी।

 

अभी समय है पथ पर आओं भूले भटके राही,

स्वार्थ सिद्धि हित नहीं देष हित बनो सबल सहभागी।

 

नहीं चाहिए रक्त धरा को, तुम दो इसे पसीना,

सुलभ हो सके हर जन को खुद और देष हित जीना।

 

मानव की सभ्यता बढ़ी है नहीं स्वार्थ के बल पर,

आदि काल से इस अणुयुग तक श्रमरथ पर ही चलकर।

 

स्वार्थ त्याग कर जो श्रम करते वें ही कुछ पाते है,

भूमिगर्भ से हीरे, सागर से मोती लाते है।

 

त्याग राष्ट्र का स्वास्थ्य शक्ति है, स्वार्थ बड़ी बीमारी,

सदा स्वार्थ से ही उठती है भारी अड़चन सारी।

 

अगर देष को अपने है उन्नत समर्थ बनाना,

स्वार्थ, त्याग, उत्तम, चरित्र सबको होगें अपनाना।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 42 ☆ फिर उग आया हूँ ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “फिर उग आया हूँ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 42 ☆

☆ फिर उग आया हूँ ☆

 

कट गया पर उग आया हूँ,

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।

रात ही तो बीती थी कटने के बाद

मैं जिंदा हरा भरा दिल लाया हूँ ।

जड़ से उखाड़ दिया, धड़ से गिरा दिया

बाजू कटी है मेरी पर मैं खिल आया हूँ ।

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।

 

© सुजाता काळे

7/7/20

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सूत्र

समय निश्चय ही

कठिन है, मगर

पाठशाला में

गणित का पाठ

सरल कब होता है,

समझ आने भर की देर है,

गणित का सूत्र

फिर हर कसौटी पर

खरा होता है!

 

©  संजय भारद्वाज

20.7.2018

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 54 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना  के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 54 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना  के दोहे  ☆

चीन चले ही जा रहा,

कैसी कुचक्र  चाल।

जीवन में   लेगें नहीं,

कभी  चीन का माल।।

 

छल छंदों के रूप को,

देख लिया है खूब।

मंचों पर होने लगी,

उन्हें देखकर ऊब।।

 

छल छंदों ने रच लिया,

अब तो खूब प्रपंच।

उड़ा रहे खिल्ली सभी,

खेद नहीं है रंच।।

 

फूल अधर पर खिल उठे

बाकर मृदु मुस्कान।

तुझ बिन जीवन कुछ नहीं,

तू ही मेरी जान।।

 

तन मन उपवन हो रहा,

सौरभ है मन प्राण।

कली कली मन की खिली,

मिला पीर को त्राण।।

 

सूरज तेरी आस में,

देख रहे है राह।

अंधकार पसरा बहुत,

ओझल हुई पनाह।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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