हिन्दी साहित्य – कविता ☆ तसल्ली ☆ श्री रामस्वरूप दीक्षित

श्री रामस्वरूप दीक्षित

(वरिष्ठ साहित्यकार  श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश  नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे।

☆ कविता – तसल्ली ☆

मारे केवल वे ही नहीं जाएंगे

जिन्हें वे मारना चाहते हैं

मारे वे भी जाएंगे

जिन्हें वे नहीं मारना चाहते

वे भी मारे ही जाएंगे एक न एक दिन

जो मरना नहीं चाहते

मारने वाले

बिना भेदभाव

सबको मार रहे हैं

मरने वाले भी

मरते समय नहीं देखते

कि वे किनके साथ मर रहे हैं

तरह तरह के भेदभाव

और एक दूसरे के लिए घृणा से भरे

इस मनहूस समय में

कम से कम एक काम तो है

जो पूरे सद्भाव से हो रहा है

यह क्या कम है ?

 

© रामस्वरूप दीक्षित

सिद्ध बाबा कॉलोनी, टीकमगढ़ 472001  मो. 9981411097

ईमेल –[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे – वीणापाणि स्तवन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे  – वीणापाणि स्तवन। )

गुरु पूर्णिमा पर्व पर परम आदरणीय डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी को सादर चरण स्पर्श।

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  – वीणापाणि स्तवन✍

 

हंसरूढा शारदे, प्रज्ञा प्रभा निकेत ।

कालिदास का कथाक्रम, तेरा ही संकेत।।

 

शब्द ब्रह्म आराधना, सुरभित सुफलित नाद।

उसका ही सामर्थ्य है, जिसको मिले प्रसाद ।।

 

वाणी की वरदायिनी, दात्री विमल विवेक।

सुमन अश्रु अक्षर करें, दिव्योपम अभिषेक।।

 

तेरी अंतः प्रेरणा, अक्षर का अभियान ।

इंगित से होता चले, अर्थों का संधान ।।

 

कवि साधक कुछ भी नहीं, याचक अबुध अजान।

तेरा दर्शन दीप्ति से,  लोग रहे पहचान ।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

9300121702

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 8 – एक सुगढ़ बस्ती थी ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “एक सुगढ़ बस्ती थी”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #8 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ एक सुगढ़ बस्ती थी ☆

 

सुगढ़ बस्ती थी

बहुत खुशहाल खाकों में

भर गया पानी वहाँ

निचले इलाकों में

 

कई चिन्तायें लिये दुख

में खड़े शामिल सभी

लोग हैं भयभीत देखो

बढ़ गई मुश्किल अभी

 

छूटता जाता है कुछ –

कुछ समय के संग में

बेबसी में हो रहे

इन बड़े हाँकों में

 

बहुत पहले से यहाँ पर

अन्न का दाना नही था

और चिन्ता थी मदद को

किसी को आना नहीं था

 

लोग सारे इसी बस्ती

के यहाँ पर मर रहे हैं

विपति के मारे

अनिश्चित हुये फाकों में

 

बहुत कोलाहल बढ़ा है

बढ़ गई हलचल यहाँ

एक पानी है अकेला

चल रहा पैदल जहाँ

 

ठहर कर चलती रही

कोई खबर है बस यहाँ

सभी विचलित सूचना के

इन धमाकों में

 

© राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

25-06-2020

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ परिक्रमा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ परिक्रमा

 

मैंने जब कभी

छलकानी चाही

वेदना की एक बूँद,

विरोध में उसने

उँड़ेल दिया

खारा सागर..,

विवश बूँद

जा गिरी सीप में

और कालातीत हो गई,

शनैः-शनै

अनगिनत मोतियों की

एक माला बन गई,

इस माला में

छिपी है

मेरे जीवन की परिक्रमा!

 

©  संजय भारद्वाज

( कविता संग्रह, ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 14 ☆ गुरुवर ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “गुरुवर”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 14 ☆ 

☆ गुरुवर ☆

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

तुम भोर की पहली किरण के समान,

तुम अंधकार में ज्योति के समान,

तुम पुष्प में सुगंध के समान,

तुम शरीर में प्राण के समान,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

तुमने दिखाया इस भू से चाँद छूने का रास्ता,

तुम हो गगनस्पर्शी,

तुमने बताया पाताल की सुन्दर नगरी का रास्ता,

तुम त्रिकाली, तुम त्रिकालदर्शी,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

तुम अद्वितीय,  तुम अकथनीय, तुम अजातशत्रु,

तुमने दिखाया इस लोक से उस लोक तक का रस्ता, तुम परलोकी,

तुमने दिखाया विश्व को जीतने का रास्ता,

तुमने बताया आत्म संतोष का रास्ता,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

तुम युद्ध में हो कृष्ण,

तुम ज्ञान में हो वाल्मीकि,

तुम रात में सूरज की किरण,

तुम घोर अंधकार में दीपक की रौशनी,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

गुरुवर आप हमें देते हैं ज्ञान का भंडार,

दूर करते हैं हमारे अवगुणों का विकार,

देते हैं हमारे ज्ञान को नया आकार,

मिटाते हैं अज्ञान का अंधकार,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर , आपको शत् शत् प्रणाम,

मैं अकिंचन, मैं अल्पभाषी, अभिलाषी करती हूँ तुम्हारा गुणगान।

भुला नही सकते आपका ये ज्ञान,

देते रहेंगे आपको हमेशा सम्मान,

आपसे भी स्नेह मिले यदि श्रीमान,

तो करते रहेंगे ज़िन्दगी भर आपका गुणगान,

हे मार्गदर्शक, हे पथप्रदर्शक, हे गुरुवर, आपको शत् शत् प्रणाम्।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #3 ☆ वर्षा ऋतु ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण रचना  “वर्षा ऋतु ”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #3 ☆ 

☆ वर्षा ऋतु ☆ 

 

वर्षा की ऋतु आई

झुलसाती गर्मी से राहत पाई

तन-मन ने ली अंगड़ाई

हर चेहरे पर मुस्कान लायी

 

अंबर में बादलों में

हो रहीं हैं जंग

कर्णभेदी गर्जना से

शांति हो रही भंग

 

चपल तड़ित क्षण में

कर रही है दंग

वर्षा ऋतु की आहट पाकर

फड़क रहे हैं अंग

 

वसुंधरा है प्यासी प्यासी

तरूवर पर है छायी उदासी

व्याकुल है हर धरती वासी

मेघों! टपकाओ बूंदें जरासी

 

यूँ  ही कब तक तड़पाओगे

काली घटाएं कब लाओगे

बोलो! तुम कब आओगे

धरती पर पानी कब बरसाओगे

 

हे मेघों! तुमको है वंदन

तोड़के आओ सारे बंधन

लंबी-लंबी झड़ी लगाओ

टूट टूट कर पानी बरसाओं

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

26/06/2020

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 13 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 13/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 13 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

कैदी हैं सब यहाँ…

कोई ख्वाबों का..

तो कोई ख्वाहिशों का..

तो कोई ज़िम्मेदारियों का…

 

Everyone is prisoner here,

Some of their dreams,

While some of their desires…

Others of responsibilities…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

होती तो हैं ख़ताएँ

हर एक से मगर…

कुछ जानते नहीं हैं

कुछ मानते नहीं…

 

Committal of mistakes

Happens by everyone…

Some are not aware of it

While others don’t accept it…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

 

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

 

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such a way that

Made me remember the God..!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरु जग में सर्वोपरि ☆ श्रीमती ज्योति मिश्रा

श्रीमती ज्योति मिश्रा

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमती ज्योति मिश्रा जी का ई- अभिव्यक्ति  में  हार्दिक स्वागत है।  गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर आज प्रस्तुत हैं आपकी विशेष रचना   “गुरु जग में सर्वोपरि।  इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती ज्योति मिश्रा जी को हार्दिक बधाई।

☆ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरु जग में सर्वोपरि

प्रथम गुरु माता है,जग में

सर्वप्रथम जिनको पाया।

रिश्ते मिले उन्हीं से सब

ममता का एहसास कराया ।।

 

सकल विश्व दशम दिशा

होता है,  गुरु का  मान ।

राजा भी आते शरण

तज राज पद, अभिमान ।।

 

अन्तर्मन जो करे प्रकाशित

जाने सकल  जहान ।

बिना गुरु के ज्ञान के

यह तन पशु समान ।।

 

ज्ञान बुद्धि के है साधक

मानव गुण की खान ।

त्याग दया की मूर्ति

गुरु है सदा  महान ।।

 

गुरु कृपा से सब संभव

गुरु करते कल्याण ।

अरूणि सी गुरु भक्ति नहीं

जो दाव लगा दे प्राण ।।

 

परम ब्रह्म ने पृथ्वी पर

जब मानव तन पाया

ज्ञान प्राप्त किया गुरुकुल

गुरु चरणों में शीश झुकाया।।

 

गुरु के बिन भक्ति नही

गुरु  करते उत्थान  ।

गुरु जग में सर्वोपरि

गुरु बिन नही है ज्ञान ।।

 

© श्रीमती ज्योति मिश्रा

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरूदेव श्री गुरू पूर्णिमा….. ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर आज प्रस्तुत हैं आपकी विशेष रचना   “गुरूदेव श्री गुरू पूर्णिमा…..।   इस सर्वोत्कृष्ट रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरूदेव श्री गुरू पूर्णिमा…..

 

गुरु विनती रख लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

हाथ जोड़ गुरु शीश झुकाऊं

तेरे चरणों पर फूल चढ़ाऊं

मन की मुरादे ऐसी है कुछ

श्रद्धा से गीत आपका गाऊँ

 

गुरू विनती रख लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

सत्य राह पर सदा ही जाऊं

निर्मल मन से सबको निभाऊ

ईर्ष्या द्वेष मन से हटाऊं

परोपकार कर सुख अति पाऊं

 

गुरु विनती रख  लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

जब भी किसी के काम आऊं

पूरे मन से आपको ध्याऊँ

हाथ जोड़ गुरु आपको मनाऊं

पल पल रह ना मेरे पास

 

गुरु  विनती रख  लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

जन्म जन्म में तुझको पाऊं

माता पिता को शीश झुकाऊं

हरि से पहले तुझको ध्याऊं

गुरु को मना हरिहर पा जाऊं

 

गुरु  विनती रख लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

जीवन मेरा होगा उज्जवल

ज्ञान का सागर बहेगा पल पल

जीवन नैया पार लगाऊँ

श्रद्धा से मै शीश झुकाऊं

 

गुरु  विनती रख लेना पास

मुझको बनाना अपना दास

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  की एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता  ”ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए“।डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  के इस सार्थक एवं  संत कबीर जी के विभिन्न पक्षों पर विमर्श के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन।  ) 

 ☆ ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए ☆

 

चंदा ने

शीतलता दी

चाँदनी दी बिन माँगे

कि रह सकें हम शीतल

पाख भर ही सही

सता न सकें हमें चोर ,चकार

सूरज ने

खुद तपकर रोशनी दी

पहले जग उजियार किया

तब जगाया हमें

नदी ने पानी दिया

कि बुझ सके प्यास हम सबकी

समुद्र ने अपनी लहरों पर

बिठाकर घुमाया

दिखाया सारा जगत

कि खुश रहें हम सब

इन्होंने मछलियाँ भी दीं

धरती ने, पेड़ों ने दिए

कंद-मूल,असंख्य और अनंत

फल-फूल और शस्यान्न

क्या-क्या नहीं दिए

भरने के लिए हमारा पेट

ज्यों-ज्यों हम अगस्त्य हुए

ये होते गए निर्जल,बाँझ और उजाड़।

 

©  डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत, गुजरात

Please share your Post !

Shares
image_print