हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शिलालेख ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ शिलालेख 

अतीत हो रही हैं

तुम्हारी कविताएँ

बिना किसी चर्चा के,

मैं आश्वस्ति से

हँस पड़ा..,

शिलालेख,

एक दिन में तो

नहीं बना करते!

संजय भारद्वाज

# सजग रहें, सतर्क रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

[email protected]

(11 जून, 2016 संध्या 5:04 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 42 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  भावप्रवण  “ संतोष के दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 42 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

विपदा

विपदा जब हो सामने, डरिये कभी न मित्र

धीरज धरम न छोड़िए, खीचें ऐसा चित्र

 

पक्षपात

पक्षपात जब भी हुआ, बढ़ा आपसी द्वंद

अगर भलाई चाहिए, छोड़ें सब छल छंद

 

मायावी

दुनिया मायावी लगे, बहुरूपी इंसान

रहें संभलकर जगत में, बनें नहीं नादान

 

आहत

दिल को आहत कर गया, सीमा चीन विवाद

इसे जल्द सुलझाइए, करें सघन संवाद

 

विभोर

सुन वर्षा का आगमन, वन में नाचे मोर

छटा सुहानी देख कर, मन हो गया विभोर

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (33) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।

क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ।।33।।

ज्यों रवि सारे विश्व में ,करता सहज प्रकाश

त्यों ही क्षेत्री क्षेत्र में ,देता आत्म प्रकाश ।।33।।

भावार्थ :  हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।।33।।

 

Just as the one sun illumines the whole world, so also the Lord of the Field (the Supreme Self) illumines the whole Field, O Arjuna!।।33।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ त्रिलोक ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ त्रिलोक

सुर,

असुर,

भूसुर,

एक मूल शब्द,

दो उपसर्ग,

मिलकर

तीन लोक रचते हैं,

सुर दिखने की चाह

असुर होने की राह,

भूसुर में

तीन लोक बसते हैं।

 

# सजग रहें, सतर्क रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 6:24 बजे, 25.5.19)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बज़्म में ज़िक्र…. ☆ सुश्री भारती शर्मा

सुश्री भारती शर्मा

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री भारती शर्मा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी साहित्य की गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। संक्षिप्त साहित्यिक यात्रा – प्रबंध सम्पादक : ‘अभिनव प्रयास’ (त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका)।  विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ प्रकाशित। दैनिक जागरण द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता के अंतर्गत (613 प्रतिभागियों में से) लघुकथा संग्रह के प्रकाशनार्थ अलीगढ़ से चयनित ।आगरा आकाशवाणी से समय समय पर गीत, ग़ज़ल का नियमित  प्रसारण। आज प्रस्तुत है आपकी रचना “बज़्म में ज़िक्र….। “
☆ बज़्म में ज़िक्र…. ☆
सुर्ख़ आँखों में जब नमी देखी

बुझती-बुझती-सी रोशनी देखी

 

अश्क ढलके जो दो किनारों से

मैंने ख़्वाबों की खुदकुशी देखी

 

बज़्म में ज़िक्र आपका आया

फिर से ज़ख़्मों पे ताज़गी देखी

 

जाने क्यू उसने फेर ली नज़रें

कशमकश उसकी बेबसी देखी

 

बिन तेरे और क्या बताऊँ मैं

आग बरसाती चाँदनी देखी

 

देके आवाज़ छुप गये हो कहाँ

ये शरारत नयी-नयी देखी

 

सारी दुनिया में तू मिला मुझको

मैंने ख़ुद में तेरी कमी देखी

 

© भारती शर्मा

आगरा उत्तर प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 32 ☆ डोरी लगती गोली ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक सकारात्मक एवं भावप्रवण कविता  “डोरी लगती गोली.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 32 ☆

☆  डोरी लगती गोली ☆ 

 

उड़ी पतंगें देख गगन में

चिड़िया रानी  बोली।

नहीं सुहाए इनका उड़ना

डोरी लगती गोली।।

 

अनगिन साथी घायल होकर

प्राण गँवा देते हैं।

बढ़े प्रदूषण भू पर

झूठा सुख मानव लेते हैं।

 

अरे पतंगी तुम दुश्मन हो

हम जीवों के सारे।

तुम्हें एक दिन दण्ड मिलेगा

हम हैं ईश सहारे।

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 52 – तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें….☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती  भावप्रवण रचना तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 52 ☆

☆ तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें…. ☆  

 

अपना यशोगान करना

पहचान हमारी

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।

 

थोड़े से गंभीर

मुस्कुराहट महीन सी

संबोधन में भ्रातृभाव

ज्यों नीति चीन की,

हो शतरंजी चाल

स्वयं राजा, खुद प्यादे

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

हो निशंक, अद्वैत भाव

मैं – मैं, उच्चारें

दिनकर बनें स्वयं

सब, शेष पराश्रित तारे,

फूकें मंत्र, गुरुत्व

भेद, शिष्यत्व लिखा दें

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

बुद्ध, प्रबुद्ध, शुद्धता के

हम हैं पैमाने

नतमस्तक सम्मान

कई, बैठे पैतानें,

सिरहाना,सदियों का सब

भवितव्य बता दे

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

हों विचार वैविध्य,साधते

सभी विधाएं

अध्ययन, चिंतन, मनन

व्यर्थ की, ये चिंताएं,

जो मन आये लिखें और

मंचों पर बाँचें

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

सुरेश तन्मय

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

12/06/2020

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ फेरा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ फेरा ☆

अथाह अंधेरा

एकाएक प्रदीप्त उजाला

मानो हजारों

लट्टू चस गए हों,

नवजात का आना

रोना-मचलना

थपकियों से बहलना,

शनै:-शनै:

भाषा समझना,

तुतलाना

बातें मनवाना

हठी होते जाना,

उच्चारण में

आती प्रवीणता,

शब्द समझकर

उन्हें जीने की लीनता,

चरैवेति-चरैवेति…,

यात्रा का

चरम आना

आदमी का हठी

होते जाना,

येन-केन प्रकारेण

अपनी बातें मनवाना,

शब्दों पर पकड़

खोते जाना,

प्रवीण रहा जो कभी

अब उसका तुतलाना,

रोना-मचलना

किसी तरह

न बहलना,

वर्तमान भूलना

पर बचपन उगलना,

एकाएक वैसा ही

प्रदीप्त उजाला

मानो हजारों

लट्टू चस गए हों

फिर अथाह अंधेरा..,

जीवन को फेरा

यों ही नहीं

कहा गया मित्रो!

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 10:10 बजे, शनिवार, 26.5.18

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अगर अंधेरा हो….. ☆ डॉ सीमा सूरी

डॉ सीमा सूरी

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार  एवं सामाजिक कार्यकर्ता  डॉ सीमा सूरी जी  का ई-अभिव्यक्ति  में हार्दिक स्वागत हैं। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। आपने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंचों  पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है एवं आयोजनों का सफल संचालन भी किया है।  आपकी कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं  में  प्रकाशित हुई हैं । आप कई राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकारों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अगर अंधेरा हो…..। )

☆ अगर अंधेरा हो….. ☆ 

 

चराग़ जम के जलाओ,अगर अंधेरा हो

कहीं न छोड़ कर जाओ,अगर अंधेरा हो

 

कोई सितारा न हो,तो न सही

खुद ही चांद बन जगमगाओ,अगर अंधेरा हो….

 

हक़ीक़तें जब परेशान करने लगें

किस्से फिर ख्वाबो के सुनाओ,अगर अंधेरा हो….

 

जिसके आने से रौशनी जवान होती है

उसे कहीं से भी लाओ,अगर अंधेरा हो….

 

किताबें बोझ सी लगने लगे पढ़ते पढ़ते

कोई ग़ज़ल फिर गुनगुनाओ,अगर अंधेरा हो…

 

गमों ने घेर लिया हो जब कभी कस कर

तो फिर खुल के मुस्कुराओ,अगर अंधेरा हो…

 

भूख जब ज़ोर से लगी हो कभी

तो फिर बाँट कर खाओ,अगर अंधेरा हो…

 

कभी जब धूप में करके काम जी जो घबराए

किसी को पानी पिलाओ,अगर अंधेरा हो…

 

तमाम रास्ते अपने आप मिलते जाएंगे

कदमों के निशां पे पैर रखते जाओ ,,अगर अंधेरा हो

 

अंधेरा कभी अंधेरे से हारता नही

दीप तुम मिल के जलाओ,अगर अंधेरा हो

 

©  डॉ सीमा सूरी

प्लाट नम्बर 70 ,प्रताप नगर जेल रोड ,नई दिल्ली 11 00 64

दूरभाष :84477 41053, 9958331143

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कलियुग ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान  प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण  कविता कलियुग।  इस बेबाक कविता के लिए डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी की लेखनी को सादर नमन।)  

☆ कविता – कलियुग ☆ 

 

है घोर कलियुग

द्वापर युग, त्रेतायुग

अब तो प्रलय होगा

संभवतः

न बचेगा कोई भी

फिर भी बना है

आदमी-आदमी का शत्रु

भाई-भाई बहा रहा रक्त

अमीरी गरीबी का फासला

आदमी बना खूंखार जानवर

पी रहा लहू इंसान का

गरीब पी रहा खून के आंसू

इंसान बना मात्र असुर

अस्त-व्यस्त मानव

अशान्त समाज

उत्तुंग शिखिर पर

पक्षियों का कलरव

लहरों की ध्वनि

हरे-भरे खेत

निर्मल वातावरण

अद्‍भुत कुसुमकुंज

शीतल चांदनी का अहसास

सबसे दूर क्षितिज पर

खडा मानव तिमिर में

चांद की चांदनी ने

फैलाया एक विश्वास

सूरज की पहली किरण

तर्पण देता व्यक्ति

एक उम्मीद की किरण

जगाई है इंसान ने

आज भी एक रोशनी

कलियुग में जगा सकता

कलियुग नहीं भयंकर

कहता रुंध स्वर में इंसान।

 

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

लेखिका, सहप्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्‌, वासवी मंदिर रास्ता, बेंगलूरु।

Please share your Post !

Shares
image_print