हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-13 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ-13 ☆

 

चुपचाप उतरता रहा

दुनिया का चुप

मेरे भीतर..,

मेरी कलम चुपचाप

चुप्पी लिखती रही।

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 9:26 बजे, 2.9.18)

( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* से।)

 ☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 40 ☆ वो चीखें ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ वो चीखें  ”।  यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है  से उद्धृत है। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 40 ☆

☆ वो चीखें  ☆

सुनो,

औरतों की यह गूँजती चीखें

मुझसे बर्दाश्त नहीं होतीं-

भेद जाती हैं मेरे कानों को,

टुकड़े कर देती हैं मेरे ज़हन के

और मुझे हिला जाती हैं!

 

मेरे देश में

जहां देवियाँ पूजी जाती हैं,

वहीँ आजन्म कन्याओं को

कोख में ही मार दिया जाता है;

जब दम तोड़ते हुए

वो लडकियां चीखती हैं ना-

मेरे दिल का एक कोना

सुन्न हो जाता है!

 

आज भी मेरे देश में

दहेज़ के नाम पर

एक बेचारा पिता

सब कुछ गिरवी रख देता है,

अपना घर, अपना खेत, अपनी इज्ज़त;

पर फिर भी जलाई जाती हैं

उनकी बेटियाँ…

जब कोई बेटी इस तरह

अपने प्राण त्यागते वक़्त चीखती है ना-

तड़प उठता है मेरा मन!

 

अभी कुछ दिन पहले

बड़ा हल्ला मचा था

जब दामिनी का बलात्कार कर

उसे निर्दयता से मार दिया गया था-

कहाँ बंद हुई है अभी भी

वो निष्ठुरता?

अब भी लडकियां और औरतें

हैवानियत का शिकार बनती ही रहती हैं

और जब वो चीखती हैं न-

एक खामोशी मेरे ज़हन को घेर लेती है!

 

सुनो,

इन औरतों से कह दो ना

वो चुप रहा करें-

न बोला करें कुछ भी,

सब कुछ सह लिया करें

और चीखा तो बिलकुल न करें…

मेरा दम घुटता है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गिरा जो कल वो ख़ून था…. ☆ श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

(श्री मनीष खरे “शायर अवधी”जी का परिचय उनके ही शब्दों में – “मैंने 300 से अधिक शायरी, गजल, कविताएं लिखीं किन्तु, कभी इस तरह से प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की। इस लॉकडाउन में मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी इस सोच नुमा चौकोर कमरे से बाहर आना चाहिए और अपनी “अभिव्यक्ति” को अपनी डायरी से बाहर डिजिटल मीडिया में ले जाना चाहिए। मैं ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संस्थान में मानव संसाधन टीम का सदस्य हूँ। अपने समग्र कैरियर के दौरान  मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ, जिन्होंने मेरे मस्तिष्क में विभिन्न  संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है और उनके साथ उनकी भावनाओं को जिया है। मेरी सभी रचनाएँ उन सभी को समर्पित हैं जिन्होंने अब तक मेरे जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श किया है।”  आज प्रस्तुत है आपकी द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले परिवारों की संवेदनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित एक  भावप्रवण रचना  गिरा जो कल वो ख़ून था….।)

☆ कविता  – गिरा जो कल वो ख़ून था….

 

गिरा जो कल वो ख़ून था

मरा जो था वो जुनून था

कुछ ठहाके लग गए बस

पर मिला नहीं जो वो सुकून था

 

रात थी जो ढल गयी पर आंधियाँ थमी नहीं

सूखे थे सैलाब आँसुओं के पर गयी नमी नही

आह थी सुलग रही और बाजू थे उलझ रहे

जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था

 

गिरा जो कल वो ख़ून था….

मरा जो था वो जुनून था….

 

कट गये हज़ारों ख़्वाहिशों की शान पे

लुट गयीं थीं मांगें बस बेसुरी सी तान पे

याद जो रह गयी और बात सब ये कह गयी

जो टूटे थे वो रिश्ते थे वो वक़्त का क़ानून था

अंगार थे बरक़रार थे और बस्तियां उजड़ रही

जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था

 

गिरा जो कल वो खून था…

मरा जो था वो जुनून था….

 

© श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 50 – कविता – जन्म जन्म की प्रीत निभाने…….☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम कविता  “जन्म जन्म की प्रीत निभाने……..।  भारत में वैवाहिक बंधन की रस्में अविस्मरणीय तो होती ही हैं साथ ही एक एक पल  भी अविस्मरणीय होता है जिसके एक अंश को श्रीमती सिद्धेश्वरी जी  ने  इस शब्दचित्र के माध्यम से बखूबी लिपिबद्ध किया है।  इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 49 ☆

☆ कविता  – जन्म जन्म की प्रीत निभाने ……..

 

पांव की सुंदरता देख

लग गई दिल पर हाजिरी

लाल लाल मेहंदी सजी

पहने राजस्थानी मोजरी

 

नूपुर की सुंदरता धामे

झूलन मोतियों की लगी

पांवों की सुंदरता सोच

मुख देखन की आस लगी

 

थम थम  जब चलेगी गोरी

खन खन खनकेगा कंगना

सुर ताल छेड़ती नूपुर भी

जाएगी पिया के अंगना

 

सिर सिंदूरी लाल लगाई

हाथों लाली लाली सजाई

घूंघट की ओर से दिखे

सुर्ख लाल होठों की लाली

 

देख लाल जोडे पर दुल्हन

साजन भी लजाए लाल

जनम जनम साथ निभाने

मांथे  तिलक लगाए लाल

 

प्रकृति की सुंदर रचना

मेंहदी ने दिखाया अपना रंग

जन्म जन्म की प्रीत निभाने

सात फेरे लिए दोनों संग संग

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 5 – सुखी रहें सब … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “सुखी रहें सब …”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #5 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ सुखी रहें सब …. ☆

 

मुँह बिचकाती लगी गाँव की

तिरस्कृता पछुआ

यहाँ गुजरते हुये शहर ने

जब जब उसे छुआ

 

सड़क उधर की बेशक

आकर सत्‍वर यहाँ मिली

शीलवती, संयमी दिखी है

ग्राम्या गली गली

 

चौपालों का दर्द अनसुना

कर चौराहे भी

जगमग करते रहे सम्हाले

सब अपना बटुआ

 

स्वीमिंग पूल नहाये तन को

जब छू गई नदी

लगा वर्ष के हिस्से आयी

पूरी एक सदी

 

यहाँ कीमियागर सपनों का

स्वयं खोजने को

मॉलों बाजारों से हटकर

सुन्दर लगा सुआ

 

कुंठा, घुटन, तनाव, प्रदूषण,

कचरा नहीं मिला

गाँव, प्राकृतिक कुशल प्रबंधन

का मजबूत किला

 

औद्योगिको तनिक तो मानवता

की खातिर तुम

”सुखी रहें सब” हाथ उठा कर

ऐसी करो दुआ

 

© राघवेन्द्र तिवारी

21-04-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ज्योतिर्गमय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ ज्योतिर्गमय☆

 

अथाह, असीम

अथक अंधेरा,

द्वादशपक्षीय

रात का डेरा,

ध्रुवीय बिंदु

सच को जानते हैं

चाँद को रात का

पहरेदार मानते हैं,

बात को समझा करो

पहरेदार से डरा करो,

पर इस पहरेदार की

टकटकी ही तो

मेरे पास है,

चाँद है सो

सूरज के लौटने

की आस है,

अवधि थोड़ी हो

अवधि अधिक हो,

सूरज की राह देखते

बीत जाती है रात,

अंधेरे के गर्भ में

प्रकाश को पंख फूटते हैं,

तमस के पैरोकार,

सुनो, रात काटना

इसे ही तो कहते हैं..!

( ध्रुवीय बिंदु पर रात और दिन लगभग छह-छह माह के होते हैं।)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(रात्रि 3:31 बजे, 6.6.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ स्व सुशांत स्मृति सन्दर्भ  – कुछ तो किया करो ☆ श्री दिवयांशु शेखर

श्री दिव्यांशु शेखर 

(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास  “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है  स्व सुशांत सिंह राजपूत जी की स्मृति में लिखी गई भावप्रवण कविता “ स्व सुशांत स्मृति सन्दर्भ  – कुछ तो किया करो ”। युवा पीढ़ी के चर्चित चेहरे ने कल अंतिम सांस ली । कारण कुछ भी रहा हो किन्तु , अंतिम निर्णय कदापि सकारात्मक नहीं था। जब जीवन में इतना संघर्ष किया तो जीवन से संघर्ष में क्यों हार गए ? विनम्र श्रद्धांजलि !)

☆ स्व सुशांत स्मृति सन्दर्भ  – कुछ तो किया करो से 

कुछ सुन लिया करो, कुछ बोल लिया करो,

कभी दिल के बंद फाटक को खोल लिया करो,

 

लोग क्या सोचेंगें इस बेकार सी सोच में,

अपनी अनमोल ज़िन्दगी को यूँ ही ना तोल लिया करो।

 

अलग दिखने और दिखाने कि चाहत में,

ज़िन्दगी में बेवज़ह ज़हर ना घोल लिया करो,

 

तुम्हारे ना होने से कुछ रुकेगा नहीं, लेकिन तुम्हारी जगह कोई ले भी नहीं सकता,

बहुत ख़ास है तुम्हारी ज़िन्दगी कुछ ख़ास लोगों के लिये, अतः खुद से दुश्मनी ना मोल लिया करो।

 

तुम जो ये पढ़ रहे हो ना, हाँ! तुम ही, ख्याल रखना और विश्वासपात्र बनना,

अपना अगर कोई दुःख में हो, तो ना आमंत्रण का इंतज़ार और ना ही मखौल किया करो,

 

जब सुनाने आये कोई राज़ दिल का, तो दिल से सुनना और प्रयास करना,

कुछ दर्द है उसके मुस्कान में, कभी उसके ना बोलने पर भी उसे टटोल लिया करो।

 

©  दिव्यांशु  शेखर

कोलकाता

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 12 ☆ मुस्कुराना ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “मुस्कुराना”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 12 ☆ 

☆ मुस्कुराना  ☆

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

ना सोचना किसने दिल दुखाया, सबको माफ कर देना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

हर बाग में फूल और कांटे भी हैं, फूल चुन लेना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

रास्ते आड़े तिरछे और सीधे भी हैं, सीधे चुन लेना।

 

प्यार  में  तकरार में, प्यार को चुन लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

दोस्त अच्छे और बुरे भी हैं, हर सफर में अच्छे चुन लेना।

 

जब कालिमा और रोशनी राह में मिल जाएगी, रोशनी चुन लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

मैं रूठूँ, बात पे अड़ जाऊँ, तुम मना लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

मैं चुप हूँ और गम में डूब जाऊँ, तुम चुप्पी तोड़ देना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

बात छोटी हो और दिल पे लगा जाऊँ, तुम हाथ बढ़ा लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

जब दरार खाई बन जाये, तो तुम खाई भर देना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

ज़िंदगी यूँ ही कट जाएगी, जब मूँद लू आँखें तो यादों में समेत लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 10 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 10/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 10 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

दिल ना चाहे फिर भी यारो 

मिलते जुलते रहा करो…

करो शिकायत गुस्से में ही

कुछ ना कुछ तो कहा करो…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Heart may not desire still 

Friends keep on meeting

Complain even in anger only

But at least say something…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 खामोशियां बोल देती है

ज़िनकी बातें नहीं होती..

दोस्ती उनकी भी क़ायम है

ज़िनकी मुलाक़ातें नहीं होती…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Silence converses with them 

who don’t talk to each other…

Friendship flourishes of those too,  

Who don’t even get to meet…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 बेदाग़ रख महफूज़ रख

मैली न कर तू ज़िन्दगी…

मिलती नहीं इँसान को…

किरदार की चादर नईं…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Keep it spotless, keep it secure

Your life don’t you ever stain

For man does not receive again

A fresh mask for his character

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या कहना उनका जो हवाओं में 

सलीक़े से  ख़ुशबू घोल देते हैं 

फ़िज़ाएँ मुश्कबार हो जाती हैं   

फ़क़त जिनके खयाल से…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 12 ☆ मुहावरेदार दोहे☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके मुहावरेदार दोहे. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 12 ☆ 

☆ मुहावरेदार दोहे☆ 

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पाँव जमकर बढ़ ‘सलिल’, तभी रहेगी खैर

पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर

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बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव

बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव

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पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग

पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग

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पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव

सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव

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जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर

धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर

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सम्हल न पैरों-तले से, खिसके ‘सलिल’ जमीन

तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन

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टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम

टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम

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टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग

एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग

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बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल

लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल

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चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?

पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर

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धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान

चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?

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©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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