हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 18 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  मुक्तिका )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 18 ☆ 

☆ मुक्तिका  ☆ 

 

सलिल बूँद मिल स्वाति से, बन जाती अनमोल

तृषा पपीहे की बुझे, जब टेरे बिन मोल

 

मन मुकुलित ममतामयी!, हो दो यह वरदान

सलिल न पंकिल हो तनिक, बहे मधुरता घोल

 

मनुज छोर की खोज में, भटक रहा दिन-रैन

कौन बताये है नहीं, छोर जगत है गोल

 

रहे शिष्य की छाँह से, शिक्षक हरदम दूर

गुरु कह गुरुघंटाल बन, परखें स्वारथ तोल

 

झूम बजाएँ नाचिए, किंतु न दीजै फाड़

अटल सत्य हर ढोल में, रही हमेशा पोल

 

सगा न कोई किसी का, सब मतलब के मीत

सरस सत्य हँस कह सलिल, अप्रिय सत्य मत बोल

 

अगर मधुरता अत्यधिक, तब रह सजग-सतर्क

छिप अमृत की आड़ में, गरल न करे किलोल

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शिक्षक दिवस विशेष – प्रणाम गुरू जी ! ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा शिक्षक दिवस पर रचित कविता प्रणाम गुरू जी ! )

☆ शिक्षक दिवस विशेष  – प्रणाम गुरू जी ! ☆

 

साक्षरता सरगम जीवन की

अ आ इ ई ज्ञान कराया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

धन ऋण गुणा भाग जीवन के

भले बुरे का भान कराया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

शिक्षा बिन पशुवत् है जीवन,

दे शिक्षा इंसान बनाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

भाषा, दृष्टि, नई, सृष्टि की

गणित और विज्ञान सिखाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

क्षण भंगुर नश्वर है जीवन

जीवन का इतिहास बनाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

जीवन में भटकाव बहुत है,

अंधकार में मार्ग दिखाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

अंतिम सत्य मुक्ति जीवन की,

धर्म और आध्यात्म पढ़ाया, तुमने

तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆ शिक्षक दिवस विशेष – विद्या की महत्ता ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( शिक्षक दिवस के विशेष अवसर पर प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  का आशीर्वचन विद्या की महत्ता। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 6 ☆

☆ शिक्षक दिवस विशेष – विद्या की महत्ता ☆

विद्या बिन मांगे दिया करती है वरदान

पढे लिखो का हर जगह होता है सम्मान

 

बुद्धि को देती धार नई समझ को चमक निखार

विद्या पा ही व्यक्ति बन पाता है गुणवान

 

मिट जाता अज्ञान सब हट जाता अंधियार

शिक्षा पा ही व्यक्ति हर कहलाता विद्वान

 

सोच समझ के क्षेत्र में आता बडा सुधार

सही गलत की परख की मिल जाती पहचान

 

खुद पर बढता भरोसा  सध सकते सब काम

शिक्षित जन की जिंदगी हो जाती आसान

 

शुभ शिक्षा जहॉ मिले उसका लीजै लाभ

विद्या अमृत बिंदु है नित करती कल्याण

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शिक्षक दिवस विशेष – गुरु बिन ज्ञान नहीं ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर.  प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है।  आज प्रस्तुत है शिक्षक दिवस पर उनकी विशेष कविता  – गुरु बिन ज्ञान नहीं )

?  शिक्षक दिवस विशेष – गुरु बिन ज्ञान नहीं ?

 

गुरु बिन ज्ञान नहीं जीवन में कोई

उस बिन मिलता सम्मान नहीं कहीं

ज्ञान का उस जैसा भंडार नहीं कोई

उस जैसी पदवी का नहीं विकल्प कहीं

उस जैसे दानी का उदारण नहीं कोई

सभी शिष्यों को परिपूर्ण करने की इच्छा रखता है वही

सभी है समान नज़रों में दिखाता नहीं भेदभाव कोई

कमजोर शिष्यों को भी लगाता हैं पार वही

दुखों से हार कर बैठ न जाओ कहीं

संघर्ष पूर्ण जीना सिखाता है वही

शिष्य जब कर जाता है नाम कोई

सबसे अधिक हर्षाता है गुरु वो ही

गुरु भी चाहता है ले ले ज्ञान पूर्णतया कोई

मिल जाए शिष्य एकलव्य सा जो कहीं

ज्ञान ऐसा सिखाना चाहते हैं वही

जो पग- पग पर काम आ जाए सही

गुरु की महिमा है अपार जो समझ ले कोई

बिन लालच के अपना भंडार लुटा देता है वही

उस गुरु का सम्मान करना चाहते हैं यहीं

जो पथ पदर्शन करवाता है सही

कोटि-२ प्रणाम करता हूँ तुमको जहाँ हो वहीं

स्वीकार लेना जो मैं हूँ तुम्हारा शिष्य सही

गुरु बिन ज्ञान नहीं जीवन में कोई

उस बिन मिलता सम्मान नहीं कहीं

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 59 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 59 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

कलम

कलम आज जो लिख रही,

जीवन का संग्राम।

दर्ज हुआ इतिहास में,

रणवीरों के नाम।।

 

यामा

यामा के संघर्ष को,

मिला अंततः न्याय।

चाहत ने अभिनव लिखा,

जीवन का अध्याय।।

 

आमंत्रण

आमंत्रण अनुराग का,

करते हैं स्वीकार।

हल्दी, कुमकुम में रचा,

बसा तुम्हारा प्यार।।

 

अनुराग

प्रियतम के प्रति चित्त में,

यह कैसा अनुराग।

प्रति दिन छल करता रहा,

किया नहीं पर त्याग।।

 

नलिनी

नलिनी जब खिलने लगी,

हर्षित हुए तड़ाग।

कल-कल कल झरना बहे,

मधुरिम गाता राग।।

 

अनुराग

कभी प्रेम की बांसुरी,

कभी सुरों का राग।

कभी पिया की रागिनी,

जीने का अनुराग ।।

 

तर्पण

है आमंत्रण काग को,

जगे काग के भाग।

पितरों को तर्पण करें,

बुला मुँडेर काग।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विजय सूर्य मुस्कायेगा! ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेंद्र नारायण

( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं  देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की ओजस्वी कविताविजय सूर्य मुस्कायेगा! )

☆ विजय सूर्य मुस्कायेगा!  

कट जायेगा

यह कठिन समय कट जायेगा

कुहरे से निकलेगा सूरज

स्वर्णकिरण बिखरायेगा!

 

कट जायेगा

पुरुषार्थ की भट्ठी में तप कर

सारा तलछट कट जायेगा

कुंदन ही दमकता आयेगा!

 

कट जायेगा

संघर्ष,जूझने  की शक्ति से

चक्रवयूह कट जायेगा

शत्रु भी मुंहकी खायेगा

 

कट जायेगा

श्रद्धा भक्ति की महिमा से

मन का भी कलुष कट जायेगा

नर और निखर कर आयेगा!

 

कट जायेगा

जो लोग समझते हैं कायर

उनका भ्रम भी कट जायेगा

आक्रमणकारी पछतायेगा

 

कट जायेगा

संघर्ष एकता  शक्ति से

हर कुटिल जाल कट जायेगा

विजय सूर्य मुस्कायेगा!

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

२९ अगस्त २०२०

जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 50 ☆ एक बुन्देली रचना ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “एक बुन्देली रचना। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 50☆

☆ एक बुन्देली रचना ☆

 

आपहुं आप मुंह फुला ऱए काय के लाने

बिन बुलाए ही घर खों आ ऱए काय के लाने

 

कभहुँ बात समझ कछु आतई नइयां

जबरन हम खों चाटे जा ऱए काय के लाने

 

नेता के संग बहुतई घूम घूम खें

उसई सब खों धमका ऱए काय के लाने

 

कहवे खों तो झट बुरो मान रए दद्दा

मास्क मुँह में नहीं लगा रए काय के लाने

 

कोरोना में लूट मची अस्पतालन की

लाखों खों खर्चा बता रए काय के लाने

 

कोरोना की आड़ में जबरन डर फैला खें

जइ बहाने खूब कमा रए काय के लाने

 

ढ़ीली कर दी सरकारों ने लगाम अब तो

जन-जन खों “संतोष” भी नइयां काय के लाने

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सदानीरा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

पुनर्पाठ-

☆ संजय दृष्टि  ☆ सदानीरा ☆

देख रहा हूँ

गैजेट्स के स्क्रिन पर गड़ी

‘ड्राई आई सिंड्रोम’

से ग्रसित पुतलियाँ,

आँख का पानी उतरना

जीवन में उतर आया है,

अब कोई मृत्यु

उतना विचलित नहीं करती,

काम पर आते-जाते

अंत्येष्टि-बैठक

में सम्मिलित होना

एक और काम भर रह गया है,

पास-पड़ोस

नगर-ग्राम

सड़क-फुटपाथ पर

घटती घटनाएँ

केवल उत्सुकता जगाती हैं

जुगाली का

सामान भर जुटाती हैं,

आर्द्रता के अभाव में

दरक गई है

रिश्तों की माटी,

आत्ममोह और

अपने इर्द-गिर्द

अपने ही घेरे में

बंदी हो गया है आदमी,

कैसी विडंबना है मित्रो!

घनघोर सूखे का

समय है मित्रो!

नमी के लुप्त होने के

कारणों की

मीमांसा-विश्लेषण

आरोप-प्रत्यारोप

सिद्धांत-नारेबाजी

सब होते रहेंगे

पर एक सत्य याद रहे-

पाषाण युग हो

या जेट एज

ईसा पूर्व हो

या अधुनातन,

आदमियत संवेदना की

मांग रखती है,

अनपढ़ हों

या ‘टेकसेवी’

आँखें सदानीरा ही

अच्छी लगती हैं।

 

©  संजय भारद्वाज 

( 8.2.18, प्रात: 9:47 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 60 – अखबारों में छपी खबर है….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’


(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  आपकी एक कालजयी रचना अखबारों में छपी खबर है…..…. । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 60 ☆

☆ अखबारों में छपी खबर है….. ☆  

 

पढ़ने में आया है कि अब

नहीं किसी को कोई डर है

अखबारों में छपी खबर है।

 

भूखे कोई नहीं रहेंगे

खुशियों से दामन भर देंगे

करते रहो नमन हमको तुम

सारी विपदाएं हर लेंगे,

डोंडी पीट रहा है हाकिम

नगर – नगर है।

अखबारों में छपी खबर है।

 

पारदर्शी मौसम विज्ञानी

किस बादल में कितना पानी

अलादीन चालीस चोरों की

लोकतंत्र से जुड़ी कहानी,

घात लगाए राहों में

निर्मम अजगर है।

अखबारों में छपी खबर है।

 

बांध बनाए बिजली आई

खेतों में हो रही सिंचाई

खुश हैं साहूकार मन ही मन

जमकर होगी माल उगाही,

चिंता से कृषकों की अवगत

विकल नहर है।

अखबारों में छपी खबर है।

 

पूर्ण सुरक्षित कोमल कलियाँ

चौकस गाँव शहर घर गलियां

उदघोषित से शोर-शराबे

वन,उपवन में बैठे छलिया,

चौराहे बाजार भीड़ में

पग-पग डर है।

अखबारों में छपी खबर है।

 

इनमें-उनमें बैर नहीं है

मुख पृष्ठों पर लिखा यही है

इश्तहार कुछ और दिखाएं

पर सच जो वह छुपा नहीं है,

मौन जिन्हें रहना है वे ही

आज  मुखर हैं

अखबारों में छपी खबर है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सृजन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सृजन  ☆

क्या है तुम्हारे

लेखन का कारण

और कहन का कारक?

किसका है प्रभाव,

और कौन है प्रेरक?

जो लिखता-कहता हूँ

तुम घोषित कर देते हो सृजन,

मेरे लेखन का

कारण तुम हो, कारक तुम हो,

प्रेरणा और प्रेरक भी तुम हो,

तुम हो तो सृजन है

अन्यथा सब विसर्जन है!

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 8:56 बजे, 31.8.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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