हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२९॥ ☆

 

वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणायाः

संसर्पन्त्याः स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभः

निर्विन्ध्यायाः पथि भव रसाभ्यन्तरः संनिपत्य

स्त्रीणाम आद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रियेषु॥१.२९॥

विहग मेखला उर्मिताड़ित क्वणित नाभि

आवर्त लख मंदगति गामिनी के

हो एक रस , निर्विन्ध्या नदी मार्ग

में याद रख भावक्रम कामिनी के

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 26 ☆ हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 26 ☆

☆ हिंसा से कभी न होती कोई समस्या दूर ☆

 

मन में कुछ है, मुंह में कुछ है, कैसे बात  बने ?

समय गुजरता जा रहा है और नाहक तने तने ।

 

हल न समस्या का निकला कोई आपस में लड़ते

नये नए मुद्दे और उलझते जाते दिन बढते

 

भिन्न बहाने करते प्रस्तुत, मन में है दुर्भाव

कई कारणों से बढता आया द्वेष दुराव ।

 

हिंसा  से कब मिला कभी भी कोई सार्थक हल

और समस्या बढती जाती नई-नई प्रतिपल

 

हल पाने होती जब भी है मन में में सच्ची चाह

आपस में सद्भाव समन्वय से मिल जाती राह

 

मन में मैल जहाँ भी होता, होती ही नित भूल

सोच अगर सीधी सच्ची हो तो खिलते हैं नित फूल

 

हिंसा से हुई कभी न होती कोई समस्या दूर

जहां अहिंसक भाव है मन में वहीं शान्ति भरपूर

 

मन को स्वतः  टटोलो अपना और करो वह बात

देश के निर्दोषी लोगों को हो न  कोई व्याघात

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पराक्रम दिवस विशेष – आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही ☆ श्री आर के रस्तोगी

श्री आर के रस्तोगी

Subhas Chandra Bose NRB.jpg

☆ पराक्रम दिवस विशेष – आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही ☆ श्री आर के रस्तोगी☆ 

तुम मुझको दो खून अपना ,

मै तुमको दे दूंगा आजादी |

यही सुनकर देश वासियों ने,

अपनी जान की बाजी लगा दी ||

 

यही सुभाष का नारा था ,

जिसने धूम मच दी थी |

इसी विश्वास के कारण ही

आजाद हिन्द फ़ौज बना दी थी ||

 

याद करो 23 जनवरी 1897 को

जब सुभाष कटक में जन्मे थे |

स्वर इन्कलाब के नारों से वे ,

भारत के जन जन में जन्मे थे ||

 

वे अमर अभी तक विश्व में,

जिन को मृत्यु ने पाला था |

आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाही थे ,

सच्चा हिन्दुस्तानी वाला था ||

 

कहना उनका था वे आगे आये ,

जिसमे स्वदेश का खून बहता हो |

वही आगे आये जो अपने को ,

भारतवासी कहने का हक रखता हो ||

 

वह आगे आये जो इस पर ,

अपने खून से हस्ताक्षर करता हो |

मै कफ़न बढाता हूँ वह आये आगे,

जो इसको हंसकर आगे लेता हो ||

 

फिर उस रक्त की स्याही में ,

वे अपनी कलम डुबाते थे |

आजादी के इस परवाने पर ,

अपने हस्ताक्षर करते जाते थे ||

 

© श्री आर के रस्तोगी

गुरुग्राम

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२८॥ ☆

 

वक्रः पन्था यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराशां

सौधोत्सङ्गप्रणयविमुखो मा स्म भूर उज्जयिन्याः

विद्युद्दामस्फुरितचक्रितैस तत्र पौराङ्गनानां

लोलापाङ्गैर यदि न रमसे लोचनैर वञ्चितो ऽसि॥१.२८॥

यदपि वक्र पथ , हे पथिक उत्तरा के

न उज्जैन उत्संग तुम भूल जाना

विद्युत चकित चारु चंचल सुनयना

मिल रमणियों से मिलन लाभ पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बंधन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ बंधन ☆

खुला आकाश

रास्तों की आवाज़,

बहता समीर

गाता कबीर,

सब कुछ मौजूद है

चलने के लिए…,

ठिठके पैर

खुद से बैर,

निढाल तन

ठहरा मन…,

हर बार साँकल

पिंजरा या क़ैद,

ज़रूरी नहीं होते

बाँधे रखने के लिए..!

 

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 11.57 बजे, 5.7. 2015)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 78 ☆ कविता – स्वराज्य ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “ स्वराज्य। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 78 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता –  स्वराज्य ☆

स्वराज्य हमारा नारा है

वतन जान से प्यारा है

झंडा ऊंचा सदा रहे

पावन नदियां की जलधार बहे

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है

स्वराज्य हमारा  है स्वाभिमान

तिरंगा हमारी आन बान और  है शान

देश बचाते शहीद हमारे

सीने पर गोली वह खाते

जान गंवाते माँ के दुलारे

तिरंगे का बढ़ाते हैं मान

हमारा गणतंत्र है महान

वतन जान से प्यारा है.

स्वराज्य हमारा नारा है

शहीदों पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते

भारत माँको शीश नवाते

उन वीरों को है शत शत नमन

रोशन हुए वे बने चमन

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है

जीते हैं हर वर्ष ऐतिहासिक पल

दिखाते हैं सैन्य दल अपना बल

आओ तिरंगे को लहराए

अपना गणतंत्र हम मनाएं

खुशी से झूमे नाचे गाए

वतन जान से प्यारा है

स्वराज्य हमारा नारा है।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 68 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 68 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

 

चाहत दौलत की बढ़ी, चाहें ऊँचा नाम

सदाचार दुबका खड़ा, होते खोटे काम

 

रखें सोच संकीर्ण जो, उनके बिगड़ें काम

सात्विक सच्ची सोच से, होता ऊँचा नाम

 

जीवन सूना सा लगे, अगर न हो पुरुषार्थ

सच्चा मानव वही है, जो करते परमार्थ

 

बढ़ते पूंजीवाद से, शोषण के नव काम

मेहनत कश को न मिलें, श्रम के सच्चे दाम

 

सभा, रैलियां, पोस्टर, लो आ गए चुनाव

घर-घर नेता पहुँचते, दिखा रहे सब दांव

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२७॥ ☆

 

विश्रान्तः सन व्रज वननदीतीरजानां निषिञ्चन्न

उद्यानानां नवजलकणैर यूथिकाजाल्कानि

गण्डस्वेदापनयनरुजाक्लान्तकर्णोत्पलानां

चायादानात क्षणपरिचितः पुष्पलावीमुखानाम॥१.२७॥

वन नद पुलिन पर उगे यू्थिकोद्यान

को मित्र विश्रांत हो सींच जाना

दे छांह कुम्हले कमल कर्ण फूली

मलिन मालिनों को मिलन के बहाना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ थोड़ी लिखी, जानना अधिक! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ थोड़ी लिखी, जानना अधिक! ☆

अहं ब्रह्मास्मि।

…सुनकर अच्छा लगता है न!…मैं ब्रह्म हूँ।….ब्रह्म मुझमें ही अंतर्भूत है।

ब्रह्म सब देखता है, ब्रह्म सब जानता है।

अपने आचरण को देख रहे हो न!

अपने आचरण को जान रहे हो न!

बस इतना ही कहना था।

 

# निठल्ला चिंतन।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #89 ☆ कविता – सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  विचारणीय कविता  ‘सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 89 ☆

☆ कविता – सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर ☆

 

बेटी देखो !

वह जो प्रकाशमान तारे की तरह

मंथर गति से पूर्व से पश्चिम की ओर

पृथ्वी का चक्कर लगाता प्रकाश पुंज है

वह कृत्रिम उपग्रह है

इसमें सवार है हमारी सुनीता विलियम्स

जो प्रतिनिधित्व कर रही है विश्व की बेटियों का

ब्रम्हाण्ड में

 

विश्व के कैनवास को विस्तार देकर

अंतरिक्ष में रच दी है ऐतिहासिक रांगोली

सुनीता ने

 

सुनीता

समन्वित शक्ति है सरस्वती और दुर्गा की

 

सुनीता पंड्या से

सुनीता विलियम्स बनकर

तोड डाले थे उसने संकीर्णता के कठमुल्ले दायरे

और वैश्विक सोच की लिखी थी इबारत

 

सुनीता

बे आवाज तमाचा है उनके गालो का

जो सुनिताओं को घूंघट में कैद रखना चाहते है

 

स्त्री विमर्श के जीते जागते

धारावाहिक उपन्यास है

कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स

जो इंद्रधनुष से आगे

ब्रम्हाण्ड में लिखे जा रहे है

साहस की स्याही से।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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