हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आधिपत्य ☆ डॉ मौसमी परिहार

डॉ मौसमी परिहार

(संस्कारधानी जबलपुर में  जन्मी  डॉ मौसमी जी ने “डॉ हरिवंशराय बच्चन की काव्य भाषा का अध्ययन” विषय पर  पी एच डी अर्जित। आपकी रचनाओं का प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारण। आकाशवाणी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘युगवाणी’ तथा दूरदर्शन के ‘कृषि दर्शन’ का संचालन। रंगकर्म में विशेष रुचि के चलते सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ पटकथा लेखक और निर्देशक अशोक मिश्रा के निर्देशन में मंचित नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत। कई सम्मानों से सम्मानित, जिनमें प्रमुख हैं वुमन आवाज सम्मानअटल सागर सम्मानमहादेवी सम्मान हैं।  हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को ई- अभिव्यक्ति में साझा करने की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर विचारणीय कविता  ‘आधिपत्य’ )   

 ☆ कविता  – आधिपत्य ☆

 

जेठ की तपती

धूप के साथ

दस्तक देती  बारिश में

 

कीट पतंगों की

बल्ले बल्ले हो जाती है

घर के बाहर राज

करते करते,,

घर के अंदर भी

अपना आधिपत्य जमा लेते है

 

और बिना वजह

जहरीली दवा या चप्पल से

कुचले जाते है

 

महिलाएं यूं तो

बड़े से बडा दुःख

सहन कर जाती है

फिर क्यों अचानक

कॉकरोच का छिपकली

के दिख जाने से ही

उंसकी चीख  निकल जाती है

 

© डॉ मौसमी परिहार

संप्रति – रवीन्द्रनाथ टैगोर  महाविद्यालय, भोपाल मध्य प्रदेश  में सहायक प्राध्यापक।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 34 – मनसा-वाचा-कर्मणा  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री स्वातंत्र्य पर आधारित एक सशक्त रचना  ‘ मनसा – वाचा – कर्मणा । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 34 – विशाखा की नज़र से

☆  मनसा – वाचा – कर्मणा   ☆

कुरीतियों के पंक से निकलकर

अब जाकर पंकज की तरह खिली हैं

स्त्रियाँ

पर चाहती हूँ उनके अस्तित्व

अब भी बना रहे तैलीय आवरण

 

तब तक

जब तक इस पितृसत्तात्मक समाज में

पितृ एवं सत्ता का हो न जाये विघटन

मनसा – वाचा – कर्मणा

समाज स्वीकारें स्त्रियों का स्वतंत्र अस्तित्व

जब पुरुष महसूस करे अंतःकरण से ऊष्मा

तब वह भरे प्रकृति को आलिंगन में

और स्वतःस्फूर्त ही टूट जाये तैलीय दर्पण

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 7 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 7/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 7 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

कोई रिश्ता नहीं

रहा  फिर  भी,

एक तस्लीम तो

लाज़मी सी  है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

Agreed there remains

no relation now; 

At least, an admittance

Is inevitably desirable…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

गर शतरंज का शौक़ होता

तो तमाम धोखे नहीं खाता

वो मोहरे पर मोहरे चलते रहे 

और मैं रिश्तेदारी निभाता रहा…

 

If only I was fond of chess

Won’t have got cheated at all

They kept on moving pieces

While I kept maintaining kinship!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

एक उम्र  वो  थी  कि 

जादू पर भी यक़ीन था,

एक  उम्र ये  है  कि 

हक़ीक़त पर भी शक़ है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

There once was an age when

I used to believe even in magic,

And now, there’s an age when I

Look at reality with suspicion!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

कोई आदत, कोई शरारत, 

मेरी बातें या मेरी ख़ामोशी

कुछ न कुछ तो उसे जरूर

ही  याद  आता  ही  होगा…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

My habits, or the mischiefs, 

My words or the silence

For sure,  he  must  be 

missing something of mine!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना का कहर ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित एक समसामयिक विशेष रचना “कोरोना का कहर ”। ) 

 

☆  कोरोना का कहर ☆

 

चीन से क्या निकला कोरोना  तहस नहस संसार हो गया

सहम सिमट घबराई दुनियां लंगड़ा हर व्यापार हो गया

 

जग में जैसे बढी बीमारी हर एक देश में मची तबाही

स्वस्थ व्यक्ति भी सुनकर डर से एकाएक बीमार हो गया

 

काम काज सब ठप हो गए हर शासन को हुई घबराहट

आना जाना लेन देन सब रुके बंद बाजार हो गया

 

होश उड़ गए इस दुनिया के किसी को कुछ भी समझ ना आया

कैद हुए सब अपने घर में हर एक हाथ लाचार हो गया

 

छूटी सब की रोजी रोटी लगने लगी जिंदगी खोटी

शहर शहर पसरा सन्नाटा देशों में अंधियार हो गया

 

खुशियां लुट गई छाई निराशा उभरी आशंका की भाषा

कैद हुई सारी गतिविधियां हर घर कारागार हो गया

 

छाई क्षितिज तक काली छाया कारण कुछ भी समझ ना आया

सब को लगने लगा कि जैसे जीवन का आधार खो गया

 

बड़ा अजब दैवी परिवर्तन प्रकृति कोप या कोई पाप है

इस दुनिया में अनहोनी का अटपटा अत्याचार हो गया

 

पर धीरज रखना आवश्यक रात कटेगी फिर दिन होगा

देखेंगे इस उलट पलट में सुखद नवल उजियार हो गया

 

कर्मठ सुदृढ़ विचारक निधड़क लड़ लेते हैं जो संकट से

पाते हैं वह संकट कि कल उनको एक उपहार हो गया

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वो नटखट बचपन… ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित  एक भावप्रवण रचना  – वो नटखट बचपन…। इस सन्दर्भ में हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर  इस कविता को इतने सुन्दर तरीके से सम्पादित किया।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वो नटखट बचपन… ☆

जब बेटा-बेटी बन,

घर आंगन में आया

मेरे घर खुशियों का

अंनत सागर लहराया

 

तेरा सुंदर सलोना मुख चूम,

दिल खुशियों से भर‌ जाता

संग तेरे हँसी  ठिठोली में ,

दुख दर्द कहीं खो जाता…

 

अपनी गोद तुझे  बैठा मैं,

बीती यादों में खो जाता हूँ

जब-जब तेरी आंखों  में झाँका

तो अपना ही बचपन पाता‌ हूँ…

 

कभी तेरा यूँ छुपकर आना

गुदगुदा, पैरों में लिपटना,

कभी गोद में खिलखिलाना

कभी जोर से निश्छल हंसना

 

कभी तेरा हाथ हिला

यूँ मदमस्त  हो चलना,

कभी दौड़ना, कभी छोड़ना

यूँ खिलौनों के लिए मचलना…

 

ये तेरा नटखटपन,

ये तेरी चंचल शरारतें,

ना जाने क्यूं मुझको

लुभाती तेरी ये हरकतें

 

एक टॉफ़ी  की खातिर

कभी मुझसे लड़ बैठता,

टिकटिक घोड़ा बना मुझे

खुद घुड़सवार बन, मुझे दौड़ाता

 

कभी सताता, कभी मनाता

कभी मार मुझे, भाग जाता,

कभी रिझाता, कभी खिझाता

मेरे सीने पे चढ़, खूब मचलता…

 

कभी बेटा, कभी पोता बन

खूब कहानी सुनता रहता,

तो कभी बाप बन वो  मुझे

ढेरों  डाँट पिलाता  रहता…

 

कभी सर रख सीने पर

कभी गोद में आ छुप कर

बाल क्रीड़ाएँ करता रहता

मनोहारी कन्हैया बन कर…

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विश्व परिवार दिवस विशेष – विश्व परिवार की परिभाषा! ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी“

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की विश्व परिवार दिवस  पर विशेष रचना  विश्व परिवार की परिभाषा!।इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ विश्व परिवार दिवस विशेष – विश्व परिवार की परिभाषा! ☆ 

आत्मांश मां के हम

सिर्फ़ संतान नहीं

हम ही उसके – – – जीवन मरण

बिखेरती इंद्रधनुषी रंग

रचती सतरंगी जीवन

 

पिता जीवन के जलते हवन यज्ञ में

महकते चंदन से

विश्वामित्री मन को साधते

समिधा जुटाते

संतान हित – – स्वयं आहुति बन जाते।

 

साड़ी की फटी किनारी से बनी

या दामी डोरी रेशमी

राखी की महिमा अनमोल ही रही

मां की छाया सी बहन का ममत्व

आशीष है साक्षात ईश्वरत्व

 

दुनिया में सबसे ज्यादा

भाई ही सगा

वो प्यार लड़कपन पगा

नेह रंग संग

रक्त संबंध

ज्यों  राम लखन भरत शत्रुघ्न

 

कुटुम्ब की परिभाषा

मां पिता भाई बहन मात्र

की नहीं अभिलाषा

दादा दादी की छांव

बुआ का नेह गांव

चाचा का अनुभाव

सबका साथ जीवन की धुरी

परिवार रहित आस अधूरी।

 

विश्व परिवार दिवस

नहीं सिर्फ एक कहावत

वसुधैव कुटुम्बकम

क्षिति जल पावक गगन समीरा

पृथ्वी पानी अग्नि आकाश हवा

के साथ

परिवार समाज देश विश्व

सभी की शुभाकांक्षा–

इसी में निहित है

विश्व परिवार की परिभाषा!

इन सब की करें सुरक्षा

पूरी हो विश्व परिवार दिवस की परिभाषा।।

 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अपराजेय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज  इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता  “ सीढ़ियों “ का अंग्रेजी अनुवाद  Stairs…” शीर्षक से ।  हम कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी  हैं  जिन्होंने  इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अपराजेय

“मैं तुम्हें दिखता हूँ?”

उसने पूछा…,

“नहीं…”

मैंने कहा…,

“फिर तुम

मुझसे लड़ोगे कैसे..?”

“…मेरा हौसला

तुम्हें दिखता है?”

मैंने पूछा…,

“नहीं…”

” फिर तुम

मुझसे बचोगे कैसे..?”

ठोंकता है ताल मनोबल

संकट भागने को

विवश होता है,

शत्रु नहीं

शत्रु का भय

अदृश्य होता है!

कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 11 बजे, 13.5.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 37 ☆ नीलमोहर ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “ नीलमोहर ”। सुश्री सुजाता जी के आगामी साप्ताहिक  स्तम्भ में अमलतास पर अतिसुन्दर रचना साझा करेंगे।  )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 37 ☆

 नीलमोहर

नील गगन से

यह नीलमोहर

जाने क्या क्या

बात करें ।

आसमान को

अपना रंग देकर

फिर आकर

धरती से मिले।

शाखाओं पर

आसमान ही

लेकर अपने

साथ चले।

फिर क्यों धूल में

नीलाभ बनकर

धरती पर आँचल

ओढ़ चले।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सीढ़ियाँ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज  इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता  “ सीढ़ियों “ का अंग्रेजी अनुवाद  Stairs…” शीर्षक से ।  हम कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी  हैं  जिन्होंने  इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )

 

☆ संजय दृष्टि  ☆  सीढ़ियाँ

आती-जाती

रहती हैं पीढ़ियाँ

जादुई होती हैं

उम्र की सीढ़ियाँ,

जैसे ही अगली

नज़र आती है

पिछली तपाक से

विलुप्त हो जाती है,

आरोह की सतत

दृश्य संभावना में

अवरोह की अदृश्य

आशंका खो जाती है,

जब फूलने लगे साँस

नीचे अथाह अँधेरा हो

पैर ऊपर उठाने को

बचा न साहस मेरा हो,

चलने-फिरने से भी

देह दूर भागती रहे

पर भूख-प्यास तब भी

बिना लांघा लगाती डेरा हो,

हे आयु के दाता! उससे

पहले प्रयाण करा देना

अगले जन्मों के हिसाब में

बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!

मैं जिया अपनी तरह

मरूँ भी अपनी तरह,

आश्रित कराने से पहले

मुझे विलुप्त करा देना!

कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 8:01 बजे, 21.4.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 46 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 46 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

 

उथल-पुथल है हृदय में,

कर लो तुम संवाद।

जीवन हो तुम राधिके,

गूंजा अनहद नाद।।

 

जीवन में चारों तरफ,

फैला है अँधियार

बिना ज्ञान-दीपक भला,

कौन करे उजियार।।

 

इस अनंत संसार  का,

कोई ओर न छोर

हरि सुमिरन से ही मिले,

मंगलकारी भोर

 

कोरोना के काल में,

बढ़ी पेट की आग।

सुनने वाला कौन है

भूख तृप्ति का राग।।

 

जीवन के नेपथ्य से,

कौन रहा है भाग।

करो आज का सामना,

छोड़ कपट खटराग।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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