हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 40 ☆ पत्थरों को हमने …… ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “पत्थरों को हमने ……। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 40 ☆

पत्थरों को हमने ……   ☆

पत्थरों को हमने

नायाब होते देखा हैं

रंगीन, कीमती और

चमकदार बनते देखा हैं।

 

आकार इनके

अलग थलग हैं

बेशकीमती बनकर

गले में ताइत बनते देखा हैं ।

 

ये बस चमकीले हैं

इनमें जान नहीं है

पर कितनों को इन पर

जान न्योछावर करते देखा हैं ।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शोध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ शोध ☆

मैं जो हूँ

मैं जो नहीं हूँ,

इस होने और

न होने के बीच

मैं कहीं हूँ….!

 

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(रात्रि 9: 02, दि. 3.10.15)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेम प्रतीक भ्रामरी :: सतरंगी मुकरी ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी“

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की  एक भावप्रवण रचना प्रेम प्रतीक भ्रामरी :: सतरंगी मुकरी। इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ प्रेम प्रतीक भ्रामरी :: सतरंगी मुकरी ☆ 

 

मधु वाणी ही वाको गुर है

नेह प्रेम ही वाको सुर है

जगत् रीति ना समझे बँवरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

श्यामल तन वाणी जस  चंदन

फूल फूल रस सींचे तन मन

गुनगुन से सुधि सुर बहु सँवरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

नेह प्रेम नित बतियाँ बोले

भेद हिया के पल पल खोले

मोह बंध सों बाँधे अंचरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

मुखड़ा मोर छुये छुप जावे

अग-मग-पग-पग मुआ  डरावे

हाथ ना मोरे आवे लबरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

कलिया तन झम झम झलकावे

छिप अलकन बिच भरम बढ़ावे

सीस मुकुट सोहे ज्यों कुँवरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

रागी अनुरागी बड़ भागी

प्रेमिल सुर लागे तन आगी

रहा डुलाय सेज पर चँवरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

भाव भीन नित गीत सुनावे

सजल रात्रि में हिया लगावे

कमल क्रोड़ बँध जाए पँवरा

ऐ सखि— साजन

ना सखि भँवरा!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 50 ☆ गीत – कुछ दीवाने कम भले हों ….. ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत  “कुछ दीवाने कम भले हों …..। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 50 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – कुछ दीवाने कम भले हों …..  ☆

 

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

जिंदगी में फासले हो,फिर भी हम चलते रहे।।

 

चित्र तेरा देखकर ही सोचता मैं रह गया।

आते रहते स्वप्न तेरे पीर सहता रह गया।

जाने कितने देखे हमने सपन तो पलते रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

जो हुआ विश्वास मन का टूटता ही रह गया।

जो किया संकल्प हमने छूटता ही रह गया।

क्यों करे कोई शिकायत हाथ मलते ही रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

हो अगर प्रतिकूल जीवन,तो है तुमसे वास्ता।

वरना इस जीवन में अपना अलग ही रास्ता।

हम समय के साथ  संध्या की तरह ढलते रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

जिंदगी में फासले हो,फिर भी हम चलते रहे।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 41 ☆ धन – वैभव …. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  का  एक भावप्रवण रचना “ धन – वैभव ….. ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 41 ☆

☆ धन – वैभव ....

 

धन-वैभव में डूब कर, निश दिन करते पाप।

अहंकार पाले हृदय, रख दौलत का ताप  ।।

 

तृष्णा लेकर जी रहे, मन में रखें विकार  ।

अक्सर कंजूसी उन्हें, करती नित्य शिकार।।

 

धन वैभव किस काम का, जब घेरे हों रोग  ।

शांति और सुख के लिए , हो यह देह निरोग ।।

 

मिलता यश वैभव सुफल, जब होते सद्कर्म  ।

रोशन सच से ज़िन्दगी,  समझें इसका मर्म  ।।

 

बुद्धि- ज्ञान शिक्षा सुमति, और सत्य की राह ।

चले धरम के मार्ग पर, उसे न धन की चाह   ।।

 

मन के पीछे जो चला, उसके बिगड़े काम ।

मन माया का दूत है,  इस पर रखें लगाम ।।

 

कोरोना के दौर में, काम न आया दाम  ।

धन-वैभव फीके पड़े, याद रहे श्रीराम ।।

 

बेटी धन अनमोल है, उसका हो सम्मान  ।

दो कुल को रोशन करे, रख कर सबका मान ।।

 

सुख-वैभव की लालसा, रखते हैं सब लोग ।

आये जब “संतोष”धन, छूटे माया रोग  ।।

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चिरंजीव ☆

लपेटा जा रहा है

कच्चा सूत

विशाल बरगद

के चारों ओर,

आयु बढ़ाने की

मनौती से बनी

यह रक्षापंक्ति

अपनी सदाहरी

सफलता की गाथा

सप्रमाण कहती आई है,

कच्चे धागों से बनी

सुहागिन वैक्सिन

अनंतकाल से

बरगदों को

चिरंजीव रखती आई है!

 

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 7:54 बजे,  13.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 31 ☆ कोरोना पर वार करो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक सकारात्मक एवं भावप्रवण कविता  “कोरोना पर वार करो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 31 ☆

☆  कोरोना पर वार करो  ☆ 

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

बचो-बचाओ मिलने से भी

घर से बाहर कम निकलो

भीड़-भाड़ में कभी न जाओ

कुछ दिन अंदर ही रह लो

 

हाथ मिलाना छोड़ो मित्रो

हाथ जोड़कर प्यार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

साफ-सफाई रखो सदा ही

घर पर हों या बाहर भी

हाथ साफ करना मत भूलो

यही प्राथमिक मंतर भी

 

करना है तो मन से करना

सबका ही उपकार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

मन को रखना बस में अपने

बाहर का खाना छोड़ें

घर में व्यंजन स्वयं बनाना

बाहर से लाना छोड़ें

 

शाकाहारी भोजन अच्छा

उसका ही सत्कार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

अपने को मजबूत बनाओ

योगासन-व्यायाम करो

बातों में मत समय गँवाओ

दिनचर्या अभिराम करो

 

प्रातःकाल जगें खुश होकर

आदत स्वयं सुधार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 51 – ये सदी….. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती  भावप्रवण रचना ये सदी….. । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 51 ☆

☆ ये सदी….. ☆  

चुप्पियों को ओढ़

आई ये सदी

सबको रुलाने।

 

पैर पूजे थे हमीं ने

देहरी दीपक जलाए

और हर्षित हो सभी ने

सुखद मंगल गीत गाए,

उम्मीदें थी अब खुलेंगे

द्वार सब जाने अजाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

गांव घर सारे नगर के

पथिक बेचारे डगर के

घाव पावों के पसीजे

अश्रु छलके दोपहर के,

भूख इस तट उधर संशय

है न कोई तय ठिकाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

तुम अदृश्या, सर्वव्यापी

कोप से यह सृष्टि कांपी

ईद, दिवाली नहीं

कैसे मनेगा पर्व राखी,

क्रुध्द हो किस बात से

अवरुद्ध है सारी उड़ाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

जोश यौवन का लिए तुम

उम्र केवल बीस की है

हे सदी! है नजर तुम पर

वक्त खबर नवीस की है,

अंत में होगी विकल तब

कौन से होंगे बहाने

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ -12 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 12 ☆

मेरे शब्द

चुराने आए थे वे,

चुप्पी की मेरी

अकूत संपदा देखकर

मुँह खुला का खुला

रह गया…..,

समर्पण में

बदल गया आक्रमण,

मेरी चुप्पी में

कुछ और पात्रों का

समावेश हो गया!

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:07 बजे, 2.9.18)
(कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आई कांट ब्रीथ ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार

डॉ प्रतिभा मुदलियार

(डॉ प्रतिभा मुदलियार जी का अध्यापन के क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव है । वर्तमान में प्रो एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय। पूर्व में  हांकुक युनिर्वसिटी ऑफ फोरन स्टडिज, साउथ कोरिया में वर्ष 2005 से 2008 तक अतिथि हिंदी प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत।  इसके पूर्व कि मुझसे कुछ छूट जाए आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया डॉ प्रतिभा मुदलियार जी की साहित्यिक यात्रा की जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें –

जीवन परिचय – डॉ प्रतिभा मुदलियार

आज प्रस्तुत है डॉ प्रतिभा जी की एक समसामयिक कविता  आई कांट ब्रीथ।  यह कविता इस बात का प्रतीक है कि मानवीय संवेदनाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आहत हुई हैं । जॉर्ज फ्लॉयड  एक प्रतीक हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेद, धार्मिक भेदभाव, जातिवाद, नस्लवाद, कट्टरता के विरुद्ध स्वर प्रखर होना स्वाभाविक है और मानवता के हित में साहित्यकार इससे अछूते नहीं हैं। )

☆ आई कांट ब्रीथ ☆

 

नहीं ली जाती है सांस

जब उठ खडे होते हैं

प्रश्न

वर्ण, रंग और व्यक्ति की

पहचान पर।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब रौंध दी जाती

व्यवस्था के हांथों

प्रतिरोध में उठी आवाज़।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब तोड दिए जाते हैं

पैरों तले

हक के लिए उठे हाथ।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब गर्दन पर

कस दिया

जाता है सत्ता का घुटना।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब व्यवस्था के बाशिंदे

महज़ कुछ सिक्कों की खातिर

घोटने लगते हैं गला

और तत्पर हो जाते है

अनायास दोहराने

क्रूर और बर्बर

इतिहास।

 

ज़ॉर्ज फ्लायड

तुम्हारी

घुटी सांस के

साथ घुट रही हैं

सांसें सबकी

रच रहा है

वर्तमान

शब्द शिल्प

तुम्हारे जरिए

रचता रहेगा

श्वास लेख

अंटिल वी ब्रीथ

 

©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर 570006

दूरभाषः कार्यालय 0821-419619 निवास- 0821- 2415498, मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

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