डॉ निधि जैन
( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। यह काव्य संग्रह दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग व्यक्तिगत पहलू पर आधारति है एवं दूसरा भाग सामाजिक पहलू पर आधारित है। आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक कविता ” नववर्ष”।)
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☆ नववर्ष ☆
हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,
हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।
स्वागत नियम है प्रकृति का, स्वागत करें हम मानव आकृति का,
सुबह की भोर ने स्वागत किया प्रकृति का सूरज के उजाले से,
हम करते हैं अपने पड़ोसियों का स्वागत तिलक के आलिंगन से,
हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,
हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।
द्वार की रंगोली से करते हैं हम स्वागत,
गिफ्ट पैकिंग से करते हैं हम स्वागत,
आपकी बिंदिया ने किया आपके श्रृंगार का स्वागत,
हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,
हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।
फूलों ने किया, अपनी खुशबू का स्वागत,
मुर्गे की बाँग ने किया सुबह की रोशनी का स्वागत,
शिक्षकों ने किया अपनी ज्ञान ज्योति का स्वागत,
हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,
हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।
प्यार की धरोहर को लौटाना चाहते हैं अपने घनिष्ठों को,
सम्मान देना चाहतें हैं अपने गुरुवर की प्रतिष्ठा को,
सहयोग देना चाहते हैं और दिखाना चाहते हैं अपनी निष्ठा को,
हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,
हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।
© डॉ निधि जैन, पुणे