हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #15 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #15 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

परोपकार ही पुण्य है, पर-पीड़न ही पाप । 

पुण्य किये सुख ही जगे, पाप किये संताप ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ होली ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ (स्वर – श्री आर डी वैष्णव, जोधपुर, राजस्थान )

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ  गंगाप्रसाद शर्मा  ‘गुणशेखर ‘ जी  की कविता  “होली ” और उनके मित्र श्री आर डी  वैष्णव जी के मधुर स्वर में  काव्य पाठ। ) 

 सस्वर काव्य -पाठ का  ई-अभिव्यक्ति ने प्रयोग स्वरुप एक प्रयास प्रारम्भ किया है।  प्रबुद्ध पाठकों के ह्रदय से स्नेह एवं प्रतिसाद के लिए आभार। 

आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया श्री आर डी वैष्णव जी के चित्र पर या यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनका सुमधुर काव्य पाठ अवश्य आत्मसात करें।

श्री आर डी वैष्णव, जोधपुर, राजस्थान 

यूट्यूब लिंक  >>>>  https://youtu.be/XdTDyW9J88k

  ☆ होली पर्व पर विशेष  – होली   

 

बन्द करके कीचड़ी व्यापार होली में

खेल लें कुछ रंग अबकी बार होली में

हर सियासी रंग पे जो रंग चढ़ जाए

बस रंग झोली में वही हो यार होली में

राधिका की लाठियों की मार भी मीठी

खानी हमें है प्यार वाली मार होली में

चढ़ गईँ नफ़रत की बेलें हैं बहुत लंबी

हो सके तो काट देना झाड़ होली में

नाव जो मझधार र्में है डूब जाएगी

थामे नहीं गँवार कोई पतवार होली में

फूल सहमे पत्तियों में छिप के बैठे हैं

हो न जाएँ डालियाँ खूँख्वार होली में

वास्तु के हैं या असल के साँप ही तो हैं

साफ़ करना ध्यान से घर बार होली में

 

©  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत,  गुजरात

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30 ☆ मुसाफिर ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ मुसाफिर ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30☆

☆ मुसाफिर

ज़्यादा, ज़्यादा और ज़्यादा

बारिश के इस मौसम में

मैं तुम्हें खोना भी नहीं चाहती,

पर तुमने तो जाने की

ठान ही ली है, है ना?

 

चले जाओ!

न ही तुम्हें मैं आवाज़ दूँगी,

न तुमसे रुकने की

कोई नम्र गुजारिश करूंगी

और न ही कोई हठ करूंगी…

आखिर जाने वाले को

रोका भी नहीं जा सकता ना?

 

सुनो ए आफताब!

जा रहे हो तुम

अपनी रज़ामंदी से,

ज़रूरी नहीं

कि जब तुम वापस आओ

मैं तुम्हारी बाहों में सिमट जाऊं,

आखिर मेरी भी तो कोई मर्ज़ी है, है ना?

 

जब तुम वापस आओगे

देखती रहूँगी तुम्हें आसमान पर,

तुम बस आते और जाते रहना

जैसे किसी राह पर मिले

हम कोई मुसाफ़िर थे,

और भूल गए एक दूसरे को

कुछ पल साथ चलकर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली के रंग छंदों के संग ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आज होली के पर्व पर प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की विशेष रचना  ‘ होली के रंग छंदों के संग ‘।)

☆ होली पर्व विशेष – होली के रंग छंदों के संग ☆

 

हुरियारों पे शारद मात सदय हों, जाग्रत सदा विवेक रहे

हैं चित्र जो गुप्त रहे मन में, साकार हों कवि की टेक रहे

हर भाल पे, गाल पे लाल गुलाल हो शोभित अंग अनंग बसे

मुॅंह काला हो नापाकों का, जो राहें खुशी की छेंक रहे

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

चले आओ गले मिल लो, पुलक इस साल होली में

भुला शिकवे-शिकायत, लाल कर दें गाल होली में

बहाकर छंद की सलिला, भिगा दें स्नेह से तुमको

खिला लें मन कमल अपने, हुलस इस साल होली में

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

करो जब कल्पना कवि जी रॅंगीली ध्यान यह रखना

पियो ठंडाई, खा गुझिया नशीली होश मत तजना

सखी, साली, सहेली या कि कवयित्री सुना कविता

बुलाती लाख हो, सॅंग सजनि के साजन सदा सजना

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

नहीं माया की गल पाई है अबकी दाल होली में

नहीं अखिलेश-राहुल का सजा है भाल होली में

अमित पा जन-समर्थन, ले कमल खिल रहे हैं मोदी

लिखो कविता बने जो प्रेम की टकसाल होली में

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

ईंट पर ईंट हो सहयोग की इस बार होली में

लगा सरिए सुदृढ़ कुछ स्नेह के मिल यार होली में

मिला सीमेंट सद्भावों की, बिजली प्रीत की देना

रचे निर्माण हर, सुख का नया संसार होली में

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

न छीनो चैन मन का ऐ मेरी सरकार होली में

न रूठो यार! लगने दो कवित-दरबार होली में

मिलाकर नैन सारी रैन मन बेचैन फागुन में

गले मिल, बाॅंह में भरकर करो सत्कार होली में

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

नैन पिचकारी तान-तान बान मार रही, देख पिचकारी मोहे बरजो न राधिका

आस-प्यास रास की न फागुन में पूरी हो तो मुॅंह ही न फेर ले साॅंसों की साधिका

गोरी-गोरी देह लाल-लाल हो गुलाल सी, बाॅंवरे से साॅंवरे की कामना भी बाॅंवरी

बैन से मना करे, सैन से न ना कहे, नायक के आस-पास घूम-घूम नायिका

≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡  ≡

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ०७६९९९५५९६१८ ईमेल: [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ (होली पर्व विशेष) संजय दृष्टि – प्रहलाद ☆ श्री संजय भारद्वाज

होली पर्व विशेष

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रहलाद ☆

 

मेरे लिखे ख़त

जब-जब उसने

आग को दिखाए,

कागज़ जल गया

हर्फ़ उभर आए,

झुंझलाई,भौंचक्की-सी

हुई बार-बार दंग,

कई होलिकाएँ जल मरीं,

प्रहलाद सिद्ध हुआ

हर बार मेरे प्रेम का रंग..!

होली की ‘प्रह्लाद’ शुभकामनाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कविता संग्रह *मैं नहीं लिखता कविता* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 39 – होली पर्व विशेष – रंग गुलाबी बरसे बदरिया ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  होली के पर्व पर  होली की मस्ती में सराबोर एक श्रृंगारिक गीत  रंग गुलाबी बरसे बदरिया। इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 39☆

☆ होली पर्व विशेष  –  रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

पी के मिलन को तरसे अखियां

 

इधर उधर से नजर चुरा  के

तुम कब मिलोगे हमसे सांवरिया

 

घर में मन लगता नहीं है

बिन देखे चैन पड़ता नहीं है

 

चुपके से मिलने का कोई बहाना

लिखकर कब अब भेजोगे पतिया

 

सूना सूना है मेरे घर का आंगन

मैय्या बाबुल  न भाई बहना

 

आओगे कब राह देख रही सजना

फागुन की होली का करके बहाना

 

जब तुम आओगे नैनों में कजरा

सजा के रखूंगी बालों में गजरा

 

अपने ही रंग में रंग लूं सांवरिया

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रुत है मिलन की मेरे सांवरिया

गुजिया पपडी खोये की मिठाइयां

 

होश गवा दे  भांग की ठंडाईया

अपने हाथों से पिलाऊगी सैंया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

अपने पिया की मै तो बांवरिया

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #14 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #14 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

सदाचरण ही धर्म है, दुराचरण ही पाप । 

सदाचरण से सुख जगे, दुराचरण दुःख ताप ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – समझदार स्त्री ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध।  आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी विशेष रचना ” समझदार स्त्री “. इस रचना के सन्दर्भ में  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा  ‘गुणशेखर ‘ जी के ही शब्दों में  – “महिला दिवस पर अपनी एक कविता स्त्री समाज को अर्पित करते हुए खुशी हो रही है। लेकिन यह खुशी तभी सार्थक होगी जब उन्हें भी पसंद आए जिनके लिए यह रची गई है।”) 

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – समझदार स्त्री ☆

जन्मी तो अलग तरह से

सूचना दी गई

ताकि सब जान सकें

कि

घर में

आ गई है कुलच्छिनी

मातम मना घर भर में

पूरे पाँच साल

दोयम दर्जे के स्कूल जाती रही

बड़ी होकर समझदार हुई

तो इसी में खुश थी कि

उसे समय पर स्कूल भेजा गया

गाँव की कई और लड़कियों की तरह

उसने नहीं चराईं बकरियाँ

ज़्यादा पढ़ाई नहीं गई

तो क्या हुआ

उसके माँ -बाप ने

एक अच्छा घर- द्वार तो

ढूँढ़ा उसके लिए

औरों की तरह

सुयोग्य लड़के के न मिलने के डर से

ब्याह दी गई वह भी

इंटर करने के बाद

वह फिर भी खुश थी

समझदारी से ससुराल को सहा

सारे रिश्ते निभाए

जब तक देहरी के भीतर रही

पल्लू नहीं सरका कभी

घूँघट नहीं हटा एक पल को भी

चार-पाँच साल

सास,ससुर सबसे निभी

बस लड़कियां

क्या हो गईं दो-दो

सारी दुनिया ही

हो गई

जानी दुश्मन

नासमझ कही जाने लगी

लड़का न जन सकने से

अभागी मानकर

कर दी गई

उसी देहरी से बाहर

जिससे अक्षत भरे थाल को लुढ़काकर

आई थी भीतर

ढोल ताशे के साथ

देहरी बाहर हुई तो

वही जमाना जो उसे गाजे-बाजे

लाया था

बाहर भेजकर मगन था

उसे आशंका है कि

उसके मुहल्ले की हर चौखट और दरवाजे ने

रची थी साजिश उसके खिलाफ़

इसी लिए वह उन सबको घूरते

और बारी-बारी से उनपर थूकते

निकली तो पल्लू भी सरका और घूँघट भी

थाने भी गई और अदालत भी

सबने डराया

ताऊ -ताई ने

चाचा-चाची

मौसा -मौसी ने

यहाँ तक कि

जमाने की मारी

मायके की घायल सड़क ने भी

उसे लगता है कि

सब एक जुट हैं

उस समझदार स्त्री के विरुद्ध

जो उठ खड़ी होती है

किसी भी अन्याय के प्रतिकार में

जो निर्भय है

बच्चों को समय पर

स्कूल भेजकर

ऑफिस जाती है

स्कूल में पढ़ाती है

ऊँची-ऊँची इमारतों पर

ईंट-गारा चढ़ाती है

खेतों पर काम करती है

मछली पकड़ती है

बेचती है

दूसरोंके बर्तन माँजती है

बच्चे खिलाती है

या

बकरियाँ चराती है

और मानती है कि

समझदार स्त्री वह नहीं होती

जो जठराग्नि शमन के लिए

दो रोटी और कामी पति के साथ की

चार घंटे की नींद की खातिर

बेंच देती है स्त्रीत्व

पिसती है

शोषण सहती है

दिन-रात

बल्कि वह है जो

पुत्र -प्राप्ति के लिए

समूची स्त्री जाति के विरुद्ध किए जा रहे षड्यंत्रों

के विरुद्ध झंडा उठाती है

और,

सतीत्व नहीं स्त्रीत्त्व की रक्षा के लिए

कमर कसकर

जुट जाती है ।

@गुणशेखर

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ☆ श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी  दो  विशेष नवसृजित कवितायें “(1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति

● रिश्तों की सर्जक 


एक माँ की चाहत थीं

बेटा मुझे प्राप्त हो

बड़ा बन श्रवण-सा

हमेशा अपने पास हो।

 

एक बहन ने ईश से

बड़ी अरज एक की

भाई बन कृष्ण-सा

लाज राखे राखी की।

चाची ने मिठाई बाँटी

भतीजा नहीं वह मेरा

बहन का बेटा ही सही

आँखों का है चमकता तारा।

दादी की खुशियाँ न्यारी

पोते से आँगन खिल गया

झोली भर-भर आशीष देती

घर का दीप बन जाग गया।

नानी आईं झूला लेकर

नाती मेरा झूलेगा

दीठ उतारे वारंवार

जब भी गोद आएगा।

बुआ का ईठलाना

भानजा भाई-सा दुलारा

सोच-सोच नाम रखा

जैसा हो नव ध्रुवतारा।

मामी ने तो कहर ढाया

देख मुझे जमाई बनाया

जब भी गाँव से खो गया

मामी के आँगन में पा‌या।

खुद के होने की खुशियों में

मैं तुझे कैसे भूल गया

दुनिया की चकाचौंध में

यह अपराध मुझसे हो गया।

 

वंदन स्त्री शक्ति

सोचता हूँ….अगर

यह रिश्तों की सृजक न होते

सुंदर रिश्तों की

यह अटूट डोर के सहारे न होते।

 

सौरी में पैरों रख

बड़े प्यार-से नहलाना

कईं रातें कहानियाँ सुनाना

राखी का इंतजार करवाना

अपनों को छोड़ औरों के

आँगन की तुलसी बनना

और जब

साँस छूटे तो

अर्थी के पीछे

एक दीप के लिए

कई दीप जलाना

फिर यह संसार में

कभी न होता

अगर तू न होती,

और किसी बेटे की

कोई छाया न होती।

हर रिश्ता शुरू है आपसे

और अंत भी है आपसे,

वंदन तुम्हें स्त्री शक्ति

ईश से पहले

‌सम्मान हो तुम्हारा

ईश की भी साँस के पहले।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37 ☆ कविता – वो बचपन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक अतिसुन्दर कविता  “वो बचपन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37

☆ कविता  – वो बचपन ☆ 

 

खबरदार खबरदार प्यारे  बचपन

ये जहर उगलते मीडिया ये बचपन

ऊंगलियों में कैद हो गया है बचपन

हताशा निराशा में लिपटा है बचपन

गिल्ली न डण्डा न कन्चे का बचपन

फेसबुक की आंधी में डूबा है बचपन

वाटसअप ने उल्लू बनाया रे बचपन

चीन के मंजे से घायल है ये  बचपन

खांसी और सरदी का हो गया जीवन

कबड्डी खोखो को भूल गया बचपन

सुनो तो  कहीं से  बुला दो ‘वो’ बचपन

मिले तो आनलाइन भेज दो ‘वो’ बचपन

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

Please share your Post !

Shares
image_print