श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – पगडंडी… ☆
वे खोदते रहे
जड़, ज़मीन, धरातल,
महामार्ग बनाने के लिए,
नवजात पादप रौंदे गए
वानप्रस्थी वृक्ष धराशायी हुए,
वह अथक चलता रहा
पगडंडी गढ़ता रहा,
पगडंडी के दोनों ओर
आशीर्वाद बरसाते
अनुभवी वृक्ष खड़े रहे,
चहुँ ओर बिखरी हरी घास के
पगडंडी को आशीष मिले,
महामार्ग और सरपट टायर
के समीकरण विशेष हैं
पर पग और पगडंडी
शाश्वत हैं, अशेष हैं,
हे विधाता!
परिवर्तन के नियम से
अमरबेलों को बचाए रखना
पग और पगडंडी के रिश्ते को
यूँ ही सदाफूली बनाए रखना!
धरा से जुड़े रहें, धरातल पर रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(प्रात: 5.48, 8.1.20)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603