हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शाश्वत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शाश्वत ? ?

जब नहीं बचा रहेगा

पाठकों.., अपितु

समर्थकों का प्रशंसागान,

जब आत्ममोह को

घेर लेगी आत्मग्लानि,

आकाश में

उदय हो रहे होंगे

नये नक्षत्र और तारे,

यह तुम्हारा

अवसानकाल होगा,

शुक्लपक्ष का आदि

कृष्णपक्ष की इति

तक आ पहुँचा होगा,

सोचोगे कि अब

कुछ नहीं बचा

लेकिन तब भी

बची रहेगी कविता,

कविता नित्य है,

शेष सब अनित्य,

कविता शाश्वत है,

शेष सब नश्वर,

अत: गुनो, रचो,

और जियो कविता!

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 8:21 बजे, 2 नवम्बर 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #47 ☆ कविता – “मैफिल…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 47 ☆

☆ कविता ☆ “मैफिल…☆ श्री आशिष मुळे ☆

दर्दों का इक जश्न हो जाए

पियाले से बरसती साकी

आपके दिलों को भरती जाए

यारों इक मैफिल हो जाए…

 

उस गुलशन को याद कर

अरसे पहले मुरझा गए

उन फूलों को भी याद किया जाए

यारों इक मैफिल हो जाए…

 

निशाने से चुकी गोलियां गिनकर

नीचे रखी बंदूक

फिर एक बार उठाई जाए

यारों इक मैफिल हो जाए…

 

हम क्या आप क्या

सब मारे है फूलों के

आज काटों का भी जश्न हो जाए

यारों इक मैफिल हो जाए…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 218 ☆ बाल गीत – बच्चों से गूँजे किलकारी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 218 ☆

बाल गीत – बच्चों से गूँजे किलकारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

गौतेयाँ हैं प्यारी – प्यारी।

मनमोहक हैं राजदुलारी।।

नीड़ बनातीं घर , दुकान में

गातीं ये तो मधुर तान में

दिखतीं अपनी अलग शान में

 *

मौसम से है इनकी यारी।

गौतेयाँ हैं प्यारी – प्यारी।।

 *

जिस घर में यह नीड़ बनातीं

उस घर में खुशहाली लातीं

इनको ऋतु वसंत ही भाती

 *

खुशियों में है भागीदारी।

गौतेयाँ हैं प्यारी – प्यारी।।

 *

मिट्टी से यह नीड़ बनातीं

पर्वत ही हैं इनकी थाती

नदी , धरा से भोजन पातीं

 *

जीवन इनका लगे सुखारी।

गौतेयाँ हैं प्यारी – प्यारी।।

 *

नर – मादा मिलजुलकर रहते

दुख – सुख सारे हँसकर सहते

अंडे ‘से’ कर बच्चे करते

 *

बच्चों से गूँजे किलकारी।

गौतेयाँ हैं प्यारी – प्यारी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #245 – कविता – ☆ लक्ष्य कोई खास होना चाहिए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “लक्ष्य कोई खास होना चाहिए…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #245 ☆

☆ गीतिका – लक्ष्य कोई खास होना चाहिए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

उम्रगत एहसास होना चाहिए

जिंदगी में लक्ष्य कोई खास होना चाहिए।

*

हो अपच जब बुद्धि का या पेट का

रुग्ण तन-मन का सजल उपवास होना चाहिए।

*

आकलन करते रहें गुण दोष का

मलिनता मँजती रहे अभ्यास होना चाहिए।

*

विमल मन सद्कर्म से प्रतिबद्धता

प्रेम करुणा स्नेहसिक्त मिठास होना चाहिए।

*

है कहाँ किस ठौर पर यह तय करें

व्यर्थ शब्दों का न बुद्धि विलास होना चाहिए।

*

निर्विचार निःशंक होने के लिए

एक निश्छल निजी शुन्याकाश होना चाहिए।

*

अँधेरे भी तो मिलेंगे राह में

शौर्य साहस धैर्य आत्म प्रकाश होना चाहिए।

*

आखरी पल तक कलम चलती रहे

हर घड़ी-पल नव सृजन की प्यास होना चाहिए।

*

ध्वस्त हो आतंकियों के गढ़ सभी

फिर यहाँ आजाद भगत सुभाष होना चाहिए।

*

कामना है एक उस अव्यक्त से

हों सुखी सब, लोक में उल्लास होना चाहिए।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 69 ☆ तिनकों सा बहना… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तिनकों सा बहना…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 69 ☆ तिनकों सा बहना… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

रूखी-सूखी

एक नदी का

तट बनकर रहना

यही नियति है

सदा बाढ़ में

तिनकों सा बहना।

*

क्या गंगाजल

पाप-पुण्य की

धो पाया गठरी

भाग्य लिखी है

बस अभाव की

एक अदद कथरी

*

करनी-कथनी

के मरुथल में

प्यास लिए फिरना।

*

अधुनातन की

भाग-दौड़ में

हुए स्वयं से दूर

सच के मारे

झूठ ओढ़कर

जीने को मजबूर

*

ऊबड़-खाबड़

पगडंडी पर

सड़कों का सपना।

*

धर्म-कर्म के

पाखंडों में

खोज रहे तिनका

उमर कर रही

लेखा-जोखा

एक-एक दिन का

*

समय निरंतर

कहता रहता

नहीं कहीं रुकना।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 73 ☆ तख़्त का तज मोह सच को देखिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “तख़्त का तज मोह सच को देखिए“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 73 ☆

✍ तख़्त का तज मोह सच को देखिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

सीट कम हों भय हुआ सच बात है

मौन संसद रह रहा सच बात है

सौ से ऊपर मर गए सत्संग में

हाथरस मक़तल बना सच बात है

 *

ढोंग से पर्दा हटेगा कब तलक

हादसों का सिलसिला सच बात है

 *

फुलरई मथुरा या सिरसा जोधपुर

दर्द अपना कह दिया सच बात है

 *

मुख्य आरोपी न मुलजिम नामजद

आसरा है धर्म का सच बात है

 *

हो रही तफ्तीश कैसी कुछ बता

झूठ हावी हो गया सच बात है

 *

सिरफिरों की फौज आई सामने

राज्य शासन तक झुका सच बात है

 *

सत्य हैं आरोप झूठे सन्त पर

क्यों तू झुठलाने लगा सच बात है

 *

तख़्त का तज मोह सच को देखिए

जाति गत ये दबदबा सच बात है

 *

अय अरुण बाबा बनो तो है मजा

छंद का छोड़ो नशा सच बात है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… बलात्कार घृणित कृत्य ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… बलात्कार घृणित कृत्य ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

बलात्कार होता घृणित, कृत्य करें जो लोग।

हृदय वेदना नित्य ही, आहत करता भोग।।

*

बलात्कार पीड़ा घनी, छलनी कर हृद भाव।

अंतस लूटे चैन को, देते मन पर घाव।।

*

हीन भावना का जनम, महिला भोगे नित्य।

मानव की हिंसक प्रवृति, हवस कराती कृत्य।।

*

जीवन कुकर्म से घृणित, तन-मन देता चोट।

कैसा यह संबंध यह, हृदय भाव दे घोट।।

*

बना देश कानून भी, रोके कहाँ समाज।

संस्कृति अरु संस्कार को, मिटा दिया है आज।।

*

शिक्षा बचपन की गलत, जीवन कर बर्बाद।

बेटे बेटी भेद ही, दिया हवस को साद।।

*

नारी सहमति बिन सदा, जो बनता संभोग।

उत्पीड़न दें यातना, पले मानसिक रोग।।

*

भारतीय कानून में, नियम काल का खंड।

यौन क्रिया दुष्कर्म को, मिले बड़ा ही दंड।।

*

करे योगिता प्रार्थना, रक्षक बनना आप।

कृष्ण कहा दे चीर अब, बढ़े द्रौपदी शाप।।

*

दुर्गा काली रूप ले, दानव वध कर रोज।

शक्ति दिखा अंतस छुपी, हृदय जगाना ओज।।

*

नहीं द्रोपदी अब बनों, कैसी सहना पीर।

बनों कृष्ण भी आज तुम, तुम्हें बचाना चीर।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश मो –8435157848

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्यारी हिन्दी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆  प्यारी हिंदी☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

बहुत ही मधूर है हमारी हिंदी भाषा ,

हिंदी है भारत की राष्ट्रभाषा,

*

जबसे सिखी हिंदी मैंने,

अपने स्कूल के दिनों में,

मातृभाषा नही है फिर भी,

छा गयी दिल और दिमाग पर।

*

रेडिओ सिलोन के गीतों में सुनी,

सुनी आमीन सायानी जी की बातों में,

पढ़ी मुन्शी प्रेमचंद के पाठ में,

और सुभद्राकुमारी चौहान की कविता में,

गुलशन नंदा के उपन्यासों में….

राजेंद्र यादव के ‘सारा आकाश’ में।

*

देखी हिंदी अनगिनत फिल्मों में,

कवी प्रदीप,

नीरज, आनंद बक्षी, योगेश,

माया गोविंद के गीतों में  से,

उतर गयी सीधे दिल में।

*

हिंदी है बहुत ही मीठी,

हिंदी का अलग है लहजा,

मेरी प्यारी हिंदी, मुझको,

तेरा वह अंदाज दे जा…

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 70 – तो सुख सारे मिल जायें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना –तो सुख सारे मिल जायें।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 70 – तो सुख सारे मिल जायें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हृदय हमारे मिल जायें 

तो सुख सारे मिल जायें

*

दाह बुझे, जो अधरों के 

ये अंगारे मिल जायें

*

तुम चाहो, तो दोनों के

दिल बेचारे मिल जायें

*

जलूँ शौक से, यदि छूने 

रूप शरारे, मिल जायें

*

डूबूं तेरे संग, भले 

मुझे किनारे मिल जायें

*

तू न मिले तो, व्यर्थ मुझे 

चाँद-सितारे मिल जायें

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 143 – मौन  छा गया घर-आँगन में… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मौन  छा गया घर-आँगन में…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 143 – मौन  छा गया घर-आँगन में… ☆

मौन  छा गया घर-आँगन में।

जीवन फँसा कठिन उलझन में।।

*

आई संध्या-काल घड़ी जब।

किसकी नजर लगी उपवन में?

*

राह देखती रही हमारी,

प्रिय बहना रक्षाबंधन में।

*

कैसी भगवन हुई परीक्षा,

विश्वासों के उत्पीड़न में!

*

मात-पिता की याद आ गई,

चिंता-मुक्त खेल-बचपन में।

*

अधिकारी नेता की चाहत,

धनसंचय के आराधन में।

*

मानवता के शत्रु बन गए,

धर्म-पताका आरोहण में।

*

आजादी की बिछी बिछायत,

सत्ता पाने की अनबन में।

*

भरा पेट हो या खाली हो,

देखो बैठ रहे अनशन में।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares