(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “औरत की ज़िन्दगी ”।
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । उन्होने यह साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य” प्रारम्भ करने का आग्रह स्वीकार किए इसके लिए हम हृदय से आभारी हैं। प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की प्रथम कड़ी में उनकी एक कविता “तुम्हें सलाम”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। हम डॉ. मुक्ता जी के हृदय से आभारी हैं , जिन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया। अब आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनों से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “अनचीन्हे रास्ते”। डॉ मुक्ता जी के बारे में कुछ लिखना ,मेरी लेखनी की क्षमता से परे है। )
डॉ. मुक्ता जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय –
राजकीय महिला महाविद्यालय गुरुग्राम की संस्थापक और पूर्व प्राचार्य
“हरियाणा साहित्य अकादमी” द्वारा श्रेष्ठ महिला रचनाकार के सम्मान से सम्मानित
“हरियाणा साहित्य अकादमी “की पहली महिला निदेशक
“हरियाणा ग्रंथ अकादमी” की संस्थापक निदेशक
पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणव मुखर्जी जी द्वारा ¨हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार” से सम्मानित । डा. मुक्ता जी इस सम्मान से सम्मानित होने वाली हरियाणा की पहली महिला हैं।
साहित्य की लगभग सभी विधाओं में आपकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता संग्रह, कहानी, लघु कथा, निबंध और आलोचना पर लिखी गई आपकी पुस्तकों पर कई छात्रों ने शोध कार्य किए हैं। कई छात्रों ने आपकी रचनाओं पर शोध के लिए एम फिल और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित
सेवानिवृत्ति के बाद भी आपका लेखन कार्य जारी है और कई पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं।
(सुश्री उमा रानी मिश्रा जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप कालिंदी महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका (संस्कृत) एवं प्रसिद्ध लेखिका हैं।आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित तथा आप अनेक सम्मानों से अलंकृत हैं।)
☆ अद्भुत और वत्सल सम्राट महाकवि ☆
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।
पठन में पुत्र-पुत्री के स्नेह से जब काव्य निचौडो़ ,
सातवें अंक के भरत दुष्यंत शकुंतला तो छोड़ो ,
कण्व और प्रकृति को भी चौथे अंक की विदाई में ढाल देता है ।।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
आज के नाटक, रंगमंच सिनेमा और अभिनेता
शोहरत-ए-आसमाँ भी उसमें मेरे पास माँ है कहता,
अनाथों की मां को भी शीशे में उतार लेता है ।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
जानते हो मालविकाग्नि के पिता-पुत्र स्नेह को ?
नाटक तो नाटक, कुमार में पार्वती और हिमालय के नेह को ?
वहाँ बचपन से बुढ़ापे तक जीवंत वत्सल ही तार देता है।
और रसों को आत्मा कहने वाला भी दर्पण में वत्सल अपार देता है
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
पार्वती और कुमार के प्रति वात्सल्य की समानता में,
गहरी बात है उसमें छुपे अद्भुत की महानता में ,
उसकी अनुभूति में बॉलीवुड, हॉलीवुड को छोड़ो,
सब कहते हैं शांत को रखो अद्भुत को छोडो़ ,
जिससे नटी ही नहीं सहृदय भी आत्मा के पार जाता है।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
जो कहता है शृंगार, वत्सल शांत या वीर राजा हो ,
यह सत्य भी आज सोचो तो आधा हो
क्यों ना अद्भुत साहित्य में रसों का राजा हो
क्योंकि अद्भुत ही वह रस है ,
जो सबको महानता उधार देता है।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
खोजते हैं सब नाटक और रंगमंच में ,
वीर, शृंगार, शांत के प्रपंच में,
महाकवि ही है जो ऐंटरटेनमेंट उधार देता है ।
वो महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।।
यह काव्य शोध का ही उत्कर्ष है ,
विराम नहीं अपितु एक विमर्श है ,
जो अद्भुत और वत्सल रस को नया आधार देता है ।
वह महाकवि है जो वत्सल को निखार देता है।
इसी कलम से बुद्धिजीवियों ने ग्रहों के आयाम पाए हैं।
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह लघुकथा भी वर्तमान सामाजिक परिवेश के ताने बाने पर आधारित है। डॉ प्रदीप जी की शब्द चयन एवं सांकेतिक शैली मौलिक है। )
☆ कुत्तों से सावधान ☆
चंदा बंगले का गेट खोलकर जैसे ही अंदर दाखिल हुई ,मेमसाहब ने तीखी आवाज में चिल्लाना शुरू कर दिया – ” कहाँ मर गई थीं , इतनी देर से आ रही है ? ”
” मेमसाब , अभी 9 ही तो बजा है , देर कहां हुई । ”
” जुबान लड़ाती है , चुपचाप काम कर ।” मेमसाब नें डांटते हुए कहा ।
वह चुपचाप बर्तन मांजने एवं कपड़े धोने लगी । जब तक उसका काम खत्म नहीं हुआ तब तक मेमसाब बड़बड़ाती ही रही ।
काम खत्म कर वह बाहर निकलने लगी तो देखा गार्डन में खड़े साहब माली पर चिल्ला रहे थे ।
गेट के अंदर एक कोने में टॉमी दुबका पड़ा था । चंदा ने उसे देखा तो सोचने लगी कि टॉमी के भोंकने की आवाज तो कभी सुनाई भी नहीं पड़ी, लेकिन रोज सुबह से साहब और मेमसाब जरूर माली, धोबी, सब्जी वाले जैसे हम छोटे लोगों पर भोंकते रहते हैं ।
बाहर निकलकर जब वह गेट बंद कर रही थी, तब उसकी निगाह गेट पर लगी तख्ती पर पड़ी , जिसमें लिखा था – कुत्तों से सावधान ।
चंदा व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ दूसरे घर की ओर बढ़ गई ।