हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 220 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 220 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

ऐ हो माधवी

—————

हर्यश्व

दिवोदास

उशीनर

और विश्वामित्र के

भोगाग्नि कुण्ड में

स्वयं को

कर हवन ।

किया गमन ।

तपोवन !

तपोवन की शांति में

तुम

रह सकोगी शांत?

कर सकोगी

मन को एकाग्र ?

नहीं, माधवी, नहीं।

तुम्हारी

आँखों के आगे

बारम्बार

उतरायेगा,

तैरेगा

पिता का चेहरा ।

प्रश्न पूछेगा

तुम्हारा स्त्रीत्व!

तुम्हारे

मन में बदलियों की तरह

उमड़ेंगी

घुमड़ेंगीं

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 220 – “जरा सम्हालो बेटी-…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत जरा सम्हालो बेटी-...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 220 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “जरा सम्हालो बेटी-...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

माँ के आँचल में दुबकी

यह सोच रही मुनिया

जिसे निष्कपट समझी

थी वह जालसाज दुनिया

 

चौराहा चुपचाप

कनखियों से देखा करता

उसकी भी नजरें विचित्र

जो पहने है कुरता

 

फटी परदनी* वाला वह

मन-राखन पनवाड़ी

कहता- क्यों नाराज

दिखा करती है तू मुनिया

 

घर है बटा हुआ, पड़ौस

का सत्यशील लड़का

बँटी भीट से उचक-उचक

कर, घूरे है बड़का

 

“पाने की जिद में जो”

हर इक मावस -पूनम को

जादू – टोने करवाता वह

बदल – बदल गुनिया

 

नये – नये आरोप गढ़ा

करती सुशील भाभी

घर के विश्वासों की है

उसके हाथों चाभी

 

रोज दिया करती है

ताने अपनी सासू को

” जरा सम्हालो बेटी-

बड़ी हो गई चुनमुनिया”

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-12-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजातशत्रु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अजातशत्रु ? ?

उगते सूरज को

अर्घ्य देता हूँ;

पश्चिम रुष्ट हो जाता है,

डूबते सूरज को

नमन करता हूँ;

पूरब विरुद्ध हो जाता है,

मैं कितना भी चाहूँ

रखना समभाव,

कोई न कोई

पाल ही लेता है वैरभाव,

तब कालचक्र ने सिखाया,

अनुभव ने समझाया-

प्रथम या मध्यम पुरुष

निर्धारित नहीं कर सकता,

उत्तम पुरुष की आँख में

बसती है अजातशत्रुता!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 203 ☆ # “नववर्ष की नई किरण…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता नववर्ष की नई किरण…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 203 ☆

☆ # “नववर्ष की नई किरण…” # ☆

नव वर्ष की पहली किरण

प्रेम का संदेश लाई है

गगन में सुरमई रंग की

घटा छाई है

पुलकित है हर लम्हा

उम्मीदों पर जवानी आई है

 

अब नई उमलती कलियाॅ होगी

अब फूलों से भरी डलियाॅ  होगी

महकती  बगिया होगी

भंवरों की रंगरलिया होगी

 

हर हाथ को काम होगा

हर हाथ में दाम होगा

हर घर में चूल्हा जलेगा

बेरोजगारी का ना नाम होगा

 

अब कोई न भूखा होगा

मौसम कितना भी रूखा होगा

फसलें खेतों में लहराएगी

बिन पानी के ना सूखा होगा

 

शिक्षा सुलभ सस्ती होगी

शिक्षित हर गांव हर बस्ती होगी

शिक्षा की जब धारा बहेगी

हर गांव से एक महान हस्ती होगी

 

महिलाओं को सम्मान मिलेगा

हर क्षेत्र में मान मिलेगा

नारी शक्ति का लोहा मानकर

वाह वाह करता हर इंसान मिलेगा

 

सब तरफ खुशियों का नजारा होगा

हर कमजोर का सहारा होगा

हर चेहरे पर खुशियां होगी

उम्मीदों से भरा नया साल हमारा होगा/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 218 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 218 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 218) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 216 ?

☆☆☆☆☆

तुमने जैसा चाहा …

वैसे ही ढल गए हम

अब ये शिकवा कैसा

कि बदल गए हम…

☆☆

I have molded myself

the way you wanted, 

Now why this complaint

That I’ve changed…!

☆☆☆☆☆

आओ बनाएं पुल कोई

अपने ही आस पास

अरसा हुआ है आपको

मुझसे मिले हुए…

☆☆

Come let’s build a

Bridge around ourselves

It’s been long time

Since I met you… 

☆☆☆☆☆

संवरने का तो

सवाल ही नही उठता

क्योंकि हम तो

बिखरे ही लाजवाब हैं…

☆☆

No question ever arises

of  embellishing myself…

Coz I’m as such so peerless

Even if I appear unkempt… 

☆☆

निकले हम दुनिया की भीड़ 

में तो पता चला कि… 

हर वो शख्स अकेला ही है

जो दूसरों पर भरोसा करता है…

☆☆

When I stepped out in this

crowded world then realised

That every person is alone only

Who  keeps  trusting  others…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्मशान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  दो  उपन्यास “फिर एक नयी सुबह” और  “औरत तेरी यही कहानी” प्रकाशित। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। हाल ही में आशीर्वाद सम्मान से अलंकृत । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता श्मशान… ।)  

☆ कविता ☆ श्मशान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

न तेरा न मेरा न किसी का भी

अधिकार हर किसी का

नहीं देखता अमीर-गरीब

नहीं देखता राजा-रंक

सबके लिए तटस्थ रहता

न किसी में भी भेदभाव रखता

नहीं चाहिए हीरा-चांदी

मात्र नग्न बदन की अपेक्षा

मात्र लाश की राह देखता

लगता है मानो यही करता

सच्चा प्यार इन्सान से

मत कर प्यार फिर भी

आगोश मे लेता इन्सान को

कभी-कभी बुरा लगता है

मुंह मत मोड़ो वास्तविकता से

क्यों लड़ते हो इन्सान

क्यों खून पीते हो दूसरों का,

इक दिन सबको है जाना

ईश्वर की एकमात्र पुकार

रुक जाती जिंदगी धरा पर

खेल रहा परवरदिगार 

उसके पास नहीं खाली समय

कई लोग जलाते है

कई लोग दफनाते है

अपने धर्म के अनुसार

श्मशान में देते जगह

फिर ये लड़ाई क्यों?

फिर ये नफ़रत क्यों?

जब तक चल रही धडकन

कर्मों के आधार पर

फिर से जन्म लोगे

जिसे कहते मनहूस जगह

वही है सच्चाई जिंदगी की

सूर्यास्त होता जिंदगी का

श्मशान है पर्याय जिंदगी का

स्वर्णिम मुख को अपनी ओर से

एक थाह देता श्मशान

हर चिंता से मुक्त करता है

निःस्वार्थ भाव से देखता

सबको यमलोक के द्वार पहुँचाता

यह सांसे धरोहर मात्र प्रभु की

जिसे कोई भी नहीं समझ पाया

श्म़शान से चिढ़ता हर कोई

नहीं बात करना चाहता,

ईश्वर ने भेजा मृत्यु लोक पर

जब चाहेगा बुलावा आयेगा

मृत्यु पर किसी की न हुई विजय

बात मात्र इतनी सी

उजड़ जाता संसार

समझ लो इन्सान

मत कर अहंकार स्वयं पर कभी

हँसते हुए या रोते हुए

जाना है हर किसी को

क्यों न विदा लेते हँसते- हँसते

धरती की आन, बान और शान

इन्सान नहीं दर असल श्मशान है

नहीं रहता मौन श्मशान

जब श्मशान बोलता है

रहता मौन मात्र मानव ।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 218 – कविता – नये साल का गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता नये साल का गीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 218 ☆

☆ कविता – नये साल का गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

कुछ ऐसा हो साल नया,

जैसा अब तक नहीं हुआ.

अमराई में मैना संग

झूमे-गाये फाग सुआ…

*

बम्बुलिया की छेड़े तान.

रात-रातभर जाग किसान.

कोई खेत न उजड़ा हो-

सूना मिले न कोई मचान.

प्यासा खुसरो रहे नहीं

गैल-गैल में मिले कुआ…

*

पनघट पर पैंजनी बजे,

बीर दिखे, भौजाई लजे.

चौपालों पर झाँझ बजा-

दास कबीरा राम भजे.

तजें सियासत राम-रहीम

देख न देखें कोई खुआ…

स्वर्ग करे भू का गुणगान.

मनुज देव से अधिक महान.

रसनिधि पा रसलीन सलिल

हो अपना यह हिंदुस्तान.

हर दिल हो रसखान रहे

हरेक हाथ में मालपुआ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७.१२.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “आप बुलाओ तो सही… दिल  से !” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – आप बुलाओ तो सही… दिल  से ! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

इतना खाली भी

नहीं हूं दोस्तो

कि जब पुकारा चला आया

इतना व्यस्त भी नहीं

कि आपकी आवाज को

अनसुनी कर दूं !

बस ! आप बुलाओ तो सही

दिल  से !

बेरुखी बर्दाश्त नहीं

और प्यार की अनदेखी नहीं

इतनी सी बात है

और कुछ भी नहीं !

,,,,,,,,

इतना बड़ा भी नहीं

कि किसी के आगे झुक न सकूं

इतना छोटा भी नहीं

कि हर कोई मुझे झुका ले !

बस !

आपके प्यार के आगे

नतमस्तक हूं

और किसी के भी

अहंकार के आगे डटा हूं !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहाँ थे पहले? ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ कहाँ थे पहले? ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

खिड़की के हिलते पर्दों के पास

तुम्हारी  परछाईं  नज़र आती है

काश !

 तुम होते –

ख़यालों में, कल्पनाओं में

कितने रंग उभरते हैं

दूर कहीं अतीत की

 झील में डूब जाते हैं

कभी लगता है, स्वप्न देख रही हूँ

कभी लगता है जाग रही हूँ

 

यह बोझिल सन्नाटा, यादों का तूफ़ान,

तुम्हारे ख़यालों की चुभती लहरें,

मेरे भीतर कहीं टूटती, बिखरती,

एक अनकही पीड़ा में सिमटती

अनजान    सी    चुभन  उतरती

मैं थक चुकी हूँ इस अंतहीन दर्द से,

अदृश्य स्पर्श, जो छूटता ही नहीं।

हर साँस में, तुम बसते हो,

जहरीली हवा की तरह घुलते हो।

क्यों हर साँस में, मैं तुम्हें सहूँ?

क्यों इस विष को पीती रहूँ?

 

यह कैसी विडंबना,यह कैसा भाग्य का खेल

दो किनारों का कभी हो नहीं पाता मेल

एक उलझा बेबसी का  जाल,

 यह अनसुलझा सवाल

यह  तड़प यह जलती हुई आग, जो बुझ न सके,

फिर भी, मैं तुमसे प्रेम करूँ।

 

तुम कहाँ थे पहले?

जब   हर  रुत   बहार  थी  मेरी

जब हर शाम बे – क़रार थी मेरी

दूर कहीं एक खोया तारा,

एक बुझती हुई रशिम…

 मैं कहाँ थी पहले?

एक बीज, जो मिट्टी में दबा था कहीं

उमंगों का प्रवाह, जो  रुका  था  कहीं

कैसे जिया होगा मेरा मन,

बिना तुम्हारे स्पर्श के ?

एक अकेला चुम्बन, खोई हुई आत्मा

भटका हुआ एक निराधार सपना।

 

जब तुम आए,

 मेरी राह प्रकाशित हुई

मेरी दिशा निर्धारित हुई

जब तुम आये

मेरी साँसों में मधुरिम संगीत घुला

मेरी  करूणा  से   प्रेम  गीत  बना

हमारी राह हमारी मंज़िल एक हुई

हे अदृश्य प्रेम,

तेरा स्पर्श पा कर

मन  में  भरा  स्वर्णिम  अहसास

तुम  लगे बहुत पास…बहुत  पास

आज मुझे लगा

अब मैं उलझी पहेली नहीं

तुम हो मेरी कल्पना में

अब  मैं  अकेली  नहीं।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कालचक्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कालचक्र ? ?

उम्र की दहलीज पर

सिकुड़ी बैठी वह देह

निरंतर बुदबुदाती रहती है,

दहलीज की परिधि के भीतर

बसे लोग अनपढ़ हैं,

बड़बड़ाहट और बुदबुदाहट में

फर्क नहीं समझते!

मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के

चश्मे लगाये बुदबुदाती आँखें

पढ़ नहीं पातीं वर्तमान

फलत: दोहराती रहती हैं अतीत!

मानस में बसे पुराने चित्र

रोक देते हैं आँखों को

वहीं का वहीं,

परिधि के भीतर के लोग

सिकुड़ी देह को धकिया कर

खुद को घोषित

कर देते हैं वर्तमान,

अनुभवी अतीत

खिसियानी हँसी हँसता है,

भविष्य, बिल्ली-सा पंजों को साधे

धीरे-2 वर्तमान को निगलता है,

मेरी आँखें ‘संजय’ हो जाती हैं…,

देखती हैं चित्र दहलीज किनारे

बैठे हुओं को परिधि पार कर

बाहर जाते और

स्वयंभू वर्तमान को शनै:-शनै:

दहलीज के करीब आते,

मेरी आँखें ‘संजय’ हो जाती हैं…!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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