हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 218 ☆ बाल गीत – चंदा मामा, चंदा मामा… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 217 ☆

बाल गीत – चंदा मामा, चंदा मामा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चंदा मामा, चंदा मामा

हमने सुंदर चित्र बनाए

हम लाए कुर्ता , पाजामा

तुमको पहनाकर  हरषाए।।

देखो चित्र एक अपना तो

जिसमें सूत कातती माता

गोल पूर्णिमा की आभा से

धरती का हर जीव सुहाता

 *

खीर पेट भर खा लो मामा

काजू , किशमिस फल भी लाए।।

 *

देखो एक चित्र अपना तो

चपटी लगे कछुआ – सी पीठ

कभी नारियल – से भूरे हो

कभी लगते बच्चों – से ढीठ

 *

देख तुम्हारी सूरत , मूरत

रोज – रोज ही हम मुस्काए।।

 *

तरबूजे की खाँफ सरीखे

रसगुल्ला – से लगते सफेद

रूप बनाते न्यारे – न्यारे

और न कभी तुम करते भेद

 *

रात तुम्हारी मित्र अनोखी

रोज प्रेम से तुम बतलाए।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – हे ! गिरिधर गोपाल  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

गीत – हे ! गिरिधर गोपाल ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।।

राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है।

भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।।

प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ। ।

राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

 *

अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल।

शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।।

अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ।

राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

 *

आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का  मेला है।

कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।।

प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ।

राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

 *

गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में।

दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में।

आकर अब तो प्रकृति सँभालो, पांचजन्य बजाओ।

राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

 *

दु:शासन, दुर्योधन अनगिन, द्रोपदियाँ बेचारी।

पार्थ नहीं, नहिं चक्र सुदर्शन, हर नारी है हारी।।

हे नटनागर ! रासरचैया, अग्नि-ज्वाल बरसाओ।

राधारानी को संग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #245 – कविता – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – आओ फिर से गोविंद…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर एक विचारणीय कविता आओ फिर से गोविंद” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #245 ☆

☆ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष आओ फिर से गोविंद…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आनन्दकन्द गोपाल, कृष्ण गिरधारी

आओ फिर से, गोविंद सुदर्शन धारी।

*

वृन्दावन में, बचपन बीता अति प्यारा

आये जो दैत्य कंस के, उन्हें सँहारा

असुरों की फौज बढ़ी, धरती पर भारी

आओ फिर से, गोविंद सुदर्शन धारी।…

*

कोमल कलियों को, कुचल रहे अन्यायी

बेटी-बहनों के साथ, करे पशुताई

पहले जैसे नहीं रहे, लोग संस्कारी

आओ फिर से, गोविद सुदर्शनधारी।…

*

कालीया नाग को, जैसे सीख सिखाई

जहरीले नाग, फुँफकार रहे हरजाई

फन कुचलो माधव, नटनागर बनवारी

आओ फिर से, गोविद सुदर्शनधारी।…

*

आतंकवाद ने, अपने पैर पसारे

जयचंद कई हैं छिपे, देश में सारे

खोजें उनको, दें दंड देश हितकारी

आओ फिर से, गोविद सुदर्शनधारी।…

*

मथुरा में जाकर, दुष्ट कंस को मारा

महाभारत में फिर, गीताज्ञान उचारा

भारत की यही पुकार, मुकुंद मुरारी

आओ फिर से, गोविद सुदर्शनधारी।…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 68 ☆ आँखों में मधुवन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आँखों में मधुवन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 68 ☆ आँखों में मधुवन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

मौसम गाए गीत नया

ऋतुगंध सुनाए सगुन

सावन विरहा मुझ पर टूटा

आए हैं दुर्दिन ।

*

यह पावस क्षण-क्षण आपस के

ख़्वाब दिखा जाये

बूँद न टूटे बूँद-बूँद के

अंग समा जाये

*

मेघ दूत लौटा दे मेरा

रंग भरा फागुन।

*

फागुन के आँगन में तुम सँग

रंग वसंत हुए

सागर बीच नहीं प्यासों के

अब तक अंत हुए

*

सावन में फागुन को देखूँ

फागुन में सावन।

*

मौसम एक अकेला राजा

ऋतुएँ सब रानी

पर लगता मन का वृंदावन

तुम बिन बेमानी

*

पलकों पर सपने तिरते हैं

आँखों में मधुवन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पाखंड ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पाखंड ? ?

मुखौटों की

भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक

पहुँचूँगा या नहीं

प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में

शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में

विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में

गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में

ईर्ष्या से बौखलाए,

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है,

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है?

मुखौटे रचने-जड़ने में

जितना समय बिताता है

जीने के उतने ही पल

आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में कलुष ने

अस्तित्व को कसैला कर रखा है,

गंगाजल-सा जीवन जियो मित्रो,

पाखंड में क्या रखा है..?

 © संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 72 ☆ मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 72 ☆

✍ मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जिसमें सबक हो प्यार का ऐसी किताब दे

इंसानियत का करने मुझे इंतखाब दे

 *

मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा

काज़ी न पादरी न पुजारी खिताब दे

 *

दुश्वार जिनको ज़ीस्त है टूटे है ज़ोम से

मुरझा गए जो चहरे है उन पर शबाब दे

 *

पर्वत शज़र की दावतें  वर्षा कबूल ले

तेरा है रब निज़ाम तो सहरा को आब दे

 *

अपने लिए ही रोटी नहीं माँगता ख़ुदा

देने ज़कात मुझको मुक़म्मल निसाब दे

 *

तक़लीफ़ टूटने की सताती है उम्र भर

ताबीर जिनकी हो सके बस ऐसे ख्वाब दे

 *

इंसान आज का नहीं वंदा रहा तेरा

दुनिया का नाश करने क़यामत शिताब दे

 *

सुननी है बात प्रेम से हमको बुज़ुर्गों की

उल्टी हो बात फिर भी न उनको जबाब दे

 *

गुलशन को मेरे ख़ार अता तू करें भले

मुफ़लिस को ज़िन्दगी में महकते गुलाब दे

 *

मग़रूर आदमी की निशानी है ये बड़ी

मुझको न ज़िन्दगी में जरा भी इताब दे

 *

वो बेवफा कहें नहीं इनकार है मुझे

अपनी अरुण वफ़ा का मुझे भी हिसाब दे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कृष्ण… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆  कृष्ण☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

कृष्ण मेरा प्यार है

कृष्ण ही आराधना

कृष्ण मेरे जिंदगी की

एकमेव साधना

*

मैं न राधा, ना ही मीरा,

और नही हूँ कुब्जा भी

कृष्ण मेरा है युगों से

यह सत्य जाना है अभी

*

कृष्ण को देखा पहले

घर मैं लगी तस्वीर में

काली आँखे, अंग नीला,

बंसुरी थी हाथ में 

*

कृष्ण पढा , कृष्ण देखा

अनगिनत अध्यायों में 

कृष्ण ही पिछे खड़ा था

जीवन के हर संघर्ष में 

*

कृष्ण बेड़ा पार कराये,

जिंदा रखे संसार में 

जीवन मैं है ,मौत में है

कृष्ण ही है मोक्ष में !

🌹 जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ 🌹

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 69 – पता मुझे है जन्नत का… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पता मुझे है जन्नत का।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 69 – पता मुझे है जन्नत का… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हूँ बीमार, मुहब्बत का 

पता, मुझे है जन्नत का

*

सूरत, भोली-भाली है 

दीवाना हूँ, सीरत का

*

याद करूँ, दिन-रात तुम्हें 

समय कहाँ है, फुर्सत का

*

कैसे भूलूँ तुम्हें भला 

तुम हो हिस्सा, फितरत का

*

तेरे दर पर, आ न सका

डर है, तेरी इज्जत का

*

दर से खाली गया, तो क्या 

होगा, तेरी शोहरत का

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्ममुग्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आत्ममुग्ध ? ?

हवा से फूलकर

गुब्बारा  कुप्पा हुआ,

पिन चुभने भर की देर थी

किया धरा धराशायी हुआ,

आत्ममुग्धता की हवा भरती है

तब सच की पिन चुभती है,

फूटा गुब्बारा बिना दाम का

आत्मघाती मोह किस काम का?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 142 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 142 – मनोज के दोहे ☆

अच्युत प्रभु परमात्मा, सबका पालन हार।

जगत नियंता है वही, यह वेदों का सार।।

*

अलंकार से अलंकृत, करें यशश्वी गान।

गुणवर्धन यश अर्चना, मिले सदा सम्मान।।

*

सूर्यसुता में गंदगी, नाग-कालिया दाह।

उगल रही है झाग फिर, नहीं सूझती राह।।

*

द्वापरयुग में कृष्ण जी, गोरक्षक बलराम।

गोवर्द्धन संकल्प ले, किए विविध हैं काम।।

*

भाद्रमाह जन्माष्टमी, मुरलीधर घनश्याम।

दुख को हरने अवतरित, जय पावन ब्रज-धाम।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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