English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 201 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 201 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 201) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 201 ?

☆☆☆☆☆

हो के मायूस यूँ ना

शाम से ढलते रहिए

ज़िंदगी आफ़ताब है

रौशन निकलते रहिए…

☆☆

Being  dejected don’t you

ever be the dusking Sun

Life is like the radiant Sun

Keep  rising  resplendently…!

☆☆☆☆☆

ना इलाज  है 

ना   है दवाई….

ए इश्क तेरे टक्कर 

की  बला  है आई…

☆☆

Neither  exists  any  cure

Nor is  there  any medicine

O’ love ailment matching you

Has  emerged on  the earth…!

☆☆☆☆☆

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी

सदियों ने  सजा पाई…!

☆☆

Have also seen such constraints

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries got punished!

☆☆☆☆☆

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर  भी  हवाओं  की

आवारगी पसंद है मुझे…

☆☆

Flies away every time

My cardboard palace …!

Still I adore  the winds

Loafing around freely…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 201 ☆ मुक्तक सलिला… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मुक्तक सलिला…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 201 ☆

☆ मुक्तक सलिला☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

बोल जब भी जबान से निकले,

पान ज्यों पानदान से निकले।

कान में घोल दे गुलकंद ‘सलिल-

ज्यों उजाला विहान से निकले।।

*

जो मिला उससे है संतोष नहीं,

छोड़ता है कुबेर कोष नहीं।

नाग पी दूध ज़हर देता है-

यही फितरत है, कहीं दोष नहीं।।

*

बाग़ पुष्पा है, महकती क्यारी,

गंध में गंध घुल रही न्यारी।

मन्त्र पढ़ते हैं भ्रमर पंडित जी-

तितलियाँ ला रही हैं अग्यारी।।

*

आज प्रियदर्शी बना है अम्बर,

शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।

नेह की भेंट आप लाई हैं-

चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।

*

ये प्रभाकर ही योगराज रहा,

स्नेह-सलिला के साथ मौन बहा।

ऊषा-संध्या के साथ रास रचा-

हाथ रजनी का खुले-आम गहा।।

करी कल्पना सत्य हो रही,

कालिख कपड़े श्वेत धो रही।

कांति न कांता के चहरे पर-

कलिका पथ में शूल बो रही।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #250 – 135 – “शायरी का तुम भी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल शायरी का तुम भी…” ।)

? ग़ज़ल # 135 – “शायरी का तुम भी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मौत को तुम बहुत आसान समझते हो,

उसे चंद लम्हों का मेहमान समझते हो।

*

बीस पच्चीस ग़ज़ले कहकर मशहूर हुए,

शायरी का तुम भी अरकान समझते हो।

*

चार-पाँच कुश्तियाँ लड़ कूदने फाँदने लगे,

तुम ख़ुद को बड़ा पहलवान समझते हो।

*

तुमने आठ-दस किताब समीक्षाएँ लिखीं,

तब से तुम ख़ुद को कद्रदान समझते हो।

*

यार तुम बड़े खेमेबाज़ निकले महफ़िल के,

आतिश ख़ुदको अदब की शान समझते हो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदरा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सहोदरा ? ?

कैसी उमड़ रही है,

बरस क्यों नहीं जाती?

कैसी घुमड़ रही है,

उतर क्यों नहीं आती?

बदली को प्रतीक्षा है

अपने ही बोझ से समाप्त की,

कविता को प्रतीक्षा है

एक तीव्र आघात की,

कविता और बदली,

सहोदरा हैं…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ काल के पन्नो पे लिखी… ☆ सुश्री शीला पतकी ☆

सुश्री शीला पतकी

☆ कविता ⇒ काल के पन्नो पे लिखी… ☆ सुश्री शीला पतकी

(एक लेखक के सच्ची घटना पर आधारित…!)

15 ऑगस्ट 1947 मे /

हिंदुस्तान आझाद हुआ/

लाल किल्ले पे नेहरू जी ने /

था तिरंगा लहराया //

*

काल के पन्नो पे लिखी थी/

उसी रात एक खूनी कहानी /

उसके पात्र थे शायद यारो/

तुम्हारे मेरे नाना नानी//

*

धुंधली सी वो रात थी यारो /

सन्नाटे और अंधेरे में /

सन्नाटा कुछ बोल रहा था/

अंधेरा ना कोई सुन रहा था//

*

 पाकिस्तान से ट्रेन एक आई/

स्टेशन था अमृतसर भाई/

धीरे धीरे ट्रेन रुक गयी /

कोई न हलचल न उतरा कोई //

*

शायद सन्नाटा फिर बोला/

छैला सिंह स्टेशन मास्टरने

छलांग लगाई डिब्बे में और/

हलके से दरवाजा खोला//

*

देख दृश्य अंदर का वो/

थर-थर थर-थर कांप गया/

डिब्बे में पूरे कटे शव थे /

खून से लथपथ थी हर काया//

*

किसकी जिव्हा किसके हाथ /

किसी की गर्दन किसके पाँव/

महिलांओं के शरीर विवस्त्र थे/

कटे थे शव, कटे स्तन थे //

*

मांस के टुकडे, खून की नदिया/

भूल से बचे बच्चे नन्हे /

रो रो अपने माँ के शव से/

स्तन को शायद ढूंढ रहे थे  //

*

छैलासिंह तो डरा हुआ था/

फिर भी उसने आवाज लगायी/

घबराओ मत मेरे भाई /

ये अमृतसर है, ना धोका कोई //

*

मरे हुए मुर्दो मे भी तनिक/

थोडी सी जान थी आई/

थोडे से थे हाथ हिले /

फिर दम उसने भी तोड दिये//

*

 छैला सिंह की फटी थी आंखे/

 फूट फूट कर वो रो रहा था/

 इतने मे एक मुर्दा  बोला/

 क्या स्वतंत्र हुआ देश हमारा?//

*

अहिंसा पे बापू /

शायद हिंदुस्थान जना/

पर निश्चित मेरे मुर्दे पे/

आज ये पाकिस्तान बना//

आज पाकिस्तान  बना../

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© सुश्री शीला पतकी

माजी मुख्याध्यापिका सेवासदन प्रशाला सोलापूर 

मो 8805850279

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 127 ☆ हाइकु ☆ ।।नारी… मेरा क्या कसूर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 127 ☆

हाइकु ☆ ।।नारी… मेरा क्या कसूर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

आजाद कली

मानवता   क्षरण

वो गई छली।

[2]

वस्तु भोग की

मानसिकता   बनी

आज लोगों की।

[3]

नारी सम्मान

सदा से ही जरूरी

देना ये मान।

[4]

आज मानव

प्रभु क्या हो रहा

बना दानव।

[5]

रावण आज

रावण जिंदा अभी

दुष्कर्म काज।

[6]

नारी अस्मिता

लाज का मोल भूले

यह दुष्टता।

[7]

काम पिपासा

हैवान बना व्यक्ति

मरी है आशा।

[8]

रचनाकार

नारी सृष्टि रचे है

करो स्वीकार।

[9]

ये व्यभिचार

मां पत्नी बेटी देखो

करो विचार।

[10]

नारी बोलती

मेरा   क्या    कसूर

क्यों मैं झेलती।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 191 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – मोहब्बत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “मोहब्बत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 191 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत मोहब्बत ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मोहब्बत एक पहेली है जो समझाई नहीं जाती ।

है दिल की वह सहेली जो कि जब आई नहीं जाती ।।

*

किसी की याद में मन भूल सब, बेचैन रहता है,

अकेला बात करता, खुद ही सुनता, खुद से कहता है।

कभी अपने में हँसता या कभी खुद चैन खोता है

मगर मन की लगी औरों से बतलाई नहीं जाती ।। १ ।।

*

जलाती तन को फिर भी मन को अक्सर खूब भाती है।  

भुलाने की करो कोशिश तो ज्यादा याद आती है ।

जो अच्छी लगती सबको, पै जमाना जिस पै हँसता है

बढ़ाती ऐसी बेचैनी जो बतलाई नहीं जाती ।। २ ।।

*

सुहानी रोशनी है जिससे दुनियाँ में उजाला है,

मिली जिसको ये सचमुच वो बड़ी तकदीर वाला है।

सभी तो चाहते, पाते मगर कुछ ही हजारों में है

उलझन ऐसी मीठी जो कि सुलझाई नहीं जाती ।। ३ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 18 – ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… 

? रचना संसार # 18 – ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

उनकी नज़रें बनीं तलवार ख़ुदा ख़ैर करे

हुस्न के हो गये बीमार ख़ुदा ख़ैर करे

लोग चेहरे पे लगा लेते हैं चेहरा ही नया

झूठ का गर्म है बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

क़ैद हैं कब से क़फ़स में तेरी उल्फ़त के सनम

अब तो मरने के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर  करे

 *

अद्ल-ओ -इंसाफ़ की हमसे न करे बात कोई

बिकते सच के भी हैं दरबार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

ख़ुद-ग़रज़ होके किये ज़ुल्म भी क़ुदरत पे बहुत

वक़्त की पड़ने लगी मार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

हर तरफ देख बिछीं लाशें ही लाशें मौला

जीना अब हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

 ग़ैर होते, तो नहीं रंज जफ़ा का होता

सारे अपने हैं गुनहगार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

शे’र कहने का सलीक़ा भी नहीं है जिनको

लब पे उनके भी हैं  अशआर ख़ुदा ख़ैर करे

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भीड़ के अभिभावक ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – भीड़ के अभिभावक ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

भीड़ में चलते हैं

बहुत अकेले होते हैं

*

जीते सबके खातिर

सोचते कमाते लुटाते

अपनों के खातिर

प्रेम बरसाते

बस सभी के लिए l

*

सादगी कपड़ों में

सहजता बातों में

सरलता आँखों में

निश्चलता व्यवहार में

झरना बहता अखंड।

*

होठों की मुस्कान

छुपाता समंदर गहरा

कर्मठ कर्मरत

अखंड अविरत।

*

मारना पड़ता है

खुदको

भावनाओं को

संभलना पड़ता है

बारंबार l

*

प्राणों पर बन आए

तब भी

जिलाए रखती है जिंदगी

निखरती रहती है जिंदगी।

हो कोई भी क्षेत्र

रहना पड़ता है अडिग

नदी के द्वीप की तरह l

*

भीड़ में चलते हैं

बिल्कुल अकेले होते हैं

कार्य करने वाले –

कार्यकर्ता

अफसर

अध्यापक

नेता

*

हर ईमानदार में है मौजूद

वह अकेला

हर निष्ठावान में है मौजूद

वह अकेला

सबके साथ रहने वाला

है अकेला l

*

भीड़ का अभिभावक होना

नहीं है आसान

लहरें बाधाओं की

करनी पड़ती है पार।

पर

भीड़ साथ हो न हो

पूरे ब्रम्हांड का मिलता है

आशीष और दुलार l

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

17 अगस्त 2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #246 ☆ भावना के दोहे – रक्षा बंधन… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – रक्षा बंधन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 246 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – रक्षा बंधन☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

रक्षा बंधन प्यार का, प्यारा सा त्योहार।

खुशियां भाई बहिन की, मना रहा संसार।।

भैया घर पर आ रहे, यही बहन की चाह।

धागा राखी का लिए , देख रही है राह।।

 *

लगी द्वार पर टकटकी, देख रही हूँ राह।

राखी का त्योहार है, है बहना को चाह।।

 *

चौमासे की धूम है,  हर दिन है त्यौहार।

संग सखी,  भाई बहन, मिले पिया का प्यार।।

 *

धागा प्यारा लग रहा, है बहन का प्यार।

यह केवल धागा नहीं, रक्षा का त्योहार।।

 *

भाव समाहित हो रहे, मिलता है आशीष।

भाई आदर कर रहा, झुके सदा ही शीष।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares