हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 178 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – अभी भी बहुत शेष है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “अभी भी बहुत शेष है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘अनुगुंजन’ से – अभी भी बहुत शेष है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मंजिले पार करते हुये नित नई जिंदगी आज इस ठौर तक आ गई ।

राह फिर भी अभी भी बहुत शेष है इन चरण के चिरन्तन चलन के लिये ।। १ ।।

*

राह में मोड़ आये, चौराहे मिले कई उतारों-चढ़ावों के भी सिलसिले ।

कुछ तो सीखा है, फिर भी बहुत शेष है मौन मन के निरन्तर मनन के लिये ।। २ ।।

*

सड़कें चिकनी औ’ चौड़ी चमकदार हैं फिर भी कचरों औ’कांटों के अम्बार हैं।

रोशनी कम अँधेरा बहुत शेष है दूर करने अभी भी, किरण के लिये ।। ३ ।।

*

आये दिन सुख के नये लाखों साधन बने लोग फिर भी हैं सहमें, डरे अनमने ।

सीखना सबको अब भी बहुत शेष है रीति नई. प्रीति के आचरण के लिये ।। 8 ।।

*

पर लगा, आदमी बहुत उड़ने लगा छोड़ धरती सितारों से जुड़ने लगा ।

पर समझना सभी को बहुत शेष है यह धरा ही है जीवन मरण के लिये ।। ५ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पुल- विश्वास का ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

कविता – पुल- विश्वास का ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

पहले

हमारे बीच बहुत गहरा रिश्ता था

प्रेम की नदी पे  बने

     विश्वास के पुल की तरह

 

उस पुल से हम

     देखा करते थे

कभी इन्द्र धनुष के रंग

     कभी ढलती शाम

 

कभी दूर

आलिंगन करते

    पंछियों को

उड़ते बादलों को

उसी पुल पे खड़े सुना करते थे

    मधुर लहरों का संगीत

 

तुम्हारे बाल उड़ा करते थे

महकी हवाओं में

     कितने प्रश्न हुआ करते थे

तुम्हारे होंठों पर…

 

      तुम उकताई हुई

रोज़मर्रा के जीवन से

       देखती रहतीं

खुला आकाश

 

        मेरा हाथ पकड़े

ढूँढतीं कोई अदृश्य सी राह…

 

  …..आज रिश्ता वही है

मगर…उस पे

अविश्वास की धूप अधिक है

 

          क्या

तुम्हें भी कभी लगा ऐसा..?

          या यूँ ही  मेरे मन में

यह ख़याल आता है

 

कभी सोचो

    क्या तुम

अब भी खड़ी हो

उसी विश्वास के पुल पर

मेरी नयी किताब लिए

        और

लहरों को सुना रही हो

मेरी नयी कविता

         उसी उमंग से

उसी तरंग से

          जो पहले तुम्हारे होंठों पे थी…

 

कहो — कुछ तो कहो…

 

क्या तुम्हें

ऐसा नहीं लगता

     कि वह पुल ढह गया है

 

 जीवन की

       यातनाओं की धुंध में

हम तुम खड़े हैं

नदी के उस पार तुम

इस पार मैं…

संवेदनाओं के

वेदनाओं के

वृक्ष से लग कर

     विवशताओं की टहनियाँ

पकड़ कर…।

☆ 

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं –  9646863733 ई मेल- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 8 – नवगीत – बस वेदना ही वेदना है… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – बस वेदना ही वेदना है

? रचना संसार # 8 – नवगीत – बस वेदना ही वेदना है…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

लगे पैबंद कपड़ों में उनके,

फ़ीकी पड़ती आस।

गुज़र रहे दिन भी अभाव में,

खोया है विश्वास।।

 *

बस वेदना ही वेदना है,

रूठा है शृंगार।

अंग-अंग में काँटे चुभते,

चलते हैं अंगार।।

मन अधीर तृषित धरा भी,

कौन बुझाये प्यास।

 *

चीर रही उर पिक की वाणी,

कांपें कोमल गात।

रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल,

अटल यही बस बात।।

साधन हीन हुआ उर गूँगा,

करें लोग परिहास।

 *

आग धधकती लाक्षागृह में,

विस्फोटक सामान।

अन्तस जलता घुटता दम है,

कैसा है तूफ़ान।।

हुआ अभिशप्त जीवन सारा,

चीख रही हर साँस।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #233 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  प्रदत्त शब्दों पर भावना के दोहे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 233 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

दिल की सारी ख्वाहिशें, दिल है तेरे नाम।

हमने बस अब कर दिया, सब कुछ तेरे नाम।।

*

तुझसे अब कहते बना, हुई सुहानी शाम।

प्यारा सा अहसास है, लेना तेरा नाम।।

*

नादानी मुझसे हुई, कही प्यार की बात।

जाने क्या उसको हुआ, नहीं की मुलाकात।।

*

दुआ हमारी आपको, खुशियां मिले हजार।

माना हमने आपको, अपना ही परिवार।।

*

मां के आँचल में सदा, मिलता रहा दुलार।

माँ ममता की छांव में, है सारा संसार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #215 ☆ एक पूर्णिका – खुले जब  त्रिनेत्र शिवा का… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – खुले जब  त्रिनेत्र शिवा का आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 215 ☆

☆ एक पूर्णिका – खुले जब  त्रिनेत्र शिवा का ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आंखें जब भी बोलती हैं 

राज हृदय के खोलती हैं

*

कम नहीं समझें दर्पण से

सत्य जहन में घोलती  हैँ

*

चेहरा  बोले   झूठ   अगर

आँखें  मुखड़े  तौलती  हैँ

*

हँसती  रोती  आँखें  स्वयं

सबब  इनका  टटोलती हैँ

*

सुंदरता  के  आगे  अक्सर

आँखें  सबकी  डोलती  हैँ

*

खुले जब  त्रिनेत्र शिवा का

सृष्टि   संग    भूडोलती   है

*

होती  जब  दो  चार  आँखें

मौन  हृदय  का  तोड़ती  हैँ

*

“संतोष” आँखे  मुस्कराकर

खुद  को सबसे जोड़ती  हैँ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – वह  ? ?

(6)

वह हँसती है

मीठे पानी की

पहाड़ी नदिया-सी,

इस नदी के

पेट में है

खारे पानी का

एक समंदर!ं

 

(7)

वह नाचती है

आग-सी,

यह आग

धौंकनी-सी

काटती जाती है

सारी बेड़ियाँ!

 

(8)

वह गुनगुनाती है

झरने सी,

यह झरना

झर डालता है

सारा थोपा हुआ

और बहता है

पहाड़ से

मिट्टी की ओर!

 

(9)

वह करती है शृंगार

परतें ढाँपे रखती हैं

काया और मन की

असंगति-विसंगति,

शृंगार स्त्रीत्व का

सच्चा पहरेदार है!

 

(10)

वह लजाती है

इस लाज से

ढकी-छुपी रहती हैं

समाज की कुंठाएँ!

क्रमशः… 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 205 ☆ बाल गीत – सदा साहसी विजयी होता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 205 ☆

☆ बाल गीत – सदा साहसी विजयी होता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सत्य राह पर चलकर बच्चो

जग में नाम कमाओ जी।

संकल्पित हो बढ़े चलो तुम

जीवन को महकाओ जी।।

 

मन में दृढ़ विश्वास जगाकर

मुड़कर कभी न देखो तुम।

सहज , सरलता हैं आभूषण

कर्तव्यों को परखो तुम।

भटक न जाना अपने पथ से

आगे बढ़ते जाओ जी।

संकल्पित हो बढ़े चलो तुम

जीवन को महकाओ जी।।

 *

कर्मनिष्ठ ही भाग्य बदलते

खुद की वे तकदीर बनें।

सदा देशहित जो जन जीएं

वे ही वीर नजीर बनें।।

 *

सदा साहसी विजयी होता

साधो तीर चलाओ जी।

संकल्पित हो बढ़े चलो तुम

जीवन को महकाओ जी।।

 *

सदा समय का मूल्य समझना

पल – पल का उपयोग करें।

सौरभ में गौरव भर जाए

तन – मन हित ही योग करें।।

 *

सदा गलतियाँ निरखें – परखें

फूलों – सा खिल जाओ जी।।

संकल्पित हो बढ़े चलो तुम

जीवन को महकाओ जी।।

 *

स्वप्न हवा में कभी न पालो

मिले सफलता खुद श्रम से।

हैं विज्ञान – ज्ञान ही पूँजी

सदा बचो संशय , भ्रम से।

 *

आलस और दिखावा छोड़ो

हँसो – हँसाओ गाओ जी।

संकल्पित हो बढ़े चलो तुम

जीवन को महकाओ जी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #230 – कविता – ☆ नदियों में न पानी है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता नदियों में न पानी है…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #230 ☆

☆ नदियों में न पानी है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

नदियों में न पानी है

पूलों की जुबानी है

अपनी पीड़ाएँ ले कर चली

सिंधु प्रिय को सुनानी है।

*

सिर्फ देना है जिसका धरम

तौल पैमाना कोई नहीं

कौन है देखने वाला ये

कब से नदिया ये सोई नहीं,

*

खोज में अनवरत चल रही

राह दुर्गम अजानी है

पूलों की जुबानी है….।

*

चाँद से सौम्य शीतल हुई

सूर्य के ताप की साधिका

स्वर लहर बाँसुरी कृष्ण की

प्रेम रस में पगी राधिका,

*

साक्ष्य शुचिता के तटबंध ये

दिव्यता की कहानी है

पूलों की जुबानी है….।

*

फर्क मन में कभी न किया

कौन छोटा, बड़ा कौन है

हो के समदर्शिता भाव से

खुद ही बँटती रही मौन ये,

*

भेद पानी सिखाता नहीं

सीख सुंदर सुहानी है

पूलों की जुबानी है….।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 54 ☆ दर्द हुआ घायल (पुराना गीत)… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “दर्द हुआ घायल (पुराना गीत)…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 54 ☆ दर्द हुआ घायल (पुराना गीत)… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

मन के आँगन में हलचल

शायद दुख ने करवट बदली

दर्द हुआ है घायल।

*

आँखों ने पिए सभी आँसू

पलकों ने गीलापन

सपने बुझे-बुझे से दीपक

खोज रहे उजलापन

*

उम्र बहे गालों पर ऐसी

ज्यों विधवा का काजल।

*

अब तो धुँधवाती सी भर है

अपनेपन की समिधा

होम हुए जा रहे प्राण हैं

साँसों की पा सुविधा

*

धू-धू करके जला आग में

संबंधों का काठ महल ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – वह  ? ?

वह

(1)

वह ताकती है

ज़मीन अकारण,

उसके भीतर समाई है

पूरी की पूरी एक धरती

इस कारण…!

 

(2)

वह चलती है

दबे पाँव,

उसके पैरों के नीचे

दबे हैं

सैकड़ों कोलाहल!

 

(3)

वह करती है प्रेम

मौन रहकर,

इस मौन में छिपी हैं

प्रलय की आशंकाएँ

जन की संभावनाएँ!

 

(4)

वह अंकुरित करती है

सृष्टि का बीज,

धरती पर हरापन

उसका मोहताज है!

 

(5)

वह बोलती बहुत है,

उसकेबोलने से

पिघलते हैं

उसके भीतर बसे

अधूरी इच्छाओं के ग्लेशियर!

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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