श्री राकेश सोहम
संक्षिप्त साहित्यिक यात्रा
साहित्य एवं प्रकाशन – ☆ व्यंग्यकार ☆ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, कथाओं आदि का स्फुट प्रकाशन ☆ आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारण ☆ बाल रचनाकार ☆ प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका और दैनिक अखबार के लिए स्तंभ लेखन ☆ दूरदर्शन में प्रसारित धारावाहिक की कुछ कड़ियों का लेखन ☆ बाल उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन ☆ अनकहे अहसास और क्षितिज की ओर काव्य संकलनों में कविताएँ प्रकाशित ☆ व्यंग्य संग्रह ‘टांग अड़ाने का सुख’ प्रकाशनाधीन।
पुरस्कार / अलंकरण – ☆ विशेष दिशा भारती सम्मान ☆ यश अर्चन सम्मान ☆ संचार शिरोमणि सम्मान ☆ विशिष्ठ सेवा संचार पदक
आज प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के व्यंग्य संग्रह “ खटर पटर (खबरों की खरोच से उपजे व्यंग्य)” – की समीक्षा।
समीक्षित कृति – खटर पटर (खबरों की खरोच से उपजे व्यंग्य)
व्यंग्यकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मूल्य – रु 300
एक व्यंग्यकार इंजीनियर की सुरीली खटर पटर
(व्यंग्य संकलन- श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव)
साहित्य में व्यंग्य इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में हैं। लगभग हर विधा का साहित्य साधक व्यंग्य में हाथ आजमा रहा है। लेकिन विवेक रंजन श्रीवास्तव व्यंग्य के लिए समर्पित इन दिनों जाना माना नाम है। उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, उनके एक के बाद एक व्यंग्य संग्रह पाठकों के बीच आ रहे हैं। वह एक अनुभवी व्यंग्यकार हैं। उन्हें व्यंग्य रचने के लिए विषयों की कमी नहीं पड़ती। उनका ताज़ा व्यंग्य संकलन ‘खतर पटर’ इस बात का सबूत है। संग्रह का शीर्षक आकर्षक है। जिंदगी की खटर पटर हो या मशीनों की, ध्यान बरबस ही खिंचा चला जाता है। विवेक रंजन जी पेशे से इंजीनियर है। मैं भी इंजिनियर हूँ, इसीलिए समझ सकता हूँ कि ‘खटर-पटर’ उनका करीबी शब्द है। वे दैनंदिनी की खबरों से भी व्यंग्य उठा लेते हैं। किताब के शीर्षक के नीचे उन्होंने स्वयं इस बात का उल्लेख कर दिया है- खबरों की खरोच से उपजे व्यंग्य।
व्यंग्यकार विवेक रंजन श्रीवास्तव क्या है, कैसे हैं, इसकी जानकारी संग्रह के आरंभ में डॉ स्मृति शुक्ला हिंदी विभागाध्यक्ष, मानकुंवर बाई शासकीय महाविद्यालय, जबलपुर ने विस्तार से की है। संकलन के शुरूआती छः पृष्ठों पर इन दिनों के सर्वाधिक चर्चित चौबीस समकालीन व्यंग्यकारों ने विवेक रंजन के व्यंग्य के बारे में लिखा है।
इस संकलन में कुल 33 व्यंग्य रचनाएं हैं। संग्रहित व्यंग्य रचनाओं की सार्थकता इस बात से प्रमाणित हो जाती है कि इन्हें पढ़ते हुए पाठक सहज ही तात्कालिक खबरों से जुड़ जाता है और व्यंग्य के मजे लेने लगता है। ‘गाय हमारी माता है’ नामक रचना में व्यंग्य की बानगी देखिए- बिलौटा भाग रहा था और चूहे दौड़ा रहे थे। मैंने बिलौटे से पूछा, यह क्या? तुम्हें चूहे दौड़ रहे हैं! बिलौटे ने जवाब दिया, यही तो जनतंत्र है। चूहे संख्या में ज्यादा है। इसलिए उनकी चलती है। मेरा तो केवल एक वोट है। चूहों के पास संख्या बल है। एक और जोरदार व्यंग्य ‘पड़ोसी के कुत्ते’ की बानगी देखिए- कुत्ते पड़ोसी के फार्म हाउस से निकलकर आसपास के घरों में चोरी-छिपे घुस आते हैं और निर्दोष पड़ोसियों को केवल इसलिए काट खाते हैं क्योंकि वह उनकी प्रजाति के नहीं है।
लगभग सभी रचनाएं अंत में संदेश देती सी प्रतीत होती है जबकि इसकी आवश्यकता नहीं है। बावजूद इसके उनकी रचनाएं उनके द्वारा गढ़े गए नश्तर से व्यंग्य का कटाक्ष निर्मित करते हैं एवं दिशा भी देते हैं। क्या व्यंग्य में दार्शनिक भी हुआ जा सकता है? यह बड़ी कुशलता से अपनी रचना ‘फुटबॉल: दार्शनिक अंदाज’ में दिखाई देता है- हम क्रिकेट जीवी है। हमारे देश में फुटबॉल का मैच कोई भी हारे या जीते, आप मजे से पॉप कार्न खाते हुए मैच का वास्तविक आनंद ले सकते हैं। दार्शनिकता में यह निरपेक्ष आनंद ही परमानंद होता है।
चुभन और सहज हास्य व्यंग्य को सम्पूर्ण बनाते हैं। विवेक रंजन जी की हर रचना में पंच मिलता है- सूरज को जुगनू अवार्ड, क्विक मनी का एक और साधन है-दहेज, कुछ भरोसे लायक पाना हो तो भरोसा ना करिए, सरकारी संपत्ति की मालिक जनता ही होती है, पिछड़ेपन को बढ़ावा देने के लिए धीमी चाल प्रतियोगिता को राष्ट्रीय खेलों के रूप में मान्यता देनी चाहिए आदि। यहां पर प्रत्येक रचना के बारे में लिखना ठीक ना होगा वरना पढ़ने का मजा चला जाएगा। एक और बात ‘वाटर स्पोर्ट्स’ नामक व्यंग्य रचना में विवेक रंजन स्वयं को एक पात्र के रूप में प्रस्तुत किया है। अपने बचपन से लेकर अब तक का चित्रण करते हुए सरकारी सेवाओं की व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष किया है कि सरकारी सेवाओं में योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिलता। ‘गांधी जी आज भी बोलते हैं’ एक बहुत ही टाइट एवं सटीक लघु व्यंग्य है।
संकलन के संपादन में चूक (कुछ रचनाओं में पूर्ण विराम का प्रयोग हो गया है जबकि अधिकतर रचनाओं में फुलस्टॉप लगाया गया है। रचनाओं का अनुक्रम बदला जाता तो शायद और अच्छा होता।) को नज़रअंदाज़ कर दें तो संग्रह पठनीय और अनोखा है जबकि कीमत ₹300 मात्र है।
© राकेश सोहम्
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