(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी के अतिथि संपादन में प्रकाशित डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जी पर केंद्रित अट्टहास पत्रिका पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )
चर्चा में पत्रिका – अट्टहास का डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अंक – अक्टूबर २०२०
अंक संपादक – श्री शांति लाल जैन
प्रधान संपादक – श्री अनूप श्रीवास्तव
गुलिंस्ता कालोनी, लखनऊ ( उ प्र )
इससे पहले कि अट्टहास के डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अंक इस विशेषांक पर कुछ लिखूं, व्यंग्य को समर्पित पत्रिका अट्टहास पर व इसके समर्पित संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव जी पर संक्षिप्त चर्चा जरूरी लगती है. ऐसे समय में जब कादम्बनी जैसी बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानो की साहित्यिक पत्रिकायें बंद हो रही हों, एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने कंधो पर अट्टहास का बोझ लिये चलता दिखे तो उसकी जिजिविषा व व्यंग्य के लिये समर्पण की मुक्त कंठ प्रशंसा आवश्यक है. वे व्यंग्य का इतिहास रचते दिखते हैं. अट्टहास के अनवरत प्रकाशन हेतु ही नही किसी भी पत्रिका के सफल संचालन के लिये यह आवश्यक होता है कि पत्रिका का उत्तरोतर विकास हो, नये पाठक, नये लेखक पत्रिका से जुड़ें. इस लक्ष्य को पाने के लिये अट्टहास ने अतिथि संपादन के रूप में अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग किये. क्षेत्रीय व्यंग्य विशेषांक निकाले गये हैं.अतिथि संपादक की व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता व ऊर्जा का लाभ पत्रिका को मिला भी है. डा ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य के जीवंत शिखर पुरुषों में हैं, उन पर केंद्रित विशेषांक निकालना किसी भी पत्रिका के लिये गौरव का विषय है. अट्टहास ने यह बेहद महत्वपूर्ण परम्परा प्रारंभ की है.
संपादन कितना दुष्कर काम है यह मैं समझता हूं, रचनायें बुलवाना, गुणवत्ता परखना, उन्हें एक फांट में संयोजित करना, सरल नही हैं. आदरणीय शांतिलाल जैन सर ने भोपाल से उज्जैन स्थानांतरित होने, स्वयं के स्वास्थ्य खराब रहने की व्यक्तिगत व्यस्तताओ के बाद भी महीनो भरपूर समय व ऊर्जा इस अंक के लिये सामग्री जुटाने व संपादन में लगाई है जिसके परिणाम स्वरूप ही अंक डा ज्ञान चतुर्वेदी पर संग्रहणीय दस्तावेज बन सका है.
अपने संपादकीय में अनूप जी लिखते हैं व्यंग्य विधा है या शैली इस बहस में पड़े बिना ज्ञान जी ने अपनी पृथक शैली में लगातार लिखकर स्वयं को साबित किया है. उनका यह लिखना कि शिखर पर होते हुये भी ज्ञान जी में लेश मात्र भी अभिमान नही है, वे लगातार युवाओ के मार्गदर्शक बने हुये हैं. यह टिप्पणी डा साहब के कृतित्व व व्यक्तित्व का सूक्ष्म आकलन है.
अतिथि संपादक शांतिलाल जैन जी ने अपनी भूमिका बहुत गरिमा व गम्भीरता से निभाई है. उन्होने डा चतुर्वेदी की चुनिंदा रचनाये जैसे नरक यात्रा से अंश, हम न मरब से अंश, मार दिये जाओगे भाई साब, पुरातन राजा रानी की आधुनिक प्रेम कथा, एक खूबसूरत खंजर अंक के पाठको के लिये प्रस्तुत की हैं. मुझे लगता है उनके लिये ज्ञान सर की लम्बी रचना यात्रा में से चंद रचनायें चुनना फूलो की टोकरी में से चंद बीज के दाने चुनने जैसा रहा होगा. तुम ज्ञानू हम प्रेमू पढ़ा मैं प्रेम जनमेजय जी की भावनाओ को आत्मसात करता रहा. वे लिखते हैं ज्ञान व्यंग्ययात्रा का घनघोर प्रशंसक है, ज्ञान जी लिखते हैं प्रेम सक्षम होते हुये भी तिकड़मी नहीं है. मुझे लगा जैसे सी सा झूले के दो छोर पर बैठे दो व्यक्ति एक दूसरे को आंखों में आंखे डाल बड़ा साफ देख रहे हों.सुभाष चंदर जी, हरीश नवल जी, सूर्यबाला जी, गिरीश पंकज जी, पंकज प्रसून जी, प्रभु जोशी जी, रामकिशोर उपाध्याय जी, डा हरीश कुमार सिंह, अरुण अर्णव खरे जी, श्रवण कुमार उर्मलिया जी के लेख पठनीय हैं. ज्ञान जी का उपन्यास नरक यात्रा बहु चर्चित रहा है उसकी कांति कुमार जैन जी की समीक्षा, मरीचिका पर मधुरेश जी की समीक्षा, हम न मरब पर कैलाश मण्डलेकर जी की समीक्षा महत्वपूर्ण चयन है. अंक में प्रस्तुत सारे चित्र डा ज्ञान का जीवन एल्बम हैं. पारिवारिक चित्र, सम्मान के चित्र, पद्मश्री ग्रहण करते हुये चित्र, अनेक व्यंग्यकारो के साथ के चित्र सब दस्तावेज हैं. समग्र टीप की है विजी श्रीवास्तव जी ने जिसे पढ़कर अभीभूत हूं. मैं अट्टहास लम्बे समय से पढ़ता रहा हूं, जबलपुर में इसके एक अंक के विमोचन का आयोजन भी कर चुका हूं, पर निर्विवाद लिख सकता हूं कि अट्टहास का डा ज्ञान चतुर्वेदी केंद्रित अक्टूबर २०२० अंक पिछले अनेक वर्षो के अंको में सर्वश्रेष्ठ है. जिसके लिये अट्टहास, अनूप जी, शांतिलाल जी, ही नही इसका हर पाठक बधाई का पात्र है. मुझे लगता है जो भी व्यंग्य प्रेमी इसे पढ़ेगा संदर्भ के लिये मेरी तरह संग्रहित जरूर करेगा.
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८