(आज दिनांक 11 जनवरी को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर अग्रज श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के व्यंग्य संग्रह “डांस इण्डिया डांस” का विमोचन है। ऐसे शुभ अवसर पर वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का यह आलेख निश्चित ही पुस्तक की प्रस्तावना स्वरुप एक आशीर्वचन है जो हम अपने पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगे ।)
ई – अभिव्यक्ति की और से श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी को इस उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
☆ पुस्तक चर्चा – “व्यंग्य -लेखन गंभीर कर्म है” – डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆
जो लोग व्यंग्य को मनोरंजन का साधन समझते हैं वे व्यंग्य की वास्तविक प्रकृति को नहीं समझते । व्यंग्य -लेखन ज़िम्मेदारी का काम है , यह हल्केपन से ली जाने वाली चीज़ नहीं है । हरिशंकर परसाई जैसे लेखकों ने अपनी सशक्त रचनाओं के माध्यम से पाठकों के समक्ष व्यंग्य के सही रूप को प्रस्तुत किया । उनकी रचनाएँ सिर्फ सिखाती ही नहीं है वे व्यंग्यकारों की अगली पीढ़ी के लिए चुनौती भी प्रस्तुत करती है । परसाई ने व्यंग्य लेखन को गंभीर कर्म माना ।
(श्री जय प्रकाश पाण्डेय)
एक अच्छे व्यंगकार में अनेक गुण अपेक्षित हैं । पहले तो व्यंग्यकार संवेदनशील हो, ओढ़ी हुई करुणा से सार्थक व्यंग्यलेखन नहीं होगा । दूसरे उसकी द्रष्टि सही हो । रूढ़ीवादी और अवैज्ञानिक सोच वाले लेखकों के लिए व्यंग्य को साधना कठिन है । लेखक की अभिव्यक्ति प्रभावशाली होनी चाहिए । लेखन शैली ऐसी हो जो पाठक को बांधे और साथ ही उसे सोचने को बाध्य करे । व्यंग्य का उद्देश पाठक का मनोरंजन करना नहीं हो सकता ।
पुस्तक – डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह)
लेखक – श्री जय प्रकाश पाण्डेय
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य – रु 300/-
प्रस्तुत व्यंग्य -संकलन के लेखक श्री जय प्रकाश पाण्डेय अनेक वर्षों से व्यंग्यलेखन मे सक्रिय हैं । वे कई वर्षों तक स्टेट बैंक में सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं और अपने सेवाकाल में उन्हे शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के सभी वर्गों के लोगों के जीवन को निकट से देखने का अवसर मिला है । एक बैंकर से अधिक सामान्य लोगों की समस्याओं को कौन बेहतर समझ सकता है, बशर्ते की उसके पास संवेदनशील मन हो । पाण्डेय जी से हमारे कई वर्षो के संबंध से यह समझने का अवसर मिला कि मुहावरे के अनुसार उनका दिल सही जगह पर है और देश के करोड़ों वंचितों और लाचार लोगों के लिए उनके हृदय में पर्याप्त हमदर्दी है । यह हमदर्दी ही लेखक को वंचितों, पीड़ितों का प्रतिनिधि और उनकी आवाज़ बना देती है ।
इस संग्रह के विषयों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है की लेखक ने आज की सभी ज्वलंत समस्याओं को छुआ है । विषयों के चुनाव और उनके ‘ट्रीटमेण्ट’ से लेखक की पक्षधरता और उसकी संवेदनशीलता ज़ाहिर होती है । जीवन के प्रति लेखक का दृष्टिकोण उसकी रचनाओं से पकड़ मे आ जाता है, वहाँ ‘साफ छिपते भी नहीं सामने आते भी नहीं’ वाली बात नहीं चलती ।
विषयों का व्यापक फ़लक हमारे सामने आता है इसमे सरकारी आवासीय योजनाओं की धांधली है तो चीन के प्रति हमारा दोहरा रवैया, जी.एस.टी. की भूलभुलैया, गौमाता पर राजनीति, पवित्र नदियों का प्रदूषण, बाढ़ के अपने अर्थ, देश में पसरे अंध विश्वास, बाबाओं का पाखंड और मूर्तियों की राजनीति भी है । इनके अतिरिक्त बैंक कर्मियों की अति-व्यस्तता, ए.टी.एम. की दिक्कतें, गरीब को चैक मिलने पर भी भुगतान की दिक्कतें, नाम बदलने की राजनीति, हिन्दी दिवस की रस्म-आदायगी और बापू की कल्पना के भारत के बरक्स आज के भारत का लेखा जोखा भी यहाँ है । लेखों मे आम आदमी के लिए लेखक की ‘कंसर्न’ को साफ महसूस किया जा सकता है । इस संबंध में कुछ लेखों की पंक्तियों को उदघ्रत करना उचित होगा ।
“पहले वाले साहब नें इंद्रा आवास योजना में केस बनवाया था, दीवार भर खड़ी हो पाई थी और आगे कुछ भी नहीं हुआ, साहब सब हितग्राहियों का पैसा खा कर ट्रान्सफर करा लिए थे, सब की दीवार बरसात मे गिर गई थी और शहर में साहब का आलीशान बंगला बन गया था”। (बंगला बखान)
“तहसीलदार ने रंगैया को बोला कि जाकर बैंक वालों से पूछो कि हीरे के व्यापारी को ग्यारह हज़ार करोड़ रुपये दिये थे तो क्या आधार कार्ड लिया था?’ (बैंक मे रंगैया का खाता)
‘हमारी सरकार ने नोट बंदी करके देश विदेश मे नाम कमाया है, बंद हुए 500 और 1000 रुपये के नोटों को सड़ाकर खाद बनाई है जिससे तंदुरुस्त कमल पैदा किए गए हैं’ । (‘ए.टी.एम. में खुचड़’)
‘घर की बहू के हाथ से थोड़ा सा दूध गिर जाता है तो सास गोरस के अपमान की बात करके बहू को पाप का भागी बना देती है और उस समय सास और बहुओं ने मिल कर खूब दूध नालियों में बहाया, तब किसी ने नहीं कहा कि सब पापी थे’ । (‘अफवाह उड़ाना है पाप’)
शौचालय का शौक ऐसा चर्राया कि शौचालय बना-बना के लोगों ने बड़े बड़े बंगले खड़े कर लिए और शौचालय बिन पानी के गंदगी फैलाने के दूत बन गए’ । (‘कचरे के बहाने बहस’)
यह उल्लेखनीय है कि यद्यपि पाण्डेय जी नें अधिकतर तात्कालिक विषयों पर अपनी कलम चलाई है फिर भी वे बार बार हमारे समाज की ‘क्रानिक’ व्याधियों तक पहुचाने का प्रयास करते हैं । समाज मे व्याप्त अन्याय और भ्रष्टाचार तथा आम आदमी की लाचारी और बेबसी उनकी रचनाओं मे बार बार नुमायां होती हैं ।
पाण्डेय जी परसाई जी के निकट रहे हैं और उन्होने परसाई जी के जीवन का अंतिम इंटरव्यू भी लिया था जो काफी चर्चित रहा । अतः वे व्यंग्य के राग-रेशे से भली भांति वाकिफ हैं । उम्मीद की जा सकती है की आगे उनकी रचनाशीलता नए आयाम ग्रहण करेगी ।
– डॉ कुंदन सिंह परिहार, जबलपुर, मध्य प्रदेश
सम्प्रति : जय प्रकाश पाण्डेय, 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है डा ज्योति गजभिये जी के कहानी संग्रह “बिन मुखौटों की दुनिया ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. श्री विवेक जी ने पुस्तक की भूमिका एवं कहानियों के शीर्षक विवरण जिस तरीके से प्रस्तुत किया है वह पुस्तक के उच्च साहित्यिक स्तर को प्रदर्शित करता है। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 20☆
☆ पुस्तक चर्चा – कहानी संग्रह – बिन मुखौटों की दुनिया ☆
पुस्तक –बिन मुखौटों की दुनिया
लेखिका – डा ज्योति गजभिये
प्रकाशक – अयन प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य – 220 रु हार्ड बाउंड पृष्ठ 116
☆ कहानी संग्रह – बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
कहानी, अभिव्यक्ति की वह विधा है जो परिवेश को आत्मसात कर इस तरीके से लिखने का कौशल चाहती है कि पाठक उस वर्णन में स्वयं का परिवेश ढ़ूंढ़ सके, घटना को महसूस कर सके. डॉ ज्योति गजभिये मूलतः अहिन्दी भाषी हैं, हिन्दी कहानीकार के रूप में सर्वथा नई है. यद्यपि उनकी क्षणिका, कविता, गजल, शोध प्रबंध की पुस्तकें आ चुकी हैं. उन्होने नासिरा शर्मा के कथा साहित्य पर शोध किया है.
प्रस्तुत किताब में उनकी कुल १४ बेहतरीन कहानियां प्रकाशित हैं. अपनी भूमिका में वे कविता की तरह लिखती हैं “शब्दो को ठोक पीट कर वाक्य तैयार कर रही थी, कहानी लिखते हुये भी जब कविता कही से आकर अपनी झलक दिखला जाती तो उसे समझा बुझाकर वापस भेजना पड़ता”. यह सच है कि महानगरीय वातावरण संवेदना शून्य हो चला है, लोग नम्बरो और घड़ी के कांटो की तरह वहीं के वहीं घूम रहे हैं. यह दशा मनोरोगों को जन्म दे रही है. इसे ज्योति जी ने बारीकी से पकड़ा और अपना कथानक बनाया है.
संग्रह में बिरजू नही मरेगा, कवि सम्मेलन का आखिरी कवि, भूखे भेड़िये, टुकड़ा टुकड़ा प्यार, अनोखा ब्याह, कुलच्छिनी, नये जमाने की लड़की, बिन मुखौटो की दुनियां, फकीर नबाब, मिट्टी की खुश्बू, मन्नत का धागा, हीर का तीसरा जन्म, शेष हो तुम मेरे भीतर तथा महापुरुष शीर्षको से कहानियां संग्रहित हैं. किसी कहानी को मैं कमजोर नही कह सकता. हां बिन मुखौटो की दुनियां जिस पर पुस्तक का नाम रखा गया है, सच ही प्रभावी कहानी है. कहानियां संवाद शैली में बुनी गई हैं, पठनीय हैं. फ्लैप पर सूर्यबाला जी ने सही ही लिखा है ज्योति जिसे और परिष्कृत कहानियो की उम्मीद हिन्दी साहित्य जगत को है.
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है सुश्री सोनिया खुरानिया जी के काव्य संग्रह “लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19☆
☆ पुस्तक चर्चा – काव्य संग्रह – लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं ☆
पुस्तक –लफ्ज दर लफ्ज मैं
लेखिका – सुश्री सोनिया खुरानिया
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली
आई एस बी एन – ९७८९३८८३४६८१८
मूल्य – 200 रु प्रथम संस्करण 2019
☆ काव्य संग्रह – लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
काव्य वह विधा है जो यदि कौशल से प्रयुक्त हो तो व्यक्तिगत अनुभवो को हर पाठक के उसके अनुभव बना देने की क्षमता रखती है. सोनिया खुरानिया की इस पुस्तक में संग्रहित कवितायें अधिकांशतः इसी तरह की हैं. छंद के शिल्प में भले ही कुछ रचनायें वह पकड़ न रखती हों जो साहित्यिक दृष्टि से आवश्यक हैं किन्तु भाव की कसौटी पर रचनायें खरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रही हैं. कोई ६० से अधिक कवितायें, कुछ मुक्त छंद में कुछ छंद में संग्रहित हैं. अधिकतर रचनायें स्त्री पुरुष संबंधो के, प्रतीत होता है उनके स्व अनुभव ही हैं. कवियत्री से अनुभवो की परिपक्वता पर बेहतर साहित्य की उम्मीद साहित्य जगत को है.
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी जी की प्रसिद्ध पुस्तक “दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा – अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. यह पुस्तक आज के धार्मिक एवं सामाजिक परिपेक्ष्य में पढ़ी जानी अत्यंत आवश्यक है । साथ ही आज की युवा पीढ़ी को उनकी विचारधारा से अवगत कराने की महती आवश्यकता है। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 18☆
☆ पुस्तक चर्चा – दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा – अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण ☆
पुस्तक –दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा – अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण
लेखिका – अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली
मूल्य – 300 रु
☆ दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा – अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
समय की मांग है कि देश भक्त शहीदो के योगदान से नई पीढ़ी को अवगत करवाने के पुरजोर प्रयास हों . भगतसिंह किताबों में कैद हैं. उनको किताबों से बाहर लाना जरूरी है . उनके विचारो की प्रासंगिकता का एक उदाहरण साम्प्रदायिकता के हल के संदर्भ में देखा जा सकता है . आजादी के बरसो बाद आज भी साम्प्रदायिकता देश की बड़ी समस्या बनी हुई है, जब तब हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं .
भगत सिंह के युवा दिनो में 1924 में बहुत ही अमानवीय ढंग से हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे , भगतसिंह ने देखा कि दंगो में दो अलग अलग धर्मावलंबी परस्पर लोगो की हत्या किसी गलती पर नही वरन केवल इसलिये कर रहे थे , क्योकि वे परस्पर अलग धर्मो के थे, तो उनका युवा मन आक्रोशित हो उठा . स्वाभाविक रूप से दोनो ही धर्मो के सिद्धांतो में हत्या को कुत्सित और धर्म विरुद्ध बताया गया है . क्षुब्ध होकर व्यक्तिगत रूप से स्वयं भगत सिंह तो नास्तिकता की ओर बढ़ गये उन्होने जो अवधारणा व्यक्त की , कि धर्म व्यैक्तिक विषय होना चाहिये, सामूहिक नही वह आज भी सर्वथा उपयुक्त है.
उनके अनुसार ” साम्प्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है। सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है . भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता। कलकत्ते के दंगों में एक अच्छी बात भी देखने में आयी। वह यह कि वहाँ दंगों में ट्रेड यूनियन के मजदूरों ने हिस्सा नहीं लिया और न ही वे परस्पर गुत्थमगुत्था हुए, वरन् सभी हिन्दू-मुसलमान बड़े प्रेम से कारखानों आदि में उठते-बैठते और दंगे रोकने के यत्न करते रहे। यह इसलिए कि उनमें वर्ग-चेतना थी और वे अपने वर्ग हित को अच्छी तरह पहचानते थे। वर्ग चेतना का यही सुन्दर रास्ता है, जो साम्प्रदायिक दंगे रोक सकता है।”
भगत सिंह की विचारधारा और उनके सपनों पर बात कर उनको बहस के केन्द्र में लाना युवा पीढ़ी को दिशा दर्शन के लिये वांछनीय है. भगतसिंह ने कहा था कि देश में सामाजिक क्रांति के लिये किसान, मजदूर और नौजवानो में एकता होनी चाहिए. साम्राज्यवाद, धार्मिक-अंधविश्वास व साम्प्रदायिकता, जातीय उत्पीड़न, आतंकवाद, भारतीय शासक वर्ग के चरित्र, जनता की मुक्ति के लिए क्रान्ति की जरूरत, क्रान्तिकारी संघर्ष के तौर-तरीके और क्रान्तिकारी वर्गों की भूमिका के बारे में उन्होने न केवल मौलिक विचार दिये थे बल्कि अपने आचरण से उदाहरण बने . उनके चरित्र का अनुशीलन और विचारों को आत्मसात कर आज समाज को सही दिशा दी जा सकती है . उनके विचार शाश्वत हैं , आज भी प्रासंगिक हैं .
इस दृष्टि से वर्तमान स्थितियों में युवा लेखिका अनुव्रता श्रीवास्तव की यह किताब पठनीय व अनुकरणीय है जो संस्करणात्मक तरीके से भगत सिंह को समझने में मदद करती है . यदि कभी अखण्ड भारत का पुनर्निमाण हुआ तो लाहौर बाघा बार्डर ही वह द्वार होगा जहां दोनो ओर के जन समुदाय एक दूसरे को गले लगाने बढ़ आयेंगे , और तब लाहौर स्वयं सजीव हो बोल पड़े जैसा इस कथा में लेखिका ने उसके माध्यम से अभिव्यक्त किया है तो किंचित आश्चर्य नही , क्योंकि सच यही है कि राजनेता कितना ही बैर पाल लें पर बार्डर पार निर्बाध आती जाती हवा , स्वर लहरी और पक्षियो की बिना पासपोर्ट आवाजाही को कोई सेना नही रोक सकती . भगत सिंग भारत पाकिस्तान दोनो ही मुल्कों के हीरो थे हैं और सदैव रहेंगे. किताब बार बार पठनीय व मनन करने योग्य है .
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है व्यंग्यकार श्री विनोद कुमार विक्की की प्रसिद्ध पुस्तक “मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह)” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. यह पुस्तक 43 विषयों पर लिखित व्यंग्य संग्रह है। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 17 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह) ☆
ऐसे समय में जब पुस्तक प्रकाशन का सारा भार लेखक के कंधो पर डाला जाने लगा है, दिल्ली पुस्तक सदन ने व्यंग्य, कहानी, उपन्यास , जीवन दर्शन आदि विधाओ की अनेक पाण्डुलिपियां आमंत्रित कर, चयन के आधार पर स्वयं प्रकाशित की हैं.
दिल्ली पुस्तक सदन का इस अभिनव साहित्य सेवा हेतु अभिनंदन. इस चयन में जिन लेखको की पाण्डुलिपिया चुनी गई हैं, विनोद कुमार विक्की युवा व्यंग्यकार इनमें से ही एक हैं, उन्हें विशेष बधाई. अपनी पहली ही कृति भेलपुरी से विनोद जी नें व्यंग्य की दुनियां में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की थी.
आज लगभग सभी पत्र पत्रिकाओ में उन्हें पढ़ने के अवसर मिलते हैं. उनकी अपने समय को और घटनाओ को बारीकी से देखकर, समझकर, पाठक को गुदगुदाने वाले कटाक्ष से परिपूर्ण लेखनी, अभिव्यक्ति हेतु उनका विषय चयन, प्रवाहमान, पाठक को स्पर्श करती सरल भाषा विनोद जी की विशिष्टता है.
मूर्खमेव जयते युगे युगे प्रस्तुत किताब का प्रतिनिधि व्यंग्य है. सत्यमेव जयते अमिधा में कहा गया शाश्वत सत्य है, किन्तु जब व्यंग्यकार लक्षणा में अपनी बात कहता है तो वह मूर्खमेव जयते युगे युगे लिखने पर मजबूर हो जाता है. इस लेख में वे देश के वोटर से लेकर पड़ोसी पाकिस्तान तक पर कलम से प्रहार करते हैं और बड़ी ही बुद्धिमानी से मूर्खता का महत्व बताते हुये छोटे से आलेख में बड़ी बात की ओर इंगित कर पाने में सफल रहे हैं. इसी तरह के कुल ४३ अपेक्षाकृत दीर्घजीवी विषयो का संग्रह है इस किताब में. अन्य लेखो के शीर्षक ही विषय बताने हेतु उढ़ृत करना पर्याप्त है, जैसे कटघरे में मर्यादा पुरुषोत्तम, आश्वासन और शपथ ग्रहण, चुनावी हास्यफल, सोशल मीडिया शिक्षा केंद्र, मैं कुर्सी हूं, सेटिंग, पुस्तक मेला में पुस्तक विमोचन, हाय हाय हिन्दी, अरे थोड़ा ठहरो बापू, जिन्ना चचा का इंटरव्यू, फेसबुक पर रोजनामचा जैसे मजेदार रोजमर्रा के सर्वस्पर्शी विषयो पर सहज कलम चलाने वाले का नाम है विनोद कुमार विक्की. आशा है कि किताब पाठको को भरपूर मनोरंजन देगी, यद्यपि जो मूल्य ३९५ रु रखा गया है, उसे देखते हुये लगता कि प्रकाशक का लक्ष्य किताब को पुस्तकालय पहुंचाने तक है.
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है प्रो सी बी श्रीवास्तव जी की प्रसिद्ध पुस्तक “कर्म भूमि के लिये बलिदान” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. यह किताब ८ रोचक बाल कथाओ का संग्रह है। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 16 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – कर्म भूमि के लिये बलिदान ☆
पुस्तक –कर्म भूमि के लिये बलिदान
लेखक –प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
मूल्य – 30 रु
प्रकाशक – बी एल एण्टरप्राईज जयपुर
ISBN 978-81-905446-1-0
☆ कर्म भूमि के लिये बलिदान – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
बच्चो के चरित्र निर्माण में अच्छे बाल साहित्य की भूमिका निर्विवाद है. बाल कवितायें जहां जीवन पर्यंत स्मरण में रहती हैं व किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में पथ प्रदर्शन करती हैं वहीं बचपन में पढ़ी गई कहानियां अवचेतन में ही व्यक्तित्व बनाती हैं. बाल कथा के नायक बच्चे के संस्कार गढ़ते हैं. प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ‘एक शिक्षा शास्त्री व बाल मनोविज्ञान के जानकार विद्वान मनीषी हैं. उनकी यह किताब ८ रोचक बाल कथाओ का संग्रह है.
नन्हें बच्चो के मानसिक धरातल पर उतरकर उन्होंने सरल शब्द शैली में कहानियां कही हैं. बच्चे ही नही बड़े भी इन्हें पढ़ते हैं तो पूरी कहानी पढ़कर ही उठ पाते हैं. कारगिल युद्ध के अमर शहीद हेमसिंह की शहादत की कहानी कर्मभूमि के लिये बलिदान के आधार पर पुस्तक का नाम दिया गया है. सभी कहानियां सचित्र प्रस्तुत की गई हैं. पुस्तक विशेष रूप से बच्चो के लिये पठनीय व संग्रहणीय है.
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री अजित श्रीवास्तव जी की प्रसिद्ध पुस्तक “बुन्देलखण्ड की लोक कथायें” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा . किसी भी भाषा या प्रदेश की लोककथाएं एक पीढ़ी के साथ ही जा रही हैं। ऐसे में उन्हें इस प्रकार के लोककथा संग्रह के रूप में संजो कर रखने की महती आवस्यकता है। लोक कथाएं हमें अगली पीढ़ी को विरासत में देने का दायित्व हमारी पीढ़ी को है इसके लिए श्री अजीत श्रीवास्तव जी को साधुवाद। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – बुन्देलखण्ड की लोककथायें ☆
पुस्तक – बुन्देलखण्ड की लोक कथायें (लोककथा संग्रह)
संग्रहकर्ता – अजीत श्रीवास्तव
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली
आई एस बी एन – 9789388346597
मूल्य – २०० रु प्रथम संस्करण २०१९
☆ बुन्देलखण्ड की लोककथायें – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
हाल ही में “कौन बनेगा करोड़पति” के एक एपीसोड में बुन्देलखण्ड की एक महिला पहुंची थीं. होस्ट अमिताभ बच्चन से वार्तालाप में उन्होनें बुंदेलखण्डी का प्रयोग किया, प्रतिसाद में सहज अमिताभ जी ने भी उनसे बुंदेलखण्डी की मधुरता को सम्मान देते हुये ” काय का हो रऔ ” का जुमला कहा. इस तरह मीडिया में बुंदेलखण्डी भाषा का लावण्य चर्चित रहा. बोलिया और भाषाये भारत की थाथियां हैं. लोक भाषा में सदियों के अनुभवो का निचोड़ लोक कथा, मुहावरो, कहावतो के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी विस्तार पाता रहा है.
टीकमगढ़ के अजीत श्रीवास्तव पेशे से एक एड्वोकेट हैं. उनका रोजमर्रा के कामो में ग्रामीण अंचल के किसानो व ठेठ बुंदेलखण्ड के आम लोगों से नियमित वास्ता पड़ता रहता है. इस दिनचर्या का लाभ उठाते हुये उन्होनें बुंदेली लोककथायें जिन्हें स्थानीय लोग “अहाने ” कहते हैं, सुनकर लिख डाले हैं. फिर इन अहाने अर्थात बातचीत में कोट किये जाने वाले लघु दृष्टांत या कथानक को सबके उपयोग हेतु इनका हिन्दी भाष्य रूपान्तर तैयार कर इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है.
पुस्तक में कुल ११० ऐसी लघु लोककथायें हैं, जो पहले बुंदेली और उसके नीचे ही हिन्दी में प्रकाशित हैं. हर लोककथा कोई संदेश देती है. उदाहरण के लिये एक कथा में कल्पना है कि एक व्यक्ति जो अपने भाग्य को दोष देते परेशान था, पोटली बांधकर किसी दूसरे गांव में जाने की सोचता है, तो उसे उसके साथ जाने को तैयार एक महिला मिली, वह पूछता है तुम कौन, महिला उत्तर देती मैं तुम्हारा भाग्य, तब वह मनुष्य कहता है कि जब तुम्हें साथ ही चलना है तो फिर मैं इसी गांव में क्यो न रहूं ? निहितार्थ स्पष्ट है, जगह बदलने या भाग्य को दोष देने की अपेक्षा जहां है जिन परिस्थितियो में हैं वही मेहनत की जावे तो ही प्रगति हो सकती है.
एक अन्य कथा में बताया गया है कि एक बार घुमते हुये एक राजा किसी किसान के पास पहुंचते हैं, वह गन्ने का रस निकाल रहा था, राजा एक गिलास रस पीते हैं, उन्हें वह बहुत अच्छा लगता है, तो राजा के मन में ख्याल आता है कि किसान इतने अच्छै गन्ने की फसल का लगान कम अदा करता है, लगान बढ़ानी चाहिये. जब राजा अगला गिलास रस पीता है तो उन्हें वह रस अच्छा नही लगता, यह बात राजा किसान से कहता है, तो किसान बोलता है कि महाराज आपने जरूर कुछ बुरा सोचा रहा होगा. राजा मन ही मन सब समझ गये. ” जैसी राजा की नीयत होती है वैसी प्रजा की बरकत ” क्या यह लोककथा आज भी प्रासंगिक नही लगती ?
ऐसी ही रोचक छोटी छोटी कहानियां जो जन श्रुति से अजीत श्रीवास्तव जी ने एकत्रित की हैं बिना तोड़ मरोड़ के यथावत किताब में प्रस्तुत की गई हैं. इस प्रकार किताब लोक के सामाजिक अध्ययन हेतु भी संदर्भ ग्रंथ बन गई है. मेरी जानकारी में ऐसा कार्य दूसरा देखने को नही मिला है. पुरानी पीढ़ी के साथ ही गुम हो रही इन कहानियो को संग्रहित कर बुंदेली भाषा के प्रति एक बड़ा कार्य किया गया है. जिसके लिये लेखक व प्रकाशक बधाई के सुपात्र हैं.
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है जबलपुर की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘ वर्तिका’ के वार्षिकांक/ स्मारिका “वार्तिकायन – स्मारिका 2019“ पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15 ☆
☆ पुस्तक पर साहित्य चर्चा – वर्तिकायन☆
पंजीकृत साहित्यिक संस्था वर्तिका की वार्षिक स्मारिका
संपादन – विजय नेमा अनुज, सोहन सलिल, राजेश पाठक प्रवीण, दीपक तिवारी
प्रकाशक – वर्तिका जबलपुर
संस्करण २०१९
साहित्य के संवर्धन, साहित्यकारो को एक मंच पर लाने में संस्थागत कार्यो की भूमिका निर्विवाद है. तार सप्तक जैसे संकलन भी केवल साहित्यकारो के परस्पर समन्वय से ही निकल सके थे जो आज हिन्दी जगत की धरोहर हैं. स्मारिका वर्तिकायन ऐसा ही एक समवेत प्रयास है जो वर्तिका के साहित्यकारो को सृजन की नव उर्जा देती हुई मुखरित स्वरूप में वर्तिका के वार्षिकोत्सव में १७ नवम्बर को भव्य समारोह में विमोचित की गई है. पत्रिका की प्रस्तुति, मुद्रण, कागज बहुत स्तरीय है, जिससे संयोजक विजय नेमा अनुज की मेहनत सार्थक हो गई है. वर्तिका के ७६ वरिष्ठ, कनिष्ठ सभी सदस्यो की कवितायें वर्तिकायन में समाहित हैं. स्वामी अखिलेश्वरानंद, सांसद राकेश सिंह जी, विधायक अजय विश्नोई जी, सांसद विवेक तंखा जी, एडवोकेट जनरल शशांक शेखर, वित्तमंत्री श्री तरुण भानोट जी, विधायक लखन घनघोरिया जी, विधायक श्री सुशील तिवारी इंदु, विधायक श्री अशोक रोहाणी, विधायक श्री विनय सक्सेना, व्यवसायी श्री मोहन परोहा, महापौर श्रीमती स्वाति गोडबोले, श्री रवि गुप्ता अध्यक्ष महाकौशल चैम्बर आफ कामर्स, कमिश्नर जबलपुर श्री राजेश बहुगुणा, जिलाधीश श्री भरत यादव, डा सुधीर तिवारी, डा जितेंद्र जामदार, इंजी डी सी जैन डा अभिजात कृष्ण त्रिपाठी, आचार्य भगवत दुबे, श्री अशोक मनोध्या, श्री एम एल बहोरिया, श्री शरद अग्रवाल तथा वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ के शुभकामना संदेश का प्रकाशन यह प्रमाणित करता है कि वर्तिका की समाज में कितनी गहरी पैठ है.
संयोजक श्री विजय नेमा अनुज ने वर्तिका की विजय यात्रा में एक तरह से वर्तिका का सारा इतिहास ही समाहित कर प्रस्तुत किया है. अध्यक्ष सोहन परोहा ने अपने दिल की बात अध्यक्ष की कलम से, में कही है. श्री दीपक तिवारी दीपक, श्री राजेश पाठक प्रवीण, ने अपने प्रतिवेदन रखे हैं. विवेक रंजन श्रीवास्तव ने साहित्यिक विकास में साहित्यिक संस्थाओ की भूमिका लेख के जरिये अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दु प्रकाश में लाने का सफल प्रयत्न किया है. डा छाया त्रिवेदी ने गुरु पूर्णिमा पर वर्तिका के समाज सेवी आयोजन का ब्यौरा देकर विगत का पुनर्स्मरण करवा दिया.
इस वर्ष सम्मानित किये गये साहित्यकारो के विवरण से स्मारिका का महत्व स्थायी बन गया है. इस वर्ष साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हेतु शिक्षाविद् श्रीमती दयावती श्रीवास्तव स्मृति वर्तिका साहित्य अलंकरण मण्डला से आये हुये श्री कपिल वर्मा को प्रदान किया गया. उक्त अलंकरण श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के सौजन्य से प्रदान किया जाता है. पान उमरिया से पधारे हुये डा आर सी मिश्रा को एवं इसी क्रम में मुम्बई के श्री संतोष सिंह को श्री सलिल तिवारी के सौजन्य से उनके पिता स्व श्री परमेश्वर प्रसाद तिवारी स्मृति अलंकरण से सम्मानित किया गया. श्री के के नायकर स्टेंड अप कामेडी के शिखर पुरुष हैं, उन्होने हास्य के क्षेत्र में जबलपुर को देश में स्थापित किया है. श्री नायकर को श्रीमती ममता जबलपुरी के सौजन्य से श्रीमती अमर कौर स्व हरदेव सिंह हास्य शिखर अलंकरण प्रदान किया गया. व्यंग्यकार श्री अभिमन्यू जैन को स्व सरन दुलारी श्रीवास्तव की स्मृति में व्यंग्य शिरोमणी अलंकरण दिया गया. इसी तरह श्री मदन श्रीवास्तव को स्व डा बी एन श्रीवास्तव स्मृति अलंकरण से सम्मानित किया गया. श्री सुशील श्रीवास्तव द्वारा अपने माता पिता स्व सावित्री परमानंद श्रीवास्तव स्मृतिअलंकरण , प्रभा विश्वकर्मा शील को दिया गया. श्रीमती विजयश्री मिश्रा को स्व रामबाबूलाल उपाध्याय स्मृति अलंकरण दिया गया जो श्रीमती नीतू सत्यनारायण उपाध्याय द्वारा प्रायोजित है. श्री अशोक श्रीवास्तव सिफर द्वारा स्व राजकुमरी श्रीवास्तव स्मृति अलंकरण,श्री संतोष नेमा को उनकी राष्ट्रीय साहित्य चेतना के लिये दिया गया. सुश्री देवयानी ठाकुर के सौजन्य से स्व ओंकार ठाकुर स्मृति कला अलंकरण से श्री सतीश श्रीवास्तव को सम्मानित किया गया. गाडरवाड़ा से पधारे हुये श्री विजय नामदेव बेशर्म को श्री सतीश श्रीवास्तव के सौजन्य से स्व भृगुनाथ सहाय स्मृति सम्मान से अलंकृत किया गया. वर्तिका प्रति वर्ष किसी सक्रिय साथी को संस्था के संस्थापक साज जी की स्मृति में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करती है, इस वर्ष यह प्रतिष्ठा पूर्ण सम्मान श्री सुशील श्रीवास्तव को प्रदान किया गया. इसके अतिरिक्त श्रीमती निर्मला तिवारी जी को कथा लेखन तथा युवा फिल्मकार आर्य वर्मा को युवा अलंकार से वर्तिका अलंकरण दिये गये. वर्तिका ने सक्रिय संस्थाओ को भी सम्मानित करने की पहल की है, इस वर्ष नगर की साहित्य के लिये समर्पित संस्थाओ पाथेय तथा प्रसंग को सम्मानित किया गया.
“हे दीन बंधु दयानिधे आनन्दप्रद तव कीर्तनम, हमें दीजीये प्रभु शरण तव शरणागतम शरणागतम “, पहली ही रचना प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी की है जो मनोहारी प्रभाव अंकित करती है.
श्री ज्ञान चंद्र पंडा की पंक्तियां “ए कायनात मैं तेरा वजूद नापूंगा, मेरी चाहत का परिंदा उड़ान लेता है “, श्री मोहन शशि ने वर्तिका के संस्थापक साज जबलपुरी के प्रति काव्य में अपने उद्गार कहे हैं. किस तरह एक संस्था के माध्यम से व्यक्ति चिरस्थाई पदचिन्ह छोड़ सकता है, यह बात वर्तिका के ध्वजवाहक साज जबलपुरी जी को स्मरण करते हुये बहुत अच्छी तरह अनुभव करते हैं. राजेंद्र रतन ने कम शब्दो में “सरहद पर गूंजी शहनाई गूंजा सारा देश, सैनिक सरहद पर खड़े स्वर सबके समवेत” लिखकर अपनी कलम की ताकत बता दी है. श्रीमती मनोरमा दीक्षित ने “सरसों के फूलो से मधुॠुतु मनाते हम” मधुर गीत रचा है. श्रीमती निर्मला तिवारी की गजल से अंश है “वारों से तेरे खुद को बचाना नहीं आता, खंजर हमें अपनो पे उठाना नहीं आता”, वरिष्ट रचनाधर्मी इंजी अमरेंद्र नारायण की पंक्तियां “लेकिन मानव की जिव्हा तो प्रतिदिन लम्बी होती जाती वह पार जरूरत के जाती वह स्वार्थ तृपति में लग जाती” जिस दिशा में इशारा कर रही है वह मनन योग्य बिंदु है. रत्ना ओझा जी ने “कब्र खोदें राजनीति में एक दूजे की लोग” लिख आज की सचाई वर्णित की है. श्रीमती चंद्र प्रकाश वैश्य ने आजादी शीर्षक से उम्दा रचना प्रस्तुत की है. श्री केशरी प्रसाद पाण्डेय वृहद ने “कृष्ण गली जो भी गया” मनोहारी लेखनी से अपनी बात कही है. श्रीमती प्रभा पाण्डे पुरनम “धुंआ” में कम में ज्यादा अभिव्यक्त करने में सफल हैं. श्री एम एल बहोरिया अनीस की गजल की पंक्तियां उल्लेखनीय हैं” लिपट के मुझसे भी रोने को दिल किया होगा उदास परदे में बेबस वफा रही होगी”. सुभाष जैन शलभ के छंद बेहतरीन हैं. डा सलपनाथ यादव ने मध्यप्रदेश स्थापना दिवस पर काव्य प्रस्तुति की है. डा राजलक्ष्मी शिवहरे ने “गुरु बिन जीवन बिन पतवार हो जैसे नाव” लिखकर गुरु का महत्व प्रतिपादित किया है. श्री सुरेश कुशवाहा तन्मय लिखते हैं “स्वयं से सदा लड़े हैं जग में रहकर भी जग से अलग हम खड़े हैं”. बसंत ठाकुर लिखते हैं “जब जब मिले हैं उनसे यही वाकया हुआ वापस चले तो जाहिल नजर लेके नम चले”..
मदन श्रीवास्तव की “कुंए में भांग”, सतीश कुमार श्रीवास्तव की “प्रकृति”, श्रीमती मिथिलेश नायक की “बिन हरदौल ब्याह न हौबे”, डा मीना भट्ट की पंक्तियां “जमीं पर चांद हमें भी एक नजर आया कि जिसके नूर से हम खुद निखरते जाते हैँ” स्पर्श करती हैं. मनोज कुमार शुक्ल “मन का पंछी उड़े गगन है खुद में ही वह खूब मगन है” सशक्त रचना है. श्री सुशील श्रीवास्तव लिखते हैं “प्यार का दीप जलाओ बहुत उदासी है गीत प्यारा सा गुनगुनाओ बहुत उदासी है”. श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल “अपना रास्ता बनाना होगा” के जरिये स्वयं को सफलता से अभिव्यक्त करती हैं. श्री राजेंद्र मिश्रा “गंगा माँ तेरी जय जय हो” के साथ उपस्थित हैं.
मनोहर चौबे आकाश ने “प्यार की संभावना का पाश हूं”, राजसागरी ने “सुख और दुख दोनो साथी हैं दोनो को अपनाओ तुम भेदभाव न रहे जगत में ऐसी अलख जगाओ तुम”, श्रीमती राजकुमारी रैकवार ने “मेरी प्यारी लेखनी”, श्री अभय कुमार तिवारी ने लिखा है “हिन्दी उर्दू अंग्रेजी से उत्तर दक्षिण बांट रहे, जिस डाली पर हम बैठे उसी डाल को काट रहे”, शशिकला सेन ने “कली की पीड़ा” को कलम बंद किया है. विजय बागरी ने “तुमसे ही प्रियतम घर मथुरा काशी है”, प्रमोद तिवारी मुनि की गजल से पंक्तियां हैं “जब पहला कदम उठता देखा मेरा, माँ मेरी रात भर मुस्कराती रही” श्रीमती सलमा जमाल लिखती हैं “हम सब हैं ईश्वर के बंदे अब गायें ऐसा गान, मस्जिद में गूंजे आरती गूंजे मंदिरो में अजान”, ऐसी सुखद कल्पना कवि की उदार कलम ही कर सकती है जिसकी राष्ट्र को आज सबसे अधिक जरूरत है. श्रीमती सुशील जैन ने “भ्रूण हत्या” पर सशक्त रचना की हे. श्रीमती किरण श्रीवास्तव ने “बेटी”, श्री सुरेंद्र पवार ने “पानी तेरे नाना रूप”, गणेश श्रीवास्तव ने “कारगिल विजय”, अर्चना मलैया ने “धुंध”, श्री गजेंद्र कर्ण ने “मेरा मन मंदिर बने सदगुरु चरण निवास प्रति पल हो हरि रूप का जप तप प्रेम प्रयास”, विजेंद्र उपाध्याय ने “नर्मदा माँ”, विवेक रंजन श्रीवास्तव ने “मैं” शीर्षक से रचनायें की हैं. नरेंद्र शर्मा शास्त्री ने “बुढ़ापे की व्यथा” लिखी है. श्री उमेश पिल्लई ने “इंतजार” शीर्षक से गहरी बात कही है. सूरज राय सूरज की गजल से उधृत करना उचित होगा “कहा सुबह से ये बुझते हुये दिये ने, मैं सूरज बन के वापस आ रहा हूं”.
श्री अशोक सिफर ने बड़ी गहरी बात की है वे लिखते हैं “यह इश्क मिजाजी और ये गमगीनी, यह तो पहचान है मुहब्बत होने की”. सलिल तिवारी अपने गीत में शाश्वत सत्य लिखते हैं “प्यार एहसास है, एहसास निभाना सीखो, साजे दिल को इसी सरगम पे बजाना सीखो”. श्रीमती संध्या जैन श्रुति ने “पश्चिम की आंधी”, श्रीमती कृष्णा राजपूत ने “शिक्षक हूं”, श्रीमती सुनीता मिश्रा ने बहुत महत्वपूर्ण बिंदु रेखांकित करती रचना की है वे लिखती हैं “महकी जूही चमेली चम्पा कली आज मेरी बेटी स्कूल चली”. संतोष कुमार दुबे ने “जबलपुर नगर हमारा”, श्रीमती ममता जबलपुरी ने “शब्द शब्द से खेला भावो को अंजाम मिला”, आषुतोष तिवारी ने “अनुमानो से बहुत बड़ा दिन अनुभव की है रात बड़ी”, बसंत शर्मा ने गजल कही है “यूं सूरज की शान बहुत है पर दीपक का मान बहुत हैं”. डा मुकुल तिवारी ने दे”श के नौजवानो आगे बढ़ो”, संतोष नेमा की सशक्त अभिव्यक्ति है “कहां गया माथे का चंदन”, राजेश पाठक प्रवीण लिखते हैं “कभी लगे सुख सागर जैसी कभी गले का हार जिंदगी, कभी दुखो की गागर जैसी और कभी त्यौहार जिंदगी”. विनोद नयन लिखते हैं “हमदर्दी जताने के लिये लोग यहां पर, हम लोगों के उजड़े हुये घर ढ़ूंढ़ रहे हैं”. अर्चना गोस्वामी “प्यार का बागवां” डा अनिल कुमार कोरी “भूल गया क्यो ?”, विनीता पैगवार ने “सदगुरु ओशो को समर्पित” रचना प्रस्तुत की है. सपना सराफ ने “कुछ मीठे बोसे हवा हर रोज मुझे दे जाती है” लिखकर गजल को उंचाईयां दी हैं. मनोज जैन ने “यह वर्ण व्यवस्था भंग करो”, प्रभा विश्वकर्मा शील ने “जुगनू”, और आलोक पाठक ने “सच है”, डा आशा रानी ने छोटी सी चाहत की है “कामयाब देखना होकर रहूंगी, मुश्किलो को हराना जानती हूं”. युनूस अदीब जी ने बहुत उम्दा गजल कही है, “जहां को रौशनी देना मजाक नही चराग बनके वो खुद को यहां जलाता है” डा राजेश कुमार ठाकुर ने “गड्ड मड्ड”, अशोक झारिया शफक ने गजल में कहा है “सितम बेवजहा ढ़ाने में तुम्हारे दिन गुजरते हैं, किसी का दिल दुखाने में तुम्हारे दिन गुजरते हैं”, अर्चना जैन अम्बर ने “संघर्ष”, दीपक तिवारी दीपक ने “न जाने कौन सा जादू है उस खुश रंग चेहरे में के जिसकी झलक पाकर हमें मुस्कराना पड़ता है.” मिथिलेश वामनकर ने “वेदना अभिशप्त होकर जल रहे हैं गीत देखो” अत्यंत झंकृत करने वाली छंद बद्ध रचना दी है. विनीत पंत यावर का गीत “कौन था मुझमें मेरे नाम से पहले”, मीनाक्षी शर्मा की “अल्पना”, और देव दर्शन सिंह की रचना “शाम का अलग ही जलवा था वो दिये की बाती कुछ कहती थी”, डा वर्षा शर्मा रैनी की रचना “अश्कों के सूख जाने से” में वे लिखती हैं “तुझे संवांर दिया हादसों ने ए रैनी, वफा का रंग बिखरता है चोट खाने से”.
स्मारिका में लगभग २८ महिला रचनाकारो की उपस्थिति यह बताती है कि साहित्य के क्षेत्र में महिलाओ की भागीदारी उल्लेखनीय है. वर्तिका को गौरव है कि इतने विविध क्षेत्रो से अंचल के बिखरे हुये रचनाकर्मियो को वर्तिकायन के द्वारा एक जिल्द में लाने का सफल प्रयास किया गया है. वर्तिकायन अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल प्रस्तुति है.
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है सुमन बाजपेयी जी की प्रसिद्ध पुस्तक “मलाला हूँ मैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा . यह मलाला यूसुफजई के संघर्ष की प्रेरक पुस्तक है । श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 14 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – मलाला हूँ मैं ☆
पुस्तक –मलाला हूँ मैं
लेखिका – सुमन बाजपेयी
प्रकाशक – राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट दिल्ली
☆ मलाला हूँ मैं – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
कल मैं अपनी लाइब्रेरी में से एक किताब “मलाला हूं मैं” पलट रहा था तभी मुझे एक व्हाट्सअप मैंसेज मिला जिसमें कुरआन शरीफ पर लिखी गयी पंक्तियाँ उद्धृत की गई थी…. उस मैसेज ने मुझे हाथ में उठाई किताब पढ़ने पर विवश कर दिया. तालिबान के सरकारो को हिला देने वाले आतंक के सम्मुख एक बच्ची के जिजिविषा पूर्ण संघर्ष को सरल शब्दो में बताने वाली यह किताब बहुत प्रेरक है.
स्वात घाटी पाकिस्तान में वैसे ही नैसर्गिक सुंदरता बिखेरती है जैसे भारत में काश्मीर. किन्तु तालिबान के कट्टर मुस्लिमवाद ने वहां का जनजीवन छिन्न भिन्न कर रखा है. बी बी सी में अपने पेन नेम गुलमकई नाम से वहां के हालात की डायरी लिखने वाली बच्ची मलाला लड़कियो के शिक्षा, खेलने, बोलने जैसे मौलिक मानव अधिकारो की पैरोकार के रूप में ऐसी स्थापित हो गई कि कलम के सम्मुख तालिबानो की बंदूके हिलने लगी थी, और परिणामतः मलाला पर कायराना हमला किया गया था.
खुशकिस्मत मलाला इस हमले में लंबे संघर्ष के बाद बच गई और वैश्विक सुर्खियो बन गई. उसे २०१४ में नोबल शांति पुरस्कार सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले.
इस पुस्तक में छोटे छोटे चैप्टर्स में मलाला युसुफजई के बचपन, उसके संघर्ष और प्रसिद्धि को बहुत रोचक व प्रभावी तरीके से बताने में लेखिका सफल रही हैं. किताब के अध्याय हैं “मलाला हूंमैं”, हिम्मत की मिसाल, स्वात की बेटी, चुना संघर्ष का रास्ता, उठाई आवाज, मेरा स्वात, शाइनिंग गर्ल, बढ़ती दहशत, डायरी में लिखी सच्चाई, हो गई चर्चित, राजनीतिक कैरियर, प्रसिद्धि बढ़ती गई, हुई क्रूरता की शिकार, पूरी दुनिया साथ हो गई, हर घर में मलाला, काम आई दुआयें, सपना पूरा हुआ, बन गई एक रोशनी, संयुक्त राष्ट्र संघ में दिया गया भाषण, सम्मान व पुरस्कार, एक गजल मलाला के नाम.
किताब इसलिये भी आज प्रासंगिक है क्योकि पाकिस्तान हर मोर्चे पर धराशायी हो रहा है पर दुनियां में आतंक का नासूर खत्म होने ही नही आ रहा. भारत में सरकार तीन तलाक, मदरसो की शिक्षा पर बेहतर करने का यत्न कर रही है किन्तु अभी भी धर्म की सही व्याख्या समझे बिना शरीयत के पैरोकार सुधारवादी कदमो का विरोध करते दिखते हैं. मलाला सिर्फ एक महिला नही, उसके इरादे को एक आंदोलन एक वैश्विक जुनून बनाये जाने की जरूरत है.
निदा फाजली की गजल है ..
मलाला , आंखें तेरी चांद और सूरज
तेरा ख्वाब हिमाला
झूठे मकतब में सच्चा कुरान पढ़ा है तूने
अंधियारो से लड़नेवाली तेरा नाम उजाला
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है विश्वप्रसिद्ध पुस्तक “मेलुहा के मृत्युंजय ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा . श्री विवेक जी द्वारा प्रेषित विगत पुस्तक चर्चाएं वास्तव में “बैक टू बैक ” पढ़ने लायक पुस्तकें हैं ।श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं विश्व प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 13 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – मेलुहा के मृत्युंजय ☆
पुस्तक –मेलुहा के मृत्युंजय
हिन्दी अनुवाद – The Immortals of Meluha
लेखक –अमीष त्रिपाठी
मूल्य – 195 रु
प्रकाशक – वेस्टलैंड लिमिटेड
ISBN 978-93-80658-82-7
☆ मेलुहा के मृत्युंजय – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
पौराणिक साहित्य पर अनेक उपन्यास , महाकाव्य आदि लिखे गये हैं. अमीश त्रिपाठी ऐसे महान लेखक हैं जिन्होने भारतीय जनमानस में व्याप्त आध्यात्मिक कथाओ को एक सूत्र में पिरोकर अपनी लेखनी से चित्रमय झांकी बनाकर प्रस्तुत करने में सफलता पाई है.
उनके लिखे उपन्यास मेलूहा के मृत्युंजय भगवान शिव की भारतीय कल्पना को साकार रूप देकर एक महानायक के रूप मे वर्णित करती है. आज का अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत का पश्चिमोत्तर भाग जहां सरस्वती नदी बहा करती थी मेलूहा भू भाग के रूप में वर्णित है. इस कथानक में अमीश जी ने साहसिक लेखन करते हुये शिव को भावुक प्रेमी, भीषण योद्धा, चमत्कारी मार्गदर्शक, प्रबल नर्तक के रूप में एक सच्चरित्र शक्तिमान व्यक्ति के रूप में केंद्र में रखते हुये ३ उपन्यास लिख डाले हैं. इसी श्रंखला के अन्य दो उपन्यास हैं नागाओ का रहस्य व वायुपुत्रो की शपथ. किताबें मूलतः सरल अंग्रेजी में लिखी गई थी फिर उनके अनुवाद हिन्दी सहित कई भाषाओ में हुये और पुस्तकें बेस्ट सेलर रही हैं.
मैंने गहराई से तीनो ही पुस्तकें पढ़ी. १९०० ई पू की देश काल परिस्थिति में स्वयं को उतारकर धार्मिक विषय पर लिख पाना कठिन कार्य था जिसे अमीश ने बखूबी कर दिखाया है.
आज जब अदालतें ये सबूत मांगती हैं कि राम हुये थे या नही? ये उपन्यास एक जोरदार जबाब हैं, जिनमें ४००० वर्ष पहले शिव को एक भगवान नही एक महान व्यक्ति के रूप में कथानायक बनाया गया है. पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर