कविराज विजय यशवंत सातपुते
☆ विजय साहित्य – साकारली गझल ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆
अंधार वेधण्याला सोकावली गझल
पाहून दीप दारी, वेडावली गझल…!
एकेक माणसांला, वाचीत चाललो
सा-या स्वभाव दोषा, नादावली गझल…!
अंधार अंतरीचा, वाटून टाकला
सोशीक यातनांना, लोभावली गझल…!
होकार देत गेलो, प्रत्येक याचका
ते घाव झेलताना, आकारली गझल…..!
आसूत नाहलो नी, हासूत थांबलो
शब्दात मांडताना, साकारली गझल….!
© विजय यशवंत सातपुते
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