मराठी साहित्य – कविता ☆ — कामवाली — ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता —–कामवाली —– . हम भविष्य में भी आपकी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।

☆ —–कामवाली —– ☆

 

कामवाली आहे मी, कडाडती  वीज आहे  !

घर मालकिणीनो,एक गार्हानं गानार आहे !!

 

आमच्यामुळे नोकरी तुमची,

तीस,चाळीस हजारांची

त्यातले तीन चार मला दिलेत

तरच मी टिकनार आहे. एक गार्हान  —

 

सिक सांगून ‘लीव्ह ‘काढता

घरातूनच ‘शी एल ‘कळवता

मी जवा खरीच  फनफनते

पगारी  खाडा करनारच आहे. एक  गार्हान  —-

 

ग्यास, दूध,पेट्रोल वाढल

तुम्हाला गाडी परवडेना ?

आमाला सादी  कापडं चोपडं

चटनी भाकरी बी मिळना.

म्हागाईचा  कहर आहे एक गार्हान—

 

तुमचा फंड बिंड, पेन्शन,

आमाला हलकं राशन

ते आनायला बी पैसा नाही.

बचत? छे! उरतच नाही.

उधार, उचल मागनारच आहे. एक गार्हान–

 

ज्याला, त्याला मानसं लाऊन

तुमचा संसार नीटनेटका

पोराना म्हागड शिक्षन

फारेनचा  खोर्याने पैका.

माजबी पोरग साळत जातय

त्याला मी इंजिनिअर करनार आहे

फाटक्याला ठिगळ लावनार आहे।

म्हनूनच  ह्ये गार्हान गाते आहे.।।।

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

Please share your Post !

Shares

हिन्दी / मराठी साहित्य – कविता ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर की मराठी कविता ‘तेव्हा’ एवं हिन्दी भावानुवाद ‘तब’ ☆ श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

( श्री भगवान् वैद्य ‘ प्रखर ‘ जी  हिंदी एवं मराठी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपका संक्षिप्त परिचय ही आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचायक है।

संक्षिप्त परिचय : 4 व्यंग्य संग्रह, 3 कहानी संग्रह, 2 कविता संग्रह, 2 लघुकथा संग्रह, मराठी से हिन्दी में 6 पुस्तकों तथा 30 कहानियाँ, कुछ लेख, कविताओं का अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी की राष्ट्रीय-स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधाओं की 1000 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से छह नाटक तथा अनेक रचनाएँ प्रसारित
पुरस्कार-सम्मान : भारत सरकार द्वारा ‘हिंदीतर-भाषी हिन्दी लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार’, महाराष्ट्र राजी हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा कहानी संग्रहों पर 2 बार ‘मूषी प्रेमचंद पुरस्कार’, काव्य-संग्रह के लिए ‘संत नामदेव पुरस्कार’ अनुवाद के लिए ‘मामा वारेरकर पुरस्कार’, डॉ राम मनोहर त्रिपाठी फ़ेलोशिप। किताबघर, नई दिल्ली द्वारा लघुकथा के लिए अखिल भारतीय ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2018’

हम आज प्रस्तुत कर रहे हैं श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी द्वारा सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  की एक भावप्रवण अप्रतिम मराठी कविता ‘तेव्हा’ काअतिसुन्दर हिंदी भावानुवाद ‘तब’ 

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  

आज प्रस्तुत है  सर्वप्रथम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की  मूल मराठी कविता  ‘तेव्हा ‘ तत्पश्चात श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी  द्वारा हिंदी भावानुवाद ‘तब ‘ 

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ तेव्हा

किती रिक्त एकाकी

असते मी

तुला भेटते

तेव्हा.

माझा सारा पदर

पसरते

झोळी म्हणून

पण, तू तर

माझ्यापेक्षाही

कंगाल निघालास

माझ्या पदराला जडवलेले

संकेतांचे मणी

स्वप्नांच्या चमचमत्या

टिकल्या

आशा-आकांक्षांचे मोती

तू अलगद उचललेस

तू घेतलंस सारंच

तुला हवं ते

आणि  दिलंस भिरकावून

माझ्या फाटक्या पदरात

एक नि:संग झपातलेपण.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ तब 

कितनी रिक्त

एकाकी होती हूं मैं

तुमसे मिलती हूं तब !

 

अपना समूचा आंचल

फैलाती हूं

झोली के रूप में

 

पर तुम तो

मुझसे भी कंगाल निकले !

मेरे आंचल में जड़े

संकेतों के मणिं

सपनों की दमकती बिंदियां

आशा-आकांक्षाओं के मोतीं

तुमने  सहज उठा लिये…

 

तुमने ले लिया सबकुछ

जो तुम्हें चाहिये

और उछाल दी

एक निर्लज्ज आसक्ति

मेरे विदीर्ण आंचल की ओर ।

 

© श्री भगवान् वैद्य ‘प्रखर’ 

30 गुरुछाया कॉलोनी, साईं नगर अमरावती – 444 607

मोबाइल 9422856767

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य – अबोल मैत्री  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “अबोल मैत्री  )

☆ विजय साहित्य – अबोल मैत्री  ☆

 

अबोल मैत्री सांगून जाते

शब्दांच्याही पलीकडले.

नजरेमधुनी कळते भाषा

कसे जीवावर जीव जडले

 

अबोल मैत्री अनुभव लेणे

माणूस माणूस वाचत जाणे

स्नेहमिलनी स्वभावदोषी

दृढ मैत्रीचे वाजे नाणे.. . !

 

अबोल मैत्री नाही कौतुक

शिकवून जाते धडा नवा

कसे जगावे जीवनात या

या मैत्रीचा नाद हवा.. !

 

अबोल मैत्री आहे कविता

संवादातून कळलेली

अंतरातली ओढ मनीची

अंतराकडे वळलेली.. !

 

अबोल मैत्री म्हणजे  जाणिव

परस्परांना झालेली

तू माझा नी मीच तुझा रे

मने मनाला कळलेली.. . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ विडंबन कविता – आम्ही  बुढ्या—– ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है नाटक—शारदा. गीत—म्हातारा इतुका न– पर आधारित आपकी एक विडंबन कविता – आम्ही  बुढ्या—–  हम भविष्य में भी आपकी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।

☆ विडंबन  गीत—-आम्ही  बुढ्या—– ☆

 

म्हातार्ऱ्या  इतुक्या न  अवघे पाऊणशे  वयमान.

ऊर्जा अजून महान अवघे पाऊणशे वयमान  ।।

 

दंताजींच्या  जागी  बसली ‘ कवळी ‘ कोवळि छान

फ्याशन चा चष्मा चेहर्ऱ्याला, देइ पोक्तशी  शान.

 

अशक्त  थोडे कान  काढती तर्काने अनुमान

‘हो ना हो ना’करते अजुनी  ताठ आमुची मान ।।

 

ड्रेस, गाऊन, बॉयकट  करुनी  परत  जाहलो सान

एसटी  देते  तिकीट  अर्धे  पुन्हां  उलटले  पान ।।

 

‘वय  झाले  वय झाले ‘म्हणुनी गात राहतो  गान

चूक भूलही  क्षम्य  अम्हाला  समाज देतो  मान ।।

 

सिनिअर  सिटिझन  ‘स्मार्ट  पदविने त्रुप्त जाहले कान

म्हातार्ऱ्या म्हणु नकाच, अवघे पाऊणशे वयमान ।।

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 49 –एक छोटासा प्रयत्न…. ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “एक छोटासा प्रयत्न….”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #49 ☆ 

☆ एक छोटासा प्रयत्न…. ☆ 

 

एकटा एकटा घाबरतो मी

जेवढे तेवढे सावरतो मी…!

 

भेटलो मी तुला आठवतो का

बोलता बोलता चाचरतो मी…!

 

ऐवढे का मनी साठवते तू

तू मला सांगना आवरतो मी ….!

 

हे तुझे लाजणे जागवते ही

रात्रही चांदणी पांघरतो मी…!

 

ऐवढी तू मला घाबरते की

पाहता पाहता बावरतो मी…

 

का अशी सांगना रागवते तू

घेऊनी काळजी वावरतो मी…!

 

हा असा मी तुला आवडतो ना …

का सुज्या एवढा गांगरतो मी…!

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 53 – आयुष्य कधीचे थांबले …….. ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक  भावप्रवण कविता “आयुष्य कधीचे थांबले ……..।  जब सब कुछ सकारात्मक लगे और हृदय में कोई उमंग जागृत न हो तब ऐसी कविता जन्मती है क्योंकि हमें बेशक लगे किन्तु, जीवन कभी भी थमता नहीं है। एक अप्रतिम रचना । सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित संवेदनशील रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 53 ☆

☆ आयुष्य कधीचे थांबले ……..☆ 

हे पात्र नदीचे संथ, अवखळ नाही

जगण्यात अता कुठलेच वादळ नाही

 

आयुष्य कधीचे थांबले काठाशी

हृदयात अताशा होत खळबळ नाही

 

तू ठेव तिथे लपवून ती गा-हाणी

सरकार म्हणे आम्हास कळकळ नाही

 

बाईस विचारा, काय खुपते आहे

गावात तिच्या मुक्तीचि चळवळ नाही

 

की मूग गिळावे आणि मूकच व्हावे ?

‘त्यांच्या’ इतकी मी मुळिच सोज्वळ नाही

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 52 ☆ साखरेची गोळी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “साखरेची गोळी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 52 ☆

☆ साखरेची गोळी☆

होती चुकून गेली

मिरची घशात माझ्या

असतेच साखरेची

गोळी खिशात माझ्या

 

पाहून बालकांना

मी जाम खूष होतो

जपलेय बालपण मी

या काळजात माझ्या

 

स्वप्नी अजून माझ्या

तो खेळ रोज येतो

होतेच टॉम जेरी

जे बारशात माझ्या

 

थकलो जरी अता मी

वय हे उतार झाले

हे केस चार काळे

आहे मिशीत माझ्या

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 7 – झाडांच्या देशात/पेड़ों के देश में (भावानुवाद) ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘झाडांच्या देशातएवं इस मूल कविता का आपके ही द्वारा हिंदी अनुवाद  ‘पेड़ों के देश में’। आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

यह कविता हायकू सदृश्य है। किन्तु, इसे हायकू नहीं कह सकते। यहाँ 3 पंक्तियों की रचना है किन्तु, मात्रा का विचार नहीं किया है। इसे त्रिवेणी या  कणिका कहा जा सकता है। 

–  श्रीमति उज्ज्वला केळकर

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 7 ☆ 

☆ झाडांच्या देशात  

(काही हायकू)

झाडांच्या देशात

ऊन पाहुणे आले.

फुलांच्या भेटी देउन गेले.

 

झाडांच्या देशात

पाऊस पाहुणा आला.

भुइच्या घरात जाऊन दडला.

 

झाडांच्या देशात

शिशिर पाहुणा आला.

पाने ओरबाडून पळून गेला.

 

झाडांच्या देशात

पक्षी पाहुणे आले.

वहिवाटीच्या हक्कावरून भांडत सुटले.

 

झाडांच्या देशात

चंद्र पाहुणा आला.

सावल्यांचा खेळ खेळत राहिला.

 

☆ पेड़ों के देश में  

(श्रीमती उज्ज्वला केळकर द्वारा उनकी उपरोक्त कविता का हिंदी भावानुवाद)

 

पेड़ों के देश में

धूप मेहमान आयी

फूलों की भेंट चढ़ाकर चली गई।

 

पेड़ों के देश में

बारिश मेहमान आयी

भूमि के घर जा छिप गयी

 

पेड़ों के देश में

शिशिर मेहमान आया

पत्तों को झिंझोड़ कर भाग गया।

 

पेड़ों के देश में

पंछी मेहमान आये

आवास के अधिकार के लिए झगड़ते रहे।

 

पेड़ों के देश में

चन्द्र मेहमान आया

परछाइयों से खेल खेलता रहा।

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 3 ☆ वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 3 ☆ 

☆ वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ☆

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

नारे फक्त लावल्या गेले

वन मात्र उद्वस्त झाले..०१

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे…

अभंग सुरेख रचला

आशय भंग झाला..०२

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

झाडांबद्दलची माया

शब्द गेले वाया..०३

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

वड चिंच आंबा जांभूळ

झाडे तुटली, तुटले पिंपळ..०४

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

संत तुकारामांची रचना

सहज पहा व्यक्त भावना..०५

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

तरी झाडांची तोड झाली

अति प्रगती, होत गेली..०६

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

निसर्ग वक्रदृष्टी पडली

पाणवठे लीलया सुकली..०७

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

पाट्या रंगवल्या गेल्या

कार्यक्रमात वापरल्या..०८

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

वृक्षारोपण झाले

रोपटे तडफडून सुकले.. ०९

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

सांगणे इतुकेच आता

कोपली धरणीमाता..१०

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ विद्येचे बाळ ☆ सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

(सौ. मिनल अविनाश कुडाळकरजी  का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । आप अपने कॉलेज के समय से ही साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ लिख रही हैं। आपका संक्षिप्त साहित्यिक परिचय आपके ही शब्दों में – “कॉलेज  जीवना पासून लेखनाची आवड होती. फुलांवरच्या कविता. प्रसंगानुरूप लेखन करत आहे. सांगलीतील 81व्या साहित्य संमेलनामुळे पुन्हा लिहायला सुरुवात केलीआणि 2011ला लेक वाचवा या विषयावरील “मायेची ओंजळ” हा काव्य संग्रह प्रकाशित करण्यात आला. त्यावर विविध ठिकाणी कार्यक्रम करण्यात आले. समाज कार्यामुळेही लेखन करत आहे।”  आज प्रस्तुत है आपकी कविता “विद्येचे बाळ”।)

☆ विद्येचे बाळ ☆

 दिवा जळतो  आहे

अनेक वाती बनून

ज्योत बनन्याच काम केलेस तू

स्त्री जातीच्या, अंधारमय प्रकाशाला

लख्ख प्रकाशित केलेस तु

कालबाह्य रीतिरिवाज

जाळतच राहिलीस तू

अन् उमेदीने जगण्यासाठी

नवशिक्षित केलस तू

बदलत्या काळानुसार स्त्रीत्वाला

सामोरे जाण्याचं धैर्य दिलंस तू

स्त्री हक्कासाठी लढताना

इतिहासकालीन स्त्रीत्व दाखवल तू

स्त्री- पुरुष समानता

ते एकमेकांसाठीच आहेत

हे पदोपदी सिद्ध केलंस तू

स्त्री जीवनाचं शल्य सांगताना

तिला जगण्यासाठी बद्ध केलंस तू

तुझ्या लखलखणाऱ्या ज्योतीने

कितीतरी वातींना तेजोमय केलंस तू

मिळून साऱ्याजणींना एकत्र केलंस तू

सावित्री बनलीस आणि इतिहास गाठलास तू

पुन्हा पुन्हा नव्याने तेवण्याची

जिद्द मात्र ठेवलीस तू

तुझ्या विद्येच्या स्त्री जातीच्या बाळाला

जन्म देण्यासाठी एकदा पुन्हा परत ये

पुन्हा एकदा परत ये….पुन्हा एकदा परत ये…..

 

© सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

सांगली

Please share your Post !

Shares
image_print