मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 48☆ शौकिनांचे शहर☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत भावप्रवण कविता  “शौकिनांचे शहर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 48 ☆

☆ शौकिनांचे शहर ☆

कधी गाव होते नगर आज झाले

वहात्या नदीवर कहर आज झाले

 

इथे रोज जन्मास येतात रस्ते

किती वृक्ष येथे अमर आज झाले

 

इथे काल होती वने टेकड्याही

तिथे शौकिनांचे शहर आज झाले

 

कधी भ्रष्ट म्हणुनी तुरुंगात गेले

पुन्हा मुळपदावर हजर आज झाले

 

दुकानात मंदी मला हे कळेना

पुढारी कशाने गबर आज झाले

 

नको ना बखेडा जरी मी म्हणालो

तुझा हट्ट होता समर आज झाले

 

अशोकास मुक्ती कशाने मिळाली

तिचे मोकळे हे अधर आज झाले

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 3 – त्यावेळी ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है।

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण अप्रतिम कविता ‘त्यावेळी ’ । साथ ही इस कविता का वरिष्ठ मराठी एवं हिंदी साहित्यकार  श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी  द्वारा हिंदी अतिसुन्दर भावानुवाद उस समय’ भी आज के ही अंक में प्रकाशित कर रहे हैं ।

आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 3 ☆ 

☆ कविता – त्यावेळी   

 

त्यावेळी

वाटलं होतं

आपण

एकमेकांना

अगदी अनुरुप

जसं

दोन देह

एक मन

दोन श्वास

एक जीवन

पण

पुलाखालून

थोडं पाणी

वाहून गेलं

आणि लक्षात आलं

आपले

फुलण्याचे ऋतू वेगळे.

तसेच पानगळीचेही.

आता आपण कुरवाळतो

स्वतंत्रपणे

पाखरांच्या स्मृती

आपल्या बहरानंतरच्या

आणि वाट पाहतो

नव्या बहराची

आपल्या पनगळीनंतरच्या.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य – मातृ दिवस विशेष – आई तुझे रुप ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  मातृ दिवस  के  अवसर पर आपकी विशेष कविता  “आई तुझे रुप )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य ☆

☆ मातृ दिवस विशेष – आई तुझे रुप ☆

आई नाव देई

जगण्या आधार

आई तुझे रूप

वात्सल्य साकार.. . !

 

आई तुझा शब्द

पारीजात फूल

सेवेमध्ये तुझ्या

होऊ नये भूल.. . !

 

आई तुझे रूप

आदिशक्ती वास

घराचे राऊळ

ईश्वराचा भास. . . . !

 

आई तुझे स्थान

सदा  अंतरात

अन्नपूर्णा वसे

तुझ्या भोजनात.. !

 

आई तुझे रूप

चिरंतन पाया

स्नेहमयी गंगा

अंतरीची माया.. . !

 

*विजय यशवंत सातपुते,

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 45 – स्त्री अभिव्यक्ती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण गीत  ” स्त्री अभिव्यक्ती”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 45 ☆

☆ स्त्री अभिव्यक्ती ☆

 

अभिव्यक्तीच्या  नावावरती, उगाच वायफळ बोंबा  हो।

अन् चढणारीचा पाय ओढता….उगा कशाला थांबा हो।

जी sssजी र ss जी जी

माझ्या राजा तू रं माझ्या  सर्जा तू रं  ssss.।।धृ।।

 

गर्भामधी कळी वाढते, प्राण जणू तो आईची।

वंशाला तो …हवाच दीपक , एक चालेना बाईची।

काळजास त्या सूरी लावूनीsss, स्री मुक्तीचा टेंभा हो।।

चढणारीचा पाय……..ranjana

जी जी रं जी…।।1।।

 

आरक्षण..! हे दावून गाजर, निवडून येता बाई हो।

सहीचाच तो हक्क तिला… अन् स्वार्थ साधती बापे हो।

संविधानाची पायमल्ली ही… की स्री हाक्काची शोभा हो…।

चढणारीचा पाय……..

जी जी रं जी….।।2 ।।

 

स्री अभिव्यक्ती बाण विषारी…..घायाळ झाले बापे… ग।

सांग साजणी कशी रुचावी….स्त्रीमुक्तीची नांदी ग।

कणखर बाणा सदा वसू  दे …. नको भुलू या ढोंगा हो।

चढणारीचा पाय……..।।3।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 10 ☆ समर्पण ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “समर्पण“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 10 ☆

☆ कविता – समर्पण

 

तुझ्यासमीप साजणी,क्षण गं एक राहू दे

एकरुप होऊनी, प्रीतीसुगंध वाहू दे!!

 

क्षण गं एक,एक निमिष

एक घटी,एक दिवस

एक मास,एक वर्ष

तुजसवे गं राहू दे,जीवन एक पाहू दे!!

 

लोचनी मनी ,तव जीवनी

अधरद्वयी ,फुलराणी

गात्री तुझ्या ,ध्यानी मनी

मज समीप राहू दे, सुगंधात न्हाऊ दे !!

 

वसंत हा ,बहार ही

हाच मधू ,मास ही

या ऋतूत ,पंचम ऋतू

एक वेळ येऊ दे,समर्पण गं होऊ दे!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 34 – श्रीसमर्थांचे मनाचे श्लोक ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी स्वामी श्री समर्थ रामदास जी को समर्पित रचना   “श्रीसमर्थांचे मनाचे श्लोक”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 34 ☆

☆ श्रीसमर्थांचे मनाचे श्लोक ☆ 

(काव्यरचना:-अष्टाक्षरी छंद )

श्री समर्थ रामदास

चाफळक्षेत्री निवास

तेथे नित्य लाभतसे

श्रीरामाचा सहवास !!१!!

 

समर्थांनी लिहिलेला

सर्व वाङ्मय सागर

दासबोध सर्वश्रुत

वेद शास्त्रांचा आधार !!२!!

 

वाङ्मय सागरातील

श्र्लोक मनाचे सुंदर

समर्थांनी केले होते

जन्मोत्सवाला सादर !!३!!

 

श्रीक्षेत्र चाफळ येथे

मध्यरात्री कल्याणास

सांगितले समर्थांनी

त्वरे लिहून घेण्यास !!४!!

 

प्रती करुनिया त्यांच्या

केल्या वाटप शिष्यांना

जाऊनीया घरोघरी

म्हणा मोठ्याने तयांना!!५!!

 

खणखणीत आवाज

ऐकुनिया बाया येती

धान्य भिक्षा घेऊनिया

सुपासुपाने वाढती !!६!!

 

प्रभावाने भारलेले

श्र्लोक मनाचे ऐकुनी

मरगळलेले जन

उभे राहिले ऊठुनी !!७!!

 

शक्ती संचार तयांना

झाला समर्थ कृपेने

झुंजावयाला शत्रूसी

धावू लागले त्वरेने !!८!!

 

मारुतीच्या मंदीरात

खणखणीत आवाज

येई मनाच्या श्लोकांचा

रोज होता तिन्हीसांज !!९!!

 

श्र्लोक दोनशें पाच तें

केली रचना तयांची

जो ईश सर्व गुणांचा

केली सुरुवात सांची !!१०!!

 

जयजय रघुवीर

असा घोष तो करुनी

सांगितले भिक्षा मागा

असे समर्थे करुनी !!११!!

 

!!जयजय रघुवीर समर्थ!!

©️®️उर्मिला इंगळे

सातारा

दिनांक:-८-५-२०

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 49 – स्त्री ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक कल्पनाशील कविता “स्त्री “।  निःसंदेह सुश्री प्रभा जी  की कविता स्त्री मानसिकता पर आधारित है  और लिखने की आवश्यकता नहीं कि स्त्री मानसिकता पर स्त्री से बेहतर कौन लिख सकता है ? शेष भविष्य की परिकल्पना सार्थक एवं सजीव है । जैसे सब कुछ नेत्रों के सम्मुख घटित हो रहा है और भूतकाल में भी ऐसा होगा। अद्भुत परिकल्पना। सुश्री प्रभा जी की  परिकल्पना को लिपिबद्ध करती  हुई लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 49 ☆

☆ स्त्री ☆ 

 

किशोरवयात भावलेली

एक स्त्री..

दिसायला सर्व सामान्य,

पण खानदानी व्यक्तिमत्व!

हातात बांगड्या,

डोईवर पदर!

हाताखाली चार मोलकरणी!

सरंजामदारणीचा रूबाब सांभाळणा-या …..

आमच्या पवार काकी!

डोईवरचा पदर ढळू न देता…

आरामखुर्चीवर बसून सतत

वाचत  असायच्या किंवा

करत  असायच्या सूचना—

स्वयंपाकीणबाईला..

अनसूयाबाई ऽऽ हे करा….

घर स्वच्छ, नीटनेटक..

जिथल्यातिथे…

 

जगरहाटी प्रमाणे माझं ही,

झालं  लग्न …

हिरवा चुडा…डोईवर पदर..

रांधा वाढा …

गर्भारपण..

आईपण…….

….

घुसमट…

कविता….

संघर्ष…

 

नारीमुक्ती…

शिक्षणाचा विस्तार..

वाचन…संशोधन…लेखन..

कक्षा रूंदावणं…

कुणी विदुषी म्हणून संबोधणं !

घरातले पसारे पुस्तकांचे…कपड्यांचे…

 

काही गवसलेलं काही निसटलेलं…..

 

परवा विचारलं सहज कुणीतरी…

पुढच्या जन्मी काय व्हायला  आवडेल?

बोलून गेले सहज…

 

“मला सरंजामशाहीत जगायला  आवडेल….पण मुख्य सरंजामदारीण मी असले पाहिजे. ”

 

हे भूतकाळातलं स्वप्न की अधःपतन??

मी पूर्ण  अनभिज्ञ…

 

माझ्याच मानसिकतेशी !!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 47☆ महिमा काळाचा☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत भावप्रवण कविता  “महिमा काळाचा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 47 ☆

☆ महिमा काळाचा ☆

 

देह आहे कापराचा

म्हणे मालक जागेचा

जागा जागेवर आहे

धूर होतोय देहाचा

 

डाव हाती तुझ्या नाही

वागणे हे राजेशाही

डाव श्वासाने जिंकला

दिला झटका जोराचा

 

नको ऐश्वर्याचे सांगू

आणि मस्तीमध्ये वागू

येता वादळ क्षणाचे

होई पाला जीवनाचा

 

नाही कडी नाही टाळा

खग उडून जाईल

नाही भरोसा क्षणाचा

 

तुझे आसन ढळले

नाही तुलाही कळले

स्थान अढळ नसते

सारा महिमा काळाचा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 2 – कविता तुझी ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है।

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘कविता तुझी’ । साथ ही इस कविता का वरिष्ठ मराठी एवं हिंदी साहित्यकार  श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी  द्वारा हिंदी भावानुवाद कविता तुम्हारी’ भी आज के ही अंक में प्रकाशित कर रहे हैं ।

आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 2 ☆ 

☆ कविता तुझी  

ही कविता तुझी

तुझ्यासाठी

समोर कोसळणारा धुवांधार पाऊस

रुजवतो आहे

रोमरोमात पेरलेले

तुझे स्पर्श…

घरानं कधीचंच नकारलेलं मला

देऊळही नाही एखादं दृष्टीपथात

अथवा पडकीही धर्मशाळा

निळंभोर आकाश

दूर गेलय रुसून

माझ्यापासून

किरणाचा इवला ठिपकाही

नाही उबेला.

या दिशाहीन वाटचालीत

सोबतीला आहेत

तुझ्या अनेक आठवणी

आणि…आता…

त्यांच्या विस्कटलेल्या कविता

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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मराठी साहित्य – कविता ☆ कामगार ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कामगार )

☆  कामगार ☆

 

जगानं कितीही प्रगती केली

तरी वर्षानुवर्ष झोपडीत

मुक्कामाला राहिलेलं दारीद्रय

हलता हललं नाही झोपडीतून. . . . !

या दारीद्रयानच सा-यांना

कामाला लावलं, कामगार बनवलं

कामगार,  कामगार

निळी काॅलर निमुटपणे

घामच गाळत राहिली.

कधी रोजंदारीवर तर कधी

महिन्याच्या बोलीवर

कामगार आजा, बाप

मरमर राबताहेत.

झोपड्या बदलल्या

पण झोपडपट्टी काही सुटली नाही.

दारीद्र्याला कंटाळून

आम्ही पण पाहिली स्वप्न .. .

चांगल शिक्षण घेऊन

सरकारी नोकरदार व्हायची.

पण कसचं काय

मिसरूड फुटली नी . . शाळा सुटली.

पाटी फुटली  आन

जेवणाच्या डब्यात जिंदगी  आटली.. !

कर्ज ,पाणी,  दवा, दारू

सारी हयात अशीच कटली.

बॅक नावाची ईमारत लांबूनच दिसली.

पैशाची काढघाल करायला पैशाची चळत

उभ्या जिंदगीत शिलकीतच नाय पडली.

जितकं कमावलं तितकं गमावलं.

कामगाराचं जिणं ,कामातच राहिल.

सरकार आलं, सरकार गेलं.

घामाचा दाम द्येवून ग्येलं.

हातावरचं पोट  आमचं

दोन येळच्या अन्नासाठी

कामाच्या शोधात सारी दुनिया

वणवण करीत राह्यलं.

सारा महाराष्ट्र फिरलो राब राब राबलो..

कामगार होतो. . . कामगारच राहिलो. . . !

भारत माझा महान शुभेच्छा देत घेत

झोपडीत होतो झोपडीतच राहिलो. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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