श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१६ ☆ श्री सुरेश पटवा
लोटस महल परिसर
कृष्णदेव राय की दोनों रानियाँ जनाना महल में धिकांश समय सुख और शांति के साथ बिताती थी। लोटस महल जनाना बाड़े का एक हिस्सा था। जहां विजयनगर साम्राज्य के शाही परिवार रहते थे। लोटस महल को उस समय की शाही महिलाओं के लिए घूमने और मनोरंजक गतिविधियों का आनंद लेने के लिए डिजाइन किया गया था। दरबारियों के रहवास महल परिसर के बाहर थे। महल राजा और उसके मंत्रियों के लिए बैठक स्थल के रूप में भी काम करता था। प्राप्त मानचित्रों में इस स्थान को परिषद कक्ष के रूप में भी जाना जाता है। 18 वीं सदी मे मिले नक्शों में कमल महल को काउंसिल चैंबर भी कहा गया है। कमल महल और चित्रांगिनी महल ऐसे अन्य नाम हैं जिनसे इसे पहले जाना जाता था। इस स्थान पर संगीत समारोह और अन्य मनोरंजन गतिविधियाँ आयोजित की गईं।
कमल महल को यह नाम इसके आकार के कारण दिया गया है। बालकनी और रास्ते एक गुंबद से ढके हुए हैं जो खिली हुई कमल की कली की तरह दिखता है। केंद्रीय गुंबद पर भी कमल की कली की नक्काशी की गई है। महल के घुमावों को इस्लामिक स्पर्श दिया गया है जबकि बहुस्तरीय छत का डिज़ाइन इमारतों की इंडो शैली से संबंधित है। शैली और डिज़ाइन इस्लामी और भारतीय वास्तुकला शैली का एक जिज्ञासु मिश्रण है।
महल दो मंजिला इमारत है, जो अच्छी तरह से संरचित है। यह एक आयताकार दीवार और चार मीनारों से घिरा हुआ है। ये मीनारें भी पिरामिड आकार में हैं जिससे कमल जैसी संरचना का दृश्य दिखाई देता है। महल की मेहराबदार खिड़कियों और बालकनी को सहारा देने के लिए लगभग 24 खंभे मौजूद हैं। दीवारों और खंभों पर समुद्री जीवों और पक्षियों जैसे पैटर्न की खूबसूरती से नक्काशी की गई है।
महल के आसपास का क्षेत्र कई छायादार पेड़ों से ढका हुआ है जो महल को एक शांत वातावरण प्रदान करता है। शाम के समय जब लोटस महल जगमगाता है, तो पर्यटकों को एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। तस्वीरें लेने के लिए यह पूरे हम्पी में एक असाधारण स्थान है। हम्पी की यात्रा के दौरान लोटस महल सूची में एक निश्चित गंतव्य होना चाहिए। यह जानकर आप दंग रह जाएंगे कि सदियों पहले भारतीय वास्तुकला और कारीगर अपनी श्रेणी में कितने सर्वश्रेष्ठ थे।
दिन भर पैदल उठक बैठक से सभी लोग थकने लगे थे। शाम भी होने को आई। बस का रूख होटल की तरफ़ मोड़ने का आदेश हुआ। वापसी यात्रा में अधिकांश साथी झपकियों की थपकियों के अहसास से गर्दन झुका कर ऊँघने लगे। हमने कुछ जागृत मुसाफ़िरों को तेनाली राम का एक किस्सा सुनाया।
एक साथी ने पूछा – लगता है तेनाली और बीरबल एक ही व्यक्ति था।
हमने उन्हें बताया – नहीं, राजा कृष्ण देवराय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी था, तेनालीराम। असल में उसका नाम रामलिंगम था। तेनाली गांव का होने के कारण उसे तेनालीराम कहा जाता था। तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे। यह राजा कृष्ण देवराय का प्रमुख सलाहकार भी था। इतिहास से अनभिज्ञ सज्जन तेनाली राम को अकबर के दरबारी बीरबल से प्रभावित बता देते हैं। यह सही नहीं है।
तेनाली राम-कृष्णदेव राय 1526-1530 के आसपास बाबर के समकालीन थे। कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में हुई जबकि बीरबल अकबर (1556-1605) के समकालीन थे। बीरबल तेनाली को जानते होंगे लेकिन तेनाली ने कभी बीरबल के बारे में नहीं सुना क्योंकि दोनों की उम्र में 50 साल का अंतर था। तेनाली उस समय के थे, जब इब्राहिम लोदी दिल्ली के सुल्तान थे। इसलिए बीरबल के तेनाली को जानने की संभावना भी कम है। हाँ, बाद में इनके किस्से आपस में घुलमिल गए। कल्पनाशील लेखकों को यहाँ का वहाँ चिपकाने में महारत हासिल होती है। अवसर भी था और ज़रूरत भी। हमने साथियों को तेनाली राम का ‘स्वर्ण मूषक पुरस्कार’ क़िस्सा सुनाया।
महाराज कृष्णदेव राय अपने दरबार के सभी सभासदों को विशेष महत्व देते थे, किंतु फिर भी सभासदों को प्राय: ऐसा लगा करता था कि महाराज तेनाली राम पर अधिक कृपालु हैं और उसे ऐसा मौक़ा दे दिया करते हैं कि वह शेष सभी सभासदों पर भारी पड़ता है। इसलिए आम सभासद ऐसे अवसरों की तलाश में रहते थे, जब तेनाली राम का मज़ाक उड़ाया जा सके।
एक दिन दरबार लगा हुआ था। आम दिनों की तरह ही कार्रवाई चल रही थी। तभी महाराज ने एक अजीब-सी गंध महसूस की। उन्होंने सभासदों से पूछा, ‘क्या उन्हें कोई दुर्गंध महसूस हो रही है?’
सभी सभासदों ने बिना सतर्कता से दुर्गंध अनुभव करने की कोशिश किए ही कहा, ‘नहीं महाराज!’
लेकिन तेनाली राम आस-पास की हवा महसूस करता हुआ बोला, ‘हां, महाराज! ऐसी गंध मरे चूहे के शरीर में सड़न उत्पन्न होने के कारण पैदा होती है। लगता है, कहीं आस-पास ही कोई चूहा मरा पड़ा है।’
महाराज ने सेवकों से अविलम्ब चूहे की खोज करने के लिए कहा। थोड़ी ही देर में एक सेवक ने मरा चूहा ढूंढ़ निकाला और उसे लेकर महाराज के पास चला आया।
महाराज सेवक पर नाराज़ हो गए। उन्होंने कहा, ‘ठीक है! तुमने इसे खोज निकाला मगर इसे यहां लाने की आवश्यकता क्या थी? कहीं फेंक आते, फिर मुझे आकर सूचना दे देते। मैं इस चूहे का क्या करूंगा?’ सेवक डर से थरथर कांपने लगा।
तभी एक दरबारी ने कहा, ‘महाराज, आप चाहें तो चूहा इस दरबार के सबसे विद्वान सभासद तेनाली राम को भेंट कर सकते हैं। आपने उसे तरह-तरह के उपहार दिए हैं, आज मरा चूहा ही सही।’
दरबारी की बात पर सभासद ही-ही-ही-ही करने लगे। बोलने वाला सभासद भी दरबार में मसखरा माना जाता था, इसलिए महाराज ने उसकी बातें अनसुनी कर दीं। मगर तेनाली राम इस सभासद की बातों में छुपे कटाक्ष को समझ गया। तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘माननीय सभासद, यदि महाराज ने मुझे यह चूहा उपहार में दिया तो मैं इसे आदर के साथ ग्रहण करूंगा। चूहा भगवान गणपति का वाहन ऐसे ही नहीं बन गया है।’
महाराज, तेनाली राम का प्रतिवाद सुन मुस्करा दिए और बोले, ‘मरे चूहे का तुम क्या करोगे?’
‘यदि आपने मुझे यह चूहा भेंट किया तब मैं यह समझूंगा कि आप मेरी बुद्धि की परीक्षा लेना चाहते हैं और यह परीक्षा देने के लिए मैं इस चूहे से व्यापार करूंगा महाराज, तेनाली राम ने कहा।
‘मरे चूहे से व्यापार, यह तुम कैसे कर सकते हो तेनाली राम?’ महाराज ने पूछा।
‘महाराज, संसार की प्रत्येक वस्तु का कोई-न-कोई उपयोग है। कुछ भी व्यर्थ नहीं है। मैं इस मरे चूहे को किसी सपेरे को बेच आऊंगा और उससे गुड़ ख़रीद लूंगा। गर्मी का मौसम है। मैं गुड़ को पानी में मिलाकर मीठा पानी बेचूंगा। इससे जो पैसे मिलेंगे, उससे चना ख़रीदूंगा और चना बेचकर चने से बने पकवान बेचकर पैसा कमाऊंगा और उन पैसों से बड़ा रोज़गार आरम्भ करूंगा।’ तेनाली राम ने कहा।
तेनाली राम की बातें सुनकर महाराज प्रसन्न हुए और सभासदों से कहा, ‘तेनाली राम की यही तर्कबुद्धि उसे तेनाली राम बनाती है। हमें इस बात का गर्व है कि हमारे दरबार में तेनाली जैसा बुद्धिमान सभासद है। मैं आज इसके उत्तर से इतना संतुष्ट हूं कि इसके लिए ‘स्वर्ण मूषक’ पुरस्कार की घोषणा करता हूं तथा राज्य के कोषाध्यक्ष को आदेश देता हूं कि तेनाली राम को पुरस्कृत करने के लिए पांच तोला सोने का चूहा बनवाकर दरबार को यथाशीघ्र सौंपे।’
महाराज के इस आदेश का पालन हुआ। उस दिन दरबार में महाराज ने तेनाली राम को सोने का चूहा पुरस्कार में देकर उसे अपने गले से लगा लिया। तेनाली राम के आलोचकों को महाराज की ओर से दिया गया यह एक करारा जवाब था। तो ऐसा था विजयनगर साम्राज्य का दरबार।
इस किस्से से यह पता चलता है कि उस समय विजयनगर साम्राज्य धनधान्य से भरा रहता था। तभी महल तक में चूहे पहुँच जाते थे, और व्यावसायिक उद्यमशीलता के विचारों को पोषित किया जाता था।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈