हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 20 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 20 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

यहां की प्रायः बिल्डिंग्स की बाहरी दीवारों पर अतफर में लटकी सीढियां देख चौंकिए मत । दरअसल यहां भवन की दीवार, फ्लोर प्रमुखता से लकड़ी के बोर्ड से बने होते हैं ।
कालम, बीम, प्रमुखता से स्टील सेक्शन गर्डर, होते हैं । जो नट बोल्ट से कसे हुए होते हैं । यही कारण है की एम्पायर स्टेट बिल्डिंग के बनने का समय बेहद कम था । समूचा न्यूयार्क मेड आफ स्टील कहा जा सकता है । सौ बरस से पहले बनाए गए “सब वे” जिन पर जमीन से चार पांच मंजिल नीचे तक ट्रेन दौड़ रही हैं , हडसन नदी पर बने ब्रुकलिन ब्रिज सहित पुल , टनल में ओवर सेक्शन स्टील का प्रयोग दिखता है ।

स्टील के साथ लकड़ी ही दूसरा बड़ी मात्रा में प्रयुक्त बिल्डिंग मैटेरियल है। आजकल बन रही बिल्डिंग्स में प्रारंभिक तीन चार मंजिले कंक्रीट की दिखती हैं , उससे ऊपर की मंजिलों में लकड़ी ही प्रयुक्त की जाती है। नीचे की मंजिलों में भी ठंड से बचाव के लिए वुडन फ्लोर होते हैं । इसलिए आग का खतरा ज्यादा होता है। फायर ब्रिगेड का तगड़ा नेटवर्क है ,और सेफ्टी रूल्स बेहद सख्त हैं ।

सभी तरह की इमरजेंसी के लिए नंबर 911 है ।

अग्नि दुर्घटनाओं से बचाव के लिए ही प्रायः भवनों की बाहरी दीवारों पर पहली मंजिल तक अतफर में लोहे की सीढियां फिट की जाती हैं , जिससे किसी दुर्घटना की स्तिथि में लोग आउटर वाल से फटाफट स्केप कर सकें ।

बाहर से सीधे कोई चढ़ एन सके इस सुरक्षा के दृष्टिगत पहली मंजिल से नीचे की लेडर फोल्डेड होती है।

मतलब हमारी फिल्मों के मजनू जी को सेनेटरी पाइप से चढ़कर प्रेमिका के कमरे तक पहुंचने की जरूरत नहीं, बाकायदा सीढी से चढ़ कर पधारा जा सकता है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 19 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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अमेरिकन ज्वाइन टु हेल्प

ठंड बहुत होती है। कुछ को कपड़ो की जरूरत होती है। बदलते फैशन की ग्लैमर से चकाचौंध की इस दुनियां में कइयों के वार्डरोब बिना पहने ही बदल जाते हैं । जींस जैसे कपड़े फाड़े नहीं फटते । फिर इन दिनों तो फटे जींस ज्यादा ही फैशनेबल हैं । हवाई जहाज में सीमित वजन का सामान ही ले जाया जा सकता है। दुबई एयरपोर्ट पर तो बाकायदा बड़े बड़े बाक्सेज लगे हैं, जिनमें आप अपना अतिरिक्त वजन का सामान डाल सकते हैं , लोग पहले खरीद लाते हैं बेहिसाब खजूर, चाकलेट इत्यादि फिर जब गेट पर लगेज का वजन घटाना चाहते हैं तो छोड़ना पड़ता है इन डिब्बों में, दुनियां में भी न कोई कुछ लेकर आता है और न लेकर जा सकता है, सिवाय नेकी के ।

तो नेकी के लिए “अमेरिकन ज्वाइन टु हेल्प” की गाडियां घूमती मिल जाती हैं, वीक एंड पर सोशल वर्कर्स कम्यूनीटी में पहुंच कर क्लाथ कलेक्ट कर सकते हैं, बस उन्हें सूचना दे दी जाए ।

पर हित सरिस धरम नहीं भाई, हिट है।

भारत में भी दीपावली पर सभी घरों की सफाई करते हैं, अनुपयोगी सामान मिट्टी मोल कबाड़ी को बेचने के बनिस्पत किसी जरूरत मंद तक पहुंच जाए इस हेतु कुछ संस्थाएं सक्रिय भी हैं, उदार मन से जुड़ने की भावना विकसित हो यह आवश्यकता है ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 18 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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न्यूयार्क में इंडिया – पेट में अखंड भारत की पुनर्स्थापना

भारत ही नहीं विदेशों में भी समान धार्मिक वैचारिक परिवेश के लोगों का ध्रुवीकरण देखने मिलता है. कम से कम बसाहट में । यह ध्रुवीकरण किसी हद तक नैसर्गिक मानवीय व्यवहार है.

मैं यहां न्यूयार्क में देखता हूं, क्वींस एरिया जैक्सन हाइट्स एरिया में या न्यूजर्सी में मिनी इंडिया क्षेत्र में बांग्लादेश, पाकिस्तान, भारत के लोग बड़ी तादाद में बसे हुए हैं.

इसी इंडियन डायसपोरा को मोदी जी ने अपनी विदेश यात्राओं में अपना हथियार बना कर भारत की ताकत के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया है.

न्यूयार्क में इन क्षेत्रों में बसे भारत में “अपना बाजार”, डी मार्ट, “पटेल ब्रदर्स” भारतीय सामानो का मार्ट, पान की दुकानें बहुतायत में हैं, किचन से लेकर उपयोग का हर भारतीय सामान मिलता है.

भारतीय मिठाई, चाट फुल्की सहजता से सुलभ है.

यहां ऐसा लगता है कि मानो न्यूयार्क में सार्क देश बसे हुये हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश के लोग भी उसी आत्मीयता से मिलते बातियाते हैं, हमने एक पाकिस्तानी रेस्त्रां में जर्सी में बढ़िया गरमा गरम समोसे खाए.

बंगला देशी फुसकी का मजा जैक्सन हाइट्स एरिया में लिया. लगा सारा अखंड भारत ही उदर में पुनर्स्थापित कर लिया हो.

बिना अंग्रेजी बोले भी इन क्षेत्रों में सारे काम किए जा सकते हैं.

खैर, यह मानवीय प्रवृत्ति है, वहां भारत में हम विदेशी कांटिनेंटल फूड ढूंढते हैं और यहां भारतीय भोजन मिल जाए तो धन्य हो जाते हैं.

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 17 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 17 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

भारत में अच्छे से फ्लैट, बंगले में बाहरी गैलरी में प्रायः अरगनी पर कपड़े सूखते दिखते हैं, क्योंकि वहां कपड़े धूप में प्राकृतिक गर्मी से सुखाए जाते हैं । वहां का मौसम ऐसा होता है ।

यहां किसी के घर में बालकनी में कपड़े सूखते नहीं दिखते , क्योंकि यहां अक्सर मौसम ही नमी भरी हवाओ वाला होता है । इससे यहां लांड्री बिजनेस खूब चल निकला है । ढेर सारी वाशिंग मशीन, और उतने ही ड्रायर लगे हुए हैं । लोग रोज के कपड़े लांड्री बैग में इकट्ठे करते जाते हैं फिर दो चार दिनों में एक बार किसी पास की लांड्री में जाकर दो तीन घंटों में कपड़े, धो सुखाकर ले आते हैं ।

हर स्ट्रीट में ऐसी कई लांड्री सहज दिखती हैं ।

भारत में भी कोई स्टार्टअप यह बिजनेस खड़ा करे तो शायद चल निकलेगा ।

कम ही लोगों के घरों में ही वाशिंग और ड्रायर मशीनें व्यक्तिगत होती हैं, जगह और इन्वेस्टमेंट दोनो की बचत, बेटे के घर पर दोनो ही मशीनें लगी हैं, इतना ही नहीं लाक डाउन की अवधि में जब श्रीमती जी को खुद कपड़े धोने सुखाने की नौबत आई तो बेटी ने आन लाइन सेमसंग का ड्रायर ही भेज दिया था तो अब वे भी धोकर कपड़े सीधे अलमारी में ही रखा करती हैं।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 15 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 15 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

किसी भी देश की राज मुद्रा वहां की संस्कृति की संवाहक भी होती है । आज बिट क्वाइन का जमाना आ चुका है । जल्दी ही भारत सरकार भी ई-रुपया जारी करने वाली है । हमारे रुपए बड़े रंग बिरंगे हैं, जिससे रंग, आकार से ही उसकी कीमत की पहचान हो जाती है । महात्मा गांधी जिन्हें कभी धन संपत्ति रुपयों से कोई लगाव नहीं रहा उन्हें राष्ट्र पिता बनाकर हमने हर नोट पर छाप रखा है।

यहां अमेरिका में हर डालर लगभग एक से रंग रूप और आकार का है, बस उस पर लिखा मूल्य अलग है । मतलब खर्च करने के लिए भी पढ़ा लिखा होना जरूरी है ।

यहां की करेंसी की जानकारी इस लिंक पर सुलभ है >> https://www.uscurrency.gov/denominations

नया जमाना डेबिट या क्रेडिट कार्ड के प्लास्टिक मनी जमाने से मोबाइल के टैप से खर्च करने में तब्दील हो चुका है । सब वे प्लेटफार्म में एंट्री के लिए किसी टिकिट की अनिवार्यता नहीं , बस अपना गूगल पे से जुड़ा मोबाइल टैप कीजिए और डालर अकाउंट से कट जायेंगे , गेट खुल जायेगा , भीतर जाइए और मनचाहा सफर कीजिए ।
रेस्त्रां में , किसी भी शाप पर खरीदी कीजिए और मोबाइल स्वाइप कर के भुगतान कर दीजिए ।

हमने एक प्रसिद्ध चाइनीज रेस्त्रां में भोजन किया , भुगतान के लिए मैंने अपना स्टेट बैंक आफ इंडिया का कार्ड देना चाहा तो बेटे ने देख कर बताया कि यदि उससे भुगतान किया गया तो प्रति डालर लगभग 9 रुपए अतिरिक्त लगेंगे, जो बैंक करेंसी कनवर्शन चार्ज है । बेटे ने बताया की वाइज एप सबसे कम चार्जेज पर इंटरनेशनल मनी कनवरशन करता है। उसने मुझे उसका चेज बैंक का कार्ड सौंप रखा है और उसी से सारे भुगतान करने की हिदायत दी है।

कितना बड़ा हो गया है वह जिसे लेकर कभी मैं स्कूटर पर उसकी पसंद की किताबे खरीदा करता था, अब वह मुझे कार में बैठा विदेश में मेरे लिए पूछ पूछ कर जबरदस्ती खरीदी करता है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 14 – पॉलिनेटर गार्डन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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पॉलिनेटर गार्डन

जंगली घास , खरपतवार पौधो को भी लगाया गया है, और उन्हें खाद पानी दिया जा रहा है। यह इसलिए कि मधुमक्खियां, तितलियां , कीड़े मकोड़े वर्ष भर इनके भरोसे जीवित रहते हैं और परागण प्रक्रिया में मदद करते हैं। ये कीड़े मकोड़े स्वयं भोजन होते हैं, चिड़ियों का ।

इस तरह प्रकृति चक्र चलता रहता है। शहरीकरण के साथ मिटती हरियाली और इस मानवीय हस्तक्षेप को उजागर कर, कम करने का पॉलिनेटर गार्डन लगाने का यह छोटा सा प्रयास सकारात्मक सोच प्रदर्शित करता मिला ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 13 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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डागी वेस्ट 

उम्दा नस्ल के प्यारे डागी पालना अच्छा शौक है। डागी के बहाने मालिक का भी सुबह शाम घूमना सुनिश्चित हो जाता है । मानसिक तनाव कम होता है। परिवार एक प्राणी का आश्रयदाता बनता है। खुशी मिलती है । बदले में इस बेवफा जमाने में, वफादारी मिलती है ।

पर इस सब से जुड़ी जो बड़ी समस्या है, वह है डागी की पाटी की । लोग कतई अपने कुत्तों को इस तरह ट्रेंड नही करते कि वे शौचालय में ही पाटी करें । अपने यहां बड़ी शान से मंहगी चेन में बंधे कुत्ते को लेकर कालोनी में साहब या मैडम निकलते हैं । फिर वह टामी, रोजी, ब्रूनो, ब्रेवो या जो कुछ भी हो, आपकी या अन्य किसी की भी मंहगी से मंहगी कार के टायर को सूंघता है और यदि वह गंध उसे भा गई तो निसंकोच आपके सामने ही एक टांग उठाकर निवृत हो लेता है । किसी के भी गेट के सम्मुख तक, कहीं भी पोट्टी करवाने में कुत्ते के मालिक जरा भी शर्मिंदा नहीं होते।

पर यहां देखने आता है की डाग वेस्ट मालिक की जबाबदारी है । लोग अपने डागी के साथ बाकायदा एक क्लीनिग स्टिक और पाली बैग लेकर चलते हैं । और डाग वेस्ट का प्रापर डिस्पोजल करते हैं । है न अच्छी अनुकरणीय बात ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

स्टेट लिबर्टी पार्क एवम अन्य अनेक स्थानों पर देखने मिले ये पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड। जहां आवश्यकता हो वहां , जो सूचना दिखानी हो वह कम्प्यूटर जनित पट्टिका ग्लोइंग लेटर्स में ।

पर फिलहाल मेरी रुचि इसमें नहीं थी कि बोर्ड पर क्या डिस्प्ले हो रहा है , अपने पाठको के लिए मेरी रुचि थी स्वयं इस पोर्टेबल साइन बोर्ड तकनीक पर । ऊपर सोलर पैनल लगे हैं , सूरज की रोशनी बैटरी चार्ज कर रही है , मतलब रात में भी डिस्प्ले बना रहेगा । गार्डन एरिया किसी तरह क्षति ग्रस्त नहीं होगा । यथा आवश्यकता साइन बोर्ड हटाया जा सकता है ।

है न कुछ छोटा पर भारत में बहुत अप्रयुक्त नया सा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 – डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 –  डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

डाक व्यवस्था 

मेघदूत की डाक व्यवस्था महाकवि कालिदास ने भारतीय वांग्मय में की थी, आज तक इस अमर साहित्य का रसास्वादन, पाठ प्रतिपाठ हम करते हैं और हर बार नए आनंद सागर में गोते लगाते हैं। सात समंदर पार मेरे सामान्य पाठको को जानने में रुचि हो सकती है कि भारत की तुलना में यहां की डाक व्यवस्था कैसी है?

भोपाल में तो मेरा पोस्टमैन होली दिवाली अपेक्षा करता है कि उसे एक मिठाई के डिब्बे के साथ कुछ बख्शीश मिले, आखिर वह मेरी बुक पोस्ट से लेकर समीक्षार्थ किताबो, पत्रिकाओं के स्पीड पोस्ट तक और कभी कभार पारिश्रमिक का मनीआर्डर भी लाया करता है। यद्यपि ई मेल और सीधे बैंक खाते में पेमेंट प्रणाली ने बहुत कुछ बदल दिया है, पर फिर भी डाक के इंतजार का मजा अलग ही होता है। पत्नी चुटकी लेती है, की जितना इंतजार और स्वागत डाकिए का इस घर में होता है उतना शायद ही कहीं होता हो ।

भारतीय पोस्ट आफिस नेटवर्क गांव गांव तक व्याप्त है, गंगाजल से लेकर तिरंगे की बिक्री तक का काम पोस्ट आफिस ने किए हैं।

यहां के डाक विभाग की सामान्य जानकारी इस लिंक पर है >> https://www.usps.com/

कल बेटे के साथ यू एस पोस्ट आफिस जाना हुआ, बेटे को कोई जरूरी रजिस्टर्ड डाक भेजनी थी , उसने घर पर ही पेमेंट करके ट्रेकिंग आई डी सहित एड्रेस प्रिंट कर लिया और उसे लिफाफे पर चिपका कर डाक तैयार कर ली । उसने बताया की वह चाहे तो इसका पिकअप भी घर से ही अरेंज हो सकता है, जिसमे समय लग सकता है, अतः हमने स्वयं डाकघर जाकर वहां डाक देने का फैसला किया । हम डाकघर गए, केवल एक व्यक्ति ही वहां काम पर था , उसने डाक लेकर रसीद हमे दे दी । कोई भीड़ नहीं, कोई लाइन नहीं । सेल्फ सर्विस । लगभग स्वचालित सा ।

घर के बाहर एक मेल बाक्स लगा हुआ है, जिसमे बेटे की ढेर सी डाक पोस्ट से, कुरियर से कब आ जाती है पता ही नहीं लग पाता।

पर दूर देश में संदेश का महत्व निर्विवाद है । चिट्ठी आई है चिट्ठी आई है।

यहां के जिन उपेक्षित, सामान्य, अनदेखे मुद्दों पर आप पढ़ना चाहें जरूर बताएं । अवश्य लिखूंगा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 10 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 10 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

रुकी हुई कार सड़क पार करता आदमी

आप को सड़क पार करता देख, बाअदब कोई मर्सडीज भी रुक जाए और स्टीयरिंग व्हील पर बैठा व्यक्ति मुस्करा कर आपको सड़क क्रास करने का इशारा करे, तो भारत में भले ही अजीब सा लगे, पर अमेरिका में स्टेट ला के अनुसार सड़क पर पहला अधिकार पैदल चलने वाले का होता है। जेब्रा क्रॉसिंग पर यदि कोई सिग्नल नहीं है तो बेधड़क बढ़ जाइए, निश्चिंत रहिए, कार रुक ही जायेगी ।

हिंदुस्तान में फर्राटे भरते, गड्ढों में भरा कीचड़ उछालते गाड़ियों पर सवार अमीरजादों के मनोभाव तो ऐसे होते हैं मानो उन्होंने सड़क ही खरीद ली हो। किंतु यहां की सीमित आबादी, सुशिक्षित जन साधारण, नियमो के प्रति आम आदमी का संवेदन शील रवैया, पोलिस की चाक चौबंद व्यवस्था वे कारण हैं जिनके चलते बिना भीड़ की सड़क पर भी रुकी हुई कार और सड़क पार करते आदमी का दृश्य यहां सहजता से देखने मिल जाता है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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