श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “विनम्रता”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 161 ☆
☆ लघुकथा – 🙏 विनम्रता 🙏 ☆
सरला के जीवन भर की कमाई उसकी अपनी विनम्रता है। इसी कारण कभी-कभी वह परेशानी में पड़ जाती थी। आज मानव सेवा आश्रम में पेड़ के नीचे लगी बेंच पर वह कुछ धार्मिक ग्रंथ पढ़ रही थी। रिमझिम बारिश की फुहार में अचानक उस घटना ने उसे सोचने को मजबूर कर दिया। जिसमें बिना कारण के वह अपने पति के गुस्से का शिकार हो गयी।
मामला यहां तक बढ़ा के पतिदेव कुणाल ने उसे घर से सदा सदा के लिए निकाल दिया। पांच वर्ष का बेटा रोता रहा परंतु पतिदेव की आत्मा न पिघली और न ही उसने माफ किया।
चलते चलते अचानक सरला गिर पड़ी। उसे कुछ याद न रहा। होश आने पर पता चला वह सुरक्षित किसी भली महिला के पास पहुंच चुकी है। जो असहाय और निराश्रित मानव की सेवा करती थी। अपने को संभालते सारा जीवन उसने मानव सेवा संस्थान में सेवा देने का मन बना लिया।
दुनिया की तरह तरह की बातों से दूर अब वह वहां आराम से रहने लगी।
सभी की सेवा करना सब का ध्यान रखना अपने हिस्से का सारा काम करके वह दूसरे का भी हाथ बटाती थी। सरला का नामों निशान मिट चुका था, अब वह विनम्रता के कारण विनू दीदी के नाम से जानी जाने लगी थी।
रिमझिम बारिश और मिट्टी की सोंधी महक तथा गरम गरम भजिए की खुशबू से वह बौखला गई।
जब भी ऐसा मौसम बनता विनू दीदी अपने आप को संभाल नहीं पाती थी। उसे देखकर लगता था कि असहनीय पीड़ा हो रही है।
यही वो समय था कुणाल के आने का इंतजार कर रही थी। हेमू बाहर खेल रहा था। सोचीं गरम-गरम भजिए तलकर कुणाल का इंतजार करती हूं। परंतु खेलते खेलते हेमू किचन में आ गया।
मम्मी की साड़ी पकड़ कर वह झूल गया। अचानक आने से सरला के हाथ से झरिया छूट गया और हेमू के गाल पर लगा। ठीक उसी समय पर कुणाल अंदर आया और अपने बच्चे को रोता देख इससे पहले सरला कुछ कहती। उसने तेल की गरम भरी कढ़ाई उठा सरला के सिर से पांव तक फेंक दिया।
चीख उठी सरला। देखा आसपास सभी खड़े थे क्या हुआ विनू दीदी फिर वही घटना याद आ गई। सफेद साड़ी के पल्ले से पोछते हुए सरला रोते रोते बोल पड़ी… मैंने कोई लापरवाही से चोट नहीं पहुंचाया था बस बता ना सकी। अपनी विनम्रता के कारण सब सहती रही।
तभी दौड़ते सभी कर्मचारी बाहर भागने लगे। पता चला किसी बुढ़े पिताजी को बेटे ने घर से निकाला है। और उसके शरीर पर जलने के निशान है।
पास आते ही सरला ने देखा वो और कोई नहीं कुणाल ही था।
सदा विनम्र रहने वाली सरला आज कठोर बन चुकी थी बोली.. इन्हें ले जाकर इलाज शुरू करवा दो। मुझे और भी काम निपटाना है।
कर्मचारियों ने देखा आंखों में आंसू चेहरे पर मुस्कान शायद वह वह आज भी विनम्र थीं।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈