हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ होली एवं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – लघुकथा – बहू उवाच ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर आपकी एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा ‘‘बहू उवाच’’)

☆ होली एवं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ? लघुकथा – बहू उवाच ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

मोहल्ले मोहल्ले होलिका दहन की तैयारियां जोर शोर से चल रही थी। स्पीकर पर होली के गीत प्रसारित हो रहे थे। चारों तरफ होलीमय वातावरण फैला पड़ा था।

एक घर की नववधू अपनी सास से बोली-आज इस मोहल्ले में एक साथ दो होली जलेंगी सासू मां, आप कौन सी होली पसंद करेंगी, घरवाली या बाहर वाली।

‘घरवाली होली भी होती है क्या? मैंने आज तक कहीं सुनी भी नहीं है बहू’। सास आश्चर्यचकित होकर गोली।

‘आज उसे भी देख लेना सासूजी, बड़ी लोमहर्षक होली होती है यह।’

‘इसी जलाता कौन है? और यह जलती कहां है बहू।’

‘ऐसी होली घर के किचन या बाथरूम के अंदर संपन्न होती है मां जी, इसे स्वयं बहू यह उसके सास ससुर, जेठ जेठानी, देवर देवरानी और नंनदें आदि जलाती है।’

‘तो क्या ऐसी होली हमारे घर में जलने वाली है’-सास ने बहू से पूछा।

‘हां माताजी यह होली हमारे घर में जलने वाली है इसके लिए मैंने सारा सामान जुटा लिया है। बस मैं थोड़ा सा श्रृंगार कर अभी हाजिर होती हूं, अपने हाथ से यह कार्यक्रम संपन्न कर लीजिए, मुझे बड़ी खुशी होगी।’

सास बुरी तरह चौकी फिर अपनी बहू के सिर पर हाथ फेर कर बोली – मुझे नहीं चाहिए तेरे पिता से ₹300000 तू मेरे घर की लक्ष्मी है, यह पाप मैं नहीं होने दूंगी, आज तूने मेरी आंखें खोल दी है। आज से तू मेरी बहू ही नहीं, मेरी बेटी भी है, ऐसी मनहूस बातें आज के बाद अपने मुंह से फिर कभी मत निकालना।

सास ने अपनी बहू को अपनी छाती से लगा लिया फिर सास बहू एक दूसरे से लिपट कर सिसक सिसक कर देर तक रोती रहीं।

🔥 🔥 🔥

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ होली पर्व विशेष – लघुकथा – राजा कटारे ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘‘राजा कटारे ’’)

☆ होली पर्व विशेष ? लघुकथा – राजा कटारे ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

‘क्यों राजा कटारे, कैसे खड़े हो’

राजा कटारे चौंका, उसने देखा कि होली की मूर्ति सजीव होकर उसकी ओर धीमे धीमे मुस्कुरा रही है। राजा कटारे होलिका से नजरें नहीं मिला सका, उसने नजरें झुका ली।

तभी उसे होलिका का अट्टहास सुनाई दिया ह:ह:ह:ह:–‘अरे निर्लज्ज मेरे सामने लजा रहा है, क्यों?’

‘जब अपनी औरत को आग लगाई थी, तब भी तू ऐसे ही मुस्कुरा रहा था-है न।’

‘अरे नामर्दों, क्यों ऐसे ही घटिया काम करके, खुद अपनी ही निगाहों में गिर जाते हो तुम जैसे घटिया लोग।’

‘मेरे ही समान न जाने कितनी होलिकाएं तुम्हारे घरों में जल जल कर राख हो रही है और तुम्हें पछतावा तक नहीं होता, क्यों?’

‘थू थू तुम अभी भी न जाने कब का बदला चुका रहे हो–मेरी और निहारो–मुझे मेरे भाई ने ही जलाया था—और उसके बाद तो औरतें जलाने का सिलसिला ही चालू हो गया, अभी भी वक्त है, संभल जाओ, और ध्यान रहे, नारी अब शक्तिपुंज होकर उभर रही है। अब यदि ऐसे में नारी भी बदला लेने पर उतारू हो जाए तो पूरे संसार में हाहाकार मच जाएगा।

राजा कटारे को— हाथ जोड़ती, अपने प्राणों की भीख मांगती, उसकी पत्नी दृष्टिगोचर हो रही थी। उसकी हालत पतली हो रही थी—और वह पश्चाताप की भीषण अग्नि में जला जा रहा था।

🔥 🔥 🔥

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 152 – होलिका दहन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय,स्त्री विमर्श  एवं होली पर्व पर आधारित एक सुखांत एवं भावप्रवण लघुकथा होलिका दहन”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 152 ☆

🌹 लघुकथा 🌹 होली पर्व विशेष – ❤️ होलिका दहन ?

मेघा पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी कंपनी में जॉब करती थी। सोशल मीडिया और मोबाइल आज की जिंदगी में सभी पर हावी है। ऐसे ही शिकार हुई अपने ऑफिस के सुधीर के साथ और लिव-इन-रिलेशनशिप  में रहने लगे।

समय पंख लगा कर उड़ चला पता ही नहीं चला। किसी बात को लेकर दोनों में दूरी हो गई और मामला अलग अलग होने का हो गया।

मेघा मानसिक परेशान हो अपने घर वापस आ गई। वर्क फ्रॉम होम करते हुए घर परिवार में स्थिर हो खुश रहना चाहती थी। परंतु सुधीर के साथ बिताए हुए पल और उसके साथ की सभी मोबाइल पर तस्वीरें उसे परेशान कर रही थी।

घरवालों मेघा को कुछ समझ पाते, इसके पहले ही विवाह का निर्णय लेने लगे। घर पर खुशियाँ छा गई।

मेघा की शादी होना है। एक अच्छे परिवार से लड़का शिवा से उसका विवाह निश्चित हुआ। मेघा को डर था कि वह कि वह आज का लड़का है।  उसकी सारी बातें वह सब जान जायेगा।और सुधीर की बातें शिवा के सामने आ जायेगी।

शादी को कुछ वक्त था। मेघा का होने वाला पति शिवा होलिका दहन के दिन अचानक आ गया। सभी उसकी खातिरदारी में लग गए। मेघा के चेहरे का रंग उड़ा जा रहा था।

वह बड़े प्यार से मेघा के कमरे में आया। “मेघा… चलो आज हम होलिका दहन, शादी के पहले देख आएं।”

“शादी के बाद तो ससुराल की पहली होली होती है। पर मैं चाहता हूं शादी के पहले होलिका दहन में तुम्हें लेकर जाऊं।”

तैयार हो घरवालों का आदेश ले शिवा के साथचल पड़ी। पास ही मैदान में होलिका को सजाया गया था। शिवा धीरे से मेघा का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला…” मुझे सुधीर ने सब कुछ बता दिया है। वह बहुत अच्छा लड़का है।”

” मुझे तुम्हारे पुराने रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है, परंतु मैं चाहता हूं तुम सब कुछ भूल कर इस होलिका दहन में खत्म करके नए सिरे से मेरे साथ विश्वास और पूरी जिंदगी खुशी के साथ रहना चाहोगी। वचन दो  यदि तुम्हें मंजूर है तो…” मेघा इतना सुनते ही पास रखी थाली से गुलाल ले आसमान में खुशी से उछाल कर होली के गीत पर नाचने लगी।

दोनों हाथों से लाल रंग लिए शिवा उसके मुखड़े पर लगा रहा था।

होलिका की परिक्रमा लगाते मेघा के नैन अश्रुं से भीगते चले जा रहे थे।

लाल गुलाबी चुनर से मेघा का सिर ढाकते शिवा होलिका दहन पर विजयी अनुभव कर रहा था।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – “बेरंग होली” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

  ☆लघुकथा – “बेरंग होली” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

होली का दिन । दम साधे बैठे रहे दिन भर कि कोई रंग लगाने आएगा । आमतौर पर पड़ोसी इकट्ठे होकर आ जाते और गेट पर ही गुलाल मल देते , माथे पर तिलक लगाकर छोड़ देने की गुहार बेकार जाती । फिर हमें भी अपने साथ लेकर दूसरे पड़ोसी के द्वार पर दस्तक देते । सब होली लगाने आने वालों को कुछ न कुछ मीठा खिलाते । नये नये आए थे तब पता नहीं था इधर के रीति रिवाज का । फिर पता चला तो हम भी रंग के पैकेट्स लाने के साथ साथ मिठाई भी लाने लगे ताकि सबका मुंह मीठा करवा सकें । कल शाम हम मिठाई और रंग के पैकेट्स खरीद लाये थे और नजरों व हाथ के करीब ही रखे थे ताकि दूसरों को रंगने में चूक न जायें और मुंह भी मीठा करवा सकें । होली पर पहने जाने वाले कपड़े भी छांटकर रख लिए थे ।

होली का दिन धीरे धीरे सरकने लगा और सरकता ही गया । पहले सोचा कि नाश्ता वाश्ता करके लोग निकलेंगे । बच्चों की पिचकारियाँ तो शुरू होकर कब की खत्म भी हो गयीं लेकिन बड़े नहीं निकले तो दिन भर नहीं निकले ।

न कोई कोरोना , न किसी के घर कोई शोक और न दुख । फिर क्या हुआ इस बार ? होली बेरंग क्यों रह गयी ? हमारे आस पड़ोस की सड़क रंगों से सराबोर क्यों न हो पाई ?

-ओह । आप भूल गये क्या मेरी सरकार ।

-क्या ? क्या भूल गये हुजूर ?

-वो पड़ोस वालों को अपने घर के आगे कार पार्क करने से आपने रोका जो था ?

-अच्छा ? चलो । वो तो हमने रोका पर सबके सब एक दूसरे को तो रंग लगा सकते थे ।

-कैसे ? फिर भूल गये भुलक्कड़ साहब ।

-अरे यार । एक बार में बता दो न । क्या छोटे छोटे सीन बता कर उत्सुकता बढ़ाती जा रही हो ।

-याद नहीं ? जब पड़ोस के सरदार जी रिनोवेशन करवा रहे थे , तब उनका सारा सामान कहां पड़ा रहता था ?

-वो सामने वाले खट्टर के घर के सामने ।

-याददाशत तो सही है ।

-क्यों फिर यह कैसे भूल रहे हो कि इसी बात को लेकर दोनों में इतनी लड़ाई हुई कि बात पुलिस तक शिकायत तक पहुंची ।

-हां । यार । खूब याद दिलाई । मुझे भी पुलिस चौकी बुला रहे थे पर मैं पड़ोसियों के झमेले में गया ही नहीं । हाथ जोड़कर माफी मांग ली थी ।

-आप दोनों ओर से बुरे बन गये । फिर आपके रंग लगाने कौन आता ?

-ओह । यह बेरंग होली ,,,,

क्या आगे भी बेरंग होती जायेगी ?

मेरे लाये रंग और मिठाई मेरा ही मुंह चिढ़ा रहे थे ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – “नामकरण” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

  ☆लघुकथा – “नामकरण” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

कच्चे घर में जब दूसरी बार भी कन्या ने जन्म लिया तब चंदरभान घुटनों में सिर देकर दरवाजे की दहलीज पर बैठ गया । बच्ची की किलकारियां सुनकर पड़ोसी ने खिड़की में से झांक कर पूछा -ऐ चंदरभान का खबर ए ,,,?

-देवी प्रगट भई इस बार भी ।

-चलो हौंसला रखो ।

-हाँ , हौसला इ तो रखेंगे बीस बरस तक । कौन आज ही डिक्री की रकम मांगी गयी है । डिक्री ही तो आई है । कुर्की जब्ती के ऑर्डर तो नहीं ।

-नाम का रखोगे ?

-लो । गरीब की लड़की का भी नाम होवे है का ? जिसने जो पुकार लिया सोई नाम हो गया । होती किसी अमीर की लड़की तो संभाल संभाल कर रखते और पुकार लेते ब्लैक मनी ।

दोनों इस नाम पर काफी देर तक हो हो करते हंसते रहे । भूल गये कि जच्चा बच्चा की खबर सुध लेनी चाहिए ।

पड़ोसी ने खिड़की बंद करने से पहले जैसे मनुहार करते हुए कहा -ऐ चंदरभान, कुछ तो नाम रखोगे इ । बताओ का रखोगे?

-देख यार, इस देवी के भाग से हाथ में बरकत रही तो इसका नाम होगा लक्ष्मी । और अगर यह कच्चा घर भी टूटने फूटने लगा तो इसका नाम होगा कुलच्छनी ।

पड़ोसी ने ऐसे नामकरण की उम्मीद नहीं की थी । झट से खिड़की के दोनों पट आपस में टकराये और बंद हो गये ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 112 ☆ लघुकथा – अब अहिल्या को राम नहीं मिलते ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘अब अहिल्या को राम नहीं मिलते’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 112 ☆

☆ लघुकथा – अब अहिल्या को राम नहीं मिलते ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

पुलिस की रेड पड़ी  थी। इस बार वह पकड़ी  गई। थाने में महिला पुलिस फटकार लगा रही थी – ‘ शर्म नहीं आती तुम्हें शरीर बेचते हुए? औरत के नाम पर कलंक हो तुम। ‘ सिर नीचा किए सब सुन रही थी वह। सुन – सुनकर पत्थर- सी हो गई है। पहली बार नहीं पड़ी थी यह लताड़, ना जाने कितनी बार लोगों ने उसे उसकी औकात बताई है। वह जानती है कि दिन में उसकी औकात बतानेवाले रात में उसके दरवाजे पर खड़े होते हैं पर —।

महिला पुलिस की बातों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। उसे अपनी बात कहने का हक  है ही कहाँ? यह अधिकार तो  समाज के तथाकथित सभ्य समाज को ही है। उसे तो गालियां ही सुनने को मिलती हैं। वह एक कोने में सिर नीचे किए चुपचाप बैठी रही। बचपन में  माँ  गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या की कहानी सुनाती थी। एक दिन जब ऋषि  कहीं बाहर गए हुए थे तब इंद्र गौतम ऋषि का रूप धरकर उनकी कुटिया में पहुँच गए। अहिल्या  इंद्र को अपना पति ही समझती रही। गौतम ऋषि के वापस आने पर  सच्चाई पता चली। उन्होंने गुस्से में अहिल्या को शिला हो जाने का शाप दे दिया। पर अहिल्या का क्या दोष था इसमें? वह आज फिर सोच रही थी, दंड तो इंद्र को मिलना चाहिए? 

उसने जिस पति को जीवन साथी माना था, उसी ने इस दलदल में ढ़केल दिया। जितना बाहर निकलने की कोशिश करती, उतना धँसती जाती। अब जीवन भर इस शाप को ढ़ोने को मजबूर है। सुना है अहिल्या को राम के चरणों के स्पर्श से मुक्ति मिल गई थी। हमें मुक्ति क्यों नहीं मिलती? उसने सिर उठाकर चारों तरफ देखा। इंद्र तो बहुत मिल जाते हैं जीती-जागती स्त्री को बुत बनाने को, पर कहीं कोई राम क्यों नहीं मिलता? 

©डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – पगडंडी ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी – लघुकथा – पगडंडी)

☆ कथा कहानी ☆  लघुकथा – पगडंडी ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

एक लम्बी सड़क में से थोड़ी-थोड़ी दूरी में कई पगडंडियांँ निकलती थीं। एक दिन एक पगडंडी ने सड़क से कहा – तुम्हारे तो मज़े होंगे बहन! कहीं खेत, कहीं पहाड़, कहीं नदी, कहीं झील, कहीं बाग़। तुम तो रोज़ नए नजारे देखती हो। और फिर तुम्हारी देह पर कितनी सुन्दर-सुन्दर गाड़ियांँ दौड़ती हैं- काली, सफ़ेद, लाल, नीली, पीली और उन गाड़ियों में सुन्दर चेहरे, ख़ुशबू, संगीत हंँसी… मज़ा आ जाता होगा। नहीं? एक मैं हूंँ। कभी-कभी कोई आता है। आता भी कौन है – बैलगाड़ी, ऊंँटगाड़ी, कंधे पर हल लादे किसान – दलिद्दर जिनके चेहरों से टपकता है, सिर पर लकड़ियों या घास के गट्ठर लादे औरतें या दिशा-मैदान जाते ऊंँघते से आदमी… फ़क़त!

सड़क ने एक ठंडी सांँस ली – शुक्र कर कि तू सड़क नहीं है। हर रोज़ दुर्घटनाओं में लोगों को मरते देखती हूंँ, परिजनों की चीख़ों से दिल दहल जाता है। कभी अलग-अलग समुदायों के लोग मेरी छाती पर चढ़कर आपस में मारकाट करने लगते हैं। कभी मेरी देह पर धरना देते मजदूरों या छात्रों पर लाठियां गोलियांँ बरसने लगती हैं। मैं ख़ून से सन जाती हूंँ। अभी पिछला ख़ून सूखता नहीं कि एक और झरना फूट पड़ता है। हर समय अपनी देह को ख़ून से लिथड़े देखना कितना वीभत्स है, तुम क्या जानो। काश मैं पगडंडी होती!

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –एक दिन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – एक दिन ??

“एक दिन मेरे पास चार-छह एकड़ में फैला बंगला होगा।….एक दिन मेरे पास दुनिया की सबसे महंगी कार होगी।…. एक दिन मेरे पास अपना चार्टर्ड प्लेन होगा….एक दिन मेरे पास ये होगा…एक दिन मेरे पास वो होगा…।”

दिन आते रहे, दिन जाते रहे। विचार को कर्म का आधार नहीं मिला। विचार बस विचार रहा, व्यवहार में नहीं उतरा। उस एक दिन की प्रतीक्षा में दिन-रात एक तरह की नींद में बीतते रहे। नींद का एक्सटेंशन होता रहा।

एकाएक एक दिन, सचमुच वो एक दिन आ गया। उस दिन वह मर गया।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – किस्साए तोता मैना ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत हृदयस्पर्शी एवं विचारणीय लघुकथा ‘‘किस्साए तोता मैना’’)

☆ लघुकथा – किस्साए तोता मैना ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल 

जग जहान छोड़कर इस कमरे में पहले आया एक लड़का फिर आई एक लड़की। दोनों ‘लिव इन’ में रहने चले आए थे।

लड़की अपने पहले प्रेम के प्रतीक में खरीद कर लाई एक मैना और लड़का लेकर आया एक तोता सुंदर सलोना।

लड़का लड़की कमरे में और तोता मैना पिंजरे में, दोनों जोड़े प्रेम का ककहरा पढ़ रहे थे।

प्यार बढ़े तो बढ़ता ही जाए। अतृप्त होने का नाम तक न ले। समय की सीमाएं तोड़ता जाए और प्यार की नई परिभाषाएं गढ़ता जाए। तोता मैना अपने मालिकों को प्यार में भीगते देख अपने पंख फड़फड़ा कर खुशियां जाहिर करते।

दोनों के टिफिन होटल से आ रहे थे। बचा खुचा तोता मैना को भी मिल जाता। सलाद, चटनी, दही, हरी-हरी मिर्चियां।

कुछ ज्यादा दिन नहीं बीते थे। एक दिन तोता उदास होकर बोला- ‘सुन री मैना, औरत जब विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो प्यार की मर्यादा टूटने में फिर ज्यादा देर नहीं लगती है।’

मैना बोली- ‘सुन तोते, अपनी आंखें खुली रख। आदमी भी कोई दूध का धुला नहीं होता। कोई दूसरी भा जाए तो पहले प्यार को एक झटके में कच्चे सूत सा तोड़कर यह जा वह जा, न जाने कब निकल जाए।

फिर दोनों ने मिलकर जो देखा तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गई। लड़का लड़की दोनों एक दूसरे से आंखें चुरा कर बेवफाई कर रहे थे। मोबाइल पर छुप छुप कर बतिया रहे थे।

हाथ कंगन को आरसी क्या? एक दिन लड़की पिछले दरवाजे से निकल भागी। अगले दरवाजे से लड़का भी दबे पांव निकल भागा। वहां एक पक्षी जोड़ा रह गया अभागा।

दोनों ही अपने अपने मालिकों की विरह वेदना में तड़प रहे थे। बुरी तरह छटपटा रहे थे। उनके पेट में एक दाना भी नहीं गया था।

मैना आंखों में अश्रु भरकर बोली- ‘कहां तो मैं सोचती थी कि मैं भी लड़कियों की तरह दुल्हन बनती। कोई तोता मुझे ब्याहने आता। बारातियों को साह जी के बाग के मीठे मीठे अमरुद परोसे जाते। पर पकड़ लाया दुष्ट बहेलिया और सबसे बड़ी खतरनाक तो निकली यह लड़की। पिंजरे मैं मुझे कैद कर खुद फुर हो गई।’

तोता बोला _ ‘सुन मैना सुनैना, मेरे भी सपने थे। तोतियों के बीच से एक सुंदर तोती चुनता। जोड़ा बनाता। सुंदर-सुदर तोता मैना पैदा कर वंश वृद्धि में सहायक होता, पर दुर्भाग्य ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।’

मैना सिसककर बोली- ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। आ तोता, जिंदगी का आखिरी भाग प्यार की अनुभूति जगाकर मनाएं। अगले जन्म का सुखद सपना देखें और मृत्यु को गले लगाएं।’

उनके शरीर कंकालों में तब्दील होते चले गए।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ कोरोना सन्दर्भ – “निगेटिव रिपोर्ट का कमाल —” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है कोरोना सन्दर्भ में आपकी एक लघुकथा   – “निगेटिव रिपोर्ट का कमाल ”)

☆ लघुकथा ☆ निगेटिव रिपोर्ट का कमाल —” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

(कोरोना सन्दर्भ)

10 दिन की जद्दोजहद के बाद एक आदमी अपनी कोरोना नेगटिव की रिपोर्ट हाथ में लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था।

आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे  थे, उसका अभिनंदन कर रहे थे।

जंग जो जीत कर आया था वो।

लेकिन उस शख्स के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी।

गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा “आइसोलेशन” नामक खतरनाक और असहनीय दौर का वो मंजर।

न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा, अपर्याप्त उजाला, मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता, कोई बात नही करता था और न ही कोई नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भर कर सरका दिया जाता था।

कैसे गुजारे उसने  वे 10 दिन, वही जानता था।

घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी और बच्चों को छोड़ कर वह शख्स सीधे घर के एक उपेक्षित कोने के कमरे में गया, जहाँ माँ पिछले पाँच वर्षों से पड़ी थी। माँ के पावों में गिरकर वह खूब रोया और उन्हें लेकर बाहर आया।

पिता की मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्षों से एकांतवास (आइसोलेशन )भोग रही माँ से कहा कि माँ आज से आप हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे।

माँ को भी बड़ा आश्चर्य लगा कि आख़िर बेटे ने उसकी पत्नी के सामने ऐसा कहने की हिम्मत कैसे कर ली? इतना बड़ा हृदय परिवर्तन एकाएक कैसे हो गया?  बेटे ने फिर अपने एकांतवास की सारी परिस्थितियाँ माँ को बताई और बोला अब मुझे अहसास हुआ कि एकांतवास कितना दुखदायी होता है? 

बेटे की नेगटिव रिपोर्ट उसकी जिंदगी की पॉजिटिव रिपोर्ट बन गयी।

(अनाम लेखक)

इसके आगे की कथा मैंने जनहितार्थ  लिखी

बेटे ने अपनी निगेटिव रिपोर्ट को चूमते हुए देखा कि कोरोना वायरस दो मीटर दूर खड़ा जाने की इजाजत मांग रहा है। बेटा हाथ जोड़कर बोला- तुम्हारे कारण मुझे दस दिन की तकलीफ तो हुई, पर मेरी माँ की पाँच साल की तकलीफ दूर हो गई। तुम्हारा बहुत…बहुत ” कहते बेटे की आँखों से दो बूँद धन्यवाद टपक पड़ा ।

वायरस की भी आँख भर आई बोला-” हम अति सूक्ष्म हैं तो क्या? माँ-बाप तो हमारे भी होते है।और हम उन्हे अपने साथ ही रखते हैं । खैर, अपना और अपने माँ-बाप का खयाल रखना। याद रहे दवाओं के साथ दुआएं भी लो तो इम्युनिटी जल्दी बढ़ती है। अच्छा तो अब हम चलते हैं।”

“क्या अब यहाँ  से सीधे वापिस चीन जाओगे?” बेटे ने पूछा

नहीं नहीं, इतनी जल्दी नहीं। अभी उन कुछ घरों में और जाना है, जिन घरों के माँ-बाप पाँच साल से अब तक एकांतवास (आइसोलेशन) में हैं। “

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print