हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – प्रतिवाद – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं मनोवैज्ञानिक लघुकथा “– प्रतिवाद –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी ☆ — प्रतिवाद — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

मेरे गाँव के वयोवृद्ध बालकिसुन दादा अपने दिल से विद्वान थे। वही विद्वता उनके ओठों से प्रस्फुटित होती थी। वे मुझसे बोले थे अमेरिका ने गिन लिया आकाश में कितने तारे हैं। दादा एक दिन तो बोले भारत अब इतना बलवान हो गया है कि सब देशों को नचा नचा कर मार सकता है। उनकी मृत्यु होने पर मैं सोच रहा था क्या मैंने कभी उनसे प्रतिवाद किया होगा? मैं उनके सामने पल कर बड़ा हुआ था।

***

© श्री रामदेव धुरंधर
09 – 12 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 146 ☆ लघुकथा – अनुष्ठान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा अनुष्ठान। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 146 ☆

☆ लघुकथा – अनुष्ठान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

असल में पूरी पंडिताइन हैं वह। अरे भाई ! गजब की पूजा-पाठी। कोई व्रत-त्यौहार नहीं छोड़तीं। करवाचौथ, हरितालिका सारे व्रत निर्जल रहती है। आज के समय में भी प्याज-लहसुन से परहेज है। अन्नपूर्णा देवी का व्रत करती है। इस बार उद्यापन करना है। बड़ी धूमधाम से तैयारी भी चल रही है। इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन कराना। दान-दक्षिणा अपनी श्रद्धा तथा सामर्थ्य के अनुसार। पूजा की सामग्री में इक्यावन मिट्टी के दीपक लाने हैं। कुम्हारवाड़ा घर से बहुत दूर था। पास के ही बाजार में एक बूढ़ी स्त्री दीपक लिए बैठी दिख गई। पच्चीस रुपये में इक्यावन दीपक खरीद लिए गए। पंडिताइन ने पचास का नोट निकालकर बूढ़ी उस स्त्री को दिया और दीपक थैले में रखने लगी।

पंडित जी ने बोला है–“दीपकों में खोट नहीं होना चाहिए। किसी दीपक की नोंक जरा-सी भी झड़ी न हो। ” देखभाल कर बड़ी सावधानी से दीपक रखने के बाद, पंडिताइन ने पच्चीस रुपए वापस लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया।

बूढ़ी माई ने धुंधली आँखों से पचास के नोट को सौ का नोट समझ, पचहत्तर रुपए पंडिताइन के हाथ में वापस रख दिए। पंडिताइन की आँखें चमक उठीं। वह बड़ी तेजी से लगभग दौड़ती हुई-सी वहाँ से चल दी।

अपनी गलती से अनजान बूढ़ी माई शेष दीपकों को करीने से संभाल रही थी। अन्नपूर्णा देवी के अनुष्ठान की तैयारी अभी बाकी थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 1 ☆ लघुकथा – नदिया ऊपर नाव… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचरणीय लघुकथा – “नदिया ऊपर नाव…”।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 1 ☆

✍ लघुकथा – नदिया ऊपर नाव… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह 

मैं बाज़ार में सब्जी खरीद रहा था तभी एक व्यक्ति ने नमस्कार किया। मैंने देखा कि शिवा था। शिवा ने एक मजदूर सुपरवाइजर के रूप में मेरा बंगला बनाया था। बड़ा अच्छा कारीगर था। उसका व्यवहार भी अच्छा था। मकान बनने के बाद जब कभी मिलता तो बड़ी इज्जत से नमस्कार करता और कहता साहब कोई काम हो तो बताइएगा। इसलिए मैं उसे भूल नहीं पाया था। लेकिन आज वह कुछ मुरझाया सा दिखा। मैंने पूछा कि क्या बात है मुंह क्यों लटकाए हुए हो। उसने कहा कि साहब अपने ठेकेदार साहब के साथ पंद्रह साल से काम कर रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु चार दिन पहले उन्होंने काम से निकाल दिया।  मैं नहीं जानता कि इन लोगों की सेवा कैसे सुरक्षित है, कोई पेंशन है या नहीं। प्रोविडेंट फंड तो मिलता है शायद। मेरी तंद्रा टूटी और मैंने महसूस किया कि वह मेरे सामने ही खड़ा है। मैंने उससे कहा कि तुम्हारे साथ तो काफी लोग काम करते थे। उन्हें इकट्ठा करके तुम लेबर कांट्रेक्टिंग कर सकते हो। मुझे लगा कि मेरी बात सुनकर वह कुछ सहज हो गया है। मैंने कहा कि कभी कभार घर आ जाया करो। उसने आश्वासन में हाथ जोड़ दिए और मैं घर की ओर चल दिया। उसके बाद शिवा नहीं मिला और बात आई गई हो गई।

ऐसे ही एक दिन पास के पार्क में शाम की सैर पर निकला था। सामने एक सज्जन ने रास्ता रोका और मेरा हालचाल पूछा। मैंने देखा चौहान साहब थे, नगर के जाने माने ठेकेदार। मैंने खुशी जताते हुए उन्हें धन्यवाद दिया कि उनके बनाए गए मेरे बंगले में आजतक किसी भी बारिश में एक बूँद पानी नहीं आया। उनके चेहरे पर भी मुस्कान उभर आई। और मेरे साथ ही टहलने लगे। बातचीत में बोले साहब अब माहौल बहुत बदल गया है। बोले,”आपको याद होगा मेरा सुवरवाइजर शिवा, जिसने आपके बंगले का काम किया था।” मैंने कहा “हाँ हाँ मुझे याद है। कुछ साल पहले मुझे मिला था, दुखी था, कह रहा था कि आपने उसे काम से निकाल दिया।” वे बोले “निकाला नहीं साहब मजबूरी थी । जब मुझे काम नहीं तो उसे कहाँ से देता।”” मैंने कहा कि वह तो ठीक है पर उसकी बात क्यों निकल आई।” “साहब बात इसलिए निकल आई कि वह आज लेबर कांट्रेक्टर है। मेरे पास एक बड़ा काम आ गया तो मैं उसके पास लेबर मांगने गया तो उसने साफ मना कर दिया। जिसे मैंने काम करना सिखाया वही काम नहीं आया।” यह कहकर वे अपनी गाड़ी की ओर चल दिए। फिर मुझे अचानक याद आया कि कुछ वर्ष पहले शिवा को मैंने क्या सुझाव दिया था।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : पुणे महाराष्ट्र 

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 51 – जीवन का सुख…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – जीवन का सुख।)

☆ लघुकथा # 51 – जीवन का सुख  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

तुम्हारे जीवन में यह चार लोग कौन हैं? मुझे आज तक यह नहीं समझ में आया। पतिदेव कम से कम एक दिन उनके दर्शन करा दो। उनके नाम यू रोज-रोज बातें मत बनाओ?

 ऐसे मत जाओ, बाहर नौकरी मत करो। इस तरह के कपड़े मत पहनो। मेरे ऊपर तुम इतना अनुशासन लगाते  हो?

क्या तुम भी कभी यह चार लोगों की बातें सुनते हो क्या?

भाग्यवान जो बातें मैं कहता हूं, वह तुम्हारे भले के लिए कहता हूं। पीठ पीछे हंसी उड़ाते हैं लोग।

पीठ पीछे तो लोग भगवान को भी नहीं छोड़ते और लोगों की बातें सुनने लग गई तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। जिंदगी एक बार मिली है क्या हम खुलकर नहीं जी सकते? यह चार लोग तो घड़ी चौराहे नुक्कड़ में बैठकर कुछ ना कुछ तो कहेंगे ही और जब हम खुश रहेंगे तो हमारी खुशी से जलेंगे। मैं जैसी हूं वैसे ही मुझे रहने दो। मुझे किसी के सामने टोकना नहीं, वरना मेरा मुंह सबके सामने खुल जाएगा। तब मत कहना कि- भरे  समाज में मेरी बेइज्जती कर दी। समझो पतिदेव जीवन का सत्य, सुखी जीवन बिताने में ही है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 211 – सिल्वर जुबली यादें ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय हृदयस्पर्शी लघुकथा सिल्वर जुबली यादें”।) 

श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 211 ☆

🌻लघु कथा🌻 🌧️ सिल्वर जुबली यादें 🌧️

अभी कुछ महीने पहले ही 25वीं शादी की सालगिरह मनाते दोनों पति-पत्नी ने एक दूसरे को सोने में जड़ी हीरे की अंगूठी पहनाई थी।

खुशी का माहौल दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था। क्योंकि बिटिया की शादी की तैयारी चल रही थी, मेहमानों का आना-जाना लगा था। सारी व्यवस्था एक होटल से ही की गई थी क्योंकि बारात और लड़के वालों ने एक ही साथ मिलकर शादी समारोह की व्यवस्था की थी।

घर में कहने को तो सभी पर केवल पैसे से खेलने, पैसों से बात करने, और पैसों से ही सारी व्यवस्था करना, सबको अच्छा लग रहा था।

बिटिया के पिताजी का बैंक बैलेंस शून्य हो चुका था। फरमाइश को पूरा करते-करते अब थकने लगे थे। होटल में कुछ ना कुछ सामान बढ़ते जा रहा था। एडवांस के बाद भी होटल मैनेजर बड़ी बेरुखी से बोला- सर अभी आप तुरंत पैसों का इंतजाम कीजिए नहीं तो इसमें से कुछ आइटम कम करना पड़ेगा।

उसने अपने सभी रिश्तेदारों के बीच अपनी बदनामी को डरते इशारे से अभी आता हूँ कह लार चले गए। पत्नी को समझते देर न लगी। आगे- पीछे देखती रही। पति आँख बचाकर ज्योंही  मैनेजर के केबिन में आकर अपनी अंगूठी उतार देते हुए कहने लगे –  यह अंगूठी अभी-अभी की है। फिलहाल आप गिरवी के तौर पर इसे रखिए क्योंकि मैं तुरंत पैसे का इंतजाम नहीं कर सकूंगा। पीछे से पत्नी ने अपने अंगूठी उतार देती बोली- मैनेजर साहब यह दोनों अंगूठी बहुत कीमती है। यह रही रसीद।

आप चाहे तो दुकानदार से पल भर में पता लगा लीजिए। परंतु सारी व्यवस्था रहने दीजिए। पतिदेव पत्नी का रूप देख कुछ देर सशंकित रहे, परंतु बाद में धीरे से कंधे पर हाथ रखते हुए बोले- हमारी सिल्वर जुबली यादें तो हमारे साथ है।

अभी वक्त है हमारी बिटिया के पारंपरिक जीवन का, शादी विवाह का।

मैनेजर भी हतप्रभ था। ड्यूटी से बंधा था। भींगी पलकों से रसीद और अंगूठी उठाकर रखने लगा। सोचा क्या ऐसा भी होता है?

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – गरीब का घर – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “– गरीब का घर –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी ☆ — गरीब का घर — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

मैं अस्सी से कम शब्दों में एक अद्भुत घटना को बांध रहा हूँ। एक गरीब आदमी ने अपनी मृत्यु के समय अपनी पत्नी से कहा, “वहाँ थोड़ा पैसा है। मैंने बचा रखा है। सोचता था संकट आये तो तुमसे कहूँगा घबराना मत, पैसा है।” उसकी पत्नी उसके प्राण के लिए रोते — रोते उसी के प्रवाह में बोली, “मैंने भी थोड़ा पैसा बचा रखा है। सोचती थी संकट आये तो तुमसे कहूँगी घबराना मत, पैसा है।” 

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© श्री रामदेव धुरंधर
07 – 12 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बीज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – बीज ? ?

वह धँसता चला जा रहा था। जितना हाथ-पाँव मारता, उतना दलदल गहराता। समस्या से बाहर आने का जितना प्रयास करता, उतना भीतर डूबता जाता। किसी तरह से बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, बुद्धि कुंद हो चली थी।

अब नियति को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

एकाएक उसे स्मरण आया कि जिसके विरुद्ध क्राँति होनी होती है, क्राँति का बीज उसीके खेत में गड़ा होता है।

अंतिम उपाय के रूप में उसने समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना आरम्भ किया। आद्योपांत निरीक्षण के बाद अंतत: समस्या के पेट में मिला उसे समाधान का बीज।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – जन्मदिन… ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ☆

सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी पिछले 40 वर्षों से अधिक समय से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018)

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा जन्मदिन।

? लघुकथा – जन्मदिन ? सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ?

पहली कक्षा में पढने वाला अक्षत शहर के नामीगिरामी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता है. हर कक्षा में एयर कंडीशनर ,भव्यइमारत ,बहुत बड़ा खुला खेल का मैदान,सुंदर बगीचा इस स्कूल को सबसे अधिक प्रतिष्ठित बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं. एक साल की फ़ीस लाखों में है .

कल स्कूल से लौटकर अक्षत बहुत उत्साहित था –‘ मम्मी , कल जॉनी का बर्थडे है बहुत मजा आएगा. हम सबको गिफ्ट मिलेगी .’ मम्मी जानती है इन स्कूलों में तामझाम होते ही रहते हैं .बर्थडे पर क्लास के सब बच्चों को केक चौकलेट्स देने का प्रचलन है .

अगले दिन अक्षत स्कूल से लौटा,बड़े उत्साह से अपनी गिफ्ट पेन्सिल रबर.स्केल रखने का पाऊच दिखाया और बताया सबने चॉकलेट केक खाया . मम्मी ने उत्सुकता से पूछ ही लिया –‘यह जॉनी तुम्हारी क्लास में है या…..’

‘ओ मम्मा—-जॉनी किसी क्लास में नहीं पढ़ता. वह तो हमारे स्कूल का डौगी है . प्रिंसिपल के ऑफिस के बाहर बैठा रहता है…..’मम्मी का मुंह विस्मय से खुला ही रह गया —‘क्या –‘ तब तक अक्षत अपनी गिफ्ट दोस्तों को दिखाने बाहर निकल गया .

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 50 – खुशी के पल… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – खुशी के पल…।)

☆ लघुकथा # 50 – खुशी के पल… श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

आज इतना जल्दी-जल्दी सब काम कर रही हो? खाना भी बनाकर रख दिया, नाश्ता भी कर दिया, कहीं जाने की तैयारी है क्या? लग रहा है आज तुम्हारी किटी पार्टी है!

हां अरुण आज हमारी पार्टी है और मैं ही पार्टी दे रही हूं। नाश्ता भी पैक करा कर ले जाऊंगी।  तुम यह समझ लो हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। तुम्हें अकेले ही जाना होगा?

ठीक है मैं किसी को छोड़ने को कहां कह रही हूं।

मैं अपनी सहेली मीरा के साथ चली जाऊंगी।

तभी मीरा घर के बाहर जोर से चिल्लाती है – चलो चलना नहीं है क्या?

बहन, हां मैं तो तैयार हूं चल रही हूं।

बहन, चलो पैदल चलते हैं। 50 समोसे के लिए पास की दुकान वाले को बोल दिया है। और बाकी नाश्ता पैक कर के कमला मौसी ले आएंगी।

तभी एक ऑटो वाला आता है वह कहता है – बहन जी कहां जाना है?

हां भैया चलना तो है पर दुकान वाला अभी समोसे तले तो चलते हैं। अरे बहन जी छोड़ो दुकान वाले को बाहर से ले लेना रास्ते में बहुत सारे मिलेंगे। और वह दुकान वाले को चिल्ला के बोलता है दे दो बहन जी ऑटो में ही बैठकर खा लेंगी।

तभी रूबी बोलती है कि नहीं नहीं भैया हमें थोड़ा ज्यादा लेना है तुम जाओ?

हां मैं समझ गया बहन जी आप लोगों को भंडारा करना है ठीक है 5 समोसा मुझे भी दे दो इस गरीब का भी कुछ भला कर देना।

अरे भैया मुझे स्टेशन जाना है छोड़ोगे क्या जल्दी?

 तभी एक आदमी भी ऑटो में आकर बैठ जाता है।

हां हां रुक जाओ। यह बहन जी लोगों को लेकर चलता हूं। रहने दो मैं दूसरे ऑटो से जाऊंगी तुम इन्हें लेकर जाओ।

क्या भैया कहां से पनौती आ गये?

मैं अच्छा खासा मैडम लोगों से पैसे भी लेता और खाने को भी मिल रहा था चलो अब?

पता नहीं कहां-कहां से लोग आ जाते हैं रूबी ने चिल्ला कर कहा देखो मीरा गलतफहमी कैसी कैसी लोगों को हो जाती है।

चलो सखी थोड़ी सी देर हम लोग खुश हो जाते हैं तो इसमें घर वाले को एतराज होता है। अब बाहर यह ऑटो वाले को देखो यह भी…।

दोनों सखियां जोर-जोर से हंसने लगते हैं। सच्ची दोस्त ही यह बात समझ सकती है।

छोड़ो सखी सबको खुशी के पल जहां से मिले उसे ले लेना चाहिए।

****

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उजास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – उजास ? ?

अमावस की गहन रात में चार पथिक मिले। जिज्ञासा ने चारों से एक ही प्रश्न पूछा, ‘क्या दिख रहा है?’ ….’घुप्प अंधेरा है’, पहले ने उत्तर दिया। दूसरे ने कहा, ‘सवाल ही ग़लत है। अंधेरे में कभी कुछ दिखता है क्या?’ तीसरे ने कहा, ‘बेहद लम्बी काली रात है।’ चौथे ने कहा, ‘रात है, सो सुबह की आस है।’… समय साक्षी है कि केवल चौथा पथिक ही उजास तक पहुँचा।

?

© संजय भारद्वाज  

(संध्या 4:58 बजे, 13 सितम्बर 2022)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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