हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – प्रश्नोत्तर ☆ सुश्री मीरा जैन

सुश्री मीरा जैन 

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री मीरा जैन जी  की अब तक 9 पुस्तकें प्रकाशित – चार लघुकथा संग्रह , तीन लेख संग्रह एक कविता संग्रह ,एक व्यंग्य संग्रह, १००० से अधिक रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से व्यंग्य, लघुकथा व अन्य रचनाओं का प्रसारण। वर्ष २०११ में  ‘मीरा जैन की सौ लघुकथाएं’ पुस्तक पर विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) द्वारा शोध कार्य करवाया जा चुका है।  अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद प्रकाशित। कई अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत। २०१९ में भारत सरकार के विद्वान लेखकों की सूची में आपका नाम दर्ज । प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर पांच वर्ष तक बाल कल्याण समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं उज्जैन जिले में प्रदत्त। बालिका-महिला सुरक्षा, उनका विकास, कन्या भ्रूण हत्या एवं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि कई सामाजिक अभियानों में भी सतत संलग्न। पूर्व में आपकी लघुकथाओं का मराठी अनुवाद ई -अभिव्यक्ति (मराठी ) में प्रकाशित। 

हम समय-समय पर आपकी लघुकथाओं को अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैआपकी पुस्तक मीरा जैन की सौ लघुकथाएं में से एक लघुकथा – ‘प्रश्नोत्तर’। संयोगवश इस लघुकथा पर आधारित एक लघुफिल्म श्री अनिल पतंग जी के निर्देशन में बनी है जिसे आप निम्न लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं। 

यूट्यूब लिंक 👉 BEST HINDI SHORT FILM लघु फिल्म- प्रश्नोत्तर, लघुकथा – मीरा जैन, पटकथा/निर्देशन- अनिल पतंग।

☆ कथा-कहानी : लघुकथा – प्रश्नोत्तर ☆ सुश्री मीरा जैन ☆

 एक विदेशी लेखक ने अपने भारतीय दोस्त से फोन पर बात करते हुए शुरुवाती औपचारिकताओं के पश्चात भारत की वर्तमान व्यवस्था पर लेख लिखने हेतु जानकारी मांगी-

 विदेशी – ‘अच्छा बताओ आपके यहाँ विद्युत आपूर्ति कैसी है?’

भारतीय – ‘यार/बहुत कम है।’

विदेशी – ‘जलापूर्ति कैसी है ?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम है।’

विदेशी – ‘वहाँ सड़कें कैसी हैं?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम है।’

विदेशी – ‘ भारत में रोजगार के अवसर कैसे हैं ?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम हैं”

विदेशी – ‘क्या तुम सभी क्षेत्र में आई इस कमी का मुख्य कारण बता सकते हो ?’

भारतीय – ‘हाँ! इस कमी का मुखी कारण जनाधिक्य के साथ नेताओं का आवश्यकता से अधिक होना है।’

© मीरा जैन

संपर्क –  516, साँईनाथ कालोनी, सेठी नगर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

फोन .09425918116

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 99 ☆ क्लीअरेंस ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा क्लीअरेंस।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 99 ☆

☆ लघुकथा – क्लीअरेंसडॉ. ऋचा शर्मा ☆

सर ! इस फॉर्म पर आपके साईन चाहिए क्लीअरेंस करवाना है  – विभाग प्रमुख से एक छात्रा ने कहा।

ठीक है। आपने विभाग के ग्रंथालय की सब पुस्तकें वापस कर दीं ?

सर! मैंने  पुस्तकें ली ही नहीं थी। जरूरत ही नहीं पड़ी।

अच्छा, पिछले वर्ष पुस्तकें ली थीं आपने ?

नहीं सर, कोविड था ना, ऑनलाईन परीक्षा हुई तो गूगल से ही काम चल गया। सर पाठ्यपुस्तकें  भी नहीं खरीदनी पड़ी, बी.ए.के तीन साल ऐसे ही निकल गए  – छात्रा  बड़े उत्साह से बोल रही थी। सर, जल्दी साईन कर दीजिए प्लीज, ऑफिस बंद हो जाएगा।

सर मन में धीरे से बुदबुदाए – कैसा क्लीअरेंस है यह ? पुस्तकें पढ़नी चाहिए ना! और साईन कर दिया। पास बैठे एक शिक्षक बोले – सर!  मैं तो कब से कह रहा हूँ किताबें कॉलेज के ग्रंथालय को वापस कर देते हैं, कोई पढ़ता तो है नहीं, झंझट ही खत्म। कुछ बोले बिना विभाग प्रमुख ने उनकी ओर गौर से देखा मानों पूछ रहे हों आप ?

 शिक्षक महोदय भी नजरें चुरा रहे थे।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्मकथा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना – माधव साधना (11 दिवसीय यह साधना गुरुवार दि. 18 अगस्त से रविवार 28 अगस्त तक)

इस साधना के लिए मंत्र है – 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

(आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं )

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि –  आत्मकथा ??

अनंत बार जो हुआ, वही आज फिर घटा। परिस्थितियाँ पोर-पोर को असीम वेदना देती रहीं। देह को निढाल पाकर धूर्तता से फिर आत्मसमर्पण का प्रस्ताव सामने रखा। विवश देह कोई हरकत करती, उससे पूर्व फिर बिजली-सी झपटी जिजीविषा और प्रस्ताव को टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिया। फटे कागज़ का अम्बार और बढ़ गया।

किसीने पूछा, ‘आत्मकथा क्यों नहीं लिखते?’… ‘लिखी तो है। अनंत खंड हैं। खंड-खंड बाँच लो’, लेखक ने फटे कागज़ के अम्बार की ओर इशारा करते हुए कहा।

© संजय भारद्वाज

प्रात: 4:27 बजे,19.8.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 98 ☆ पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘पुत्र का मान’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 98 ☆

☆ लघुकथा – पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

तुमने अपने भाई को फोन किया ? पिता ने बड़ी बेसब्री से बेटी से दिन में तीसरी बार पूछा।

नहीं, हम करेंगे भी नहीं। वह जब आता है गाली-गलौज करता है। आप दोनों को भी कितनी गालियां सुनाता था। दो समय का खाना भी बिना ताना मारे नहीं देता था आपको।हम यह सब सहन नहीं कर पा रहे थे इसलिए आप दोनों को अपने घर ले आए।

वह तो ठीक है बेटी! पर माँ का अंतिम समय है – पिता ने दुखी स्वर में कहा, उसे तो बताना ही पड़ेगा। क्या पता कब प्राण निकल जाए।

तब देखा जाएगा। जब हम अपनी ससुराल में रखकर आप दोनों की देखभाल कर सकते हैं तो आगे भी सब निभा सकते हैं। आप उसकी चिंता मत करिए।

पिता ने सोचा बेटी के घर में माँ चल बसीं तो बेटा समाज को क्या मुँह दिखाएगा। मौका पाकर बेटे को फोन कर बता दिया। बेटा – बहू घड़ियाली आँसू बहाते आए और बोले क्या हाल कर दिया मेरी माँ का। जी – जान से वर्षों माता- पिता की सेवा करनेवाली बहन पर माँ की ठीक से देखभाल ना करने के आरोप लगाए।

‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष के साथ माँ की अंतिम यात्रा बेटे के घर से निकल रही थी। अर्थी को कंधा देकर बेटे ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था और पिता ने पुत्र का मान बचाकर।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – बच्च न मारना ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – बच्च न मारना ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(स्वतंत्रता दिवस पर कुछ सवाल करतीं लघुकथा)

ऐसा अक्सर होता ।

मैं खेतों में जैसे ही ताजी सब्जी तोड़ने पहुंचता,  तभी मेरे पीछे बच्च न मारना की गुहार मचाता हुआ दुम्मन मेरे पास आ पहुंचता। थैला लेकर खुद सब्जी तोड़ कर देता । मैं समझता कि वह अपने लाला का एक प्रकार से सम्मान कर रहा है।

एक दिन दुम्मन कहीं दिखाई नहीं दिया । मैं खुद ही सब्जी तोडने लगा । जब तक इस काम से निपटता,  तब वही पुकार मेरे कानों में गूंज उठी- लाला जी, बच्च नहीं मारना । लाला जी,,,,,,

लेकिन पास आते आते वही सब्जी के पौधों और बेलों को रूंड मुंड देखकर उदास हो गया ।

एकाएक उसके मुंह से निकला- आखिर आज वही बात हुई, जिसका डर था,,

-क्या हुआ ?

-लाला जी, आज आपने बच्च मार ही दिया न,,,?

-क्या मतलब ? मैंने क्या किया है ?

-आप लाला लोग तो थैला भरने की सोचेंगे,  कल की नहीं सोचेंगे। बच्च का मतलब बहुत छोटी सब्जी,  जिस पर आज नहीं बल्कि कल की आशाएं लगाई जाती हैं । यदि उसे भी आज ही तोड़ लिया जाए तो  तोड़ने कल आप खेतों में क्या पायेंगे ?

-अरे, गलती हो गई।

मैं चला तोड़ने मेरा थैला किसी अपराधी की गठरी समान भारी हो गया। मैं किसी को कह भी नही सका कि मैंने तो सब्जी ही खराब की हैं,  लेकिन जो नेता अगली पीढी को राजनीति की अंधी दौड में दिशाहीन किए जा रहे हैं, वे देश के कल को बर्बाद नहीं कर रहे?

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – घड़ी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि –  लघुकथा – घड़ी ??

अंततः यमलोक को झुकना पड़ा। मर्त्यलोक और यमलोक में समझौता हो गया। समझौते के अनुसार जन्म के साथ ही बच्चे की कलाई पर यमदूत जीवनकाल दर्शाने वाली घड़ी बांध जाता। थोड़ी समझ आते ही अब हर कोई कलाई पर बंधी घड़ी की सूइयाँ पीछे करने लग गया।

वह अकाल मृत्यु का युग था। उस युग में हर कोई जवानी में ही गुज़र गया।

केवल एक आदमी उस युग में बेहद बुजुर्ग होकर गुज़रा। सुनते हैं, उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी बचपन में ही उतार फेंकी थी।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – अधूरे ख्वाब ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना कौस्तुभ जी की एक विचारणीय लघुकथा अधूरे ख्वाब। 

 ☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – अधूरे ख्वाब ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆ 

सृजन माता-पिता का इकलौता बेटा था, दोनों का सपना था बेटा बड़ा होकर बहुत बड़ा गायक बने क्योंकि वह कभी नहीं बन पाये इसीलिए बेटे को सिंगर बनाने के लिए जी जान से जुट गए।

ढाई साल की उम्र से ही टीचर संगीत सिखाने घर आने लगे थे । सृजन को बस एक ही काम करना पड़ता था गाना गाना और सिर्फ गाना।सृजन का बचपन संगीत के सुर में उलझ कर रह गया।

धीरे-धीरे पूरा घर रिकॉर्ड्स वाद्य यंत्रों और सीडी प्लेयर्स से भर गया था।

आजकल अच्छे गायक बनने के लिए सबसे पह टीवी प्रोग्राम में आना जरूरी था इसलिए टीवी शो के लिए कड़ी जद्दोजहद, हफ्तों की प्रक्रिया और धूप गर्मी को झेलते हुए आखिरकार सृजन ऑडिशन राउंड में आ पहुचा, लेकिन तीसरे राउंड में पास नहीं हुआ ।

माता-पिता को हताश निराश और खुद की नाकामी पर सुंदर ने डिप्रेशन का सुर पकड़ लिया और नर्वस ब्रेकडाउन के साथ एक बचपन खत्म हो गया,,,,,,,,

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

मो 9479774486

जबलपुर मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लघुकथा # 150 ☆ “सहानुभूति” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा – “सहानुभूति”)  

☆ कथा-कहानी # 150 ☆ लघुकथा –  “सहानुभूति” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

स्याह अंधेरे को चीरती अमरकंटक एक्सप्रेस अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही है। कड़ाके की ठंड में सामने की बर्थ में दाढ़ी वाला आदमी कांप रहा है, पतला सा कंबल ओढ़े वह धुप्प अंधेरे में भागते पेड़ पौधों को ताक रहा है। अचानक ट्रेन एक छोटे से प्लेटफार्म में रुकती है, कुछ यात्री शयनयान में घुसते हैं, उसकी निगाह एक सुंदर सी नवयौवना पर जाती है, काले लम्बे बाल सुन्दर नाक नक्श वाली वह नवयुवती जगह तलाशती हुई उस दाढ़ी वाले से अनुनय विनय करके उसके बगल में बैठ जाती है। 

ट्रेन अपनी स्पीड पकड़ लेती है। घड़ी की सुइयां रात्रि साढ़े बारह बजने का संकेत दे रहीं हैं। सभी यात्री अपनी अपनी बर्थ में सो गए हैं, कुछ जाग रहे हैं। 

युवती दाढ़ी वाले से सटती जा रही है और वह बेचारा संकोचवश खिड़की तरफ दबा जा रहा है। बड़ी देर बाद युवती ने ऐसा क्या किया कि वह आदमी चौकन्ना सा होकर अपने कंबल को बार बार समेटने लगा, शहडोल स्टेशन आने को है कि अचानक मैंने देखा युवती दाढ़ी वाले की सोने की चैन खींच चुकी थी एवं युवती ने चिल्लाना शुरू कर दिया था, बचाओ….. बचाओ ये दाढ़ी वाला आदमी मेरी इज्जत लूटने की कोशिश कर रहा है, इस बीच मैंने देखा उसने अपना ब्लाउज फाड़ लिया और साड़ी के पल्लू को पेटीकोट से अलग कर दिया। कोलाहल से कोच के अधिकांश लोग जाग गये एवं हम लोगों की बर्थ के पास काफी लोग इकट्ठे हो गए, गाड़ी स्टेशन पर खड़ी हो गई, उस युवती ने रोना धोना शुरू कर दिया है, भीड़ बढ़ रही है, भीड़ से मारो… मारो.. की आवाज से दाढ़ी वाला आदमी कांप उठा है, पर वह चुपचाप अपनी जगह पर ही बैठा हुआ है। भीड़ की आवाजें सुनकर वहां से गुजर रहे पुलिस वाले दौड़कर कोच में घुसे तब तक भीड़ ने उस दाढ़ी वाले को लात घूसों से तर कर दिया है और पुलिस वालों के आते ही उस पर कई डण्डे पड़ चुके हैं। वह कराह उठा, वह बेचारा हक्का बक्का सा मार खाते हुए कुछ बोलना चाहता था पर उसकी आवाज कोलाहल में गुम हो जाती थी। मैंने भी भीड़ और पुलिस को समझाने की कोशिश की तो दो चार डण्डे मुझे भी पड़ चुके थे। युवती बिफरती हुई धीरे धीरे कोच से बाहर भागने की फिराक में थी, भीड़ के कुछ लोग उसकी सुंदरता से घायल से हो गये थे और उस दाढ़ी वाले को कोस रहे थे। एक ने मां बहन की गाली बकते हुए कहा – साला चलती ट्रेन में युवती की इज्जत पर हाथ डाल रहा था। पुलिस वाले उस दाढ़ी वाले पकड़ कर घसीटते हुए प्लेटफार्म पर उतार रहे थे, वह लगातार अपने कंबल को मुंह में दबाए हुए कह रहा था – साब मेरी कोई ग़लती नहीं है बल्कि उस युवती ने मेरे सोने की चैन खींच ली है, ऐसा सुनते ही पुलिस वाले ने उस पर लातों की बरसात कर दी वह पस्त होकर जमीन पर गिर गया। पुलिस वाले ने जैसे ही उसका कंबल पकड़ कर घसीटना चाहा, कंबल पुलिस वाले के साथ में आ गया और भीड़ यह देखकर दंग रह गयी कि उस दाढ़ी वाले के दोनों हाथ कटे हुए थे और वह बेचारा अपाहिज कराह उठा। अचानक भीड़ उस युवती को तलाशने मुड़ गई, पर वह युवती भाग चुकी थी। भीड़ से आवाज आई कि ये आदमी उस युवती का ब्लाउज और साड़ी तो फाड़ ही नहीं सकता, इसके तो दोनों हाथ ही नहीं है, जरुर वह युवती जेबकतरे गैंग से संबंधित होगी पर रोज चलने वाले ये सिपाही जरूर युवती को जानते होंगे। इतना सुनते ही पुलिस वाले डण्डा पटकते हुए आगे बढ़ गये…..

इंजन की ओर हरी बत्ती चमक उठी, इंजन सीटी बजा रहा है, भीड़ देखते देखते ट्रेन में समा गई, लोग व्याकुल होकर खिड़कियों से झांक रहे हैं, अनायास मेरे हाथ जंजीर तक पहुंच गये और एक झटके के साथ ट्रेन रुक गई, भीड़ का हुजूम दाढ़ी वाले की तरफ टूट पड़ा, मेरे बाजू वाला यात्री भीड़ के चरित्र पर हंस पड़ा, दाढ़ी वाले के लिए सहानुभूति की लहर फैल चुकी थी और भीड़ ने उस दाढ़ी वाले को अपने सर पर उठा लिया फिर ट्रेन धीरे से चल पड़ी ….।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – किसान ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – किसान ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

मित्रो, यह मेरी लेखन यात्रा की सबसे पहली लघुकथा है , जो अपने ही संपादन में प्रकाशित प्रयास पत्रिका के लघुकथा विशेषांक में सन् 1970 में लिखी और प्रकाशित की । कहते हैं कि पुराने चावल बहुत स्वादिष्ट होते हैं । क्या, इस लघुकथा में ऐसी कोई महक आ रही है ? बताइएगा जरूर।

-कमलेश भारतीय

जब उसने बैलाें काे खेताें की तरफ हांका ! तब उसे लगा कि उसमें असीम शक्ति है । वह बहुत कर सकता है ! बहुत कुछ । जब उसने बीज बाेया ! तब उसे लगा कि उसने अपने दिल से छाेटा हिस्सा खेत में बिखेर दिया । जब उसने सिंचाई की ! तब उसे लगा अपना स्नेह बहा दिया । और फ़िर अंकुर फूटे-उसके सपने जन्मने लगे । और फसलें लहलहाने लगीं । उसके सपने लहलहाने लगे । उसे लगने लगा कि समूचा आकाश रंगीन ताराें सहित उसके खेताें में उतर आया है ।

फसल लाद कर घर से बैल-गाड़ी हांकने लगा ताे पत्नी ने अपनी फ़रमाइशें रख दीं । वह मुस्कराता रहा । मंडी में उसने बैलगाड़ी राेकी ताे उसे महसूस हुआ मानाें किसी श्मशान में आ रुका है ! जहां छाेटे-बड़े गिद्ध पहले से उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

फसल बिक़ी – हिसाब बना ।

जाने किसने किससे बेईमानी की थीं । वह उधार के हाथाें नक़द का दांव हार गया । ब्याज के हाथाें मूल गंवा आया । वह फ़िर खाली हाथ था । फटे हाल था । बैल भूखे थे । वह भूखा था । वह लालपरी के संग काेई लाेक-संगीत गुनगुनाता हुआ वापिस जा रहा था आैर उसे लग रहा था कि आकाश बहुत ऊंचा है तथा तारे कितने फ़ीके हैं ! रात कितनी अजब अंधेरी है । गांव तक पहुंच पायेगा कि नहीं?

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – लैंस ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि – लघुकथा – लैंस ??

….दादू, स्कैनर ख़राब हो गया है। कैमरा की इमेज कैप्चर कैपेसिटी ख़त्म हो गई है। स्टोरेज भी फुल हो गया है। अब फोटो नहीं आएगी।

वह सोचने लगा, आँख का लैंस तो ताउम्र फोटो खींचता है। बल्कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, दिखना भले कम होता जाये, स्कैनिंग की क्षमता बढ़ती जाती है। स्टोरेज कभी फुल नहीं होता। चित्र धुँधलाते ज़रूर हैं पर याद का लेप लगाने पर गहरे होकर उभरते हैं।

…दादू, टेक इट ईजी। कूल…आजकल टेक्नोफास्ट एज है। लेटेस्ट टेकनीक है। इंजीनियरिंग इज ऑन इट्स टॉप। कल ठीक करा लाऊँगा।

सचमुच तकनीक और इंजीनियर में फ़र्क तो है, उसने सोचा और आँख का लैंस हौले से मूँद लिया।

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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